advertisement
केंद्रीय बजट 2022 (Union Budget 2022) पर एक-दूसरे के खिलाफ जमकर होनी वाली प्रतिक्रियाओं की वजह से क्या आपका सिर चकराने लगा है? क्या यह अतीत से क्रांतिकारी ब्रेक जैसा है, जोकि विश्व गुरु भारत के इतिहास की शुरुआत का प्रतीक है? या फिर क्या यह शब्दों और कठिन शब्दजाल के डस्टबिन जैसा है, जिसका कोई मतलब नहीं है?
अगर आप ट्विटर पर इन सवालों के जवाब ढूंढने जाएंगे, तो आपका सिर और भी तेजी से घूमने लगेगा :
सत्तारूढ़ दलों के नेताओं का मत है : यह भारत के पैमाने को बदल देगा. वित्त वर्ष 26 तक हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएंगे.
विपक्षी नेताओं का मत है : इसमें एक का फायदा तो दूसरे का घाटा है, यह पूरी तरह से पूंजीवादी और एक पेगासस-स्पिन दस्तावेज है.
सरकार का समर्थन करने वाले उद्योगपति/अर्थशास्त्री का मत है कि ये बजट : स्थिर, प्रोगेसिव, प्रिडिक्टेबल, भविष्य पर केंद्रित और समावेशी है.
बजट पर आक्रोशित एक्टिविस्ट और अर्थशास्त्रियों का प्रश्न है : सब्सिडी में कटौती क्यों हुई? महामारी के दौर में स्वास्थ्य खर्च में कटौती क्यों? क्या सरकार ने गरीब जनता, किसानों और बेरोजगार युवाओं को अपने हाल पर छोड़ दिया है?
साफ तौर पर कहूं तो भारत में जो कंफ्यूजन है वह जायज है. क्योंकि हम जटिल बजट दस्तावेजों की विरासत पर पले-बढ़े हुए जटिल व्यक्ति हैं.
1990 के दशक की शुरुआत में जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाना शुरू किया था तब दुनिया को पहली बार हमारी जटिलता का पता लगा था. एक जाने-माने सर्वे के अनुसार, विदेशी निवेशक भारत के युवाओं से हैरान थे, जो "बागी" दिखाई देते थे, फिर भी परिस्थिति को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते थे :
वे पैसों के लिए आकांक्षी थे फिर भी उनके अंदर सरकारी नौकरियों के लिए लालसा थी.
वे विदेशी उत्पादों व ब्रांडों को पसंद करते थे, लेकिन सार्वजनिक-स्वामित्व वाली एयर इंडिया और एमटीएनएल में विश्वास रखते थे.
उन्होंने शुरुआती किशोरावस्था में ही शादी से पहले सेक्स (pre-marital sex) का आनंद लेना शुरू कर दिया था, लेकिन फिर भी वे माता-पिता द्वारा कराई जाने वाले शादियों यानी अरेंज मैरिज में पूरी तरह से विश्वास करते थे.
भारतीयों द्वारा हमारे असाधारण रूप से जटिल Jekyll-and-Hyde कैरेक्टर को अंततः इस तरह के पहले व्यवस्थित, अनुभवजन्य तौर पर मान्य एक्सरसाइज में उजागर किया गया था.
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हमारी प्रवृत्ति जटिल, द्वि-रंगीन बजट दस्तावेजों, अर्ध-समाजवादी और अर्ध-पूंजीवादी के लिए है:
गरीब किसानों को भुगतान (income transfer) के साथ ही अमीर कंपनियों के लिए टैक्स में कटौती.
शहरों में गरीबों के लिए एक स्वास्थ्य-बीमा कार्यक्रम के साथ ही लाभ की चाहत रखने वाले कॉर्पोरेट हॉस्पिटल्स के लिए भूमि सब्सिडी.
सिंगल-स्क्रीन मूवी टिकटों पर प्राइज कैप के साथ ही साथ झुग्गी-झोपड़ी के लोगों को जबरन बेदखल करके गगनचुंबी इमारत के निर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन.
