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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा, आशुतोष भारद्वाज
इलस्ट्रेशन: अर्णिका काला
22 साल के हारुन के लिए, यूपी सरकार की नीतियों पर नजर रखना, उस पर अपने विचार रखना एक शगल था. दुबई में रहने हुए इस तरह हारुन अपने शहर बहराइच से जुड़ा रहता था.
हारुन को यूपी पुलिस ने नवंबर 2018 में फेसबुक पर एक कमेंट करने के लिए गिरफ्तार किया था.
प्रयागराज में कुंभ मेला लगने से कुछ दिन पहले, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्सव की तैयारियों का जायजा लेने के लिए शहर का दौरा किया. हारुन के दोस्त राणा सुल्तान जावेद ने नगर निगम के ट्रक के सामने सीएम की हरी झंडी दिखाते हुए एक फोटो शेयर की. सीएम पर चुटकी लेने वाली इस पोस्ट को 53 लाइक मिले और जल्द ही ये राजनीतिक विवाद की वजह बन गया.
जब हारून भारत लौटे, तो उन्हें सूचित किया गया कि उनके खिलाफ एक FIR दर्ज की गई है. उन्होंने उस पोस्ट पर कमेंट किया था जिसमें योगी आदित्यनाथ का ‘मजाक’ उड़ाया गया था.
हारुन को एक सप्ताह के भीतर जमानत मिल गई, लेकिन उन्हें सोशल मीडिया पर काफी भला-बुरा कहा गया. वो टारगेट बन गए. जो कुछ भी वो पोस्ट करते, विवादों में आ जाता. जब सोशल मीडिया पर अटकलें लगाई जा रही थीं कि 2019 के चुनावों में भारत का प्रधानमंत्री कौन बनेगा, हारुन ने किसी ‘अनहोनी’ के डर से अपना फेसबुक अकाउंट डिएक्टिव करने का फैसला किया.
पत्रकार प्रशांत कनौजिया को रिहा करने का आदेश देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हारुन जैसे कई सोशल मीडिया यूजर्स की तरफ लोगों का ध्यान खींचा, जिन्होंने मार्च 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से 'सेंसरशिप' झेला है.
मुजफ्फरनगर के निवासी जाकिर अली त्यागी को अप्रैल 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के बारे में एक पोस्ट लिखने के बाद गिरफ्तार किया गया था. आईटी एक्ट की धारा 66 ए (ऑनलाइन आपत्तिजनक संदेश भेजने के लिए), धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 124 ए (देशद्रोह) के आरोप के बाद जाकिर को 40 दिनों से ज्यादा समय जेल में बिताना पड़ा.
पुलिस ने जाकिर के मामले में धारा 66 ए लगाया, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘गैरजरूरी’ करार दिया था. जाकिर और उनके परिवार के लिए ये कानूनी लड़ाई महंगी पड़ रही है. उन्हें आर्थिक रूप से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
फिरोजाबाद के एक कांग्रेस कार्यकर्ता सुबूर अली ने ताजमहल के टिकट की कीमतों को 50 रुपये से बढ़ाकर 250 रुपये करने के यूपी सरकार के फैसले पर सवाल उठाया. उनकी ये आलोचना उन्हें राजनीतिक बवाल के केंद्र में ले आई.
स्थानीय पुलिस ने अली के खिलाफ धारा 153 ए (दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए), धारा 505 (1) (सी) (गलत इरादे से बयान देने के लिए), धारा 66 (कंप्यूटर सिस्टम के नुकसान के लिए) के तहत FIR दर्ज की. सुबूर का ये भी कहना है कि उन्हें सत्ता पक्ष के खिलाफ बोलने के लिए धमकी दी गई थी.
बहरहाल, प्रशांत कनौजिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘राइट ऑफ लिबर्टी’ को बनाए रखा है. लेकिन सोशल मीडिया को अपने विचारों को जाहिर करने का जरिया बनाने वाले इन युवाओं की कानूनी लड़ाई अब भी जारी है.
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