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Budget 2023: निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार को क्या है जरूरी?- 5 एक्सपर्ट की राय

Budget 2023: निर्यात बढ़ाने के लिए चुनौतियां और उपाय

दीपांशु मोहन, हेमंग शर्मा, सौम्या मारी, अनिरुद्ध भास्करन & मल्हार कसोडकर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Budget 2023: सर्विस-बेस्ड निर्यात मॉडल को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान होने चाहिए. </p></div>
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Budget 2023: सर्विस-बेस्ड निर्यात मॉडल को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान होने चाहिए.

(फोटो : क्विंट हिंदी)

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(Union Budget 2023 से जुड़े सवाल? 3 फरवरी को राघव बहल के साथ हमारी विशेष चर्चा में मिलेंगे सवालों के जवाब. शामिल होने के लिए द क्विंट मेंबर बनें)

आम बजट (Budget 2023) पेश होने वाला है. भारत की मैक्रो-फिस्कल स्थिति को देखते हुए पब्लिक फाइनेंस के संदर्भ में कुछ ऐसी बातें भी हैं जिन पर ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए :- सरकार के विनिवेश लक्ष्यों (disinvestment targets) को लगातार कई वर्षों से पूरा नहीं किया गया है, जीडीपी स्तर पर केंद्र सरकार का कर्ज बढ़ गया है, व्यापार घाटा चिंताजनक रूप से उच्च है, घरेलू निजी निवेश कम रहा है और 'जॉब के सूखे' को लेकर वर्तमान में भारत अपने इतिहास में सबसे खराब हालात से जूझ रहा है, जबकि सरकार के वित्त, आम तौर पर खराब ही रहे हैं.

भारत का निर्यात स्थिर तरीके से बढ़ रहा है और इंवेस्टमेंट के लिए यह उपयुक्त जगह है

इसके अतिरिक्त, भारत की खुली अर्थव्यवस्था के मैक्रोइकनॉमिक्स के संबंध में कुछ पॉजिटिव संकेत हैं.

ऐसे समय में जब वर्ल्ड इकनॉमी एक गंभीर मंदी चक्र की ओर बढ़ती हुई प्रतीत हो रही है, वहीं भारत के ट्रेड अकाउंट में बढ़ते सकल घाटे के बावजूद इसके समग्र निर्यात में धीरे-धीरे वृद्धि देखी जा रही है.

विभिन्न देशों के साथ (द्विपक्षीय) अधिक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) हो सकते हैं जो भविष्य में भारत की व्यापार संभावनाओं को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. (RCEP जैसे प्रमुख बहुपक्षीय व्यापार नेटवर्क का हिस्सा बने बिना.)

इसके अतिरिक्त, भारत ने 2023 के लिए निर्धारित G20 शिखर सम्मेलन के लिए G20 की अध्यक्षता ग्रहण की है. ऐसे में मोदी सरकार आक्रामक रूप से 'ब्रांड इंडिया' का विज्ञापन करने और देश को इकनॉमिक इंवेस्टमेंट और ग्रोथ के लिए एक वांछनीय या अनुकूल स्थान के रूप में स्थापित करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

लेकिन, इस समय भारत की समग्र व्यापार स्थिति कैसी दिख रही है? और, किन क्षेत्रों में आगामी बजट और सरकार की राजकोषीय नीति व्यापार विस्तार (ट्रेड एक्सपेंशन) को बढ़ाने में भूमिका निभा सकती है, खासतौर पर उन सेवाओं के संदर्भ में जहां भारत का प्रतिस्पर्धी और तुलनात्मक व्यापार लाभ अधिक मजबूती से स्थापित है?

बजटीय भूमिका पर 

जैसा कि मोदी सरकार वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए अपने अंतिम पूर्ण-वर्ष के बजट की घोषणा करने की तैयारी कर रही है, वहीं हम 2024 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में सरकार की राजकोषीय प्राथमिकताओं की दिशा को लेकर अटकलें तेज हैं. एलएसी पर चीन के साथ बढ़े सीमा तनाव के परिणामस्वरूप सरकार सैन्य खर्च बढ़ाने पर भी विचार कर सकती है.

अब तक, पिछले दो बजटों में, मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं पर राजस्व-आधारित खर्च में गिरावट के बावजूद, सरकार के 'प्रो-ग्रोथ' विजन में ढांचागत क्षमता विकसित करने और लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए कैपेक्स आधारित फंडिंग में तेजी देखी गई है. इसके साथ ही परफॉर्मेंस लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई), नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनपीआई) जैसी योजनाओं के माध्यम से निजी निवेश के अवसरों को ज्यादा से ज्यादा भुनाने का लक्ष्य रखा गया है.

इन योजनाओं के परिणाम मिले-जुले रहे हैं.

