इस वक्त संसद से लेकर सड़क तक नागरिकता संशोधन एक्ट को लेकर बहस तेज है. देश भर में इसका विरोध हो रहा है. लेकिन आखिर इसमें ऐसा है क्या कि जिसको लेकर विवाद खड़ा हो गया है. चलिए समझते हैं.
क्या है नागरिकता संशोधन एक्ट 2019?
यह एक्ट सिटिजनशिप एक्ट, 1955 में संशोधन करता है. इस एक्ट के तहत कोई भी ऐसा व्यक्ति भारतीय नागरिकता हासिल कर सकता है जो भारत में जन्मा हो या जिसके माता/पिता भारतीय हों या फिर वह एक तय समय के लिए भारत में रहा हो. एक्ट में नागरिकता देने के और भी प्रावधान हैं. यह एक्ट अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से रोकता है.
तय समय तक रहने वाले प्रावधान के तहत सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के जरिए ऐसा व्यक्ति भारत की नागरिकता हासिल कर सकता है, जो पिछले 12 महीनों के दौरान भारत में रहा हो, साथ ही पिछले 14 सालों में कम से कम 11 साल भारत में रहा हो. नागरिकता संशोधन बिल 2019, 3 देशों से आए 6 धर्म के लोगों को इस प्रावधान में ढील देने की बात करता है.
संशोधन से किसे मिली राहत
ढील के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई (इन धर्मों के अवैध प्रवासी तक) के लिए 11 साल वाली शर्त 5 साल कर दी गई है. ऐसे में इन देशों से आए मुस्लिमों को पहले से मौजूद कानूनी प्रावधान के तहत ही नागरिकता के लिए अप्लाई करना पड़ेगा.
ओवरसीज सिटिजन्स ऑफ इंडिया
नया नागरिकता संशोधन एक्ट, सिटिजनशिप एक्ट, 1955 में ओवरसीज सिटिजन्स ऑफ इंडिया (OCI) का रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने के मौजूद प्रावधानों में एक नया प्रावधान जोड़ने की बात करता है. इस प्रावधान के तहत अगर कोई OCI भारत के किसी भी कानून का उल्लंघन करता है, तो उसका रजिस्ट्रेशन कैंसिल हो जाएगा.
वे विदेशी सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के तहत OCI के तौर पर अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, जो भारतीय मूल के हैं या फिर उनके पति/पत्नी भारतीय मूल के हैं. OCI को भारत में घूमने, पढ़ने और काम करने के अधिकार जैसे फायदे मिलते हैं.
कहां लागू नहीं होगा CAA?
इस एक्ट के प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों में लागू नहीं होंगे. इन इलाकों में कार्बी आंगलॉन्ग (असम), गारो हिल्स (मेघालय), चकमा डिस्ट्रिक्ट (मिजोरम) और त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज डिस्ट्रिक्ट शामिल हैं.
छठी अनुसूची में शामिल इलाकों को स्वायत्त जिला परिषद (ADC) के विशेष अधिकार मिले हुए हैं. ADC आदिवासी इलाकों के विकास जैसे उद्देश्यों के लिए अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले विषयों पर कानून बना सकते हैं.
नागरिकता संशोधन एक्ट 2019 के प्रावधान बंगाल ईस्टर्न रेग्युलेशन्स, 1873 के तहत इनर लाइन के अंदर आने वाले इलाकों पर भी लागू नहीं होंगे. बता दें कि इनर लाइन परमिट अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड के इलाकों को रेग्युलेट करता है. यह एक विशेष परमिट होता है, जिसकी जरूरत भारत के दूसरे हिस्सों के नागरिकों को इनर लाइन के तहत आने वाले इलाकों में जाने के लिए पड़ती है.
क्यों है इस एक्ट पर विवाद?
इस एक्ट के खिलाफ देश के कई हिस्सों में लगातार प्रोटेस्ट हो रहे हैं. विपक्षी पार्टियों के अलावा छात्र बड़ी तादाद में इसका विरोध कर रहे हैं. इसी पर प्रदर्शन के दौरान दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस घुसी और हिंसा हुई. इसको लेकर पूरे देश में विरोध तेज हो गया. दसियों यूनिवर्सिटियों के छात्रों ने प्रदर्शन किया. साथ ही विदेशी छात्रों ने भी इसका समर्थन किया. बॉलीवुड का एक बड़ा हिस्सा इसके खिलाफ बोल रहा है.
एक्ट का विरोध कर रहे लोगों को आशंका है कि जब नागरिकता कानून के बाद NRC आएगा तो ऐसे मुसलमान जिनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें नागरिकता साबित करने में दिक्कत होगी. जबकि जो गैर मुस्लिम हैं, वो ये कह सकते हैं कि वो शरणार्थी हैं और पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में सताए जाने के बाद भारत आ गए हैं...इसलिए CAA के तहत राहत चाहिए.
किसी भी तरह से नागरिकता संशोधन बिल गैर संवैधानिक नहीं है. न ही ये आर्टिकल-14 का उल्लंघन करता है. आर्टिकल-14 में जो समानता का अधिकार है, उसके तहत रीजनेबल क्लासीफिकेशन के आधार पर कानून बनाने से आर्टिकल 14 में कोई रोक नहीं है. हमें मुसलमानों के कोई नफरत नहीं है. इस देश के किसी मुसलमान का इस बिल से कोई वास्ता नहीं है. ये तीन देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है.अमित शाह, गृहमंत्री
इस एक्ट का खासकर नॉर्थ ईस्ट के कई हिस्सों में भी भारी विरोध हो रहा है. इसकी मुख्य वजह ये है कि वहां के मूल निवासियों को डेमोग्राफी बदलने और स्वायत्ता पर खतरे की आशंका है. हालांकि अमित शाह का कहना है कि इस बिल में नॉर्थ ईस्ट के लोगों की चिंताओं पर पूरा ध्यान दिया गया है.
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