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पुलवामा हमले के बाद फेक न्यूज की आग से न PM मोदी बचे न राहुल गांधी

पुलवामा हमले के बाद सोशल मीडिया पर द क्विंट की वेबकूफ टीम ने कई वायरल खबरों की हकीकत सामने लाई है. 

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पुलवामा हमले के बाद सोशल मीडिया पर शुरू  है झूठ का कारोबार.
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पुलवामा हमले के बाद सोशल मीडिया पर शुरू है झूठ का कारोबार.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को एक आतंकी हमला होता है. उस हमले को देश समझ पाता उससे पहले सोशल मीडिया पर शुरू होता है झूठ का कारोबार. मतलब फेक न्यूज फैलाने वाले हो जाते हैं एक्टिव.

CRPF के 40 जवानों की शहादत के कुछ ही देर बाद वॉट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर झूठी तस्वीरें, वीडियो और नेताओं के झूठे बयान दनादन परोसे जाने लगते हैं. साफतौर पर ये मैसेज एक ट्रिगर का काम कर सकते हैं, लिहाजा, इससे पहले कि आप उन मैसेज के फॉरवर्ड बटन पर क्लिक करें, ये तहकीकात करें कि वो संदेश सही हैं या नहीं.

पुलवामा हमले के महज 3 दिनों के अंदर सोशल मीडिया पर फेक न्यूज से लड़ने वाली द क्विंट की वेबकूफ टीम ने कम से कम 10 फेक वायरल स्टोरीज का पता लगाया है. शायद इनमें से कुछ आपके मोबाइल पर भी आए होंगे. तो आईये उनमें से कुछेक की हकीकत हम आपको बताते हैं.

नेताओं को फोटो भी हुई वायरल

पुलवामा हमले के बाद फेक तस्वीरों और वीडियो के खेल ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक को हिट विकेट करने की कोशिश की. पुलवामा हमले के बाद प्रियंका गांधी के प्रेस कॉन्फ्रेंस का एक वीडियो इंटरनेट पर तैरने लगा. जिसमें उन्हें मुस्कुराते हुए दिखाया गया. प्रियंका गांधी का ये वीडियो 800 से ज्यादा बार शेयर किया जा चुका है. वेबकूफ की टीम ने वीडियो के जांच की और पाया कि वो पुलवामा हमले के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिलकुल नहीं मुस्कुराई थीं. वीडियो को इस तरह से एडिट किया गया था ताकि उसमें प्रियंका मुस्कुराती हुई नज़र आएं. मतलब मकसद साफ था. झूठ फैलाकर नफरत को हवा देना.

फेसबुक पर राहुल गांधी की आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार से मुलाकात की कुछ तस्वीरें वायरल हो गईं. ये तस्वीरें भी फेक थीं.

टीम वेबकूफ ने हर तस्वीर की जांच की. इनमें एक तस्वीर 2014 की थी, जब राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी दौरे पर गए थे. दूसरी तस्वीर 2015 में एक इफ्तार पार्टी की थी. जैश-ए-मोहम्मद के जारी वीडियो से अहमद डार के चेहरे को राहुल के साथ फोटो में दिख रहे शख्स की तस्वीर पर सुपइम्पोज़ किया गया था. जैश ने ही पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी. मतलब यहां भी गलत तस्वीर बनाकर झोल करने की कोशिश.

पीएम मोदी भी बने निशाना

फेक न्यूज का वायरस एक ही पार्टी तक सीमित नहीं था. वायरल हुई एक तस्वीर पीएम नरेंद्र मोदी की भी थी, जिसमें वो शहीदों के बजाय कैमरों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. इस तस्वीर से झूठी कहानी बनाने के लिए इसका गलत इस्तेमाल किया गया.

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सत्ताधारी पार्टी की बात करें, तो बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ट्विटर पर दावा कर रहे हैं कि पुलवामा हमला, 2014 में बडगाम की एक घटना का नतीजा था. दावा किया गया कि सुरक्षा बलों से कहा गया था कि वो श्रीनगर राजमार्ग पर किसी भी चेक प्वॉइंट पर गाड़ियों की जांच न करें. उन्होंने ये भी लिखा कि जिस जवान ने एक कार पर गोलियां चलाई थीं, उसने “तीन चेक प्वॉइंट्स पर टक्कर मारी थीं” और उसे जेल भेजा गया था. लेकिन ये भी सच नहीं है. उस वक्त सेना के टॉप अफसर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने हमें बताया कि सैनिक के कोर्ट मार्शल की बात “फेक” है. उन्होंने कहा कि न तो कोई कोर्ट मार्शल हुआ था और न ही ऐसे किसी मामले में किसी सैनिक को जेल हुई थी. और तो और सरकार की ओर से “चेक प्वाइंट्स पर किसी गाड़ी को रोकने की मनाही” भी नहीं थी, जैसा सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया है.

सिर्फ आंखों देखी बात पर भरोसा न करें

CRPF जवानों पर हुए अटैक का सीसीटीवी फुटेज! जवाबी कार्रवाई में एक आतंकवादी का पकड़ा जाना! एक शहीद जवान की तस्वीर! हमले के कुछ ही घंटों के अंदर ऐसी अनगिनत तस्वीरें ट्विटर और फेसबुक पर वायरल हो गईं, जिन्हें कई अकाउंट पर शेयर किया गया. लेकिन सारी की सारी फेक निकलीं.

माइजिंग बसुमतारी CRPF का एक जवान है. संयोग से उसका सरनेम पुलवामा हमले में शहीद हुए 40 साल के जवान महेश्वर बसुमतारी से मिलता है. सोशल मीडिया पर माइजिंग की तस्वीर ये बताते हुए वायरल हो गई, कि वो शहीद हो गए हैं. आखिरकार माइज़िंग को खुद फेसबुक का सहारा लेना पड़ा और बताना पड़ा कि उनकी शहादत की खबर फेक है.

तो Moral of the story यही है, कि जब आप वॉट्स एप, फेसबुक और ट्विटर पर किसी मैसेज या तस्वीर या वीडियो देखें, तो आंख मूंदकर उसपर भरोसा न करें. खासकर, जब ये खबर किसी समुदाय विशेष के खिलाफ हिंसा से जुड़ी हों. क्योंकि नफरत और हिंसा यही है इन वीडियो की मंशा...

हिंसा और नफरत? यही चारा है!

डॉक्टर्ड तस्वीरें और गलत फैक्ट्स हमारी सोच पर असर डालती हैं, जिनका रिएक्शन खतरनाक हो सकता है. हम पहले ही वॉट्सएप पर बच्चों के अपहरण के अफवाह का नतीजा देख चुके हैं, जिसने कई लोगों की जान ले ली थी. लिहाजा, अगली बार जब आप अपने वॉट्सएप, ट्विटर या फेसबुक अकाउंट पर कोई अनवेरिफाइड मैसेज, तस्वीर या वीडियो देखें, तो बिना पड़ताल किये उसे फॉर्वर्ड न करें. अगर आप खुद उसकी पड़ताल नहीं कर सकते, तो उसे हमारे पास भेजें. हम उसकी जांच करेंगे, आपको ना ही बेवकूफ बनने देंगे और ना ही सोशल मीडिया की दुनिया में वेबकूफ बनने देंगे.

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Published: 20 Feb 2019,05:36 PM IST

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