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बेअदबी का पूरा इतिहास: जब एक केस ने बदल कर रख दी थी पूरे पंजाब की तस्वीर

पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले बेअदबी की कोशिश की दो घटनाओं ने पंजाब को हिला कर रख दिया है.

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न्यूज वीडियो
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<div class="paragraphs"><p>स्वर्ण मंदिर</p></div>
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स्वर्ण मंदिर

(फोटो: PTI)

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पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले अचानक सिख धर्म से जुड़े बेअदबी की कोशिश की दो घटनाओं ने पंजाब को झकझोर कर रख दिया है. 18 दिसंबर को अमृतसर के हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में बेअदबी की कोशिश फिर कुछ घंटों बाद 19 दिसंबर को कपूरथला के निजामपुरा के एक गुरुद्वारे में निशान साहिब को कथित तौर पर अपवित्र करने के आरोप में एक शख्स की पीट-पीटकर हत्या.

इन दोनों घटनाओं के बाद एक बार फिर जहां बेअदबी को लेकर सिखों में गुस्सा है, तो दूसरी तरफ भीड़तंत्र को लेकर सवाल... लेकिन यह पहली बार नहीं है जब सिख धर्म से जुड़ी पवित्र पुस्तक की बेअदबी का मामला सामने आया है और न ही इसके आरोप में पहली बार किसी की हत्या हुई है.

आपको इस वीडियो में ऐसे ही कुछ बेअदबी के मामले और उससे जुड़ी घटनाओं के बारे में बताएंगे.

सबसे पहला सवाल है कि आखिर बेअदबी है क्या?

दरअसल, बेअदबी का मतलब होता है अपमान करना... बेदबी सिखों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि सिख धर्म के मुताबिक, गुरु ग्रंथ साहिब सिर्फ एक पवित्र ग्रंथ नहीं हैं, सिखों के लिए, इसे एक जीवित गुरु माना जाता है. इसलिए गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का कोई भी मामला एक जीवित गुरु पर हमला करने के बराबर है.

इसलिए गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा, ‘गुरुद्वारा’, जिसका शाब्दिक अर्थ गुरु का निवास होता है और गुरु की सेवा में उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुएं पवित्र मानी जाती हैं. सिखों द्वारा पहनी जाने वाली ‘पगड़ी’, ‘कृपाण’ को भी पवित्र माना जाता है. सिखों द्वारा रखे गए बढ़ा कर बाल (केश) और दाढ़ी भी पवित्र माने जाते हैं और इन्हें जबरन छूना या उनका अनादर करना भी बेअदबी है.

इससे पहले बेअदबी मामला किसान आंदोलन के दौरान सामने आया था… दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन चल रहा था, इसी दौरान 15 अक्टूबर को तरन तारन के रहने वाले लखबीर सिंह की कथित तौर पर निहंग सिखों के एक समूह ने हत्या कर दी. उस वक्त निहंगों ने दावा किया था कि लखबीर को उनके पवित्र ग्रंथ – सरबलोह ग्रंथ का ‘अपमान’ करने के लिए ‘दंड’ दिया गया है. निहंगों ने लखबीर के हाथ काट दिए थे और उसे पुलिस के बैरिकेड पर लटका दिया था.

इस मामले में कई निहंगों ने अपना गुनाह कबूल किया था, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.

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अब चलते हैं थोड़ा फ्लैशबैक में..

आजादी के बाद साल 1951 में, तत्कालीन निरंकारी प्रमुख सतगुरु अवतार सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की मौजूदगी में खुद को एक जीवित गुरु घोषित कर दिया था. उनके उत्तराधिकारी, गुरबचन सिंह ने सिख परंपराओं में बदलाव करने और उन्हें अपने संप्रदाय में अपनाए जाने की कोशिश की.

पत्रकार जगतार सिंह कहते हैं, "रूढ़िवादी सिखों द्वारा निरंकारी को विधर्मी माना जाता था, क्योंकि उन्होंने अपने संस्थापकों और अपने उत्तराधिकारियों को गुरु के रूप में सम्मान देना शुरू कर दिया था." कहा जाता है कि निरंकारी के तत्कालीन नेता गुरबचन सिंह ने भी अपनी तुलना गुरु गोबिंद सिंह से की थी और कहा था कि वह सिख धर्म के 'पंज प्यारे' की तारीफ करने के लिए 'सत सितारे' बनाएंगे. इन मान्यताओं को सिखों के बीच बेअदबी माना जाता है.