बजट के लक्ष्य का आधार चाहे जो भी हो, लेकिन एक्सपोर्ट-लिंक्ड इंसेंटिव्स का बेहतर प्रबंधन और संचालन, एक ऐसा क्षेत्र है जहां सरकार को भारत के व्यापार-से-जीडीपी अनुपात (trade-to-GDP ratio) को अधिकतम करने के लिए इस वर्ष (पिछले वर्षों की तरह ही) अपनी राजकोषीय नीति की दिशा को प्राथमिकता देने का प्रयास करना चाहिए. गौर करने वाली बात यह है कि भारत का ट्रेड-टू-जीडीपी रेशियो पिछले कुछ वर्षों और दशकों में काफी बढ़ा है.

इस लेखक ने मोदी सरकार के तहत भारत के बहु-पक्षीय (multi-aligned) ट्रेड आउटलुक और भारत की व्यापार साझेदारी के हालिया पैटर्न का विश्लेषण किया है.

यहां पर हम हमारे सेंटर की इंफोस्फीयर रिसर्च टीम द्वारा अध्ययन किए गए भारत के कमोडिटी-सर्विसेज-आधारित निर्यात-आयात स्तरों का संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं. इस बात पर विचार करना दिलचस्प होगा कि 'एक्सपोर्ट-ड्रिवेन ग्रोथ' की संभावना को कैसे अधिकतम किया जा सकता है, विशेष तौर पर उन सेवाओं में जहां भारत का वर्तमान तुलनात्मक लाभ (comparative advantage) लागत प्रतिस्पर्धात्मकता (cost competitiveness) और स्किल प्रीमियम, दोनों के दृष्टिकोण से ज्यादा स्पष्ट है.

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भारत की ट्रेड X-M बास्केट

कमोडिटीज के क्षेत्र में भारत का एक्सपोर्ट रेवेन्यू प्रमुख रूप से पेट्रोलियम, मेटल और इंजीनियरिंग उत्पादों की एक विविध श्रेणी से आता है. वहीं जिन देशों में भारत सबसे अधिक एक्सपोर्ट करता है, वे देश अमेरिका (सेवाओं में) और चीन हैं.

सर्विसेज की बात करें तो भारत ने विशेष रूप से आईसीटी, ट्रेवल, फायनेंसियल, बैंकिंग, इंश्योरेंस, तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं आदि के क्षेत्रों में पिछले कुछ दशकों में अच्छा प्रदर्शन किया है.

जैसा कि आर्थिक जटिलता सूचकांक द्वारा किया गया है, यदि हम भारत और अन्य समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (LMDCs) की जटिल आर्थिक स्थिति की समीक्षा करें तो आप पाएंगे कि भारत की स्थिति केवल चीन और थाईलैंड से बेहतर है.

आर्थिक जटिलता सूचकांक एक ऐसा इंडेक्स है, जो किसी देश की अर्थव्यवस्था को अधिक समग्र दृष्टिकोण से देखता है. इस सूचकांक में आर्थिक विकास के साथ-साथ आय असमानता और ग्रीनहाउस उत्सर्जन जैसे पैरामीटर शामिल हैं.

भले ही विकास कम रहा हो, लेकिन भारत के समग्र आर्थिक प्रदर्शन में धीरे-धीरे सुधार हो सकता है. हालांकि, हमारी मैक्रो-निर्यात स्थिति सबसे प्रबल नहीं रही है.

हमारी रिसर्च टीम ने जो विश्लेषण किया उसमें हमने पाया कि अकेले मेटल एक्सपोर्ट में 1 फीसदी की वृद्धि से भारत की जीडीपी में 0.43% की वृद्धि होगी. वहीं कागज आधारित माल के निर्यात (पेपर बेस्ड गुड्स एक्सपोर्ट) से जीडीपी में 0.66% की वृद्धि होगी. कमोडिटीज में अधिक ट्रेड होना ग्रोथ और लेबर-इंटेंसिव मैन्युफैक्चरिंग बेस्ड रोजगार के लिए अच्छा है. (एक बिंदु जिसके लिए कई नीति अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया है लेकिन वास्तविक डेटा में सीमित सफलता देखी है.)

हालांकि सर्विसेज के मामले में जहां भारत का वास्तविक प्रतिस्पर्धी लाभ निहित है वहां वाणिज्यिक सेवा-आधारित निर्यात ( service-based exports) में देश की हिस्सेदारी 4.1% रही है. इस तीव्र वृद्धि का एक प्रमुख कारण 1990 के दशक के मध्य से देखी गई ICT (सूचना संचार प्रौद्योगिकी) क्रांति रही है, जिसके कारण उस समय से तीव्र संचार के लिए टेक्नोलॉजी और लॉजिस्टिक्स में तेजी से विकास हुआ.

भले ही एमएनसी-आधारित निवेशों ने ICT को बढ़ने दिया और अर्बन-बायस्ड ग्रोथ मॉडल से अधिक एक्सपोर्ट करने की अनुमति दी, लेकिन ट्रेवल और मैक्रो-फाइनेंस जैसी अन्य सर्विसेज में या तो कमी आई है या उनकी भारित प्रासंगिकता (weighted relevance) स्थिर रही है.

