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Agnipath Exam:योजना के फायदे,चुनौतियां-खतरे,क्या करें कि अग्निपथ की आंच न झुलसाए

सेना के नेतृत्व को आपात स्थितियों में वफादारी और सखापन बढ़ाने के लिए नए उपाय करने होंगे

रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Agnipath के फायदे और चुनौतियां</p></div>
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Agnipath के फायदे और चुनौतियां

(फोटो: क्विंट)

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केंद्र की अग्निपथ योजना (Agneepath Scheme) के तहत अग्निवीर (Agneeveer) के लिए भर्ती परीक्षा रविवार, 24 जुलाई से शुरू हो गई है. वायुसेना (Air Force) में भर्ती के लिए यह परीक्षा ऑनलाइन हो रही है. दिसंबर में छात्रों का एनरोलमेंट कर लिया जाएगा और 30 दिसंबर से इनकी ट्रेनिंग शुरू कर दी जाएगी. यह परीक्षा तीन लाख से ज्यादा उम्मीदवार दे रहे हैं.

इस योजना के तहत अग्निवीर कहलाने वाले सैनिकों को चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा. नौकरी से हटाए जाने के बाद उन्हें अंशदान आधारित सेवा निधि पैकेज मिलेगा, लेकिन कोई पेंशन लाभ नहीं होगा. इसके बाद सिर्फ 25 प्रतिशत सैनिकों को अपनी यूनिट्स में बहाल रखा जाएगा, और वे नियमित सैनिकों की तरह पूर्ण सेवा देंगे.

देश भर में इस पर जोरदार बहस छिड़ी हुई है और अधिकांश दिग्गज चाहते हैं कि इसे पूरी तरह से लागू करने से पहले एक पायलट प्रॉजेक्ट चलाया जाए. चूंकि सरकार ने नई भर्ती नीति की घोषणा कर दी है तो भारतीय सशस्त्र बलों को न केवल इससे निपटना चाहिए, बल्कि इसे एक फायदे का सौदा बनाना चाहिए.

• अग्निपथ योजना के फायदे हैं, चुनौतियां और कुछ आशंकाएं भी.

• प्रशिक्षण की अवधि को कम किया गया है. उसकी भरपाई दूसरे नए तरीकों से प्रशिक्षण और रोजगार देकर, की जानी चाहिए.

• ग्रामीण वर्ग के युवक पहले पुलिस या अर्धसैनिक बलों जैसे अधिक स्थायी रोजगार के लिए आवेदन करते हैं. इसलिए इस नई योजना को प्रोत्साहन देने की जरूरत होगी.

• यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ये नौजवान समाज को फायदा पहुंचाएं, वरना बेरोजगार और सैनिक के रूप में प्रशिक्षित होने के कारण वे समाज के लिए संभावित खतरा भी हो सकते हैं.

• सेना के नेतृत्व को आपात स्थितियों में वफादारी और सखापन बढ़ाने के लिए नए उपायों का इस्तेमाल करना होगा.

भारतीय सैन्य नेतृत्व को अग्निपथ योजना की ताकत का फायदा उठाना चाहिए

अग्निपथ योजना के कुछ फायदे, कुछ चुनौतियां और कुछ आशंकाएं हैं. भारतीय सशस्त्र बलों को इस योजना की ताकत को भुनाना होगा और असंतुलित हुए बिना चुनौतियों और आशंकाओं से निपटना होगा.

अग्निपथ के फायदे

यह सैनिकों के ऐज प्रोफाइल को कम करेगा, क्योंकि तीन चौथाई सैनिक चार साल की सेवा के बाद रिटायर हो जाएंगे और हर साल उनकी जगह दूसरे नौजवान सैनिक आ जाएंगे. एक नियमित सैनिक जो अभी पैंतीस-चालीस की उम्र में रिटायर हो रहा है, वह भी नौजवान ही है. लेकिन बीसेक साल के सैनिक बेशक, ज्यादा युवा हैं और कुछ खास कामों के लिए एकदम मुफीद.

यह नई नीति आज दौर के हिसाब से सटीक है. युवा ज्यादा टेक सेवी हैं और बड़ी संख्या में सेना में जाने के इच्छुक हैं. लेकिन कई इसे अपना उम्र भर का करियर नहीं बनाना चाहते हैं. अधिकारियों के लिए एक शॉर्ट सर्विस कमीशन योजना मौजूद है लेकिन सपोर्ट कैडर को बढ़ाने के लिए ऐसी कोई दूसरी इंट्री स्कीम नहीं है.

इससे जूनियर लेवल पर बेहतर नेतृत्व भी मिलेगा, क्योंकि केवल शीर्ष 25 प्रतिशत को ही चार साल बाद नियमित सैनिकों के रूप में बहाल रखा जाएगा. तुलनात्मक दृष्टि से सैनिकों की नई पीढ़ी हमेशा तकनीक की ज्यादा समझ रखने वाली होगी. अग्निवीर भी चार सालों के दौरान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने के लिए प्रेरित होंगे ताकि शीर्ष 25 प्रतिशत में जगह बनाई जा सके- जिन्हें चार साल बाद सेवा में बरकरार रखा जाएगा.

