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देवघर रोपवे हादसा (deoghar roapway accident) : विमान एक्सपर्ट और वर्टिकल लिफ्ट के अग्रणी दूतों में से एक इगोर सिकोरस्की Igor Sikorsky ने एक बार कहा था-'अगर आप दुनिया में कहीं भी कठिनाई में हैं, तो एक हवाई जहाज ऊपर से उड़ सकता है और फूल बरसा सकता है, लेकिन एक हेलीकॉप्टर उतर सकता है और आपकी जान बचा सकता है.' लेकिन दुर्भाग्य से हेलीकॉप्टर वाली यह बात हालिया देवघर केबल कार दुर्घटना में फंसे उन दो लोगों पर लागू नहीं हुई, जिनकी मौत भारतीय वायु सेना (IAF) के रेस्क्यू हेलीकॉप्टर से गिरने हो गई. जब रेस्क्यू हेलीकॉप्टर केबल कार में फंसे लोगों को ट्रॉलियों में से निकाल रहा था, तब दो लोगों की मौत हेलीकॉप्टर से गिरने हो गई.
इंडियन एयर फोर्स ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से जो ट्वीट किया उसके अनुसार 'भारतीय वायु सेना ने झारखंड के देवघर जिले में त्रिकूट हिल्स रोपवे पर फंसे यात्रियों को 11 और 12 अप्रैल 22 को बचाया. वायुसेना के Mi-17V5 और ALH Mk III हेलीकॉप्टर ने इस एक्शन के दौरान छोटी-छोटी 28 उड़ानें भरीं और इसमें 26 घंटे लगे.'
इसी थ्रेड के साथ इंडियन एयर फोर्स ने अपने अगले ट्वीट में लिखा कि 'इस बेहद चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन में 10 केबल कारों से 35 यात्रियों को निकाला गया. इस बचाव कार्य में जिन दो लोगों ने अपनी गंवाई उनकी मौत पर भारतीय वायु सेना को गहरा अफसोस है.'
इस रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान फंसे एक व्यक्ति की मौत के अंतिम पलों का एक वीडियो न्यूज चैनल 'बिहार तक' ने शेयर किया, जो जल्द ही सोशल मीडिया में वायरल हो गया. यह मेरे द्वारा देखा गया अब तक का सबसे दुखद परिणाम देने वाला हेलिकॉप्टर रेस्क्यू मिशन रहा.
जो वीडियो वायरल हुआ वह भले ही विचलित करने वाला है, लेकिन वह एक सबक देता है. जिसे रेस्क्यू मिशन की उत्तेजना के दौरान भुला दिया जाता है.
एक अन्य वीडियो प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा शेयर किया गया. इस वीडियो में एक महिला को गिरते हुए दिखाया गया, जिसकी मौत हो गई. रेस्क्यू विंच केबल के कथित तौर पर "फंस" जाने के बाद वह "नीचे की ओर गिर गई" जिससे उसकी मौत हो गई.
इससे यह समझाने में मदद मिलती है कि भारतीय वायु सेना को दो लोगों की जान जाने पर इतना खेद क्यों है.
इस हादसे से जुड़ी कुछ अहम बातें हैं.
ALH Mk3 की लिफ्टिंग स्ट्रॉप वही सिंगल-लिफ्ट रेस्क्यू स्ट्रॉप लगती है, जिसका इस्तेमाल हमारी सेना सालों से करती आ रही है. इसमें गद्देदार कम्फर्ट के साथ लिफ्टिंग स्ट्रॉप होती है, जिसे सर्वाइवर (जिसे बचाया जा रहा है) के गले और कंधे के चारों ओर लपेटा जाता है और इससे छाती को भी सुरक्षा मिलती है. जैसा कि नीचे प्रतीकात्मक तस्वीर में दिखाया गया है, हालांकि इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि जो स्ट्रॉप उपयोग में लिया गया था उसे फिसलने से रोकने के लिए कोई 'पकड़ने वाला हैंडल' (grab handle) था या कोई फुलप्रूफ मैकेनिज्म था.
