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भारत की सैन्य मशीनरी को नया रूप देने के लिए सरकार ने विकट कदम उठाया है- अग्निपथ (AgneePath). हर साल 46 हजार के करीब-करीब नौजवानों को घातक लड़ाके बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा, लेकिन सिर्फ 4 साल बाद, हर चार में से तीन को ‘रिटायर’ कर दिया जाएगा- वह भी 21 से 25 साल की उम्र के बीच. क्या ये पूर्व 'अग्निवीर' (Agniveer) बेरोजगार हो जाएंगे और सड़कों पर अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करेंगे या नागरिक समाज के उच्च मनोबल वाले, अनुशासित श्रमजीवी बने रहेंगे? अग्निपथ स्कीम के विरोध में बिहार (Bihar) से ट्रेनों को जलाए जाने की जो तस्वीरें आ रही हैं, उससे अच्छे संकेत तो नहीं मिल रहे.
हर विकट फैसले की तरह, अग्निपथ भी काफी अच्छा, काफी दुरूह और काफी नामालूम है. इसलिए इसे लेकर हमें कितना चिंतित होना चाहिए? क्या हमें जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा सामाजिक सैन्य प्रयोग पहले कभी नहीं किय गया?
एक मशहूर रक्षा मंत्री की जुबानी-
यह टिप्पणी अमेरिका के चार्मिंग नेता और पूर्व रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफील्ड ने फरवरी 2002 में की थी. वह इराक में अमेरिकी आक्रमण को जायज ठहरा रहे थे. वह इराक में सामूहिक नरसंहार के उन अज्ञात हथियारों को नष्ट करना चाहते थे, जिनका उन्हें ज्ञान नहीं था- यह बात और है कि वे अज्ञात हथियार गैरमौजूद और गैर हकीकी भी थे!
लेकिन कल्पना कीजिए, अगर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने प्रधानमंत्री के अब तक के सबसे साहसिक, शायद सबसे जोखिम भरे, दांव का वर्णन करने के लिए ये शब्द कहे होते. तब वह एक सच्चे राजनेता लगते क्योंकि हम अग्निपथ और अग्निवीर के साथ ज्ञात और अज्ञात की खोह में दाखिल हो रहे हैं.
जो विवरण हमें मिलता है, वह काफी मासूम और सीधा-सादा है.
अग्निवीरों की उम्र 17 साल के किशोरों से लेकर करीब-करीब 20 साल के जवानों तक की होगी. इसके बाद इन 46,000 रंगरूटों को सेना, नौसेना और वायुसेना का सैनिक बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.
उन्हें 30 से 40 हजार महीने की “कॉन्ट्रैक्चुअल फीस” दी जाएगी. यह फीस उस वेतन से ज्यादा होगी जो नियमित सैनिकों को दी जाती है.
4 साल बाद, इनमें से तीन चौथाई को सम्मानपूर्वक छुट्टी दे दी जाएगी- निधि और सम्मान सहित- उन्हें 11.71 लाख की एकमुश्त रकम या सेवा निधि मिलेगी (यह काफी अच्छी रकम है. यहां जरूर कुछ माइथोलॉजी होगी). उन्हें कोई पेंशन या ग्रैच्युटी नहीं मिलेगी.
धीरे धीरे भारत के सैनिकों की औसत आयु 32 से घटकर लगभग 25 वर्ष हो जाएगी, जिससे देश को एक युवा, तंदुरुस्त सैन्य बल मिलेगा. बेशक, राज्य की पेंशन देनदारियां भी कम हो जाएंगी.
अब वह जिसका आकलन करना मुश्किल है (यानी जिस अज्ञात का हमें ज्ञान है). क्या छह महीने का प्रशिक्षण इन नौजवानों को उसी युद्ध कौशल में पारंगत कर सकता है जिसके लिए बाकी के सैनिक 11 महीने लगाते हैं.
युद्ध लड़ने के लिए अनुभव, लचीलापन और प्रतिकूल परिस्थितियों को संभालने की क्षमता जरूरी है- क्या सिर्फ चार साल के अंदर किसी में वह धैर्य और विवेक आ सकता है, जोकि एक अनुभवी सैनिक के पास होता है?
क्या अग्निवीरों को सेना से बाहर करके, उनकी संघर्ष करने की प्रेरणा का गला घोंटा जाएगा, बजाय कि उन्हें दुश्मन को परास्त करने के लिए भेजा जाता?
