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मोदी ने कहा-‘TikTok’ को पछाड़ो: अफसर कहते हैं- ‘नहीं हो पाएगा’

भारत में टिक-टॉक बैन के बाद क्या वाकई में अब स्टार्टअप्स को मिलेगा बूस्ट? एक व्यंग्य के जरिए समझिए

राघव बहल
नजरिया
Updated:
भारत में टिक-टॉक बैन को एक अलग अंदाज में समझिए, क्या वाकई में अब स्टार्टअप्स को मिलेगा बूस्ट? 
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भारत में टिक-टॉक बैन को एक अलग अंदाज में समझिए, क्या वाकई में अब स्टार्टअप्स को मिलेगा बूस्ट? 
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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मार्क-II और झांग-II (क्रमश: आनंद कुमार और वेंकटेश शेट्टी के लिए दिए गए उपनाम) IIT में तगड़े दोस्त और रूम मेट्स थे. सोमवार शाम उनके छोटे और कुछ हद तक गंदे कमरे में असामान्य शांति थी, क्योंकि दोनों बड़ी लगन से अगली सुबह होने वाले बेहद अहम H1-B इंटरव्यू के लिए दस्तावेज जुटाने में लगे थे.

दोनों बहुत जल्द सिलिकॉन वैली के मेनलो पार्क में अपने हीरो के साथ काम करने जा रहे थे.

जी हां, आपने शायद अब तक अंदाजा लगा लिया होगा. मार्क-II फेसबुक के मार्क जकरबर्ग से मिलने के लिए उत्साहित था, और झांग-II बाइटडांस के झांग यिमिंग (टिकटॉक के करिश्माई संस्थापक) के साथ हाई-फाइव करने के लिए बेताब था.

(ग्राफिक्स: अरूप मिश्रा)

मार्क-II और झांग-II अपने कैंपस में बहुत मशहूर हो गए थे क्योंकि उन्होंने इंस्टीट्यूट के नजदीकी लोगों के लिए वीडियो शेयर करने वाला एक सोशल मीडिया ऐप, FaceTok, बनाया था. उनका ऐप फेसबुक और टिक टॉक से काफी अलग और बेहतरीन था, जिसमें पर्सनलाइजेशन, सर्च, वॉलेट, एक्सचेंज के अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी कई और विशेषताएं थी, जो कि एक पीढ़ी आगे की बात लगती थी.

विडंबना ये कि उनका अनोखा ऐप इस भावनात्मक असहमति से बना था कि कौन ज्यादा बड़ा टेक-आइकॉन है?

मार्क-II जकरबर्ग की पूजा करता था, लेकिन झांग-II को लगता था कि फेसबुक ‘पुराना और भद्दा’ हो चुका है. वहीं झांग-II यिमिंग को लेकर बेहद उत्साहित रहता था, लेकिन मार्क-II को यिमिंग कुछ खास जमते नहीं थे.. इसलिए एक ने फेसटॉक को ‘यंग एंड स्लीक’ बनाया तो दूसरे ने इसे ‘हाई-फाई’ बनाया. हिसाब बराबर, फेसटॉक अब दुनिया में धाक जमाने के लिए तैयार था.

लेकिन इसमें एक बड़ा पेंच था. फेसबुक/इंस्टाग्राम और टिकटॉक भारतीय बाजार पर दबदबा बना चुके थे, और नया नवेला होने की वजह से फेसटॉक के रास्ते बंद हो चुके थे 77– लेकिन ये सिर्फ सोमवार, 29 जून 2020, 8 बजे शाम तक के लिए था, जब दोनों के फोन पागल कर देने वाले व्हॉट्सऐप मैसेज से बजने लगे.

“भारत ने टिकटॉक को बैन कर दिया था.”

अचानक, मार्क-II और झांग-II की आंखें किसी कारोबारी की आंखों में दिखने वाली आग की तरह चमक उठीं. उनका वक्त आ चुका था. भारत में टिकटॉक की जगह लेने के लिए उनका फेसटॉक तैयार है, और अब उनका ऐप दुनिया पर राज करने वाला है.

उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में पूरा भरोसा था, जो कि हमेशा डिजिटल इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया की बात करते हैं, वो इनके सपनों को नई उड़ान देने के लिए कुछ भी करेंगे.

नए Superior Rights (SR) नियमों के तहत उन्हें अपनी इक्विटी पर 10x वोटिंग का अधिकार मिलेगा, जैसे कि मार्क जकरबर्ग को फेसबुक में अपने स्टॉक के लिए मिला. फिर वो 300 करोड़ रुपये उठाएंगे जिसका प्रीमियम होगा 1000 रुपये प्रति शेयर – ये पैसे उन्हें उन चंद आतुर निवेशकों से मिलेंगे – शायद Sequoia, KKR, Softbank, General Atlantic, Hillhouse से – जिन्होंने बाइटडांस के लिए झांग यिमिंग की मदद की थी. और तीन साल बाद, वो Nasdaq में $3 बिलियन (22,000 करोड़ रुपये से अधिक) बाजार भाव पर अपना IPO निकालेंगे.

वाह! SR शेयरों की वजह से, वो फेसटॉक में 51% हिस्से के मालिक होंगे, दुनिया के युवा अरबपतियों की लीग में शामिल हो जाएंगे. उतावलेपन से कांपते हुए उन्होंने आधे भरे हुए H1-B आवेदनों को किनारे रख दिया और अपने निवेश सलाहकार (IA) को फोन घुमा दिया.

(ग्राफिक्स: अरूप मिश्रा)

युवा उद्यमियों की राह का रोड़ा

मार्क-II: तुमने ये खबर सुनी? टिकटॉक को बैन कर दिया गया है. इसलिए, हम भारत में फेसटॉक लॉन्च करना चाहते हैं और पहले राउंड में 300 करोड़ रुपये का निजी निवेश उठाना चाहते हैं. जो कि महज $40 मिलियन के बराबर है, इसलिए कोई दिक्कत तो होनी नहीं चाहिए, क्या?

निवेश सलाहकार (आश्चर्य, उसकी आवाज धीमी थी): बहुत अच्छी खबर, लेकिन आपको कुछ शुरुआती बाधाएं दूर करनी होगी. क्योंकि आप अपने ऐप पर समाचार भी डालेंगे, तो शायद आप - और मैं शायद इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पिछले कुछ महीनों से पॉलिसी को स्पष्ट नहीं किया गया है – ‘ज्यादा से ज्यादा 25 फीसदी FDI’ की श्रेणी में आ सकते हैं. इसके बाद, सरकारी सचिवों के एक दल को ये प्रमाणित करना होगा कि आप वास्तव में एक टेक कंपनी हैं जो कि सभी नीतिगत रियायतों के हकदार हैं. इनमें कई हफ्ते लग सकते हैं, शायद महीने भी.

सुपीरियर राइट्स शेयर- ये क्या बला है?

मार्क-II (बेसब्री से): क्या बात कर रहे हैं आप, प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया में कौन हमें खारिज कर सकता है? हम इसे हासिल कर लेंगे. और क्या?

निवेश सलाहकार (उदास आवाज में): मुझे लगता है कि आप दोनों सुपीरियर राइट्स (SR) शेयर लेने के लिए आमादा हैं, ताकि तेजी से पूंजी जुटाने के दौरान आप स्वामित्व/नियंत्रण बनाए रख सकें, है ना? लेकिन मुझे नहीं लगता कि झांग-II इसके लिए योग्य होंगे. क्योंकि, उनकी पत्नी हैदराबाद के बड़े लैंड-एंड-इंफ्रास्ट्रक्चर वाले परिवार से आती हैं, और उनकी बहन की शादी एक रूसी टेक अरबपति से हुई है. दोनों को मिलाकर उनकी कुल संपत्ति 500 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकती है, जिससे झांग-II अयोग्य घोषित हो जाएंगे, क्योंकि भारत में किसी भी ‘प्रमोटर ग्रुप’ को कानूनी तौर पर ‘पति/पत्नी, भाई-बहन और माता-पिता’ के रूप में परिभाषित किया जाता है. झांग-II की कुल संपत्ति का अंदाजा लगाने के लिए उन लोगों की संपत्ति को भी एक साथ रखा जाएगा.

