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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
"प्रेमचंद (Premchand) केवल विचार नहीं लिखते थे, अपने आसपास के लोगों की जिंदगी को गौर से देखते थे और उसके बारे में लिखते थे"
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद प्रेमचंद के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि प्रेमचंद अपनी लेखनी में हमेशा ही मानवीय तत्व की तलाश करते थे. उनकी लेखनी जनता को ये विश्वास दिलाती थी कि उनमें इंसान होने की क्षमता बची हुई है.
वो महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) का भी जिक्र करते हुए कहते हैं कि वो प्रेमचंद को लेकर पूछती थीं, 'लेखनी वह कैसी है? ज्वाला में डूबी हुई है या गंगाजल में डूबी हुई है या दोनों में मिलाकर कैसे डूबती है?जैसे बादल जो जल से भरा रहता है, वही बिजली संभालता है. जिसके पास असीम करुणा होगी उसके पास असीम ज्वाला होगी.'
प्रोफेसर अपूर्वानंद प्रेमचंद के उपन्यासों का जिक्र करते हुए बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि आज के दौर में तमाम अदालतों के न्यायधीशों के मन में कई बार नैतिकता क्यों नहीं जागती है? जो इतने पढ़े लिखें हैं और इंसाफ देना ही उनका काम है
वो आगे कहते हैं कि 2021 में जब हम प्रेमचंद को पढ़ें तो ध्यान रखें कि वो हमें हर तरह की संकीर्णता से निकलने की चुनौती देते हैं, चाहे वो साम्प्रदायिकता की संकीर्णता हो या राष्ट्रवाद की. प्रेमचंद कहते थे कि ‘राष्ट्रीयता वर्तमान युग का कोढ़ है, उसी तरह जैसे मध्यकालीन युग का कोढ़ साम्प्रदायिकता थी.’ वो साम्प्रदायिकता को लेकर जागरुक करते थे और कहते थे कि साम्प्रदायिकता को अपने असली चेहरे से लाज आती है इसलिए वो संस्कृति और धर्म की चादर को ओढ़ कर आती है.’
वो कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद इंसान को बहुत उम्मीद के साथ देखते थे. वो कहते थे कि एक ऐसा समय आएगा जब इंसान, इंसान की तरह रह सकेगा.
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