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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
अखबार, इंटरनेट, टीवी...तनुश्री दत्ता अचानक हर जगह नजर आ रही हैं. वजह है सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप जो उन्होंने नाना पाटेकर पर लगाए हैं.
अच्छा है कि इसपर कुछ बात हो रही है, लोग समझने की कोशिश कर रहे हैं. क्योंकि ये #MeToo का दौर है. वही #MeToo जो अमेरिका के मशहूर फिल्ममेकर हार्वे विन्सटीन के कारनामों को दुनिया में सामने लाने के साथ शुरू हुआ. अमेरिका समेत दुनिया भर में महिलाएं सामने आने लगीं, आपबीती बताने लगीं. सालों से दफ्न राज सर उठाने लगे. कुछ लोगों को तकलीफ हुई लेकिन उस तकलीफ से हमेशा कम जो इन महिलाओं ने सही.
लेकिन ऐसा क्यों होता है कि अमेरिका के जिस #MeToo पर हम दूर से ताली बजाते हैं वो जब भारत में तनुश्री जैसे मामले के तौर पर सामने आता है तो हम बगलें झांकने लगते हैं.
हमारे देश में क्यों नहीं सफल हो पाता #MeToo जैसा कैंपेन?
हम डिजिटल हो रहे हैं. तकनीक की तेज रफ्तार बस में सवार होना चाहते हैं. लेकिन सोच, अब भी वही...जालों में उलझी हुई. बॅालीवुड एक्ट्रेस तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया तो कुछ लोगों ने समर्थन किया लेकिन बहुतों ने कुछ ऐसा कहा जो एक सभ्य समाज में महिलाओं को लेकर खराब सोच को सामने लाता है.
कुछ नमूने देखिए जो बाॅलीवुड के ही ‘सितारों’ ने दी है-
जब हजारों लाखों महिलाएं ऐसे बयान देखती हैं तो अपने खिलाफ हुई नाइंसाफी को सामने लाने की उनकी रही सही हिम्मत भी जवाब दे जाती है.
अक्सर लोग चेहरा देखकर तय करते हैं कि किसके बचाव में खड़ा होना है, किसके नहीं. तनुश्री मामले में नाना पाटेकर को लेकर भी यही हो रहा है. कभी उनके दिग्गज अभिनेता होने की दुहाई, कभी मराठी होने की, कभी राजनीतिक पार्टी एमएनएस से नजदीकी की बात तो कभी किसानों की मदद करने वाले एक ‘दयावान’ की छवि. इन सब बातों के बीच लोग देखते ही नहीं कि जिसका बचाव कर रहे हैं, उस पर कितने संगीन आरोप हैं.
इस बयान में वो बहुत ही साफगोई से नाना को महान बताते दिख रहे हैं. अच्छा ऐक्टर, अच्छा इंसान होने की गारंटी नहीं होता. न ही अच्छे पर्सनल, पॉलिटिकल कनेक्शन क्लीन चिट की गारंटी. लेकिन अपने देश में आरोप से ज्यादा ये देखा जाता है कि आदमी की पहुंच कितनी है और आरोप लगाने वाले की हैसियत कितनी!
2016 की एक्शनएड यूके की रिपोर्ट भारत में 73 फीसदी महिलाएं पब्लिक प्लेस पर किसी न किसी तरह का उत्पीड़न या हिंसा झेलती हैं.
#MeToo जैसे कैंपेन ने महिलाओं को थोड़ी हिम्मत दी सोशल मीडिया के जरिए बात रखने की. लेकिन हमारे देश के इंटरनेट यूजर्स में सिर्फ 30% महिलाएं हैं. अब तो बड़ा डिस्कशन और सोच सोशल मीडिया के सहारे खूब तय होती है लेकिन जब महिलाओं को अपना पक्ष रखने तक का मौका नहीं मिलेगा तो बड़े पैमाने पर ऐसे लोग ही हावी होते दिखेंगे जो इस सोशल मीडिया को हाइजैक कर सकें. ये साबित कर सकें कि तनुश्री जैसी महिलाओं की आवाज बेवजह है, गैर जरूरी है और जिस पर आरोप हैं, वो महान है, पाकसाफ है.
लेकिन सब कुछ इतना नेगेटिव भी नहीं.आहिस्ता-आहिस्ता सही, महिलाएं हिम्मत जुटा रही हैं, अपने खिलाफ होने वाली नाइंसाफी को सामने ला रही हैं और ये बदरंग तस्वीर उजली होने का भरोसा भी दिला रही हैं.
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