Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019श्रीनगर ग्राउंड रिपोर्ट 15:पाबंदियों के बीच लोकल पत्रकारों का दर्द

श्रीनगर ग्राउंड रिपोर्ट 15:पाबंदियों के बीच लोकल पत्रकारों का दर्द

घाटी में ठप पड़े कम्युनिकेशन के बीच जर्नलिस्टों की शिकायत है कि फौज फुटेज डिलीट करवा रही हैं

शादाब मोइज़ी
वीडियो
Updated:
16 अगस्त, 2019 : श्रीनगर को कवर करतीं फ्रीलांस जर्नलिस्ट सना इरशाद मट्टू
i
16 अगस्त, 2019 : श्रीनगर को कवर करतीं फ्रीलांस जर्नलिस्ट सना इरशाद मट्टू
फोटो: क्विंट हिंदी

advertisement

वीडियो एडिटर: संदीप सुमन/ विशाल कुमार

वीडियो प्रोड्यूसर: हेरा खान

कश्मीर और उसके हालात को लेकर नेशनल मीडिया रिपोर्टिंग तो कर रही है लेकिन यहां के लोकल जर्नलिस्ट और लोकल मीडिया क्या रिपोर्ट कर पा रही है? यही जानने के लिए क्विंट पहुंचा श्रीनगर के प्रेस क्लब और पत्रकारों से जानने की कोशिश की कि इन हालात में वो किस तरह से रिपोर्टिंग कर पा रहे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
मैं इस तरह का शख्स हूं, जो इंडियन मीडिया के जर्नलिज्म से बहुत प्रभावित नहीं हूं. कश्मीर से सिर्फ एक तरह की स्टोरी निकल रही है कि सबकुछ ठीक है, खुशनुमा चेहरे हैं. कश्मीर में जो हो रहा है, वो अलग है. जो भी रिपोर्ट हो रहा है, वो अलग है.
शफत फारूक, जर्नलिस्ट, बीबीसी उर्दू

फ्रीलांस जर्नलिस्ट सना इरशाद मट्टू का कहना है कि “न्यूज चैनल्स पर न्यूज दिखा रहे हैं कि सब नॉर्मल है, सब ठीक है. लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है.”

अगर इतना ही नॉर्मल होता तो यहां इंटरनेट कनेक्टिविटी चालू हो जाती. इंडियन फोर्सेज रोकती है. कहती है कि “आप काम नहीं कर सकते. हमारे पास ऑर्डर है कि मीडिया को इजाजत नहीं है” 
सना इरशाद मट्टू, फ्रीलांस जर्नलिस्ट

घाटी में ठप पड़े कम्युनिकेशन के बीच जर्नलिस्टों की शिकायत है कि फौज फुटेज डिलीट करवा रही है और 'हालात की सही रिपोर्टिंग' करने से रोक रही है.

इंडियन मीडिया में ये स्टोरी नहीं दिखती कि कश्मीर में विरोध आंदोलन हुआ या पत्थरबाजी हुई. हम कवर करने गए और हमारी फुटेज कैमरे से डिलीट करवा दी गई. ये खुद में एक स्टोरी है कि यहां के जर्नलिस्टों की, इंटरनेशनल जर्नलिस्टों की फुटेज डिलीट करवाई जा रही है, ताकि सिर्फ एक किस्म की स्टोरी कश्मीर से निकले. ये हमसे कौन डिलीट करवा रहा है? ये पुलिस, सीआरपीएफ या आर्मी के लोग हैं? कौन हैं? स्टेट करवा रही है, पाबंदी लगा रही है.  
लोकल जर्नलिस्ट

इन जर्नलिस्टों को अपनी सुरक्षा की फिक्र है लेकिन फिर भी कश्मीर के ये जर्नलिस्ट अपनी स्टोरी लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में जी-जान से जुटे हुए हैं.

शारीरिक और मानसिक दबाव है, स्टेट का दबाव है. खासकर लोकल मीडिया पर ज्यादा है. हमारे कुछ सहकर्मी हिरासत में हैं. आसिफ सुल्तान 8-9 महीने से बंद हैं. उन्होंने एक मैगजीन के लिए स्टोरी की थी.  
लोकल जर्नलिस्ट

कश्मीर के लोकल पत्रकारों का कहना है -‘‘नेशनल मीडिया ने जो किया उसकी मार लोकल जर्नलिस्टों को झेलनी पड़ रही है. स्थानीय लोग बोलते हैं कि तुमलोग क्या दिखा रहे हो. कहते हैं -तुमलोग गलत दिखा रहे हो और फिर हमारा भी विरोध करते हैं. लोगों में गुस्सा है कि लोकल जर्नलिस्ट कुछ नहीं दिखा रहे हैं.’’

कश्मीर में पत्रकार जितना भी कवर कर रहे हैं, वो एसडी कार्ड में सेव करके रख रहे हैं. और उस दिन का इंतजार कर रहे हैं कि जब इंटरनेट शुरू होगा तब वो स्टोरी करेंगे.तब तक शायद कश्मीर की यही कहानी चलती रहेगी...

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 20 Aug 2019,02:10 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT