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पिछले कुछ सालों से टीवी डिबेट से लेकर भाषणों में नेता और उनके साथी लगातार नफरत फैला रहे थे. लेकिन इस बार मामला उल्टा दिख रहा है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नेशनल प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma)जो अब पूर्व प्रवक्ता हो गई हैं और बीजेपी दिल्ली मीडिया यूनिट के हेड नवीन कुमार जिंदल जो जब पूर्व हेड हो गए हैं, ने पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब (Prophet Muhammad) पर अपमानजनक टिप्पणी की थी. जिसके बाद भारत सरकार को गल्फ समेत कई देशों से कड़ी निंदा का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने 5 जून को नूपुर शर्मा को पार्टी से सस्पेंड और नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से निकाल दिया.
लेकिन सवाल है कि क्यों अरब देशों के विरोध के बाद बीजेपी एक्शन में आई? जब भारत में रह रहे लोग ऐसे बयानों पर नाराजगी और विरोध जाहिर करते हैं तो क्यों उन्हें पाकिस्तान चले जाने की नसीहत दी जाती है? और क्यों नहीं सांप्रदायिक नफरत फैलाने वालों को सजा दी जाती है. इसलिए भारत के मोहब्बत परस्त लोग पूछ रहे हैं, जनाब ऐसे कैसे?
पैगंबर मुहम्मद साहब पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर भारी बवाल और हिंसा हुई है. विवादित टिप्पणी को लेकर कतर से लेकर कुवैत, सऊदी अरब, ईरान जैसे देशों ने विरोध जाहिर किया है. कई देशों ने नूपुर शर्मा के बयान पर भारतीय राजदूत को तलब किया. जिसके बाद बीजेपी ने नूपुर पर एक्शन लिया.
लेकिन सवाल है कि क्या ये सब पहली बार हुआ है? क्या इस्लाम या मुसलमानों के खिलाफ ऐसे अपमानजनक बयान देने वाले ये दोनों पहले नेता हैं? जवाब है नहीं.
आइए आपको ऐसे ही कुछ नेताओं से और उनके बयानों से मिलवाते हैं जो साफ-साफ मुसलमान और इस्लाम के खिलाफ रहे हैं लेकिन इसपर कोई एक्शन नहीं हुआ. यहां तक कि कई को तो नफरत फैलाने के बदले पार्टी मेंं प्रमोशन मिला है.
आपको साल 2015 ले चलते हैं. फरवरी 2015 में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर उन्हें अनुमति मिले तो वो देश के सभी मस्जिदों के अंदर गौरी-गणेश की मूर्ति स्थापित करवा देंगे. तो क्या ऐसी बात मुसलमानों की आस्था के खिलाफ नहीं थी? आप देखिए कि ऐसे बयानों के बाद भी साल 2017 में योगी आदित्यनाथ को प्रमोशन मिलता है और भारत के सबसे बड़े सूबे का सीएम बनाया जाता है.
इसी साल ऑस्ट्रेलिया इंडिया यूथ डायलॉग के कार्यक्रम में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गए भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने इस्लाम के खिलाफ बयान दिया. द गार्डियन के मुताबिक तेजस्वी ने कहा कि हम इस विशेष समुदाय (यानी कि मुसलमान) के इतिहास को इसके अस्तित्व के समय से जानते हैं, और इसका इतिहास रक्तपात और हिंसा के साथ लिखा गया है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कहते हैं कि ''जब तक मदरसा शब्द रहेगा, तब तक बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के बारे में कभी भी नहीं सोच पाएंगे. अगर आप बच्चों को बताएंगे कि मदरसों में पढ़ने से वे डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनेंगे तो वे खुद ही जाने से मना कर देंगे.''
बीजेपी प्रवक्ता और करणी सेना प्रमुख सूरज पाल अमू मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देता है. साल 2021 के जुलाई महीने में गुरुग्राम में हुई महापंचायत में सूरज पाल ने कहा था कि 'अगर वे अपनी दाढ़ी काटना जानते हैं तो हम जानते हैं कि उनका गला कैसे काटा जाए.' सूरजपाल ने महापंचायत में मौजूद लोगों से कहा कि वो 'इन' लोगों के खिलाफ एक प्रस्ताव पास करें ताकि उन्हें देश से बाहर फेंक दिया जाए और सभी समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाएं. किसे बाहर फेंकना है? सूरजपाल की इतनी हिम्मत इसलिए हुई क्योंकि पार्टी ने ऐसे 'फ्रिंज एलिमेंट' को किनारे नहीं किया बल्कि मेनस्ट्रीम में जगह दी.
साल 2016 में बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कहा था कि इस्लाम में महिलाओं की हालत जूती की तरह है. लेकिन फिर भी पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की.
कर्नाटक में उत्तर कन्नड़ से बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े ने साल 2016 में इस्लाम धर्म के बारे में आपत्तिजनक और भड़काऊ टिप्पणी की थी. हेगड़े ने इस्लाम को आतंक का टाइम बम बताया था. कहा था कि जब तक दुनिया में इस्लाम रहेगा तब तक आतंक नहीं रूकेगा. इसके बाद साल 2017 में हेगड़े को मोदी कैबिनेट में जगह दी गई. साल 2019 में फिर बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में टिकट दिया. मतलब इस्लाम के खिलाफ बोलो और प्रमोशन ले लो की नीति.
साल 2022 के फरवरी में बिहार के बिस्फी से बीजेपी विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने मुसलमानों की वोटिंग राइट तक छीन लेने की बात कही थी. कहा था कि मुसलमान दूसरे स्तर के नागरिक बनकर भारत में रह सकते हैं. लेकिन मजाल है कि पार्टी एक्शन लेती.
अब सवाल उठता है कि जिन नामों का हमने जिक्र किया उनपर बीजेपी ने क्यों एक्शन नहीं लिया? क्यों भारत में रह रहे मुसलमानों की आस्था पर चोट पहुंचाने दिया गया? दूसरे देशों के प्रेशर पर एक्शन होता है लेकिन अपने देश के मुसलमान जो इस देश के नागरिक भी हैं, और इस लिहाज से उन्हें संविधान हर अधिकार देता है, उनके खिलाफ हिंसा से लेकर आपत्तीजनक बयानों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
ऐसे भड़काऊ बयान देने वाले 'फ्रिंज एलिमेंट' को मेन स्ट्रीम क्यों बनने दिया गया? नूपुर शर्मा के पर, कतर के कहने पर, कतर तो दिए लेकिन बाकियों का क्या? अगर बीजेपी या सरकार पहले ही ऐसे नफरती लोगों के मनोबल को कुचल देती तो आज भारत से उसके कई मुल्क माफी मांगने को नहीं कहते. माफी भारत को नहीं इन नेताओं को हर भारतीयों से मांगनी चाहिए जिसकी वजह से भारत की छवि धूमिल हुई है. और अगर अब भी इन नफरती लोगों की जुबान पर ताले नहीं लगाए गए तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
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