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दुनिया दो ढाई साल से कोविड-19 (Covid 19) की महामारी से लड़ रही है, और भारत के सिर पर लद्दाख में चीन की चुनौती अलग से है. चीन सीमा में बड़े फेरबदल कर रहा है जिसके चलते एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) की दोनों तरफ सेना की तैनाती करनी पड़ रही है. हथियार और जखीरा जमा किया जा रहा है. और यह तीन साल से हो रहा है.
इसे देखते हुए उम्मीद थी कि इस साल रक्षा बजट बढ़ाया जाएगा. वैसे इस साल इस क्षेत्र के लिए 5.25 लाख करोड़ का बजटीय आबंटन किया गया है (एकदम सही सही कहा जाए तो 52,5166.15 करोड़ रुपए) जोकि पिछले साल के 4.78 लाख करोड़ रुपए से 47,000 करोड़ रुपए ज्यादा है.
इस 4.78 लाख करोड़ रुपए के बजट में पूंजीगत आबंटन 1.52 लाख करोड़ है. थल सेना का पूंजीगत परिव्यय 32,015 करोड़ रुपए (चालू वित्त वर्ष के 36,000 करोड़ रुपये की राशि से कम), नौसेना का 47,591 करोड़ रुपए (33,000 करोड़ रुपए से ज्यादा) और वायुसेना का 55,586 करोड़ रुपए (58,000 करोड़ रुपए से ज्यादा) है. राजस्व की मद में 2.33 लाख करोड़ रुपए, पेंशन के लिए 1.19 लाख करोड़ रुपए और सिविल के लिए 20,100 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं.
रक्षा बजट के दो मुख्य घटक होते हैं- पूंजीगत बजट और राजस्व बजट. पूंजीगत बजट वह होता है जोकि बड़े प्लेटफॉर्म्स के अधिग्रहण के लिए खर्च किया जाता है. इसमें सेना का आधुनिकीकरण शामिल होता है. तीनों सेनाओं के रोजमर्रा के खर्चे को राजस्व की मद से पूरा किया जाता है जिसमें वेतन, स्पेयर्स की खरीद, एक्सपेंडिबल्स और रखरखाव शामिल होता है. यूं थलसेना के आधुनिकीकरण के लिए हमें पूंजीगत बजट से ज्यादा से ज्यादा खर्चा करना चाहिए. लेकिन चूंकि, थलसेना सैनिकों पर ज्यादा निर्भर है, यानी मैनपावर इंसेंटिव है, इसलिए इसमें राजस्व का हिस्सा अनुपात के हिसाब से ज्यादा है. यह करीब 82% है. राजस्व की मद में भी पेंशन का हिस्सा बहुत बड़ा है. इस बार भी बजट के राजस्व घटक में दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा पेंशन का है जोकि 1.19 लाख करोड़ रुपए है.
वायुसेना के परिव्यय में पिछले साल के मुकाबले सिर्फ 4.5% की बढ़ोतरी की गई है. लेकिन तेजी से घटते लड़ाकू स्क्वाड्रनों की कमी को पूरा करने के लिए इसके पास अभी भी पूंजीगत बजट का सबसे ज्यादा हिस्सा है. थलसेना के पूंजीगत बजट में 12% की गिरावट हुई है.
जीडीपी में रक्षा बजट का हिस्सा 2% है जिसमें पेंशन शामिल हैं. यानी खुश होने के लिए कोई खास बात नहीं है. हालांकि कुछ खासियतें भी हैं.
सबसे पहले, आधुनिकीकरण के लिए 68% बजट (पूंजीगत) घरेलू उद्योग के लिए तय किया गया है. इसका मकसद ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देना और रक्षा उपकरणों के लिए आयात पर निर्भरता को कम करना है. यह पिछले वित्तीय वर्ष से 58% ज्यादा है. इससे इस वित्तीय वर्ष में घरेलू खरीद के लिए 21,000 करोड़ रुपए अलग से निकलते हैं. यह 'वोकल फॉर लोकल' अभियान के मुताबिक है और 101 डिफेंस आइटम्स के आयात पर लगी रोक से जुड़ा हुआ है. इससे घरेलू रक्षा उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा इससे अर्थव्यवस्था का विकास होगा, नई नौकरियां पैदा होंगी. बजट में इन्हीं बातों पर जोर दिया गया है.