(ग्राफिक्स: अरूप मिश्रा)
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झांग-II (नाराजगी से): लेकिन मैं अपनी बहन से अलग हो चुका हूं; और मेरी पत्नी अपने परिवार से एक पैसा नहीं लेती है. उनकी संपत्ति मेरी महत्वाकांक्षा के रास्ते में कैसे आ सकती है!

निवेश सलाहकार (खेद जताते हुए): माफी चाहता हूं, मेरे दोस्त, भारत में नियम नियम हैं. बाकी जो हो, आप SR इक्विटी की दूसरी पाबंदियों के बारे में जानते हैं ना? आप तभी तक इसे अपने पास रख सकते हैं जब तक आप कंपनी में फुल टाइम काम कर रहे हैं – अगर आप कंपनी छोड़ते हैं, तो SR शेयर 1x वोटिंग अधिकार के साथ अपने आप साधारण शेयर में तब्दील हो जाता है. ऐसा तब भी होता है, जब आप दूसरे कंपनियों का अधिग्रहण या उनसे विलय करते हैं या उसपर अपना नियंत्रण खो देते हैं. वैसे भी, लिस्टिंग के बाद, आपके SR शेयर लगभग पूरी तरह बेअसर हो जाते हैं. यहां तक कि 51 प्रतिशत नियंत्रण के बावजूद, आप बोर्ड के सिर्फ आधे सदस्यों को नॉमिनेट कर सकते हैं, जबकि बाकी आधे सदस्य स्वतंत्र होते हैं. सभी बोर्ड समितियों में दो-तिहाई निदेशक स्वतंत्र होंगे, जबकि ऑडिट कमेटी पूरी तरह से स्वतंत्र होगी. कई ऐसे ‘कोट टेल’ प्रावधान हैं जिनके तहत आपके SR शेयरों में सिर्फ एक वोट होगा, ना कि 10x जो कि आपको लगता है. और एक Sunset clause है - लिस्टिंग के पांच साल बाद, आपके SR शेयर अनिवार्य रूप से साधारण शेयर बन जाएंगे जबतक कि दूसरे शेयरधारक आपके विशेषाधिकार को आगे बढ़ाने के लिए राजी नहीं होते.

क्या कोई सुपीरियर राइट्स बेच सकता है?

मार्क-II (गुस्से में): क्या! क्या तुम पागल हो? ठीक उसी समज जब कंपनी बड़ी और मूल्यवान होगी, मैं अपने जीवन भर की मेहनत की कमाई खो दूंगा? ये शेयर कौन अपने पास रखेगा? Sunset clause आने से पहले ही मैं इसे बेच दूंगा.

निवेश सलाहकार (बीच में बोलते हुए): ओह, तो आप ये जानते नहीं थे? आप SR शेयर बेच नहीं सकते. जैसे ही आप उन्हें ट्रांसफर करते हैं, वो अपने आप ही सामान्य शेयर में तब्दील हो जाते हैं. इसके अलावा, हालांकि यह सुनने में ठीक नहीं लगता, आपकी मौत के बाद आपके परिवार के लोगों को SR शेयर नहीं मिलता. मतदान का ये अतिरिक्त अधिकार आपकी मौत के साथ ही खत्म हो जाता है.

मार्क-II और झांग-II (गुस्से में एक साथ चीखते हुए): बंद करो! मैं ना बेच सकता हूं ना ट्रांसफर कर सकता हूं ना ही मुद्रा के तौर इसे किसी दूसरे ऐप के अधिग्रहण में इस्तेमाल कर सकता हूं ना ही अपने परिवार के लोगों को वसीयत में दे सकता हूं जिन्होंने मेरे साथ कंपनी को बनाने में कई त्याग किए होंगे. तो ये तथाकथित सुपीरियर राइट्स (SR) शेयर 1x वोटिंग अधिकार वाले साधारण शेयर (OR) से ज्यादा कुछ नहीं है?