इसी वजह से हमें अपने बजट से प्यार होने लगा था क्योंकि उन्होंने अनियंत्रित पूंजीवाद और खून-खराबे वाले समाजवाद को एक सघन, समझ से परे, जटिल भारी दस्तावेज में मिला दिया था.
1 फरवरी, 2022 तक स्थिति की वास्तविकता यही थी, जब PM मोदी और FM सीतारमण ने इस आरामदायक आम सहमति को तोड़ा. साफ तौर पर उन्होंने दृढ़ होकर सामाजिक पुनर्वितरण (social redistribution) पर विकास को चुना है.
बिना किसी हिचक के उन्होंने कहा कि हम "ट्रिकल-डाउन इकोनॉमिक्स" में विश्वास करते हैं, जिसका अर्थ है कि यदि अर्थव्यवस्था के समृद्ध सेक्टर्स उन्नति करते हैं तो इसका फायदा गरीबों को भी होगा क्योंकि अच्छा समय गरीबों की मदद के लिए राह को आसान बनाएगा.
वास्तव में, उन्होंने एक अनूठा बजट लिखा जिसे एक पंक्ति में संक्षेपित किया जा सकता है (सैकड़ों शीटों की खाक छानने की कोई आवश्यकता नहीं है) : उन्होंने सब्सिडी में 25% की कटौती की, पूंजीगत व्यय में 25% की वृद्धि की और सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में 100 बिलियन डॉलर के आकर्षक आंकड़े को हिट किया (सुर्खियों में बने रहने के लिए इस सरकार की प्रवृत्ति को जानते हुए, मुझे यकीन है कि 7.50 लाख करोड़ रुपये की जो संख्या है वह इस बात से प्रेरित है कि यह सौ अरब अमेरिकी डॉलर के मूल्य के बराबर है!). बस इतना ही. दृढ़. सरल. साफ-सुथरा या स्पष्ट. और हां जिसके बारे में कोई खेद न हो.
"लेकिन क्या अतीत के साथ इतना तेजी से टूटना या अतीत पर जोरदार ब्रेक लगाना आर्थिक राजद्रोह का एक उचित मामला नहीं है?" आलोचक गुस्से में पूछते हैं. विरोधियों के लिए सरकार की उस नीति की आलोचना करना जायज है जिससे वे सहमत नहीं हैं. इसी तरह से, सरकार के पास एक स्पष्ट, असहमतिपूर्ण राजनीतिक सिद्धांत स्थापित करने का अधिकार है जो पिछली आम सहमति से हटकर है.
नतीजतन, इसने केंद्रीय बजट 2022 को एक अनूठा दस्तावेज बना दिया है. यह अन्य अर्थव्यवस्थाओं में विफलताओं के एक अशांत इतिहास की अवहेलना करता है जिन्होंने पहले "ग्रोथ ट्रिकल-डाउन" सिद्धांत का अनुसरण किया था. और यह इस बात को उजागर करता है कि सरकार भविष्य के राजनीतिक घावों की चपेट में है.
लेकिन, फिलहाल के लिए इसने स्पष्ट और पारदर्शी रूप से कहा है कि "हम आज विकास का लक्ष्य बना रहे हैं और सामाजिक कल्याण का पालन करेंगे" वहीं यदि यह विफल हो जाता है, तो इसे अपने विरोधियों को सही ठहराते हुए एक बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी होगी. ऐसा ही होगा.
अब आप पूछेंगे कि क्या मैं "इतिहास की शुरुआत" में विश्वास करता हूं?
ईमानदारी से कहूं तो इतिहास को संभवतः केवल पांच महत्वपूर्ण डेटा बिंदुओं द्वारा फिर से लिखा जा सकता है, वैसे बजट कई अलंकारित या आकर्षक नंबरों से भरा पड़ा है लेकिन उनमें फंसे बिना मैं यहां इन पर ध्यान केंद्रित करना चाहूंगा :
सकल कर राजस्व (gross tax revenue) में रिकॉर्ड उछाल देखा गया है, अनुमान से अधिक है. लगभग 3 लाख करोड़ रुपये वसूला गया है.