फिर, रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास, यानी आरएंडडी को कारोबारी जगत, स्टार्टअप्स और एकैडमिया के लिए खोला जाएगा. इस प्रस्ताव का स्वागत किया जाना चाहिए. इसमें प्राइवेट सेक्टर-डीआरडीओ-कॉरपोरेट स्पेशल पर्पज वेहिकल (एसपीवी) का मॉडल अपनाया जाएगा.
25% आरएंडडी को प्राइवेट सेक्टर और स्टार्टअप्स के लिए खोलना, कुछ-कुछ अमेरिका के डीएआरपीए मॉडल की तरह है.
हमने अपने देश के हुनर का पूरा इस्तेमाल न करने की गलती की है. प्राइवेट सेक्टर की मदद से हम अपनी तमाम गलतियों को दुरुस्त कर सकते हैं.
सेना के आधुनिकीकरण के बारे में 15वें वित्त आयोग ने कुछ सिफारिशें की थीं. आयोग ने कहा था कि मॉर्डनाइजेशन फंड फॉर डिफेंस एंड इंटरनल सिक्योरिटी (एमएफडीआईएस) नामक डेडिकेटेड नॉन-लैप्सेबल
फंड बनाया जाना चाहिए जोकि रक्षा और आंतरिक सुरक्षा की बजटीय जरूरतों और पूंजीगत परिव्यय के आबंटनों के बीच के अंतर को दूर करेगा. 2021-26 के लिए इस फंड का कॉरपस 2,38,354 करोड़ रुपए होगा, जिसमें हर साल के लिए अधिकतम 51,000 करोड़ रुपए तय किए गए हैं.
इस फंड में चार स्रोतों से पैसा आएगा. पहला, भारत के कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया से पैसा ट्रांसफर होगा. दूसरा, सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों के विनिवेश से मिलने वाला पैसा इसमें जमा होगा. तीसरा, डिफेंस की जमीन के मुद्रीकरण से मिलने वाली राशि फंड में जाएगी. चौथा, राज्य सरकारें जो डिफेंस की जमीन का इस्तेमाल करती हैं, उसके बकाया भुगतान की वसूली इसमें जमा होगी.हालांकि वित्त मंत्रालय ने इसके लिए अभी तक कोई रोडमैप जारी नहीं किया है.
अगर इस फंड को बनाया और लागू किया जाता है तो भारत में डिफेंस सेक्टर के आधुनिकीकरण को खूब बढ़ावा मिलेगा. सुरक्षा बलों के आबंटन का रास्ता खुलेगा और वे बाहरी और भीतरी चुनौतियों का अच्छी तरह सामना कर पाएंगे.
किसी विकासशील देश में बजटीय आबंटनों की गुहार सभी क्षेत्रों की तरफ से लगाई जाती है. वह भी महामारी के दौर में. लेकिन जब दोनों तरफ की सरहदों पर मौजूद पड़ोसियों के साथ खटास भरे रिश्ते हों तो भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण की जरूरत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. इसीलिए हमें आंकड़ों से परे जाकर सोचना चाहिए और कुछ नए उपाय करने चाहिए.
रक्षा मंत्रालय ने पहले ही उन आइटम्स की फेहरिस्त छापी है, जिन्हें आयात नहीं किया जाएगा. इससे घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आएगी. यह अनुमान है कि अगले पांच से सात सालों के भीतर इससे 4 लाख करोड़ रुपए के कॉन्ट्रैक्ट किए जाएंगे. देश के प्राइवेट डिफेंस सेक्टर को आरएंडडी और स्वदेशी उत्पादन से बढ़ावा मिला है. इससे देश सुरक्षित आत्मनिर्भर भारत बन सकता है और विकास एवं रोजगार सृजन भी हो सकता है.
(लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कश्मीर के पूर्व कॉर्पर्स कमांडर हैं और चीफ ऑफ इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के तौर पर रिटायर हुए हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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