क्या इस तरह आर्टिकल 370 खत्म करने से खत्म होगी कश्मीर समस्या?
संतोष कुमार
नजरिया
Updated:
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5 अगस्त: संसद में रोशनी और जम्मू-कश्मीर में सन्नाटा
(फोटो: अलटर्ड बाई क्विंट)
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जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35A को हटाने के अपने वादे को बीजेपी ने अमली जामा पहना दिया. राज्य को दो हिस्सों में बांटने का बिल भी राज्यसभा में पास हो गया. बीजेपी और देश के ज्यादातर हिस्से में इस फैसले का स्वागत हुआ है. गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बयान में कहा कि ये 70 साल से चली आ रही कश्मीर समस्या के समाधान की ओर बड़ा कदम है. लेकिन जिस अंदाज में इस 'हल' को अंजाम दिया गया, उस पर सवाल उठ रहे हैं. क्या इससे वाकई कश्मीर समस्या का हल निकलेगा?
जिसके भाग्य का फैसला, वो क्या कह रहा है, नहीं मालूम?
कुल मिलाकर 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर पर केंद्र की सरकार ने जो फैसले किये हैं उससे जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी. देश में लोकप्रिय मत यही है कि एक देश-एक विधान-एक झंडा होना चाहिए. लेकिन ये फैसला जिसे सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा, उसकी आवाज गुम है. आज आम कश्मीरी क्या सोच रहा है, क्या बोलना चाहता है, हम नहीं जानते. कश्मीर में मौजूद एक भी आम आदमी की राय बाहर नहीं आई है. राज्य में इंटरनेट सेवा बंद है. धारा 144 लागू है. आवाजाही बंद है.
क्या अब सुलझ जाएगी कश्मीर की समस्या ?
जिस तरह से अमरनाथ यात्रा रोकी गई. बाहरी लोगों को जम्मू-कश्मीर से निकाला गया और जिस तरह से अप्रत्याशित तौर पर वहां सुरक्षाबलों की संख्या बढ़ाई गई, जिस तरह से वहां के नेताओं को नजरबंद किया गया, उससे मैसेज क्या जा रहा है? कहीं ये तो नहीं कि केंद्र अपना फैसला जम्मू-कश्मीर पर थोप रहा है?
पिपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने तो यहां तक कह दिया है कि सरकार बंदूक की नोंक पर ये फैसला लागू करवा रही है. कांग्रेस ने इसे संविधान की हत्या करार दिया है. पीडीपी ने इसे लोकतंत्र के लिए काला दिन बताया है. कश्मीर की बड़ी समस्या ये है कि वहां सालों से हिंसा जारी है. असंतोष के ऐसे माहौल में क्या हिंसा रुक जाएगी? जब तक जम्मू-कश्मीर का आम आदमी संतुष्ट नहीं होगा, शांति कायम होगी?
पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को नजरबंद करने. जम्मू-कश्मीर में मोबाइल इंटरनेट सेवा को बंद करने को मैं सही नहीं मानता. इसकी बिल्कुल जरूरत नहीं थी. यह कश्मीर के लोगों को गलत संदेश देता है. मैं इसे मंजूर नहीं करता. सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी.
जब महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ जाने का फैसला किया और लॉर्ड माउंडबेटन को इसकी जानकारी दी तो लॉर्ड ने जवाब दिया कि जैसे ही राज्य में शांति कायम हो, जनमत संग्रह किया जाए. ये चीज आज तक नहीं हो पाई. अब एक बार फिर कश्मीर की स्वायत्तता हटाने के मसले पर वहां की आम जनता को अपनी राय रखने का कोई जरिया नहीं दिया गया है.
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कश्मीर पर क्या फैसले हुए?
आर्टिकल 370 बेअसर होने से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिलता था, जो स्वायत्तता मिली थी, वो खत्म हो गया.
सरकार के दूसरे संकल्प में लिखा है कि राष्ट्रपति का आदेश यानी 'संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 2019' लागू होते ही यह 'संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 1954' की जगह ले लेगा. आर्टिकल 35A ‘संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 1954’ के तहत ही लागू हुआ था. यानी इस संकल्प के बाद आर्टिकल 35A भी राज्य से हट जाएगा.
राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया है. एक विधानसभा के साथ जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश (गृह मंत्री ने संसद को बताया है कि हालात सुधरने पर इसे फिर से राज्य का दर्जा दिया जा सकता है) दूसरा लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश.
भारत के बंटवारे के बाद भी कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ये फैसला नहीं कर पा रहे थे कि भारत के साथ जाएं या पाकिस्तान के. 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबिलाइयों का हमला करा दिया. भारी लूटपाट और हत्याएं हुईं. आखिर में महाराजा ने हरि सिंह भारत से मदद मांगी और इसके बाद भारत से विलय पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) पर हस्ताक्षर कर दिए.
भारत में विलय की एक शर्त ये थी कि कश्मीर को स्वयत्तता मिले, विशेष अधिकार मिलें. आर्टिकल 370 इसी शर्त को पूरा करता था.
कश्मीर में क्या बदल जाएगा?
भारत के संविधान का हर प्रावधान अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लागू होगा. राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन में राज्य में जो संविधान सभा थी, उसका नाम विधानसभा कर दिया गया है. पहले यही संविधान सभा भारत के संसद की तरह कानून बनाने, न बनाने के फैसले लेती थी. ये सभा भारतीय संसद में बने कानून को नामंजूर भी कर सकती थी.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार का केंद्र से टकराव आपको पता है. दिल्ली में विधानसभा तो है लेकिन इसके अधिकार बेहद सीमित है. हर चीज के लिए उन्हें उपराज्यपाल से मंजूरी लेनी होती है, जो केंद्र के प्रतिनिधि हैं. अब ऐसा ही जम्मू-कश्मीर में होगा.
जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल अब 6 साल नहीं बाकी भारत की तरह 5 साल रहेगा.
जम्मू-कश्मीर में अब राष्ट्रध्वज या दूसरे राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करना अपराध होगा. जम्मू-कश्मीर में अब CAG, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार लागू होगा.
अब देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्तियां खरीद सकेगा, कारोबार कर सकेगा और बस सकेगा
जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरिया कानून अब लागू नहीं होगा
जम्मू-कश्मीर के लोगों को अब दोहरी नागरिकता नहीं मिलेगी
पहले जम्मू कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी नागरिक से शादी करती थी, तो उस महिला की राज्य की नागरिकता खत्म हो जाती थी. अब ऐसा नहीं होगा.
अगर कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी तो उसके पति को भी जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी. अब ऐसा नहीं होगा.
घाटी में आतंकवाद, घाटी के मसलों के कारण लद्दाख हमेशा के मुद्दे हमेशा पिछड़ जाते थे. लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने से उसके तीव्र विकास की उम्मीद की जा सकती है.
बीजेपी आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने को अपनी ऐतिहासिक उपलब्धि बता रही है. अमित शाह ने कहा है कि इस एक कदम से 70 सालों का हिंसा खत्म होगी और राज्य नए भविष्य की ओर जाएगा. उन्हें उम्मीद है कि कुछ साल बाद आम कश्मीरी भी शुक्र मनाएगा. उम्मीद है ये सब हो. क्योंकि कश्मीर हमारा है तो कश्मीरी भी हमारे ही हैं.