आयात

आयात पर नजर डालें तो कच्चे तेल और कीमती पत्थरों के आयात पर भारत की निर्भरता के कारण अक्सर भारत का चालू खाता घाटा (और व्यापार असंतुलन) इसकी व्यापक आर्थिक आवश्यकताओं के लिए बहुत अधिक बना रहता है.

2012 तक, भारत का आयात लगातार बढ़ रहा था. हालांकि, उसके बाद धीरे-धीरे इसमें गिरावट देखी गई है. इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें विशेष वस्तुओं के आयात को देखना होगा.

ऐसे में, वित्त मंत्रालय की वित्तीय प्राथमिकताओं द्वारा समर्थित किस प्रकार के नीतिगत बदलाव भारत की निर्यात-संबंधित व्यापार नीति के लिए अधिक प्रभावी स्थिति में सहायता करते हैं?

भविष्य की वृद्धि और एक्सपोर्ट-परफॉर्मेंस ग्रोथ इस पर निर्भर करती है :

  • गंतव्यों, उत्पादों, प्रौद्योगिकी और सेवाओं में देखे जाने वाले विविधीकरण की प्रकृति और विस्तार क्षेत्र.

  • समग्र तकनीकी सामग्री, क्वॉलिटी, सोफिस्टिकेशन द्वारा मापी गई एक एक्सपोर्ट बास्केट का कंपोजीशन; और

  • सप्लाई चेन की अस्त-व्यस्त प्रकृति को देखते हुए एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बास्केट की जटिलता.

भारत को अपनी निर्यात क्षमता को और भी अधिक बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जैसा कि उसने फार्मा में जेनेरिक दवाओं के निर्यात के साथ और ऑटोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग पार्ट्स के मामले में किया था. इसके अलावा, भारत का विकास स्रोत इसके सर्विस सेक्टर (एक्सपोर्ट्स या बेहतर रोजगार पैदा करने के मामले में) की उन्नति से जुड़ा हुआ है. सर्विस-बेस्ड एक्सपोर्ट्स पर ज्यादा जोर देना ट्रेड के साथ-साथ भारत के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को एकीकृत करने की दिशा में भी बढ़िया कदम है.

सर्विस सेक्टर्स को और ज्यादा बजट आवंटित करने की जरूरत है

प्लान्स और स्कीम्स पर खर्च बढ़ाने के लिए केंद्रीय बजट के परिव्यय द्वारा इस दिशा में एक सकारात्मक कदम आगे बढ़ाया जा सकता है, यह न केवल आईसीटी के लिए बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आउटसोर्सिंग-आधारित सर्विस डिलेवरी प्रोडक्ट्स, ट्रेवल और फायनेंस जैसे अन्य प्रमुख सेवा-आधारित क्षेत्रों को साधने में मदद कर सकता है.

अधिक निर्यात क्षमता प्रदर्शित करने वाली फर्मों के लिए प्रत्यक्ष कर-आधारित प्रोत्साहन भी अप्रत्यक्ष जीएसटी टैक्स दरों को कम करने (या, अस्थायी टैक्स में रोक लगाने) में मदद कर सकते हैं. ट्रेड सेक्टर में अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्टार्ट-अप्स को तकनीकी प्रोत्साहन के समर्थन के रूप में एक राजकोषीय (fiscal) लीवर भी जोड़ा जा सकता है.

मोदी सरकार द्वारा पूरी तरह से पीआर पर खर्च करने, या अपने G20 प्रेसीडेंसी के लिए लोकप्रिय मीडिया समर्थित डींगों के माध्यम से 'ब्रांड इंडिया' का विज्ञापन करने या 2023 के दौरान व्यापार में एक ताकत बनने का कोई भी अनुमान, पर्याप्त राजकोषीय नीति समर्थन के बिना बहुत कम हो सकता है. जबकि सरकार की राजकोषीय स्थिति और क्षमता इस बिंदु पर "कमजोर" और "सीमित" हो सकती है. ऐसे में व्यापार क्षमता के विस्तार के लिए निरंतर समर्थन की आवश्यक दिशा में सुधार करने के लिए मौजूदा कार्यक्रमों या योजनाओं का उपयोग करना संभव हो सकता है, विशेष रूप से उन सेवाओं (सर्विसेज) में जहां ट्रेड अकाउंट ग्रोथ की संभावना अधिक होती है.

(दीपांशु मोहन, अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES), जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर हैं. अनिरुद्ध भास्करन, हेमांग शर्मा, सौम्या मैरिज, मल्हार कासोडेकर, बिलकिस कलकत्तावाला, ये सभी CNES InfoSphere टीम के सदस्य हैं और CNES के साथ बतौर रिसर्च एनालिस्ट्स काम कर रहे हैं.)

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