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‘हम हर रोज सुन रहे हैं कि पुलिस 6-7 लोगों को ब्रह्मपुरी, शिव विहार, जाफराबाद, सीलमपुर, चौहान बांगर, करावल नगर और दूसरे इलाकों से उठा रही है. वो सादे कपड़ों में आते हैं, थोड़ी देर बातें करते हैं और आपको अपने वैन में लेकर चले जाते हैं. इससे पहले कि आपको कुछ समझ में आए आप जेल में होते हैं और आपको अपना अपराध तक पता नहीं होता.’
मार्च के आखिर में लॉकडाउन शुरू होने के करीब एक हफ्ते के अंदर, दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा – जिसमें कि 23 से 26 फरवरी के बीच 53 लोग मारे गए, सैंकड़ों घायल हुए और करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हो गई - के मामले में अपनी जांच तेज कर दी है. हिंसा में मारे गए 53 लोगों में से दो तिहाई मुसलमान थे, बाकी हिंदू थे. अब इस अप्रत्याशित लॉकडाउन के बीच, जब कोविड-19 के मामलों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, दिल्ली पुलिस के अधिकारी हिंसा प्रभावित उत्तर-पूर्वी दिल्ली के संवदेनशील इलाकों का दौरा कर लोगों को गिरफ्तार कर रहे हैं.
(आरोपी और उनके परिवार की पहचान छिपाने के लिए उनके नाम बदले गए हैं.)
‘ब्रह्मपुरी के गली नंबर-1 के सामने जिस व्यक्ति, विनोद, की मौत हुई थी वो एक डीजे था. वो मेरे पति का दोस्त था,’ आफरीन, जिसके पति अख्तर को पुलिस ने 30 मार्च को उठा लिया था, ने बताया. उसे विनोद की मौत के मामले में दर्ज FIR के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है.
‘सच तो यह है कि दस साल पहले जब हमारी शादी हुई थी, उस समारोह में विनोद भाई ही डीजे थे. लेकिन दंगे के बाद हमारी दूरियां बढ़ गईं हैं. मैं उनके परिवार को कॉल तक नहीं कर सकती, मुझे नहीं पता वो लोग क्या सोच रहे हैं,’ आफरीन*, जिसके पति अख्तर* को पुलिस ने 30 मार्च को गिरफ्तार कर लिया, ने द क्विंट को बताया.
अख्तर को विनोद की मौत के मामले में दर्ज FIR के तहत गिरफ्तार किया गया है. केस विनोद के बेटे नितिन ने दर्ज कराया जिसे उसके पिता के साथ, 25 फरवरी को जब दंगा अपने चरम पर था, बुरी तरह पीटा गया था. जहां नितिन की जान बच गई, उसके पिता की अस्पताल ले जाने के दौरान मौत हो गई.
FIR में किसी को आरोपी नहीं बनाया गया है. लेकिन अख्तर पर IPC की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश), 147 (दंगा करने), 148 (जानलेवा हथियारों के साथ दंगा करने), 149 (गैरकानूनी तरीके से भीड़ जुटाने), 153 (दंगा के लिए लोगों को उकसाने), 505 (समाजिक नुकसान के इरादे से बयान देने), 435 (आगजनी कर गड़बड़ी फैलाने), 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य आशय) लगाई गई है. उसे 3 अप्रैल को तिहाड़ जेल भेज दिया गया.
‘मेरे पति नीचे अपनी दुकान पर थे. पुलिसवाले सादे कपड़ों में आए और जांच में सहयोग मांगते हुए 10 मिनट बात करने को कहा. मेरे पति ने आगे बढ़कर उनकी मदद की. पहले वो उन्हें यमुना विहार पुलिस स्टेशन ले गए, फिर बताया गया कि उन्हें द्वारका ले जाया जाएगा. जब हमने उन्हें द्वारका ले जाने का विरोध किया, तो पुलिसवाले ने कहा, ऐसा मामले की जांच के तहत किया जा रहा है. इसमें इनकी कोई गलती नहीं है, हम इनसे कुछ सवाल पूछेंगे और फिर इन्हें छोड़ देंगे. दो मिनट के अंदर, हमारे आग्रह के बावजूद, उन्हें द्वारका ले जाया गया,’ आफरीन ने पुलिस के भरोसे पर अविश्वास जताते हुए बताया.
