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विदेश मंत्री एस जयशंकर(S Jaishankar) ने अपने चीनी समकक्ष Wang Yi से बातचीत के नतीजों पर मीडिया को विश्वास में लेकर सही काम किया है. अभी तक ये दौरा किसी राज की तरह ढक कर रखा गया. चीन और भारत के मौजूदा रिश्तों को देखें तो सरकार की तरफ से ये स्पष्ट इच्छा नजर आई कि इस दौरे को जितना हो सके कम करके दिखाया जाए.
वहीं इसी के साथ और ठीक इसी वजह से ये भी जरूरी था कि जनता को इस बातचीत के नतीजों को लेकर विश्वास में लिया जाए.एस जयशंकर ने कहा कि वांग के साथ तीन घंटे तक चली बातचीत और बॉर्डर पर स्थिति से लेकर यूक्रेन और अफगानिस्तान जैसे कई मुद्दों पर एक खुली चर्चा के बाद दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय रिश्तों के कई पहलुओं को लेकर स्पष्टता दिखाई है.
सीमा से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए ये अभी भी वर्क इन प्रोग्रेस की तर्ज पर बना रहेगा और बातचीत का लक्ष्य इस प्रक्रिया को लेकर शीघ्रता से आगे बढ़ना है.
अप्रैल 2020 के बाद, ये विदेशी मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच व्यक्तिगत रूप से तीसरी बार बातचीत थी. अप्रैल 2020 में चीन की सेना लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के पास एक साथ 5 क्षेत्रों में घुस गई और भारतीय सैनिकों को उन इलाकों में पेट्रोलिंग करने से रोका, जहां उनका दावा भी नहीं था. यही तरीका तब से अभी तक चला आ रहा है.
ये क्षेत्र थे, Depsang plains, Galwan, Kugrang river Valley और Gogra. इसके अलावा Pangong Tso का उत्तरी किनारा और Charding-Ninlung Nala क्षेत्र भी इसमें शामिल है. अपनी कार्रवाई को मजबूती देने के लिए चीन ने एलएसी के पास 50,000 सैनिकों और सैन्य उपकरणों को तैनात किया है.
इसके जवाब में भारत ने भी ऐसे ही तैनाती की और साथ ही भारतीय सैनिकों ने Spanggur Tso के पास Pangong Tso के दक्षिण में ऊंचाई पर आगे बढ़कर पोजिशन ली.
इसके बाद दोनों देशों के बीच हुई बातचीत के बाद, जिसमें वांग और एस जयशंकर की बातचीत भी शामिल है, फरवरी 2021 तक चीन गलवान घाटी, Pangong और Spanggur Tso क्षेत्रों से पीछे हटा. साथ ही Gogra में भी सीमित संख्या में उसने सैनिकों को पीछे हटा लिया.
ये साफ नहीं है कि क्या जयशंकर और वांग की मीटिंग पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास उन क्षेत्रों से सेना को हटाने को लेकर किसी स्थायी निर्णय पर पहुंची, जिन्हें भारतीय पक्ष 'बचे हुए क्षेत्र' कहता है.
अगर Depsang, Kugrang river और Charding Nala क्षेत्र की अहम समस्या पर कोई समझौता हुआ होगा तो संभव है कि आने वाले कुछ दिनों या कुछ हफ्तों में सीनियर कमांडर लेवल मिलिट्री टू मिलिट्री बातचीत में इसका खुलासा किया जाए, जो जून 2020 से ही रखी जा रही है.
11 मार्च को दोनों पक्षों ने पैंगोंग सो के पास Chushul-Moldo मीटिंग एरिया में हाई लेवल मिलिट्री डायलॉग का 15वां राउंड रखा था.
भारतीय विदेश मंत्री ने यहां वांग यी की बात का जिक्र किया और चीन की सामान्य स्थिति में लौटने की इच्छा और Sino-Indian गठजोड़ की बड़ी तस्वीर के महत्व के बारे में बताया.
हालांकि ये स्पष्ट रूप से कभी नहीं बताया गया कि वो कौन से खास क्षेत्र हैं, जहां पर चीन का दखल है. दरअसल, एक स्तर पर तो इस बात से भी इनकार किया गया कि चीन ने एलएसी के पास अतिरिक्त क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है. इसे लद्दाख में यथास्थिति को बदलने के एकपक्षीय प्रयास का नाम दिया गया.
दूसरी तरफ, इस बात पर जोर दिया गया कि चीन दूसरे क्षेत्रों में शांति और धैर्य बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाए. लेकिन इसका सार चीन की सेना का उन क्षेत्रों से पीछे हटना था जिन पर उसने अप्रैल 2020 में कब्जा कर लिया था.