यह कोई असमान्य बात नहीं है कि सर्वाइवर अक्सर दंग या स्तब्ध रहते हैं, वे भटक जाते हैं या घबरा जाते हैं. खासतौर पर उस स्थिति में जब खतरा सर पर मंडरा रहा हो और वहां पर कोई फ्रीडाइवर या ऑन-साइट रेस्क्यू करने के लिए कोई भी न दिख रहा हो. ऐसे में सर्वाइवर द्वारा प्रतिक्रियाएं होना और लिफ्टिंग स्ट्रॉप को गलत ढंग से पहनना एक सामान्य गलती होती है, खासतौर पर भारत में जहां हेलीकॉप्टर रेस्क्यू आम नहीं है और न ही आम जनता के लिए यह आसानी से उपलब्ध होता है. सेना के अलावा, गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) द्वारा संचालित केवल कुछ मुट्ठी भर IAF हेलीकॉप्टर हैं, जिनके पास रेस्क्यू विंच हैं.
भारत में हवाई-समुद्र रेस्क्यू के लिए सबसे स्किल्ड रिसोर्स शायद नौसेना के एयरक्रूमैन गोताखोर (डाइवर) [ACM(D)] हैं. उन्हें आईएनएस गरुड़, कोच्चि में ट्रेनिंग दी जाती है. जोकि भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टर-आधारित सर्च एंड रेस्क्यू SAR - 321 उड़ान का शुरुआती स्थान है. एक फ्री-डाइवर गोताखोर के साथ या उसके बिना हवा से समुद्र या हवा से सतह पर सिंगल या डबल-लिफ्ट रेस्क्यू संभव है. इंडियन एयर फोर्स और आर्मी के पास ACM(D) नहीं हैं इसके बजाय यहां फ्लाइट गनर विंच का संचालन करते हैं. कुछ पायलटों को रेस्क्यू विन्चेज चलाना भी सिखाया जाता है, हालांकि उनमें से किसी से भी ACM(D) के मानकों को पूरा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जो सटीक और पूरी तरह से कुशल होते हैं. नौसेना के ट्रेनिंग रिर्सोसेज को अन्य सेवाओं के साथ साझा किया जाता है, लेकिन किस हद तक और गहराई तक, यह स्पष्ट नहीं है.
वीडियो फुटेज से यह स्पष्ट नहीं है कि सर्वाइवर ने ठीक ढंग से स्ट्रॉप पहना था या नहीं. वहीं इस बात पर यकीन करने के लिए शायद ही ऐसा कोई संकेत हैं कि सुरक्षित तरीके से विंच पहनाए गए थे. ऐसा सर्वाइवर जिसने रेस्क्यू स्ट्रॉप ठीक से नहीं पहना हो उसे सिंगल लिफ्ट करना साफ तौर असुरक्षित होता है. इस तरह के पहले से चले आ रहे स्ट्रॉप्स का उपयोग करने वाले बचावकर्मी लिफ्ट का बटन दबाने से पहले इस बात की एक नहीं दो बार जांच करते हैं कि स्ट्रॉप ठीक ढंग से पहना है या नहीं इसके साथ ही वे पॉस्चर (posture) को भी ठीक से जांचते हैं.
ऐसा प्रतीत होता है कि केबिन के नजदीक पहुंचने पर पुरुष (रोप वे हादसे में मरने वाले व्यक्ति) ने विमान पर कुछ हथियाने के लिए स्ट्रॉप के जरिए अपने हाथ उठाए हैं, इससे स्ट्रॉप से फिसलन हो सकती है, जो एक भयावह और घातक गलती है. वीडियो में लहराता हुआ आर्म्स (जिसके सहारे सर्वाइवर ऊपर गया था) दिख रहा है. यह सर्वाइवर की सहज प्रकृति का संकेत है क्योंकि करो या मरो की स्थिति में सर्वाइवर सभी रिसोर्स के लिए फड़फड़ता है. वीडियो में आप देख सकते हैं कि गिरने से पहले वह पुरुष ALH फ्लोरबोर्ड पर लटकते हुए दिखाई दे रहा है. इस स्थिति में सर्वाइवर पर पड़ने वाले तेज शोर के प्रभाव और ALH के डाउनवाश आउट ऑफ ग्राउंड इफेक्ट (HOGE) की केवल कल्पना की जा सकती है. वहीं इस हादसे में जिस महिला ने अपनी जान गंवाई उसकी मौत महज रेस्क्यू केबल टूटने से हो गई. ऊपर जाते हुए केबल टूट गई और वह नीचे गई, जिससे उसकी मौत हो गई.
