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इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High court ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) और चुनाव आयोग (Election Comission) को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव टालने की नसीहत देकर एक नई बहस छेड़ दी है. इसके बाद ये सवाल अहम हो गया है कि क्या कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक के बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव टाले जा सकते? हाईकोर्ट ने कहा है कि संभव हो सके तो फरवरी में होने वाले चुनाव को एक-दो माह के लिए टाल दें, क्योंकि जीवन रहेगा तो चुनावी रैलियां, सभाएं आगे भी होती रहेंगी.
जीवन का अधिकार हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी दिया गया है. हाईकोर्ट ने कोरोना के तेजी से फैलने और इसकी वजह से लगातार बढ़ते खतरे पर मीडिया में आई खबरों का हवाला भी दिया है.
इलाहबाद हाई कोर्ट की इस नसीहत पर चुनाव आयोग ने कहा है कि वो यूपी में चुनावी तैयारियों और ओमिक्रॉन के हालात का जायजा लेने के बाद अगले हफ्ते इस बारे में कोई फैसला करेगा. यूपी में रात का कर्फ्यू लगा दिया गया है. इन हालात में चुनावी रैलियां कैसे होंगी. कई देशों में तीसरी लहर के मद्दे नजर लॉकडाउन लगा दिया है. देश में भी ऐसे ही हालात बनते जा रहे हैं. सवाल उठ रहे हे कि क्या इन हालात में चुनाव कराना जनता की जान को जोखिम में डलना नहीं है? 29 दिसंबर को चुनाव आयोग लखनऊ में होने वाली बैठक में विचार करके चुनाव कराने या इन्हें टालने पर फैसला करेगा.
दरअसल यूपी में चुनावी रैलियों में उमड़ रही हजारों-लाखों की भीड़ ने चिंता बढ़ाई है. हाईकोर्ट ने याद दिलाया है कि कोरोना की दूसरी लहर में चुनावों के दौरान लाखों लोग कोरोना संक्रमित हुए थे. बड़े पैमाने पर मौतें भी हुई थीं. यूपी के पंचायत चुनाव और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव ने लोगों को काफी संक्रमित किया था. अब यूपी में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी पार्टियों में भारी भीड़ जुट रही है. इन रैलियों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन संभव नहीं है. रैलियों में उमड़ती भीड़ को समय से नहीं रोका गया तो नतीजे दूसरी लहर से भी ज्यादा भयावह हो सकते हैं.
इसी साल मार्च-अप्रैल मे हुए पांच राज्यों के विधानसभा और यूपी में पंचायत चुनाव कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुए थे. चुनाव वाले राज्यों में रैलियों में उमड़ी भीड़ की वजह से कोरोना तेजी से फैला था.
चुनाव शुरू होने के दो हफ्तों के भीतर इन राज्यों में 100 से लेकर पांच सौ फीसदी से ज्यादा मामले बढ़ थे. उस समय के आंकड़े बेहद डरावने हैं
पांचों राज्यों में मौत का आंकड़ा भी औसतन 45% तक बढ़ा था.
यूपी में पंचायत चुनाव टालने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. तब हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को 30 अप्रैल से पहले हर हाल में चुनाव कराने का आदेश दिया था. इन चुनावों में ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारी बड़े पैमाने पर कोरोना से संक्रमित हुए थे.
बड़े पैमाने पर इनकी मौत भी हुई थी. यूपी के शिक्षक संघ ने 1,621 शिक्षकों की मौत का दावा किया था. हाई कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वालों के परिवार वालों को 30-30 लाख रूपए का मुआवजा देने का फैसला करना पड़ा. हालांकि सरकार ने मौतों कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया.
अगर कोरोना की दूसरी लहर के बीच चुनाव कराना गलती थी तो तीसरी लहर की दस्तक के बाद इस गलती को दोहराना अक्लमंदी नहीं होगी. देश में कोरोना के ओमिक्रॉन का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार ने राज्यों को संक्रमण फैलने से रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं.
चुनाव टालने पर बहस शुरू हो गई है. इसके पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं. अभी चुनावों का तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है. लिहाजा चुनाव टालने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. केंद्र सरकार और चुनाव आयोग चाहे तो विशेष परिस्थितियों में कुछ महीनों के लिए चुनाव को टाल सकता हैं.
जनप्रतिनिधित्व कानून में चुनाव टालने या रद्द करके के कई प्रावधान हैं. किसी उम्मीदवार की मौत, पैसों के दुरुपयोग और बूथ कैप्चरिंग होने पर किसी भी सीट पर चुनाव रद्द हो जाता है. चुनाव के दौरान अगर कहीं दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति पैदा हो जाए तो वहां चुनाव टाला जा सकता है.
