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जब प्राइवेट इंजीनियर के हाथ में थे EVM, तो कितना सेफ आपका वोट?

चुनाव के दौरान प्राइवेट इंजीनियर कर रहे थे EVM की देखरेख, क्विंट के पास सबूत

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

क्विंट ने बताया कि चुनावों के दौरान EVM और VVPAT तक प्राइवेट इंजीनियर्स की पहुंच थी, लेकिन चुनाव आयोग ने इसका खंडन किया. क्विंट ने बताया कि EVM और VVPAT मशीनों की मरम्मत में प्राइवेट कंपनियों को लगाया गया, चुनाव आयोग ने एक बार फिर खंडन किया.

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अगस्त 2019 में क्विंट ने खुलासा किया कि चुनाव आयोग के लिए EVM बनाने वाली कंपनी The Electronics Corporation of India Limited यानी ECIL ने चुनावों के दौरान EVM और VVPAT की देखरेख के लिए मंबई की एक फर्म M/s T&M सर्विसेज कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड से कंसल्टिंग इंजिनियर के लिए.

अब हम एक और बड़ा खुलासा करने जा रहे हैं

नई खबर ये है कि EVM की देखरेख के लिए चुनाव आयोग को प्राइवेट इंजीनियर देने वाली कंपनी M/s T&M सर्विसेज कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड, ECIL से मान्यता प्राप्त वेंडर नहीं है. ECIL ने अपनी वेबसाइट पर 2015 से मान्यता प्राप्त वेंडर्स की लिस्ट अपलोड की है. इनमें T&M सर्विसेज का नाम नहीं है. तो सवाल ये है कि आखिर ECIL ने एक गैर मान्यता प्राप्त फर्म से चुनाव संबंधित काम क्यों कराया, खासकर EVM, VVPAT की देखरेख जैसा संजीदा काम

नई खबर ये है कि EVM की देखरेख के लिए चुनाव आयोग को प्राइवेट इंजीनियर देने वाली कंपनी M/s T&M सर्विसेज कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड, ECIL से मान्यता प्राप्त वेंडर नहीं है. ECIL ने अपनी वेबसाइट पर 2015 से मान्यता प्राप्त वेंडर्स की लिस्ट अपलोड की है. इनमें T&M सर्विसेज का नाम नहीं है. तो सवाल ये है कि आखिर ECIL ने एक गैर मान्यता प्राप्त फर्म से चुनाव संबंधित काम क्यों कराया, खासकर EVM, VVPAT की देखरेख जैसा संजीदा काम
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क्विंट ने ये भी पता लगाया कि जिन प्राइवेट इंजीनियर्स को EVM की देखरेख में लगाया गया वो ECIL नहीं T&M सर्विसेज की सैलरी पर काम कर रहे थे. लेकिन चुनाव आयोग ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त SY कुरैशी को जानकारी दी थी कि EVM की फर्स्ट लेवल चेकिंग के लिए सिर्फ BEL और ECIL की सैलरी पर काम रहे इंजीनियरों को तैनात किया गया.

फिर से सवाल वही है, क्यों चुनाव आयोग इतने संवेदनशील मामले पर ECIL की तरह भ्रामक जानकारी दे रहा है? जिन प्राइवेट इंजीनियरों ने ECIL के लिए काम किया उनमें से कम से कम 150 के रिलीविंग लेटर क्विंट के हाथ लगे हैं. ये रिलीविंग लेटर T&M सर्विसेज ने तब जारी किए थे, जब इंजीनियरों के करार खत्म हुए.

इन रिलीविंग लेटर से साबित होता है कि इन्होंने ecil के लिए जूनियर कंसल्टेंट के तौर पर काम किया. क्विंट ने इनमें से कुछ इंजीनियरों से संपर्क किया. 

एक कर्मचारी ने हमें कफंर्म किया कि उसने T&M सर्विसेज के लिए 2018 में काम किया. उसने बताया कि उन्हें ECIL ने EVM और VVPAT की देखरेख का क्रैश कोर्स दिया और फिर उसे 2018 में हुए कई चुनावों में EVM और VVPAT की मरम्मत और देखरेख के काम पर लगाया गया.

एक दूसरे जूनियर कंसल्टेंट ने हमें बताया कि जिन इंजीनियरों को चुनावों में लगाया उनमें से 99% ठेके पर रखे गए थे. ठेके पर रखे गए इन इंजीनियरों को फील्ड वर्क में लगाया गया था. काम था EVMs और VVPATs की टेस्टिंग, जबकि ECIL के परमानेंट इंजीनियर सुपरविजन करते थे.

हमने कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए M/s T&M सर्विसेज कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड को लिखा. हमने पूछा-

  • आप कब से ECIL को इंजीनियर मुहैया करा रहे हैं?
  • कंसल्टेंट इंजीनियर का रोल क्या होता है?
  • ECIL ने कितने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आपके भेजे इंजीनियरों को तैनात किया?

एक महीने बाद हमें एक लाइन का जवाब मिला और मैं कोट कर रही हूं

“नीचे दिए गए सवालों का जवाब ECIL से मिलेगा. कृपया ECIL के दफ्तर में संपर्क करें”

लेकिन ECIL ने हमारे सवालों पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है.

इस मामले में हमने चुनाव आयोग से जो नए सवाल पूछे थे,उनका जवाब भी हमें नहीं मिला. चुनाव आयोग हमें पहले बता चुका है कि ECIL ने किसी प्राइवेट कंसल्टेंट इंजिनियर की सेवा नहीं ली.

एक इंटरव्यू में चुनाव आयोग के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने क्विंट से कहा था-

EVM को हैक नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर EVM चुनाव आयोग की निगरानी से बाहर जाता है तो कुछ भी हो सकता है.

तो क्या यहां यही नहीं हुआ है?

क्या चुनाव की शुरुआत से अंत तक EVM तक प्राइवेट कंसल्टेंट इंजिनियर की पहुंच... बड़ी सुरक्षा चूक नहीं है? आखिर इन प्राइवेट कंसल्टेंट इंजिनियर की क्या जवाबदेही है? खासकर ऐसी कंपनी से आए इंजीनियरों की क्या जवाबदेही हो सकती है जो ECIL से मान्यता प्राप्त तक नहीं है?

तो सवाल ये है कि EVM और VVPAT कितने सुरक्षित हैं? और हमारे चुनाव कितने भरोसेमंद हैं? जब इन सवालों पर चुनाव आयोग पूरी तरह पारदर्शी न हो तो हम सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं?

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