निरंकारी के तत्कालीन नेता गुरबचन सिंह के इन फैसलों का सिखों ने अहिंसक विरोध किया, इसी दौरान पुलिस और सशस्त्र निरंकारी ने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया, जिसमें 13 सिख मारे गए थे. इस मामले में 62 निरंकारी को आरोपित किया गया था, जिस पर हरियाणा में मुकदमा चलाया गया था. लेकिन सभी को आत्मरक्षा में हमला करने के आधार पर बरी कर दिया गया.

1970 के दशक के अंत में हुए सिख-निरंकारी संघर्ष और 1980 में गुरबचन सिंह की हत्या को पंजाब में तीन दशकों तक चलने वाले उग्रवाद का शुरुआती बिंदु माना जाता है.

इसके बाद जालंधर जिले के नकोदर शहर में 1986 में एक बड़ी बेअदबी की घटना हुई, जब गुरु ग्रंथ साहिब की पांच प्रतियां जला दी गईं. जब सिखों ने बेअदबी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और जली हुई प्रतियों को बरामद करने की मांग की, लेकिन इसी दौरान पुलिस ने उन पर गोली चला दी. पुलिस फायरिंग में चार सिखों की मौत हो गई.

इसके अलावा ऑपरेशन ब्लू स्टार, जिसके तहत साल 1984 में सेना ने अमृतसर स्थित सिखों के सबसे पवित्र आराधना स्थल स्वर्ण मंदिर या दरबार साहिब में प्रवेश किया था, इसे भी सिख बेअदबी की घटना मानते हैं.

साल 2007 में, डेरा सच्चा सौदा संप्रदाय के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह ने सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह की तरह पोशाक पहन ली थी, जिसकी वजह से सिखों और डेरा अनुयायियों के बीच तेज टकराव हुआ था. इसे भी बेअदबी का मामला माना जाता है.

अब आते हैं साल 2015 पर... 2015 में बेअदबी के जिन मामलों ने पंजाब में राजनीतिक तूफान खड़ा किया, उनमें असल में तीन अलग-अलग मामले शामिल हैं.
  • पहली घटना 1 जून को हुई थी जिसमें फरीदकोट जिले के बुर्ज जवाहर सिंह वाला गांव से गुरु ग्रंथ साहिब की एक प्रति चोरी हो गई थी.

  • दूसरी घटना 24-25 सितंबर की है, जिसमें बुर्ज जवाहर सिंह वाला और बरगारी में गाली-गलौज करने वाले पोस्टर सामने आए, जिसमें धमकी दी गई थी कि गुरु ग्रंथ साहिब को सड़कों पर फेंक दिया जाएगा. इस मामले में कहा जाता है कि यह डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की करतूत थी, क्योंकि पंथ के संस्थापक गुरमीत राम रहीम सिंह की फिल्म 'मैसेंजर ऑफ गॉड' को पंजाब में रिलीज नहीं होने दिया गया था.

  • तीसरी घटना 12 अक्टूबर 2015 की है जब फरीदकोट जिले के बरगारी गांव की ओर जाने वाली सड़कों पर गुरु ग्रंथ साहिब के फटे पन्ने मिले थे, जिसके बाद सिखों ने बेअदबी का विरोध किया और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, इसी विरोध प्रदर्शन के दौरान बहबल कलां और कोटकपुरा में पुलिस ने गोली चलाई, पुलिस फायरिंग में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी.

बेअदबी और पुलिस फायरिंग के कारण हुई मौतों के खिलाफ गुस्सा एक प्रमुख कारण था कि 2017 के विधानसभा चुनावों में शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा.

इन मामलों में सीबीआई जांच हुई लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. तत्कालीन अकाली सरकार ने अक्टूबर 2015 में बेअदबी के मामले सीबीआई को सौंपे थे, लेकिन जुलाई, 2019 को सीबीआई, ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की. मुख्य संदिग्धों में से एक, मोहिंदरपाल बिट्टू सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट से पहले जून 2019 में नाभा जेल में मारा गया. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के निर्देशों के बाद, सीबीआई ने इस साल की शुरुआत में पंजाब पुलिस को बेअदबी की घटनाओं से जुड़ी फाइलें सौंप दीं.

लेकिन अब एक बार फिर चुनाव से पहले बेअदबी का मामला सुर्खियों में है.

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Published: 20 Dec 2021,04:35 PM IST

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