अब हम वापस उस पुरुष पर आते हैं जिसकी मौत इस हादसे में हुई है. नेवल विंच-अप में लीन-आउट डेक हार्नेस पहने हुए ACM(D) सर्वाइवर को पकड़ता है, उसे खींच कर केबिन के अंदर करता है और सर्वाइवर को पैसेंजर या डेक हार्नेस के साथ सुरक्षित करने के बाद ही स्ट्रॉप को हटाता है. ये एसओपी खून से लथपथ हैं. किसी को भी पहिए का फिर से आविष्कार करने की जरूरत नहीं है क्योंकि गलतियों के लिए पहले ही भुगतान किया जा चुका है. रेस्क्यू करने वाले बचावकर्मियों से उन सभी गलतियों के लिए प्लानिंग करने की अपेक्षा की जाती है जो भ्रमित, अप्रशिक्षित सर्वाइवर या फिर किसी और के द्वारा हो सकती हैं.
एक अन्य विकल्प के रूप में बचाव टोकरी (रेस्क्यू बास्केट) या पालकी का इस्तेमाल किया जा सकता था. हालांकि इसके लिए साइट पर एक फ्रीडाइवर या अतिरिक्त रेस्क्यूअर की आवश्यकता होती है, जो शायद देवघर रोपवे रेस्क्यू में संभव नहीं था. बिना SAR स्टेप, SAR हैच (जैसे चेतक) और व्हील लैंडिंग गियर (बचाव में प्रयुक्त ALH Mk3) के बिना हेलिकॉप्टर से सिंगल-लिफ्ट स्ट्रॉप को नियोजित करते समय अत्यधिक सावधानी बरती जानी चाहिए. कौन जानता है. हो सकता है कि फिसलन या बचाव कदम ने घबराए हुए सर्वाइवर को कुछ पकड़ने या होल्ड करने के लिए दिया गया हो या शायद बचावकर्ता को ALH केबिन में सर्वाइवर को ले जाने में मदद सकती थी.
एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने नौसेना के ACM(D) के वर्टिकल लिफ्ट और जान बचाने वाली 'जादू की झप्पी' के चमत्कार को देखा और उसका अनुभव किया हो, उसके यह देखना काफी अजीब और लगभग समझ से परे लगता है कि आखिरकार सर्वाइवर को केबिन के अंदर खींचने का प्रयास क्यों नहीं किया गया वह भी तब जब वह अपनी प्यारी और कीमती जान को बचाने के लिए फ्लोरबोर्ड पर लटक रहा था. आप खुद को वहां रखकर कल्पना करें कि आप एक केबल कार दुर्घटना में बचे हुए सर्वाइवर हैं और आप बस जिंदगी की जीतने वाले हैं. लेकिन तभी एक दुर्भाग्यपूर्ण पल आता है और आप हेलीकॉप्टर के फ्लोरबोर्ड पर हजार फीट की ऊंचाई पर लटके हुए हैं नीचे दुर्गम इलाका है और कोई भी बचाव कर्मी आपको जीवन रक्षक 'जादू की झप्पी' देने नहीं आ रहा है.
वीरता पुरस्कार और कोर्ट-मार्शल के बीच की बारीक रेखा के बारे में सेना में एक पुरानी कहावत है. भले ही रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय वायुसेना ने देवघर रोपवे त्रासदी से 35 लोगों को बचाया, लेकिन दो लोगों की दुखद मौत को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. एक उम्मीद है कि इस दुर्घटना पर एक समर्पित कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी (CoI) बैठाई जाएगी और तीनों सेवाओं में बचाव दल के रैंक और फाइल में सबक लिया जाएगा.
मैं यहां आपको दो किस्से सुनाता हूं.
