advertisement
ग्लास्गो (Glasgow) क्लाइड नदी (Clyde River) के किनारे बसा है, ये कभी स्कॉटलैंड के औद्योगिक गौरव के लिए जाना जाता था वहीं अब ये ग्रीन एनर्जी (Green Energy) ट्रांजिशन के लिए एक लॉन्चपैड के तौर पर अपनी पहचान बना रहा है. यही खासियत इस शहर को संयुक्त राष्ट्र (UN) के जलवायु सम्मेलन (Climate Conference) COP26 के लिए उपयुक्त शहर बनाती है. ग्लास्गो में ही क्लाइमेट समिट के दौरान दुनिया के नेता एकजुट होंगे और इस बात पर चर्चा करेंगे कि वे अपने देश में जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को किस तरह से कम करेंगे.
2015 में पेरिस में हुए जलवायु सम्मेलन में शामिल हुए देशों ने ग्लोबल वार्मिग को 2 डिग्री (3.6 फैरेनहाइट) से कम रखने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें 1.5 डिग्री (2.7 फैरेनहाइट) का लक्ष्य तय किया गया था. ऐसे में यदि COP21 लक्ष्य के लिए गया समझौता था तो COP26 उस लक्ष्य को हमने किया पाया,इसकी समीक्षा और उसके अनुसार आगे की योजना बनाने का मौका है.
लेकिन इन सबके बीच बुरी खबर यह है कि समिट में शामिल होने वाले देश सही दिशा में नहीं हैं. वे पटरी से उतर रहे हैं. उन्हें इस वर्ष नये एक्शन प्लान सब्मिट करने की जरूरत थी. एक्शन प्लान को नेशनल डिटरमाइन्ड कंट्रीब्यूशन्स या NDCs के नाम से भी जाता है.
ऐसे में सभी की नजरें G-20 पर टिकी हुई हैं. जी-20 दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है. वैश्विक उत्सर्जन में इसकी 80 फीसदी हिस्सेदारी है. इस समूह की वार्षिक बैठक COP 26 से ठीक पहले 30-31 अक्टूबर को रोम में आयोजित हो रही है.
भारत सहित कुछ जी 20 देशों ने अभी तक अपने अपडेटेड प्लान सब्मिट नहीं किए हैं. वहीं ब्राजील, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया और रूस ने ऐसे प्लान सब्मिट किए हैं जो पेरिस समझौते के अनुसार ठीक नहीं हैं. इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये सही ट्रैक में नहीं हैं.
अब जाकर ये डिटेल्स सामने आ रही हैं कि चीन अपने जलवायु लक्ष्यों को कैसे प्राप्त करेगा. जैसे चीन अपने 2030 उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को कैसे मजबूत करेगा, वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की प्रति यूनिट 65 प्रतिशत उत्सर्जन में कटौती भी शामिल है और चीन ने उस तारीख को भी आगे बढ़ा दिया है जिसमें उसने कहा कि देश में कब उत्सर्जन चरम पर होगा. वहीं अन्य ग्रीनहाउस गैसों, जैसे कि मीथेन के लिए औद्योगिक उत्पादन लक्ष्य निर्धारित करना भी इसमें शामिल है.
संयुक्त राज्य अमेरिका US और चीन की नाजुक रणनीति व फ्रांस की चतुर कूटनीति ने 2015 में पेरिस जलवायु समझौते तक पहुंचने में अहम थी. लेकिन 6 साल बाद इनके बीच बढ़ते तनाव की वजह से अब चीजें आगे बढ़ने की बजाय पीछे की ओर जा रही हैं.
इन सबके बीच दुनिया निगाहें अमेरिका की तरफ भी होंगी. जहां दो डेमोक्रेटिक सीनेटर, वेस्ट वर्जीनिया के जो मैनचिन और एरिजोना के किर्स्टन सिनेमा ने बाइडेन प्रशासन की योजना का विरोध किया है ताकि इनसेन्टिवाइज्ड यूटिलिटीज को स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में और अधिक तेजी से स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
यदि उनकी पर्यावरणीय कमजोरी राष्ट्रपति जो बिडेन की योजना ए के उस महत्वपूर्ण हिस्से को नष्ट कर देती है तो दुनिया ग्लासगो में प्लान बी, सी, या डी की बारीकियों को देखना चाहेगी जिससे कि यह पता चलेगा कि आखिर अमेरिका अपने 2030 कार्बन टारगेट को कैसे पूरा करेगा.
पेरिस सम्मेलन से एक बचा हुआ कार्य कार्बन बाजारों के लिए नियम निर्धारित करना है, विशेष रूप से कैसे देश एक दूसरे के साथ या एक देश और एक प्राइवेट कंपनी के बीच कार्बन क्रेडिट का व्यापार (ट्रेड) कर सकते हैं.
