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चुनाव आयुक्त की 'आपात बहाली': सरकार, EC के बीच ये रिश्ता क्या कहलाता है?

2019 लोकसभा चुनाव में PM मोदी पर आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के आरोप लगे थे. तब EC ने उन्हें क्लीन चिट दी थी.

शादाब मोइज़ी
न्यूज वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>Arun Goel Appointment Controversy: Election Commission सरकार पर, सरकार चुनाव आयुक्तों पर मेहरबान?</p></div>
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Arun Goel Appointment Controversy: Election Commission सरकार पर, सरकार चुनाव आयुक्तों पर मेहरबान?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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“सुपरफास्ट. चुनाव आयुक्त की ज्वाइनिंग एक ही दिन में.. एक दिन में प्रोसेस हुआ, उसी दिन क्लियरेंस, उसी दिन एप्लीकेशन, उसी दिन मंजूर भी, उसी दिन अपॉइंटमेंट... फाइल ने 24 घंटे का सफर भी पूरा नहीं किया. लाइटिंग स्पीड से काम?"

दरअसल, जहां सरकारी फाइलों को लटकाने और अटकाने की इबारत लिखी जाती हो वहां चुनाव आयुक्त की ज्वाइनिंग एक दिन में हो जाए तो सुप्रीम कोर्ट को ऐसा सवाल उठना ही था. कि भाई ऐसी भी क्या जल्दी थी.

सरकार ने जो किया उसे लेकर मामला अदालत में है, लेकिन कुछ वक्त से चुनाव आयोग सवालों के घेरे में है. कभी EVM, कभी वोटों की गिनती में हेरफेर, कभी पारदर्शिता पर सवाल, इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने IAS ऑफिसर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है. दरअसल, ये सवाल इसलिए उठा है कि Union Ministry of Heavy Industries में सेक्रेट्री अरुण गोयल ने अपने रिटायरमेंट से कुछ ही दिन पहले 18 नवंबर 2022 को वॉलंटरी रिटायरमेंट ले ली, एक ही दिन में कानून मंत्रालय ने उनकी फाइल को मंजूरी दे दी, चार नामों की लिस्ट प्रधानमंत्री के सामने पेश की गयी, पीएम ने गोयल के नाम को सेलेक्ट भी कर लिया, गोयल के नाम को 24 घंटे के अंदर राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गयी और गोयल जी ने नए चुनाव आयुक्त के रूप में 21 नवंबर 2022 को कार्यभार संभाल लिया.

अब चुनाव आयोग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा है कि हमें एक ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत है जो प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके.

सोचने की बात है कि आखिर इतनी बड़ी अदालत को क्यों कहनी पड़ी? क्यों सरकार, चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं? क्यों बार-बार चुनाव आयोग के साथ ट्रांसपेरेंसी की कमी दिखती है?

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इस स्टोरी में हम आपको आगे चुनाव आयोग के कामकाज, EVM मैनिप्यूलेशन की आशंका, वोट काउंटिंग में गड़बड़ी के आरोपों, ईवीएम की देखरेख में लगे प्राइवेट इंजीनियरों से जुड़ी चौंकाने वाली सच्चाई बताएंगे लेकिन उससे पहले चुनाव आयोग पर उठ रहे सवालों पर बात करते हैं.

प्राइवेट गाड़ियों में EVM

हिमाचल प्रदेश की रामपुर विधानसभा सीट पर 12 नवंबर 2022 को हुए चुनाव के बाद ईवीएम को सरकारी गाड़ी की बजाय निजी वाहन से ले जाते हुए पाया गया था. जिसके बाद 6 कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया गया.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी यही कहानी हुई थी. कई जगह प्राइवेट गाड़ियों में ईवीएम मिले थे, बैलेट पेपर मिले, जिस वजह से बनारस के एडीएम, बरेली में आरओ, एडीएम, सोनभद्र में एसडीएम पर कार्रवाई हुई और उन्हें हटाया गया था.