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 57 के में यह प्रावधान है. इसके तहत अगर दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में पीठासीन अधिकारी चुनाव टालने का फैसला ले सकते हैं. अगर पूरे राज्य में या बड़े स्तर पर ऐसे हालात पैदा हो जाएं तो चुनाव आयोग ये फैसला ले सकता है.
चुनाव टालने की बात पहली बार उठ रही है. पहले भी कई बार चुनाव टले हैं. 1991 में पहले चरण की वोटिंग के बाद भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. इसके बाद चुनाव में आयोग ने अगले चरणों मतदान क़रीब एक महीने के लिए टाल दिया था.
1991 में ही पटना लोकसभा में बूथ कैप्चरिंग होने पर आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया गया था. 1995 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग के मामले सामने आने के बाद 4 बार तारीखें आगे बढ़ाई गई थीं. बाद में बड़े पैमाने पर अर्ध सैनिक बलों की निगरानी में कई चरणों में चुनाव हुए थे.
इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल एसिस्टेंट’ (IDEA) ने कोरोना की दस्तक के बाद दुनियाभर में चुनावों पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया है. ये स्टडी 21 फरवरी 2020 से 21 नवंबर 2021 के बीच किया गया है. इसमें ये जानने की कोशिश की गई कि कोरोना काल में किस देश में चुनाव हुए और कहां टाले गए. ये स्टडी इंस्टीट्यूट की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है. इसके मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैः
दुनिया भर में 79 देशों ने कोरोना की वजह से राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय चुनाव टाले हैं. 42 देशों में राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह टाला गया है.
कोरोना के बावजूद 146 देशों में चुनाव कराए गए हैं. इनमें से 124 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है.
57 देशों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनाव हुए हैं. हालांकि पहले इन्हें कोरोना के चलते टाला गया था. 29 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है.
रूस में संवैधानिक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह 22 अप्रैल 2020 को होना था. इसे 1 जुलाई 2020 तक टाला गया. रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने 3 अप्रैल 2020 को 5 अप्रैल से 23 जून के बीच होने वाले सभी चुनाव स्थगित कर दिए. रूस में इस दौरान स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले 94 चुनावों को टाल गया.
बोलीविया में आम चुनाव 3 मई 2020 को होने थे. पहले इन्हें 6 सितंबर 2020 तक के लिए और फिर 18 अक्टूबर 2020 तक टाला गया. क्षेत्रीय चुनाव मार्च 2020 से टालकर आम चुनावों के साथ कराए गए.
ईरान में संसदीय चुनावों का दूसरा दौर 17 अप्रैल 2020 से 11 सितंबर 2020 तक टला गया.
सीरिया में संसदीय चुनाव 13 अप्रैल 2020 से 19 जुलाई 2020 तक टाले गए.
श्रीलंका में संसदीय चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे. लेकिन अगस्त 2020 में कराए गए.
ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स राज्य के चुनाव पहले सितंबर 2020 से सितंबर 2021 तक और फिर दिसंबर 2021 तक और अब मई 2022 तक के लिए टाल दिए गए.
इंडोनेशिया में स्थानीय चुनाव सितंबर 2020 से दिसंबर 2020 तक टाले गए.
चिली में संवैधानिक जनमत संग्रह 26 अप्रैल 2020 को होना था. पहले इसे 25 अक्टूबर 2020 चाला गया. संविधान आयोग के चुनाव 10-11 अप्रैल 2021 से 15-16 मई 2021 तक के लिए टाले गए.
सोमालिया में संसदीय चुनाव 27 नवंबर 2020 को और राष्ट्रपति का चुनाव 8 फरवरी 2021 से पहले होना था. इन्हें कई बार टालकर 25 जुलाई और 10 अक्टूबर 2021 को कराया गया.
ब्राजील में नगरपालिका चुनाव अक्टूबर 2020 को होने थे. इन्हें नवंबर 2020 तक टाला गया.
अगर दुनिया भर में कोरोना के चलते चुनाव टाले जा सकते हैं, तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है. इसकी रक्षा के लिए अगर चुनाव टालना जरूरी हो तो ये फैसला करने में हिचकना नहीं चाहिए.
इस बारे में सर्वदलीय बैठक बुलाकर फैसला किया जा सकता है कि चुनाव टलने की स्थिति में विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया जाए या फिर चुनाव वाले राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए. इससे सरकार और चुनाव आयोग को छह महीने का वक्त मिल जाएगा. कोरोना की तीसरी लहर गुजरने के बाद पांचों राज्यों में चुनाव कराए जा सकते हैं. फैसला केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को करना है.
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