‘मेरे पति किसी मामले में शरीक नहीं थे, हमारा कसूर बस इतना है कि हम उत्तर-पूर्वी दिल्ली के उस इलाके में रहते हैं जहां हिंसा हुई. यह हमारा स्थायी आवास है. यही वजह है कि हमें तंग किया जा रहा है. उन्होंने हमें कोई सबूत नहीं दिखाया है, मेरे पति ने बताया तीन दिनों तक उन्हें पकड़ कर रखे जाने के दौरान पुलिस ने उनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं दिखाए,’ -आफरीन ने कहा.
आगे उसने बताया:
आफरीन के दो बच्चे हैं, सास-ससुर के अलावा एक देवर है जो हमेशा बीमार रहता है. उसने बताया, ‘मेरी सास का हार्ट सिर्फ 15 फीसदी काम करता है. मेरे ससुर काम नहीं कर सकते. मेरी छोटी बच्ची हमेशा पापा के बारे में पूछती रहती है और मैं उससे झूठ बोलती रहती हूं,’
आफरीन ने बताया कि उसने और उसके वकील ने अंतरिम जमानत की अर्जी देने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने सुनवाई की तारीख ही नहीं दी. ‘उनका कहना है कि यह अत्यावश्यक मामला नहीं है. अगर मेरे पति के जेल में रहते हुए उनकी मां की मौत हो गई, तो जिम्मेदारी कौन लेगा. और अगर उन्हें जमानत देना अत्यावश्यक नहीं है तो अभी गिरफ्तार करना क्यों जरूरी था? क्या इस लॉकडाउन में हम कहीं चले जाने वाले थे?’
आफरीन के वकील, अख्तर शमीम ने द क्विंट को बताया कि बतौर आरोपी अख्तर के जो अधिकार हैं उससे समझौता किया जा रहा है.
‘जहां पुलिस जैसे चाहती है वैसे इस मामले की जांच कर रही है, सबसे बड़ी परेशानी यह है कि आरोपी के कानूनी अधिकारों से उसे वंचित किया जा रहा है. 15 दिनों की न्यायिक हिरासत पूरी होने के बाद, पुलिस, आरोपी और आरोपी के वकील को मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर होना होता है. यहां पुलिस को अपने सबूत सामने रखने होते हैं जबकि आरोपी जमानत के लिए अपनी दलील पेश करता है. लॉकडाउन की वजह से ऐसा मुमिकन नहीं हो पा रहा है क्योंकि अभी सिर्फ बेहद जरूरी मामले सुने जा रहे हैं. हालात बेहद अप्रत्याशित हैं, अब हम आरोपी के अधिकारों की रक्षा के लिए PIL दायर करना चाह रहे हैं,’ अख्तर ने कहा.
57 साल के हाजी हाशिम अली, जो कि शिव विहार में दर्जी का काम करते हैं, को 4 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया. उनके बेटे राशिद ने हमें बताया कि पुलिस, इस बार भी सादे कपड़ों में, आई और कुछ लोगों की पहचान करने के लिए मदद मांगी. हाशिम तैयार हो गए, ‘लेकिन फिर हमने दूर से देखा कि उन्हें वैन में बैठने के लिए कहा गया और पुलिस वाले उन्हें लेकर चले गए. मैं डर गया, मैंने अपने पिता को फोन किया. उन्होंने कहा वो लौट कर आएंगे, उन्हें सिर्फ पूछताछ के लिए ले जाया जा रहा है. उसी रात उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया.’
