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हिंदी में सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने की सहूलियत ने बदली निर्मल चंदेल की जिंदगी

हिमाचल की निर्मल महिलाओं के अधिकारों के लिए ऑनलाइन मुहिम चलाकर करती हैं काम

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<div class="paragraphs"><p>विधवा महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती हैं निर्मल चंदेल</p></div>
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विधवा महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती हैं निर्मल चंदेल

(फोटो: change.org)

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हिंदी दिवस के मौके पर हम ऐसी कहानियां आप तक ला रहे है, जहां हिंदी के कारण बदलाव आया. पहली कड़ी में हमने आपको उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर की गायत्री की कहानी सुनाई. दूसरी कड़ी में मध्य प्रदेश के ग्वालियर की रीना शाक्य की कहानी बताई. तीसरी कहानी है हिमाचल की निर्मल चंदेल की.

18 मार्च, 1990 का दिन निर्मल को आज भी याद है. ये वही दिन था जब उन्होंने नौकरी के लिए पहली बार आवेदन पत्र लिखा. उनके लिए ये बहुत बड़ा कदम था क्योंकि तब के समय में पति की मृत्यु के बाद एक औरत की पहचान केवल एक विधवा के रूप में ही सिमट जाती थी. 27 साल की उम्र में पति को खोकर निर्मल अपनी पहचान को सिमटते नहीं देखना चाहती थीं, इसलिए वो अपना घर, अपना गांव, नाते-रिश्तेदार सबको छोड़कर ऐसी यात्रा पर निकल गईं, जिसकी मंजिल वो स्वयं थीं.

आज हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सोलन जिले में रहने वाली 56 वर्षीय निर्मल चंदेल से आप मिलेंगे तो वो 27 साल वाली निर्मल से शायद बहुत अलग हों या बहुत मिलती-जुलती भी. अब निर्मल ‘एकल नारी शक्ति संगठन’ की अध्यक्ष हैं, जो हिमाचल में एकल व विधवा महिलाओं की सेवा एवं अधिकारों की लड़ाई के लिए समर्पित है. इसके साथ ही वो अखिल भारतीय एकल महिला राष्ट्रीय फोरम की भी अध्यक्ष हैं. निर्मल का जन्म मंडी जिले के बारस गांव में हुआ और शादी सथमला गांव के श्री प्रताप सिंह से हुई. उनके पति की मृत्यु अचानक हार्ट अटैक से हुई, जिसके बाद से वो अपने जिले से कहीं दूर चली जाना चाहती थीं.

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बहुत दुख होता था, शहर में हर चीज उनकी याद दिलाती थी, मानो हर चीज उनसे जुड़ी हो, उसपर से लोगों के ताने. बस यही दिल करता था कि कहीं ऐसी जगह चली जाऊं जहां कोई अपना पराया ना हो.
निर्मल चंदेल, अध्यक्ष, अखिल भारतीय एकल महिला राष्ट्रीय फोरम

‘सूत्र’ संस्था में काम करती हैं निर्मल

जीवन संघर्ष के बीच ‘सूत्र’ नाम की संस्था ने उन्हें मंडी के अपने महिला मंडल में जोड़ा. सूत्र ने ही उन्हें कैशियर की नौकरी दी और काम सिखाया. संस्था के आवेदन पत्र पर निदेशक के हस्ताक्षर के लिए निर्मल ने जीवन का पहला पत्र हिन्दी में लिखा.

वो बताती हैं कि इस नौकरी से उन्हें 190 रुपये मिले, जिसमें से उन्होंने 90-100 रुपये मंदिर में चढ़ाए. इस नौकरी ने जिंदगी के प्रति उनका नजरिया बदला. इसके बाद से उनका जीवन बदला और वो मंडी से सोलन आ गईं और सूत्र के साथ काम करने लगीं. उन्होंने धीरे-धीरे अकाउंटिंग, इत्यादि भी सीखी और देखते-देखते जीवन के 3 दशक कहां चले गए उन्हें पता ही नहीं चला.

निर्मल शुरू से ही बहुत जुझारू और जिज्ञासु थीं, ये उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं में झलकता है. उनकी भाषा शुद्ध हिन्दी थी, पर अकाउंटिंग के लिए अंग्रेजी सीखी ताकि खाते व गिनती में गलती ना हो. पहली बार कंप्यूटर देखा तो घबरा गईं कि क्या ये उनकी बातें तो नहीं सुन लेता? फोटो स्टेट की भीमकाय मशीन देखकर सोचतीं कि आखिर ये काम कैसे करती है. वही निर्मल आज सुबह होते ही कंप्यूटर खोलती हैं और सबसे पहले अपनी चेंज डॉट ऑर्ग पेटीशन देखती हैं कि उसपर कितने लोगों ने हस्ताक्षर किया.

