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महादेवी वर्मा: विरह पथ पर प्रेम बरसाने वाली ‘नीर भरी दुख की बदली’

महादेवी वर्मा का आज जन्मदिन है

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हिंदी साहित्‍य को जिन रचनाकारों ने अपनी अलग पहचान के साथ समृद्ध किया है, उनमें महादेवी वर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. महादेवी हिंदी साहित्‍य के छायावादी युग की कवयित्री हैं. इनकी कविताओं में करुणा, संवेदना और दुख के पुट की अधिकता है. इन्‍हें ‘आधुनिक मीराबाई’ भी कहा जाता है.

26 मार्च आज महादेवी जी का जन्मदिन है. इस मौके पर क्‍व‍िंट हिंदी अपने खास अंदाज में उन्‍हें याद कर रहा है.

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महादेवी और बौद्ध दर्शन की छाप

वैसे तो अपने देश की संस्‍कृति में हर कन्‍या या स्‍त्री को देवी को दर्जा दिया जाता है. इनके परिवार में सात पीढ़ियों के बाद कोई लड़की पैदा हुई थी, इसलिए इनका नाम महादेवी रखा गया. आगे चलकर इन्‍होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़कर अपने नाम को सार्थक किया.

महादेवी का निजी जीवन उस दौर की अन्‍य महिलाओं से काफी अलग रहा. तब बाल विवाह चलन में था. जब ये 9 बरस की थीं, तभी इनका विवाह कर दिया गया. विवाह के वक्‍त वे अबोध बालिका थीं, पर बाद में भी ताउम्र वैवाहिक जीवन के प्रति वे उदासीन बनी रहीं. कारण पूरी तरह स्‍पष्‍ट नहीं, लेकिन इसके पीछे बौद्ध दर्शन का प्रभाव माना जा सकता है. वे बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं, पर बाद में कर्मयोग को अपनाया.

एक नजर में

  • जन्‍म: 26 मार्च, 1907 (फर्रुखाबाद, यूपी)
  • निधन: 11 सितंबर 1987 (इलाहाबाद)

प्रमुख कृतियां

  • नीहार (1930)
  • रश्मि (1932)
  • नीरजा (1934)
  • सांध्‍यगीत (1935)
  • दीपशिखा (1942)

संकलन

  • यामा (1940)
  • दीपगीत (1983)
  • नीलांबरा (1983)

पुरस्‍कार

  • ज्ञानपीठ पुरस्‍कार (यामा के लिए/1982)
  • भारत-भारती (1943)
  • पद्म विभूषण (1988)
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महादेवी ने सफेद वस्‍त्र पहनकर संन्‍यासिन की तरह अपना जीवन गुजारा. इनके जीवन की छाप इनकी रचनाओं में भी देखी जा सकती है, जिसमें संवेदना की अधिकता है. कर्मक्षेत्र में महात्‍मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसी शख्‍स‍ियत के संपर्क में आने से इनके विचारों को दिशा मिली.

छायावाद के जिन अन्‍य तीन स्‍तंभों के साथ महादेवी वर्मा का नाम लिया जाता है, उनमें अन्‍य तीन नाम हैं- जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठ ‘निराला’ और सुमित्रानंदन पंत.

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छायावाद की खासियत क्‍या?

छायावाद में वैयक्‍त‍िकता हावी रही. केवल अपना ही आलाप होता रहा. कवियों ने सुख-दुख, आशा-निराशा के भाव में गोते लगाए. दूसरी बड़ी बात यह थी कि छायावादी कवियों ने अपने मन का हर तरह का भाव बताने के लिए प्रकृति के विविध रूपों का सहारा लिया. महादेवी की रचनाएं इनसे अछूती नहीं थीं.

ऐसा माना जाता है कि छायावादी कवि अपने सामाजिक दायित्‍वों से कट गए थे. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि महादेवी के शब्‍दों में आजादी पाने को आकुल भारत माता का दर्द भी महसूस किया जा सकता है.

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महादेवी, मतलब महिला सशक्‍त‍िकरण

महादेवी साहित्‍य जगत में महिला सशक्‍त‍िकरण का प्रतीक हैं. वे कई लेखिकाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनीं. तब कवि महिलाओं के प्रति संवेदना से सनी कविताएं रचते थे. महादेवी ने इस संवेदना की जगह स्‍वयंवेदना को शब्‍दों में पिरोया, मतलब अपने मन के भाव को खुद आकार दिया.

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महादेवी जी की तमाम सुंदर रचनाओं के बीच ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काफी लोकप्रिय है. इसकी खासियत यह है कि इसमें महादेवी ने अपना परिचय चंद शब्‍दों में कविता के जरिए समेट दिया है.

नीचे दिए गए वीडियो में आप इस कविता का पाठ का सुन सकते हैं.

क्‍व‍िंट हिंदी की ओर से इस महादेवी को शत-शत नमन.

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