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वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज
मई, 2019 में जबरदस्त जीत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी की तेज शुरुआत की.
नई सरकार बनने के महज पांच महीनों के भीतर हुए इन अलग-अलग फैसलों में एक चीज साझा है जो इन्हें एक धागे में बांधती है. वो धागा है- मुस्लिम समुदाय को लेकर एक खास हिंदूवादी सोच का.
कथा जोर गरम है कि मोदी-2.0 का पहला साल बीतते-बीतते मुस्लिम विरोध का ये धागा बेहद मजबूत हो चुका है. इतना मजबूत कि सियासी आसमान में लहराती बीजेपी की पतंग से फिलहाल कोई पॉलिटिकल पार्टी पेंच लड़ाती नहीं दिखती.
मोदी सरकार की दूसरी पारी के पहलेसाल में देश में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ माहौल काफी गरम हुआ है. जिसकी झलक
तक में देखी जा सकती है.
नई सरकार के नए गृह मंत्री अमित शाह पहले दिन से ही जबरदस्त फॉर्म में दिखे. लोग यहां तक सोचने लगे कि अगर बीजेपी ने अपने सारे पुराने मुद्दे पहले ही साल में पूरे कर दिए तो आगे के लिए बचेगा क्या? तीन तलाक बिल पर फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को बेअसर करना उनमें काफी अहम था. ये जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेट्स को खत्म कर उसे बाकि देश के साथ मिलाने के नाम पर हुआ लेकिन लागू होने के तरीके ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए.
संवैधानिक कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा के मुताबिक,
‘’जिस तरीके से हमने लागू किया उसमें ये सेंटर की स्पेशल पावर थी. ये कश्मीरियों की स्पेशल पावर नहीं थी और हमने अपनी पावर कम कर ली. हमारी जो एक ग्लोबल छवि थी, उस छवि पर सवालिया निशान लग गए, हमारे लोकतांत्रिक होने में. हमारे मूलभूत अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर कमिटमेंट पर प्रश्नचिन्ह लग गए. और आज वहां 10 महीने के बाद टोटल लॉकडाउन है. हम 2जी से 4जी इंटरनेट नहीं दे पा रहे हैं. आप सोचिए वहां तो मौलिक अधिकार जितने पहले थे अब उतने भी नहीं हैं.’’
दिसंबर, 2019 में नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए. ‘कागज नहीं दिखाएंगे’ के नारों में तमाम धर्मों और तमाम वर्गों की आवाजें शामिल थी. सोशल मीडिया और कई मौकों पर मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी इन प्रदर्शनों को मुस्लिम समुदाय की साजिश साबित करने की पूरी कोशिश की. कई जानकार मानते हैं कि निपट चुके पुराने मसलों के बाद सीएए का मुद्दा बीजेपी की लंबी सियासी रणनीति का हिस्सा है.
लेखक और रिसर्च इंस्टीट्यूट सीएसडीएस के एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद कहते हैं कि,
‘’नागरिकता का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम परिप्रेक्ष्य में लाकर एक लॉंग टर्म पॉलिटिक्स की शुरुआत की गई है. और पहले से जो चार आयाम मुस्लिम विरोधी राजनीति के बने हुए थे उनके साथ इसे आत्मसात करवाया गया. यानी अब ऐसा लगता है कि सीएए एक तयशुदा कानून है जिसका फायदा हिंदुओं को होगा और मुसलमान उसके विरोधी होंगे. तो ये जो बाइनरी हम हिंदू-मुस्लिम की क्रिएट करते हैं उसका सीधा फायदा बीजेपी अगले कुछ वर्षों में लेना चाहती है. यही मोदी 2.0 की सबसे महत्वपूर्ण परिघटना है.’’
विरोध का केंद्र बना दिल्ली का शाहीन बाग तो खासतौर पर दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहा. बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने 15 जनवरी, 2020 को एक वीडियो ट्वीट किया. जिसमें बताया गया कि शाहीन बाग की महिलाएं प्रदर्शन नहीं ड्यूटी कर रही हैं और वो भी 500 रुपये और बिरयानी के बदले.
फरवरी, 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार की एक वीडियो क्लिप सुर्खियों में रही. वीडियो में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर नारा लगा रहे थे कि देश के गद्दारों को.. और भीड़ जवाब देती है गोली मारों @#$% को.
अब इस पर हैरानी मत जताइए कि आखिर पार्टी ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? इसे समझना इतना सीधा नहीं है. प्रोफेसर हिलाल अहमद के मुताबिक इसके कई आयाम हैं-
हालांकि, इस कैंपेन के बावजूद दिल्ली चुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. चुनाव के फौरन बाद 24 फरवरी, 2020 को देश की राजधानी दिल्ली हिंदू-मुस्लिम दंगों की आग से धधक उठी. दिनदहाड़े हत्याएं, घरों-दुकानों में आग, सरेआम लूटपाट और इन सब के बीच बेबस पुलिस-प्रशासन.
दंगों के बाद शुरू हुआ कोरोना वायरस का लॉकडाउन और ‘दंगों से जुड़ी’ गिरफ्तारियों का सिलसिला. ये गिरफ्तारियां नागरिकता कानून के खिलाफ मुखर रहे सफूरा जरगर, मीरन हैदर, जैसे स्टूडेंट एक्टिविस्ट और कश्मीर के पत्रकार मसरत जहरा और पीरजादा आशिक जैसे लोगों की थीं और सबसे खास बात ये कि उन पर आरोप आतंकवाद विरोधी कानून यानी UAPA के तहत लगाए गए.
फैजान मुस्तफा कहते हैं कि
23 अप्रैल, 2020 को देश के 101 पूर्व नौकरशाहों ने तमाम मुख्यमंत्रियों को खुला खत लिखा जिसमें मुसलमानों के खिलाफ रवैये पर सवाल उठाए गए थे. चिट्ठी लिखने वालों में पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, पूर्व आईपीएस ऑफिसर एएस दुल्लत और जुलियो रिबेरो, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एसवाई कुरैशी जैसे लोग शामिल हैं.
30 अप्रैल, 2020 को सोशल मीडिया पर एक विवादास्पद पोस्ट के मामले में दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जफरुल इस्लाम खान के खिलाफ देशद्रेह की एफआईआर दर्ज की गई. उन्होंने आरोप लगाया कि खास वजह से उन्हें निशाना बनाया गया है.
वो कहते हैं कि,
‘’देश की जो मेजोरिटी है उसे ये मैसेज दिया गया कि हम विकास ना कर पाए हों, हम अर्थव्यवस्था को ठीक ना कर पाए हों, हम तुम्हारा जीवन ना बदल पाए हों लेकिन हम तुम्हें सुरक्षा देने में कामयाब हैं क्योंकि तुम्हें खतरा जो है वो बाहर से ज्यादा अंदर से है.तो जब पाकिस्तान की बात होती है तो मकसद पाकिस्तान नहीं होता. जो देश के अंदर, बकौल इनके, जो छोटे-छोटे पाकिस्तान हैं उनकी बात की जाती है.’’
तो अब आप समझे कि आखिर मोदी 2.0 का पहला साल क्यों ‘मुस्लिम विरोध’ का ग्रीन जोन बना और सांप्रदायिक सौहार्द सियासी लॉकडाउन में चली गई? दरअसल, बात भले ही बीजेपी के एक बड़बोले सांसद ने कही हो लेकिन पार्टी का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता दिल की गहराई से शायद यही मानता है- ‘’जो हिंदू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा.’’
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