इस समय सैनिकों के वेतन और पेंशन पर रक्षा बजट का 80 प्रतिशत से अधिक खर्च होता है. इससे सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए बहुत कम पैसा बचता है. इस ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ से वेतन और पेंशन पर होने वाले खर्च में कमी आएगी.

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अग्निपथ की चुनौतियां-क्या अग्निपथ से सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार मिलेंगे?

एक रंगरूट, दमदार सैनिक बने, इसके लिए पहला कदम होता है, उसका प्रशिक्षण. प्रेरणा और अपनेपन की भावना तो बाद की बात है. पहले रेजिमेंटल सेंटर्स में रंगरूटों को बुनियादी प्रशिक्षण मिलता है और इसके बाद युनिट्स में काम के दौरान. अब दोनों की अवधि को कम किया गया है. हां, प्रशिक्षण की अवधि को जो कम किया गया है, उसकी भरपाई दूसरे नए तरीकों से प्रशिक्षण और रोजगार देकर की जानी चाहिए.

ग्रामीण वर्ग के युवक पहले पुलिस या अर्धसैनिक बलों जैसे अधिक स्थायी रोजगार के लिए आवेदन करते हैं. यानी वे सेना को दूसरी या तीसरी पसंद के रूप में चुन सकते हैं. इसलिए इस नई योजना को प्रोत्साहन देने की जरूरत होगी. उदाहरण के लिए अमेरिका में शॉर्ट टर्म ड्यूटी करने वाले सैनिक सरकारी खर्च पर शिक्षा प्राप्त करते हैं.

इन नौजवानों को इस बात की चिंता हो सकती है कि चार साल की सेवा के बाद उनका भविष्य कितना अनिश्चित होगा. हालांकि बीसेक साल के किसी ऐसे उम्मीदवार को नौकरी मिलने की ज्यादा उम्मीद है जो अनुशासित है, बजाय किसी अप्रशिक्षित उम्मीदवार के. लेकिन फिर भी यह कोई तय बात नहीं है. यह बेहतर होगा कि इन लोगों को कुछ हद तक अर्धसैनिक या केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में रखा जाए. (सरकार ने कुछ अर्धसैनिक बलों में इन्हें 10% आरक्षण का ऐलान किया है) यह बहुत अच्छा होगा क्योंकि इन बलों को भी युवा और प्रशिक्षित सैनिक मिल जाएंगे.

अग्निपथ के खतरे-क्या बेरोजगार प्रशिक्षित सैनिक समाज के लिए खतरा होंगे?

सरकार को उम्मीद है कि इसका एक और अप्रत्याशित असर हो सकता है. समाज में ऐसे पूर्व सैनिक फैल सकते हैं जो उत्तम समाज का निर्माण करेंगे, लेकिन कुछ अनहोनी भी हो सकती है. इसीलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ये नौजवान समाज को फायदा पहुंचाएं, वरना बेरोजगार और सैनिक के रूप में प्रशिक्षित होने के कारण वे समाज के लिए संभावित खतरा भी हो सकते हैं.


कुछ लोगों को महसूस हो रहा है कि अग्निवीरों के पास पूर्णकालिक सैनिकों जैसी वफादारी और प्रेरणा नहीं होगी, न ही उनके जैसा सखा भाव होगा. सैनिक किसी मोर्चे पर जूझ सके, इसके लिए यह सब बहुत जरूरी है.

एक सैनिक अपनी 'पलटन की इज्जत', अपनी यूनिट के सम्मान या 'नाम, नमक, निशान' के लिए मर मिटता है. उसकी यूनिट का नाम, उसकी रेजिमेंट के झंडे, उसके रंग या पेनेंट का प्रतीक होता है जिसके लिए वह अपने प्राणों की आहुति देने से भी परहेज नहीं करता. सेना का नेतृत्व असाधारण गुणवत्ता का है, और उन्हें आपात स्थितियों में जंग जीतने के लिए ऐसे उपायों का इस्तेमाल करना होगा.

क्या भारतीय सेना को आधुनिकीकरण के लिए और पैसा मिलेगा?

एक आशंका यह भी है कि अगर राजस्व की मद के अंतर्गत आने वाला वेतन और पेंशन व्यय कम होगा तो क्या सेना के आधुनिकीकरण पर होने वाला खर्च बढ़ेगा. क्योंकि सेना का आधुनिकीकरण पूंजीगत व्यय के तहत आता है, और दोनों मदों को अलग-अलग तरीके के वित्त पोषित किया जाता है.

वैसे सरकार इस बात पर राजी है कि अगर जरूरत पड़ी तो मध्यावधि में संशोधन कर दिए जाएंगे. यह स्वागत योग्य कदम है, चूंकि अग्निपथ योजना पहले की व्यवस्था से एकदम अलग और क्रांतिकारी व्यवस्था है. अनुभव के आधार पर इस नीति को बदला जा सकता है.

लब्बोलुआब यह है कि सशस्त्र बलों की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि दोनों परमाणु पड़ोसियों के साथ हमारी सीमाएं लगती हैं.

(लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कश्मीर में एक पूर्व कोर कमांडर हैं, जो एकीकृत रक्षा स्टाफ के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं. व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 18 Jun 2022,01:42 PM IST

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