Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019प्रो. अपूर्वानंद की नजरों में प्रेमचंद का अमर साहित्य

प्रो. अपूर्वानंद की नजरों में प्रेमचंद का अमर साहित्य

प्रो.अपूर्वानंद बताते हैं कि अपनी लेखनी में हमेशा मानवीय तत्व की तलाश करते थे प्रेमचंद

मौसमी सिंह
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<div class="paragraphs"><p>प्रेमचंद के जीवन के बारे में बता रहे हैं प्रो.अपूर्वानंद</p></div>
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प्रेमचंद के जीवन के बारे में बता रहे हैं प्रो.अपूर्वानंद

(फोटो- altered by क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

"प्रेमचंद (Premchand) केवल विचार नहीं लिखते थे, अपने आसपास के लोगों की जिंदगी को गौर से देखते थे और उसके बारे में लिखते थे"

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद प्रेमचंद के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि प्रेमचंद अपनी लेखनी में हमेशा ही मानवीय तत्व की तलाश करते थे. उनकी लेखनी जनता को ये विश्वास दिलाती थी कि उनमें इंसान होने की क्षमता बची हुई है.

प्रेमचंद के ऊपर विचार करते हुए ऐसा अक्सर कहा जाता है कि वो गांव के कहानीकार थे, किसानों के कहानीकार थे और यही वजह है कि उन्हें आज भी जरूर पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि आज भी किसानों की हालत बेहद खराब है.
प्रो.अपूर्वानंद

वो महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) का भी जिक्र करते हुए कहते हैं कि वो प्रेमचंद को लेकर पूछती थीं, 'लेखनी वह कैसी है? ज्वाला में डूबी हुई है या गंगाजल में डूबी हुई है या दोनों में मिलाकर कैसे डूबती है?जैसे बादल जो जल से भरा रहता है, वही बिजली संभालता है. जिसके पास असीम करुणा होगी उसके पास असीम ज्वाला होगी.'

प्रेमचंद की प्रमुख कहानियां

ग्राफिक्स: श्रुति माथुर

प्रोफेसर अपूर्वानंद प्रेमचंद के उपन्यासों का जिक्र करते हुए बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि आज के दौर में तमाम अदालतों के न्यायधीशों के मन में कई बार नैतिकता क्यों नहीं जागती है? जो इतने पढ़े लिखें हैं और इंसाफ देना ही उनका काम है

इसी वजह से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का फैसला पूरा सिर के बल खड़ा कर दिया जाता है. फादर स्टेन स्वामी जैसे लोगों की जेल में रहते हुए ही मौत होती है और नताशा नरवाल अपने पिता को उनकी मृत्यु के समय देख भी नहीं पाती हैं. यही मामूली नैतिकता और इंसानियत आपको प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ में देखने को मिलती है जो आज के वक्त में कहीं गायब सी हो गई है. प्रेमचंद इसी इंसानियत को याद दिलाते थे. यह इंसानियत वक्त की मांग है, जैसे एक बीमार इंसान को दवाई की जरूरत होती है, ठीक वैसे ही आज इस समाज को इंसानियत और नैतिकता की जरूरत है.
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अपूर्वानंद आगे कहते हैं, ऐसा नहीं है कि प्रेमचंद समाज में मौजूद शूद्रता और हिंसा का जिक्र नहीं करते थे. वो ये जरूर करते थे और कहते थे कि “शूद्रता मनुष्यता के लिए स्वाभाविक नहीं होनी चाहिए. उसे शूद्रता से लड़ना चाहिए. उसे नाइंसाफी से लड़ना चाहिए.”

प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास

ग्राफिक्स: श्रुति माथुर

वो आगे कहते हैं कि 2021 में जब हम प्रेमचंद को पढ़ें तो ध्यान रखें कि वो हमें हर तरह की संकीर्णता से निकलने की चुनौती देते हैं, चाहे वो साम्प्रदायिकता की संकीर्णता हो या राष्ट्रवाद की. प्रेमचंद कहते थे कि ‘राष्ट्रीयता वर्तमान युग का कोढ़ है, उसी तरह जैसे मध्यकालीन युग का कोढ़ साम्प्रदायिकता थी.’ वो साम्प्रदायिकता को लेकर जागरुक करते थे और कहते थे कि साम्प्रदायिकता को अपने असली चेहरे से लाज आती है इसलिए वो संस्कृति और धर्म की चादर को ओढ़ कर आती है.’

वो कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद इंसान को बहुत उम्मीद के साथ देखते थे. वो कहते थे कि एक ऐसा समय आएगा जब इंसान, इंसान की तरह रह सकेगा.

प्रेमचंद

ग्राफिक्स: श्रुति माथुर

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