निवेश सलाहकार (हामी में सर हिलाते हुए): अब इसकी सबसे अहम बात जानने के लिए तैयार हो जाइए. Angel tax! क्योंकि आपके पास राजस्व बहुत कम होगा और लंबे समय तक नुकसान झेलेंगे, इसकी संभावना बहुत ज्यादा है कि आयकर अधिकारी आपके पहले प्लेसमेंट पर 1000 रुपये का प्रीमियम मंजूर नहीं करेंगे. वो आपके ‘अनर्जित प्रीमियम’ को आपकी ‘आय’ में शामिल करते हुए, 300 करोड़ रुपये की इक्विटी जुटाने के लिए 100 करोड़ रुपये (पेनाल्टी अलग से) टैक्स की मांग करेगा.

क्या पीएम मोदी ने ‘एंजेल टैक्स’ खत्म कर दिया है?

मार्क-II (जोर से चिल्लाते हुए): क्या! लेकिन मुझे लगता था कि मोदी ने Angle tax को खत्म कर दिया है.

निवेश सलाहकार (दुखी होकर): हां, उन्होंने किया है. लेकिन शर्त ये है कि आपका इक्विटी बेस 25 करोड़ रुपये (3.5 मिलियन डॉलर) से कम हो.

मार्क-II (बोलचाल की हिंदी में): सवाल ही नहीं उठता! 25 करोड़ रुपये? सिर्फ पच्चीस करोड़, इसका मैं अचार डालूंगा क्या? हमारी महत्वाकांक्षा इससे बहुत बड़ी है. हम करोड़ों डॉलर जुटाकर एक ऐप बनाने की बात कर रहे हैं जिसकी कीमत अरबों डॉलर होगी.

अब सब लोग चुप हो गए. कहने को ज्यादा कुछ बचा नहीं था.

निवेश सलाहकार ने धीरे से फोन काट दिया. दुखी होकर मार्क-II और झांग-II दोबारा अपने H1-B आवेदनों को पूरा करने में लग गए. अब सिलिकॉन वैली ही एक सटीक दांव नजर आ रहा था. वहां जाओ, ग्रीन कार्ड लो, और फिर एक ‘अमेरिकी’ कंपनी लॉन्च करो. बिना परिवार के कुल-मूल्य के हिसाब-किताब, टैक्स-जाल, सीबीआई जांच, सनसेट क्लॉज और क्या-क्या के पचरे में पड़े... बोरियां भर-भर के डॉलर कमाओ.

आखिरी बात

व्यंग्यात्मक लहजे के बावजूद, अलग-अलग नियमों के बारे में ऊपर जो बताया गया है वह पूरी तरह से तथ्य पर आधारित और सटीक है. एक बार पहले भी मैंने पॉलिसी से जुड़ी उन कमियों की चर्चा की थी, जिसकी वजह से हमारी पहली-पीढ़ी के कारोबारी DACOITY के शिकार हो रहे हैं, यानी कैसे डिजिटल अमेरिका और चीन भारतीय टेक को मिटाते जा रहे हैं. उस तीखी

आलोचना के जवाब में, कई IAS अधिकारियों ने मुझसे संपर्क कर बदलाव का भरोसा दिया था. हकीकत में, हमारे नौकरशाह बहुत खुश नजर आ रहे थे जब सुपीरियर राइट्स (SR) शेयरों को अनुमति दी गई थी, और Angel tax को ‘बंद’ कर दिया गया था. जैसा कि मैंने ऊपर बताया, बिना किसी इच्छा के, आधे-अधूरे तरीके और शंकालू सोच के साथ लाई गई ये राहतें बहुत छोटी हैं, इससे जमीनी तौर कोई बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है.

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Published: 03 Jul 2020,04:39 PM IST

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