पूर्वी समुद्री तट पर 1990 के दशक के उत्तरार्ध का समय था. जब एक तेजतर्रार नौसैनिक एविएटर कमांडर-इन-चीफ (C-in-C) सबसे अधिक खतरनाक स्थिति और कठोर वातावरण में खुद को विंच-अप करने के लिए समुद्र में उतर गया था.
औचक निरीक्षण के दौरान तीन सितारा एडमिरल ने अप्रत्याशित रूप से नजदीक ही समुद्र तट पर बनाए गए सर्च एंड रेस्क्यू SAR बेस की सर्च एंड रेस्क्यू फ्लाइट की प्रतिक्रिया का परीक्षण करने के लिए खुद को विंच-अप करने का आदेश दिया.
इसके बाद रूटीन सर्किट और लैंडिंग ऐशोर का अभ्यास करने वाले चेतक क्रू को ब्लू नेवल शॉर्ट्स और हाफ शर्ट पहने एडमिरल की मेजबानी करने वाले माइनस्वीपर की ओर डायवर्ट कर दिया गया.
एक सर्वाइवर को जाने देने की तुलना में नौसेना के डाइवर जल्द ही अपने बैज को सौंप देंगे. ACM(D) दहिया द्वारा विंच को आपातकालीन मोड में चलाने की कोशिश की गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. नीचे कौन लटक रहा है इस बात की परवाह किए बिना दाहिया ने अपने फैले हुए पैरों के सहारे मोटे-ताजे एडिमिरल को पीछे की ओर से दबोच कर ऊपर किया और फिर कॉलर व शॉर्ट्स को पकड़कर चेतक के खुले हुए केबिन के अंदर खींच लिया. हर समय पायलटों के साथ अपने बचाव की मुद्रा को बनाए रखते हुए ऐसा केवल नौसेना का एक डाइवर ही कर सकता था.
क्रू और सर्वाइवर ने आईएनएस देगा, विजाग में सुरक्षित लैंडिंग की, हालांकि उसके बाद जो हुआ वह एक किसी और दिन के लिए एक कहानी है.
इस घटना के एक दशक बाद, एक नौसैनिक सी किंग को एक फंसे हुए व्यापारी जहाज (मर्चेंट शिप) से सर्वाइवर्स को निकालने का काम सौंपा गया था. यह जहाज पानी में फंस गया था और लड़खड़ा रहा था. नेवल क्रू सर्वाइवर्स को सिंगल-लिफ्ट करके निकाला जा रहा था, लेकिन उनके प्रयास तब अचानक से थम गए जब एक सर्वाइवर को हिचकोले खाते और फिसलन भरे डेक में यह लगने लगा कि वह वहां से नहीं सकता. वह सर्वाइवर लिफ्टिंग स्ट्रॉप पर ऐसे खड़ा हो गया मानो कि वह कोई झूला हो. उसने स्टील विंच केबल को पकड़ लिया और ऊपर आने से मना करने लगा. वहीं जब जहाज तेजी से दूसरी ओर झुक गया तब उसके नीचे से डेक गायब हो गया और वह खतरनाक रूप से हवा में लटका रह गया.
यहां उम्मीद है कि देवघर रोपवे दुर्घटना और इंडियन एयर फोर्स की HADR रिस्पॉन्स के बाद एसओपी, बेहतर ट्रेनिंग और इक्यूपमेंट, और हां सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विमानन के मामलों में 100% प्रोफेशनलिज्म का कोई विकल्प नहीं है.
याद रखें कि पुराने नौसैनिक चेतक एसएआर आदर्श वाक्य का परीक्षण न करें “We dare; you survive”. यानी “हम हिम्मत करते हैं; तुम बच जाओ ” उचित उपकरण, स्टाफ और प्रशिक्षण के बिना "सर्वाइव" ऑपरेटिव शब्द नहीं हो सकता है और केवल "डेयर Dare" यानी 'हिम्मत' या 'साहस' ही इतना आगे जा सकती है.
(लेखक एक पूर्व-नौसेना प्रायोगिक परीक्षण पायलट हैं. वे Bell 412 और AW139 हेलीकॉप्टरों पर दोहरी ATP-रेटेड हैं और ALH ध्रुव पर एक सिंथेटिक उड़ान प्रशिक्षक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @realkaypius है. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं.)
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