छोटी उम्र का होने के चलते, क्या वे अनिवार्य रूप से नए तकनीकी युद्ध में माहिर होंगे, या यह सिर्फ एक अनुभवहीन अनुमान है?
क्या सेनाओं में सभी वर्गों, सभी क्षेत्रों और सभी जातिगत पहचान वाले लोगों को शामिल करने की भावना से औपनिवेशिक दौर के विशिष्ट सैन्य दस्तों की जनसांख्यिकी पहचान बेअसर नहीं हो जाएगी, जिस पर पुराने सैनिक गर्व से भर उठते हैं.
आखिर में, क्या चार में से तीन सैनिकों की छुट्टी करने से पक्षपातपूर्ण चयन, या भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं मिलेगा? क्या इसे निष्पक्ष माना जाएगा?
यह बहुत ही जोखिम भरा मामला है, अंधेरी खोह सरीखा. जिसका फिलहाल हमें कोई पता नहीं (यानी अज्ञात के बारे में अज्ञान).
वह अग्निवीर कितना नाराज होगा जिसकी छुट्टी कर दी जाएगी? उस उम्र के युवा पुरुष अपमान और चोट को बर्दाश्त नहीं कर पाते- जरा देखिए कि अधिकतर 'ऑनर किलिंग' (क्रूर हत्याएं) के नाम पर मारी गई लड़कियों के भाई या कजिन्स इसी उम्र के होते हैं.
क्या जिस अग्निवीर की नौकरी जाएगी, वह खुद को पीड़ित नहीं मानेगा जिसके साथ गलत हुआ है?
क्या इससे उनके ध्रुवीकरण की राजनीति करने वालों के बहकावे में आने की आशंका नहीं होगी?
क्या उनका यकीन, साथ ही घातक हथियारों का इस्तेमाल करने की क्षमता, उन्हें गंभीर खतरा बना देगी?
अगर उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिलती, तो क्या उनका गुस्सा और हार/नकार की भावना बेकाबू नहीं हो जाएगी? क्या यह समाज में अपराध और हिंसा के लिए ज्वालामुखी का काम नहीं करेगा?
बदकिस्मती से मैंने सिर्फ इतना भर सुना है- "इन कुशल, प्रेरित, अनुशासित और देशभक्त अग्निवीरों को केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ राज्य सरकारों में नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी". नहीं साहब, ये पुराने, थके हुए बयान हैं. इनसे काम चलने वाला नहीं है. समय से पहले रिटायर होने वाले इन सैनिकों की नौकरियों की संभावनाएं बनी रहें, इसके लिए सरकार के पास अग्निपथ की ही तरह असाधारण और विलक्षण योजना होनी चाहिए. पर कैसे?
मैं सरकार से अनुरोध करूंगा कि इस फौजी हमले, यानी 'अग्निनौकरी' में प्राइवेट सेक्टर को युद्ध स्तर पर शामिल करें. याद करें कि कैसे सरकार ने एक अरब लोगों के लिए आधार तैयार किया था? उसने घर-घर जाकर बायोमेट्रिक्स रिकॉर्ड लेने के लिए सैकड़ों निजी एजेंसियों को सूचीबद्ध किया था. इसी तरह की बमबारी की जरूरत है.
प्रत्येक अग्निवीर का स्किल-प्रोफाइल किया जाना चाहिए, उसके चार साल के करियर को ट्रैक और कैटलॉग किया जाना चाहिए, उसके विशेष प्रशिक्षण और योग्यता को दर्ज किया जाना चाहिए. चार साल के बाद हर अग्निवीर को वह नौकरी मिलनी चाहिए जिसमें वह पूरी तरह से फिट होता हो, चाहे वह ऑटो फैक्ट्री में फोरमैन हो, सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड या स्कूल में फिजिकल इंस्ट्रक्टर.
अगर सरकार चाहती है कि उसकी विलक्षण अग्निपथ योजना सफल हो तो उसे जॉब प्लेसमेंट इनीशिएटिव 'अग्निनौकरी' शुरू करनी चाहिए जोकि उतना ही विलक्षण हो और उसकी कमान निजी क्षेत्र को सौंपनी चाहिए.
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Published: 16 Jun 2022,06:38 PM IST