32 साल के राशिद अली, हाशिम का बेटा जो कि हर हफ्ते लगने वाले बाजार में कॉस्मेटिक का सामान बेचता है, ने शांति से काम लेने का फैसला लिया. परिवार में इस बात पर चर्चा हो रही थी कि कैसे करीब 10 लाख की उनकी संपत्ति दंगे में जला दी गई और किसी भी वजह से उनके पिता को बतौर आरोपी गिरफ्तार किए जाने का कोई मतलब नहीं था. करीब दो घंटे के इंतजार के बाद राशिद ने दोबारा अपने पिता को फोन किया. राशिद ने बताया,
उसी रात पुलिसवाले आए और हाशिम के पैसे, बटुआ और फोन उसके परिवार वालों को लौटा गए. हाशिम के घर पर बचे उसके चार बेटे और एक बेटी को अब तक ये नहीं पता कि उनके पिता पर पुलिस ने क्या आरोप लगाए हैं. ‘पुलिसवालों ने कहा कुछ वीडियो में मेरे पिता की बांह दिख रही थी. दंगे में हमारा मकान जला दिया गया. हमारा ऑटो और हमारी दो बाइक जला दी गई. मेरे पिता ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा. उनके हाथ ऊपर उठे थे क्योंकि वो बार-बार हमें घर से बाहर निकलने के लिए कह रहे थे. उनके खिलाफ हिंसा में शामिल होने का कोई सबूत नहीं है,’ राशिद ने दावा किया.
जब परिवार के लोगों ने घर खाली कर दिया, तो मॉब वहां पहुंची और घर की पहली और दूसरी मंजिल से फ्रिज, वॉशिंग मशीन, पैसे और गहने लूट लिए गए. ‘मेरे पिता हाजी हैं और स्थानीय मस्जिद में सचिव का काम करते हैं,’ राशिद ने कहा. हमलोगों ने लूट और संपत्ति के नुकसान को लेकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराया था, हमें यकीन था कि हमारे घर को लूटने और आग लगाने वाले लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर लेगी. हमने सोचा था कि हमें पुलिस से डरने की क्या जरूरत है, हमारा तो घर जलाया गया है, हमारे सामान लूटे गए हैं. हम तो यह सोच रहे थे कि सरकार हमारे नुकसान की भरपाई करेगी, अब तो हमें ये साबित करना है कि हम निर्दोष हैं.’
फिर उन्होंने हाशिम को उसी FIR नंबर के तहत गिरफ्तार कर लिया, उन पर IPC की धारा 147 (दंगा करने), 148 (जानलेवा हथियार के साथ दंगा करने), 149 (गैरकानूनी तरीके से भीड़ जुटाने), 427 (50 रुपये तक का नुकसान पहुंचाने की गड़बड़ी करने), 436 (घर को नुकसान पहुंचाने के लिए आगजनी या विस्फोट करने) लगाई गई.
अख्तर शमीम उन वकीलों में से हैं जिनसे परिवार वालों ने बात की थी, उन्होंने कहा, ‘पुलिस ने जिस तरह से उनकी शिकायत को किसी दूसरे FIR के साथ जोड़ दिया यह गैरकानूनी है. पुलिस को जवाबी FIR दर्ज करना चाहिए था. यहां शिकायतकर्ता को ही इस FIR के तहत आरोपी बना दिया गया है. यह दिल्ली पुलिस के रवैये पर सवाल खड़ा करता है. साथ ही साथ हाशिम के खिलाफ जो धाराएं लगाई गई हैं वो गैर-जमानती हैं. पुलिस की जांच की दिशा को समझने के लिए हमें कुछ दिनों तक इंतजार करना पड़ेगा.’
सीलमपुर निवासी 29 साल के मोहम्मद अरमान, जो कि दरियागंज की एक प्रकाशन कंपनी में काम करता है, का दावा है कि 25 फरवरी को उसका भाई सलमान एक पल के लिए भी घर से बाहर नहीं निकला. अरमान ने कहा,
अरमान के मुताबिक पुलिस पहले उसके भाई को यमुना विहार पुलिस स्टेशन ले गई, फिर उसे द्वारका ले जाया गया. वो तब से मंडोली जेल में है.