वार्षिक निर्यात में रिकॉर्ड छलांग देखने को मिली. यह मर्चेंडाइज प्लस सेवाओं के लिए 650 बिलियन डॉलर को पार कर सकता है.
विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 650 बिलियन डॉलर एक नई (रिकॉर्ड) ऊंचाई दिखी है.
शेयर बाजार पूंजीकरण लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, यह सभी क्षेत्रों में उत्पादक पूंजी निर्माण को गति प्रदान करता है.
चालू वित्त वर्ष में रिकॉर्ड निजीकरण (privatisation) देखने को मिला, लेकिन विडंबना यह रही कि वित्त मंत्री ने 'P-वर्ड' को छोड़ दिया और एक रिकॉर्ड राशि से अपने लक्ष्य से चूक गईं! बहरहाल, तथ्य यह है कि एयर इंडिया की बिक्री का जश्न मनाया गया और नीलाचल इस्पात को चुपचाप बेच दिया गया. दोनों (एयर इंडिया और नीलाचल इस्पात) टाटा को बेचा गया. यह हमारी राजनीतिक अर्थव्यवस्था के एक अलग अचैतन्य हिस्से की लैंडमार्क घटनाएं है जो संरक्षित आशावाद की वजह प्रदान करती हैं.
ऊपर जो डेटा पाॅइंट्स दिए गए है उनसे परे, एक संभावित विश्व गुरु के रूप में भारत का भविष्य केंद्रीय बजट से बाहर है. यह मुख्य रूप से तीन अन्य मोर्चे पर पीछे चला गया है:
भारत एक आधुनिक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करता, जो देश के सबसे वंचित व कमजोर नागरिकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा जाल प्रदान करता.
भारत टैरिफ में कमी करके और वैश्विक आपूर्ति नेटवर्क में एकीकृत होकर दुनिया के लिए अपने द्वार खोलता. इसके साथ ही विदेशी दिग्गजों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत के पास अपने साधन हैं. लेकिन दुर्भाग्य से हम उच्च टैरिफ दीवारों की स्थापना करके और संरक्षित सीमाओं के भीतर कृत्रिम रूप से पनपने के लिए "घरेलू चैंपियन" के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLIs) की शुरुआत करके विपरीत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
भारत बिना रहम "नियामक कोलेस्ट्रॉल" को हटाता, जो भ्रष्टाचार को पोषित करता है और निजी पहल व उत्पादन का दम घोंटता है. आइए हम प्रतिज्ञा करें कि जीएसटी इंस्पेक्टर आसानी से कंपनी में न घुस जाए और कंपनी फंड को सीज कर सके; दशकों पुराने टैक्स के मामलों को मनमाने ढंग से फिर से न खोला जाए और असहाय नागरिकों पर मुकदमा चलाया जाए. साथ ही सरकार की कठोर कार्रवाई से पीड़ित कंपनियां- उदाहरण के लिए वोडाफोन, केयर्न, देवास, और अमेजॉन जैसे तमाम उदाहरण- जिन्होंने विदेशी अदालतों में सरकार के खिलाफ मध्यस्थता के मामले जीते हैं, उन्हें उससे इनकार नहीं किया जाए; और यह कि अदालतें वर्षों पहले की गई वास्तविक कार्रवाइयों के लिए किसी सेवानिवृत्त बैंक अध्यक्ष की गिरफ्तारी या किसी पूर्व विनिवेश मंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं देगी; इस तरह के और भी कई सारे उदाहरण दिए जा सकते हैं.
तो प्रिय पाठक, संक्षेप में कहूं तो 'हनोज दिल्ली दूर अस्त' यानी कि दिल्ली दूर है. इसका मतलब यह है कि जब तक हम उपर लिखी बातों पर दोगुनी मेहनत से कार्रवाई नहीं कर लेते, तब तक हम विश्व गुरु बनने के करीब नहीं हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 03 Feb 2022,08:31 PM IST