हालांकि चुनाव आयोग ने बाद में कहा था कि वाराणसी में गाड़ी से बरामद की गई EVM मशीनें अधिकारियों के लिए मतगणना की ट्रेनिंग के मकसद से लाई गई थीं. लेकिन सवाल है कि ये जिस ईवीएम की गिनती देश का भविष्य तय करती हो वो बार-बार संदिग्ध हालातों में क्यों मिलती है?

EVM मैनुप्यूलेशन की आशंका

क्विंट ने 2019 लोकसभा चुनाव में वोटों की गिनती को लेकर एक इंवेस्टिगेटिव स्टोरी की थी, अपनी पड़ताल में क्विंट ने पाया था कि वोटों की गिनती के बाद कई सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए थे. हालांकि चुनाव आयोग का कहना था कि "ये सभी आंकड़े प्रोविजनल हैं, डेटा अनुमानित हैं और इसमें बदलाव हो सकते हैं." लेकिन चार महीने बाद भी ऐसा नहीं हो सका था.

2019 आम चुनाव की VVPAT पर्चियां कहां हैं?

EVM को लेकर एक और अहम कहानी देखिए. 2019 लोकसभा चुनाव के 4 महीने के अंदर ही EC ने आम चुनाव की VVPAT पर्चियां नष्ट कर दी थीं, लेकिन चुनाव कानून 1961 के नियम 94 (b) में कहा गया है कि किसी भी चुनाव की VVPAT पर्चियों को एक साल तक संभाल कर रखा जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आखिर क्यों? किस बात की जल्दी थी?

जब प्राइवेट इंजीनियर के हाथ में थे EVM

और तो और- अगस्त, 2019 में क्विंट ने ही बताया था कि चुनाव आयोग के लिए EVM बनाने वाली कंपनी THE Electronics Corporation of India Limited यानी ECIL ने चुनावों के दौरान EVM और VVPAT की देखरेख के लिए मुंबई की एक फर्म से कन्सल्टिंग इंजीनियर लिए. सवाल है कि, क्यों चुनाव आयोग इतने संवेदनशील मामले पर किसी प्राइवेट हाथों में काम दे रहा था?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भी चुनाव आयोग पर उठे सवाल?

यही नहीं साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में देरी पर भी चुनाव आयोग सवालों के घेरे में था. तब RJD नेता रितु जायसवाल परिहार सीट से सिर्फ 1569 वोट से हार गई थीं. चुनाव आयोग के मुताबिक पोस्टल बैलेट EVM वोट के पहले गिने जाने चाहिए लेकिन रितु कुमार ने तब दावा किया कि परिहार में पोस्टल बैलेट आखिर में गिने गए.

वहीं वोटिंग लिस्ट से वोटरों के नाम गायब होने की घटनाएं कर्नाटक से लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिली है. समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम और यादव वोटरों के नाम बड़ी संख्या में काटे गए. इसपर चुनाव आयोग ने सबूत मांगे हैं.

2019 लोकसभा चुनाव और पीएम मोदी को क्लीन चिट

चुनाव आयोग और भी कई मामलों में विवादों में रहा है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी पर चुनाव प्रचार के दौरान आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के आरोप लगे थे. हालांकि चुनाव आयोग ने उन्हें क्लीन चिट दी थी, लेकिन ये फैसला एकमत से नहीं हुआ, 3 में से एक चुनाव आयुक्त ने पीएम मोदी को क्लीन चिट देने का विरोध किया था. चुनाव आयुक्त का नाम था अशोक लावासा. मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने की कतार में खड़े लवासा को अक्तूबर 2022 में सेवानिवृत्त होना था. लेकिन उन्होंने वक्त से पहले अगस्त 2020 में ही इस्तीफा दे दिया.

सुप्रीम कोर्ट नए चुनाव आयुक्त की ज्वाइनिंग पर सवाल उठा रहा है क्योंकि चुनाव आयोग का आजाद रहना एक आजाद मुल्क की रूह है. सिर्फ कह देने भर से ये नहीं हो जाता कि चुनाव आयोग ट्रांसपैरेंट है, किसी दबाव में नहीं है, बिना पक्षपात किए काम करता है, बल्कि ये कहने से ज्यादा दिखना भी चाहिए. तब ही लोकतंत्र मजबूत बना रहेगा, नहीं तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

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