सलमान को अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज FIR नंबर 49 के तहत गिरफ्तार किया गया है, जिसमें उस पर IPC की धारा 147 (दंगा फैलाने), 148 (जानलेवा हथियारों के साथ दंगा करने), 149 (गैरकानूनी तरीके से भीड़ जुटाने), 186 (सरकारी कर्मचारी के कामकाज में बाधा डालने), 188 (लोक सेवक के आदेश का उल्लंघन करने), 353, (सरकारी कर्मचारी पर ड्यूटी के दौरान हमला करने) 283 (सड़क या नौपरिवहन में बाधा या संकट खड़ा करने), 332 (सरकार कर्मचारी को ड्यूटी करने से रोकने के लिए जानबूझकर नुकसान पहुंचाने), 427 (50 रुपये तक का नुकसान पहुंचाने की गड़बड़ी करने) 435 (आगजनी कर गड़बड़ी फैलाने), 436 (घर को नुकसान पहुंचाने के लिए आगजनी या विस्फोट करने), 323 (जानबूझकर नुकसान पहुंचाने), 307 (हत्या की कोशिश करने), 302 (हत्या करने), 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (आपराधिक साजिश) लगाई है.
अब तक इन आरोपों और इनके मायने से अनभिज्ञ रहे अरमान ने हैरानी से पूछा, ‘फिर तो उन्हें ये सब साबित करना पड़ेगा? मैं आपको पूरा भरोसा दे सकता हूं कि मेरा भाई मेरी आंखों के सामने था. हमारे माता पिता ने हमें घर से बाहर नहीं निकलने दिया था.’
बार-बार पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने के बाद, अरमान को बताया गया कि उसका भाई 25 फरवरी को भजनपुरा में हुए दंगों का आरोपी है. अरमान ने बताया, ‘मैंने उनसे कहा कि ये मुमकिन ही नहीं है क्योंकि उन दिनों हमारे घर से कोई बाहर नहीं निकल रहा था. हम सड़क तक भी नहीं जा पा रहे थे क्योंकि सारे गेट बंद होते थे, फिर वो भजनपुरा कैसे पहुंच सकता था. फिर उन्होंने कहा उन्हें कुछ जांच पूरी करनी है, वो उसे कुछ फोटो दिखाएंगे और उसके बाद उसे घर जाने देंगे,’
आखिरी बार उसने सलमान को कड़कड़डूमा कोर्ट पर देखा था जब पुलिस ने उस पर आरोप लगाए थे. ‘मैंने उससे पूछा अंदर पुलिस उसके साथ क्या कर रही है, उसने जवाब दिया, वो एक के बाद एक तस्वीरें दिखाकर लोगों को पहचानने के लिए कह रहे हैं. वो उनसे बार-बार एक ही बात कहता कि वो इनमें से किसी को नहीं जानता. पुलिस ने फिर उसकी दो दिनों की न्यायिक हिरासत मांगी और उसे मंडोली जेल भेज दिया गया. तब से वो वहीं है.’
उसकी वकील तमन्ना पंकज ने कहा, ‘इस व्यक्ति का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. जब देश इतने बड़े स्वास्थ्य संकट से गुजर रहा है, सीमाएं सील कर दी गई हैं, लोगों को घरों में रहने के लिए कहा जा रहा है, ऐसे में इस गिरफ्तारी की क्या मजबूरी थी? इसकी क्या संभावना थी कि इस दौरान सबूतों से छेड़छाड़ किए जाते या कोई फरार हो जाता?’ लॉकडाउन के बीच इस केस पर काम करते हुए वकील ने कहा, ‘अभी कोर्ट पूरी तरह से काम नहीं कर रहे हैं. मीडिया इस मसले को ठीक से उठा नहीं पा रहा है. ऐसे में लोगों तक पहुंचना, उनसे कानूनी मदद लेना बहुत मुश्किल हो गया है. इन सब के बीच गृह मंत्रालय ने पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने के लिए कहा है. साफ है वो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन को तोड़ने के लिए उन पर बुरे इरादों का आरोप जड़ना चाहते हैं. लॉकडाउन का दुरुपयोग कर प्रदर्शनकारियों, कार्यकर्ताओं और वो लोग जो उनसे रजामंदी नहीं रखते उन्हें परेशान किया जा रहा है.’