चेक-वेक में गलती ना हो जाए इसके लिए मैंने वो नंबर वाली किताब भी खरीदी, फिर समझा कि पच्चासी (85) को एट्टी फाइव कहते हैं. अब तो रात के डेढ़ बजे भीम ऐप चलाती हूं, वो हिन्दी में है ना तो समझना आसान हो जाता है
निर्मल चंदेल

महिलाओं के लिए चलाई ऑनलाइन मुहिम

उन्होंने Change.org/PensionKaHaq नाम से एक ऑनलाइन मुहिम चलाई है जिसपर उन्हें 12 हजार से अधिक लोगों का समर्थन मिल चुका है. इस मुहिम से निर्मल हिमाचल में पेंशन के नियमों में बदलाव करने की मांग को मीडिया व सरकार तक पहुंचाना चाहती हैं.

वो कहती हैं दरअसल हमारे राज्य में किसी महिला को विभिन्न सरकारी पेंशन प्राप्त करने के लिए एक निर्धारित आय सीमा है, जो कि अभी 35 हजार रुपये है. यदि किसी महिला की सालाना आय इससे 1 रुपया से भी ज्यादा हो तो वो कई कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाती है. इसलिए मैं अपनी पिटीशन के जरिए सरकार से मांग कर रही हूं कि इस आय सीमा को 35,000 से बढ़ाकर 60,000 कर दें और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को पेंशन की सुरक्षा दें.

2008 में निर्मल ने विधवा एवं एकल महिलाओं की एक पदयात्रा निकाली थी, जिसमें 3500 महिलाओं ने भाग लिया. इधर अपने काम के सिलसिले में वो जहां भी जातीं, उन्हें यही सुनने को मिलता कि ‘सोशल मीडिया में बड़ी ताकत है’, ‘सोशल मीडिया से ये हो रहा है, वो हो रहा है’, इत्यादि.

इसलिए वो अब सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं और उसका महत्व भी समझती हैं. अभी भी उन्हें बहुत सी चीजें सीखनी हैं पर उनके अनुसार उन्होंने इतना जरूर सीखा है कि अंग्रेजी ना भी आए तो भी सोशल मीडिया पर आप अपनी बात रख सकते हैं. सोशल मीडिया में हिन्दी का भी काफी बोलबाला है. यह जानकर निर्मल को अच्छा लगता है कि उनकी पेटीशन पर इतने हस्ताक्षर हो गए.

मुझे फील्ड में जाना बहुत पसंद है, पर उससे ज़्यादा मेरे जैसी महिलाओं का दुख-सुख बांटना, जिस दिन ऐसा ना करूं तो एक कमी सी लगती है, लेकिन अब ऑनलाइन काम भी जरूरी है. मैं चाहती हूं कि लड़कियों को वो सबकुछ सिखाऊं जो मैं 56 की उम्र में सीख रही हूं. लड़कियों को भी ऑनलाइन दुनिया में जीने का अधिकार है, ये हमारी जिम्मेदारी है कि वो स्कॉलरशिप भरने से लेकर बैंक अकाउंट खोलना सब सीखें. कितना कुछ तो अब हिन्दी में आ गया है, उससे सीखने में आसानी हो गई है, और भी चीजें आने लगें तो और आसानी हो जाएगी.
निर्मल चंदेल, अध्यक्ष, अखिल भारतीय एकल महिला राष्ट्रीय फोरम

1995 में निर्मल ने महिलाओं की एक टोली को ये गीत गाते हुए सुना, “जागो बहनों डरना छोड़ो हिम्मत से काम करो”, तब से ये उनका सबसे पसंदीदा हिन्दी गीत है. वो अपनी एक आत्मकथा लिखना चाहती हैं, जीवन की पूरी यात्रा, कैसे उन्हें ‘बेसहारा’ कहा गया, लेकिन वो हजारों महिलाओं का ‘सहारा’ बनीं.

निर्मल कहती हैं कि वो अपनी आत्मकथा का अनुवाद सभी भाषाओं में कराएंगी ताकि सभी भाषाएं बोलने वाली महिलाओं तक ये गीत पहुंच जाए, “जागो बहनों डरना छोड़ो हिम्मत से काम करो” जो कि उनके जीवन का एक बहुत अहम हिस्सा है.

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Published: 13 Sep 2021,07:12 PM IST

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