सरकार ने हर कोशिश की है कि चीनी विदेशी मंत्री वांग यी के दौरे को जितना हो सके कम करके दिखाए. ये असामान्य नहीं था. शुरुआत से ही भारतीय पक्ष ने उसी बयान को बनाए रखा है, जो बातें एस जयशंकर ने फरवरी में Munich Security Conference के दौरान कही थीं और वो यह कि सीमा पर जो स्थिति होगी, वहीं संबंधों की स्थिति को भी तय करेगी.
इससे पहले जनवरी 2021 में विदेश मंत्री ने कहा था कि चीन-भारत के रिश्ते तीन आपसी संबंधों पर टिकेंगे. ये हैं, पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक संवेदनशीलता और पारस्परिक फायदे. ये एक सूत्र था, जिसे उन्होंने वांग से मुलाकात के बाद दोहराया.
जब से चीनी नेतृत्व को ये एहसास हुआ कि गलवान में हुई मौतों ने चीन को लेकर भारत में आम लोगों के मन को खराब किया है. इसके अधिकारी लगातार ये नाकाम कोशिश कर रहे हैं कि सीमा विवाद से जुड़े मुद्दे को बाकी मुद्दों से अलग रखा जाए. लेकिन जबकि Sino-Indian ट्रेड लगातार फलने फूलने लगा और साल 2021 में इसमें 43 प्रतिशत की ग्रोथ भी देखने को मिली, रिश्ते अभी भी सामान्य नहीं हुए हैं.
एक अतिरिक्त समस्या ये है कि कोविड की स्थिति को कड़ाई से संभालने के चलते चीन ने न सिर्फ हजारों स्टूडेंट्स को वहां वापस लौटने से प्रतिबंधित कर दिया, जिससे वो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें, बल्कि अधिकारियों, व्यवसायी और दूसरे क्षेत्रों के लोगों का भी आना बंद कर दिया. इसकी वजह से इन क्षेत्रों का आदान प्रदान तो बंद नहीं हुआ, लेकिन इसमें एक सामान्य मंदी जरूर दिखी.
एस जयशंकर के मुताबिक, वांग यी ने वादा किया है कि वो छात्रों के मुद्दे को उपयुक्त अधिकारियों के सामने उठाएंगे.
याद कीजिए कि वांग यी और डोभाल के बीच फोन पर बातचीत के बाद ही अंतत: गलवान क्षेत्र में सेना को हटाने और जुलाई 2020 में 3 किलोमीटर का एक नो पेट्रोलिंग जोन बनाने में सफलता मिली थी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, डोभाल ने भी वांग से कहा कि तथाकथित फ्रिक्शन पॉइंट्स से पहले और पूरी तरह से सेना को हटाना, दोनों देशों के बीच गठजोड़ को वापस सामान्य स्थिति में लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है.
सीमा पर ध्यान केंद्रित रखते हुए वांग के दौरे से जुड़ी एक चीज को शायद अनदेखा किया गया. हो सकता है कि इस दौरे का असल उद्देश्य BRICS summit में भारत की उपस्थिति के लिए जमीन तैयार करना हो, जो इस साल जून में चीन के Xiamen में होने वाली है.
हालांकि जिस बड़े सवालिया निशान का चीन सामना कर रहा है वो ये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने साल 2021 में इस संस्था के वर्चुअल समिट की मेजबानी की थी, क्या वह बीजिंग के साथ मौजूदा मनमुटाव को देखते हुए इसमें हिस्सा लेंगे.
संभवत: चीन इसे महत्वपूर्ण मानते हुए सक्रिय रूप से भारत का समर्थन चाह रहा है, जिससे समिट सफल बन सके.
इसमें 2017 की स्थिति के साथ एक दिलचस्प समानता है. जब ऐसी ही एक सिचुएशन ने चीन की मदद की और उसके बाद वह BRICS summit का रास्ता आसान करने के लिए डोकलाम समस्या के समाधान के लिए तैयार हुआ. सितंबर 2017 में हुई ये समिट भी Xiamen में ही हुई थी.
हालांकि हम बस इसका अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन BRICS summit के ठीक बाद 20वीं महत्वपूर्ण पार्टी कांग्रेस, जिसमें शी जिनपिंग तीसरी बार जनरल सेक्रेटरी के तौर पर चुने जा सकते हैं. यह पूर्वी लद्दाख के मुद्दे के एक संतोषजनक समाधान को सक्रिय करने का काम कर सकता है, जिससे चीन बाकी के क्षेत्रों से भी पीछे हट जाए.
बहुत हद तक वो ठीक वैसा ही कोई फॉर्मूला खोजना चाहेंगे, जैसा अभी तक गलवान में Pangong Tso और Spanggur Tso क्षेत्र में लागू है. सेना को वापस लेना और क्षेत्र में एक नो पेट्रोलिंग जोन बनाना.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के एक विशिष्ट फेलो हैं. यह एक राय लेख है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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