11 अप्रैल को लिखी एक चिट्ठी, जिसे इस महीने 21 तारीख को मीडिया के सामने रखा गया, में दिल्ली के वकीलों ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने इन मसलों को रखा, लॉकडाउन के बीच ही फरवरी में हुए दिल्ली दंगे के सिलसिले में दर्ज मामलों के तहत लोगों को पुलिस के समन भेजे जाने, उनके हिरासत और गिरफ्तारी की बातें उठाईं. इन वकीलों में सौजन्य शंकरण, तारा नरुला, मेनका खन्ना और नितिका खेतान शामिल थीं.
उन्होंने लिखा:
हमारी सीमित जानकारी में दंगों को लेकर दर्ज (लॉकडाउन से पहले) मामलों में की गई गिरफ्तारियों में कई केस ऐसे हैं जिनमें गिरफ्तार व्यक्ति के खिलाफ अपराध के जो आरोप लगाए गए हैं उसके कोई सबूत नहीं हैं, खासकर हत्या, हत्या की कोशिश और आगजनी जैसे गंभीर आरोपों के. इन लोगों को महज इस आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया है क्योंकि वो वीडियो फुटेज में मौके पर दिख रहे थे (इसमें इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया गया कि वो उसी इलाके के रहने वाले थे जहां दंगे हुए) या गवाहों के अपुष्ट बयान उनके खिलाफ थे. ज्यादातर मामलों में आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के वक्त पुलिस कस्टडी की मांग भी नहीं की गई, जिससे जाहिर था कि जांच के लिए उन्हें गिरफ्तार करने की कोई जरूरत नहीं थी.
साथ ही, पुलिस के पास यह कल्पना कर लेने का कोई आधार नहीं था कि गिरफ्तार किए गए लोग फरार हो सकते हैं या सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं. लॉकडाउन से पहले की गई गिरफ्तारियों में कई केस ऐसे थे जिनमें इसी आधार पर गिरफ्तार लोगों को जमानत दी गई.
तमन्ना पंकज ने कहा, ‘जब दंगे हो रहे थे, कई तरह के वीडियो वायरल हुए, जिसमें कपिल मिश्रा और बजरंग दल के नेता लोगों को खुलेआम उकसा रहे थे. जिसमें पुलिस के अधिकारी लोगों की पिटाई कर रहे थे. अगर आपको गिरफ्तार ही करना है, तो उन लोगों को गिरफ्तार कीजिए. ऐसे लोगों को क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं जो एक खास समुदाय से आते हैं और जो कि उस विचारधारा का विरोध करते हैं जिसे आप बढ़ावा देना चाहते हैं? बीजेपी के लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. जब जस्टिस मुरलीधर ने नफरती भाषण देने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए तो रातों-रात उनका तबादला कर दिया गया. दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?’
20 अप्रैल को दिल्ली पुलिस ने ट्विटर पर एक ‘जरूरी सूचना’ दी.
उन्होंने कहा: दिल्ली पुलिस ने जामिया और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की जांच पूरी गंभीरता और निष्पक्षता के साथ की है. जो भी गिरफ्तारियां की गई हैं, वैज्ञानिक और फोरेंसिक सबूतों के आधार पर की गई हैं, जिनमें वीडियो फुटेज, टेक्निकल और दूसरे सुराग भी शामिल हैं.
दिल्ली पुलिस कानून का शासन बनाए रखने, दिल्ली दंगे के साजिशकर्ताओं, उनके मददगारों और दोषियों को सजा दिलाने और निर्दोष पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है. झूठे प्रचार और अफवाहों के जरिए तथ्यों को अपनी सुविधानुसार तोड़ने-मरोड़ने वाले तत्वों से दिल्ली पुलिस डिगने वाली नहीं हैं. हम बिना थके, बिना रुके अपने आदर्शों के लिए काम करते रहेंगे. शांति, सेवा और न्याय.
जय हिंद
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