यूरोपीय संघ से लेकर चीन तक, कार्बन बाजारों को रेगुलेट किया जाता है. स्वैच्छिक बाजार आशावाद और चिंता दोनों को बढ़ावा दे रहे हैं. कार्बन बाजारों को यह गारंटी देने के लिए नियंत्रित किया जाना चाहिए कि वे विकासशील देशों को अपने प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए नकद प्रदान करते हुए उत्सर्जन को कम करें. कार्बन बाजार, अगर सही तरीके से किया जाए, तो शुद्ध शून्य उत्सर्जन में ट्रांजिशन को तेज कर सकता है. ग्रीनवाशिंग, यदि गलत तरीके से किया जाता है, तो सरकार और कॉर्पोरेट प्रतिबद्धताओं में जनता का विश्वास कम हो जाएगा.
इसके अलावा, उत्सर्जन को कम करने और ठोस प्रगति की रिपोर्ट के लिए बेहतर योजनाओं के साथ एक या दो साल में देशों पर दबाव देखने की उम्मीद है.
सभी मुद्दों की प्रगति के पीछे एक सवाल आता है वह है फायनेंस यानी वित्त का सवाल.
हरियाली बढ़ने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए विकासशील देशों को मदद की जरूरत है. लेकिन वे इस बात से निराश हो रहे हैं कि उन्हें यह मदद बहुत ही धीमी मिल रही है. 2009 में और फिर 2015 में, अमीर मुल्क 2020 तक विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त में प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर प्रदान करने के लिए सहमत हुए, लेकिन वे अभी तक उस लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हैं.
बैठक से एक सप्ताह पहले यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने जर्मनी और कनाडा की मध्यस्थता से एक जलवायु वित्तपोषण योजना की घोषणा की, जो 100 बिलियन डॉलर की गणना और सहमति के लिए एक प्रक्रिया प्रदान करेगी, लेकिन इस आंकड़े तक पहुंचने में 2023 तक का समय लगेगा.
एक ओर यह प्रगति है, लेकिन यह विकासशील देशों के लिए एक निराशा के रूप में आएगा, जिनकी अनुकूलन लागत को अब कवर किया जाना चाहिए, जबकि जलवायु प्रभावों की वैश्विक लागत जैसे कि हीट वेव, जंगल की आग, बाढ़, बढ़ते तूफान, चक्रवात और आंधी, क्लाइम्ब.
विकासशील दुनिया बहस कर सकती है, जैसा कि उसने दुनिया भर में टीकाकरण की तैनाती के साथ किया था कि क्या उन्हें एक नए आर्थिक विभाजन में लाया जा रहा है जिसमें अमीर और अमीर हो जाते हैं और गरीब गरीब हो जाते हैं.
जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और शमन के खर्चों से परे, नुकसान और क्षति का मुद्दा है, जो उन देशों को होने वाले नुकसान का मसलाा है जिन्होंने अतीत में जलवायु परिवर्तन में बहुत कम योगदान दिया और उन देशों की जिम्मेदारियां जिन्होंने अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन के साथ संकट पैदा किया. जैसे-जैसे घाटा बढ़ता है, ये दर्दनाक बातचीत सेंटर स्टेज पर ले जाएगी.
वित्त के निजी स्रोतों से बड़ी प्रतिज्ञाओं की अपेक्षा करें. पेंशन फंड्स, इंश्योरेंस कंपनियां, बैंक और परोपकारी अपने स्वयं के नेट जीरो प्लान के साथ जिसमें जीवाश्म-ईंधन परियोजनाओं में वित्त पोषण और निवेश को रोकना और प्रगति में तेजी लाने के लिए आवश्यक प्रयासों को वित्त पोषित करना शामिल है.
दुनिया वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को शून्य से कम करने और अधिक लचीलापन बनाने के रास्ते के बारे में बात करेगी
दो सप्ताह के सम्मेलन और इसके आने वाले दिनों में उत्सर्जन-मुक्त शिपिंग से लेकर विमानन तक, कोयले के वित्त पोषण को समाप्त करने से लेकर ग्रीन स्टील और सीमेंट तक, प्लेटफार्मों से लेकर मीथेन को कम करने तक, प्रकृति-आधारित समाधानों तक, प्रतिबद्धताओं की एक स्थिर धारा सम्मेलन में दिखाई देगी, जिसमें नए देशों के समूह, गैर-सरकारी संगठन और एक साथ काम करने वाले व्यवसाय शामिल होंगे.
COP26 के बाद इन वादों पर नजर रखना और प्रगति की पुष्टि करना महत्वपूर्ण होगा. इसके बिना, ग्रेटा थुनबर्ग का "ब्ला ब्ला ब्ला" बयान कुछ हफ़्ते पहले मिलान में एक Pre-COP सभा में प्रतिनिधियों को दिया गया था, जो पूरी दुनिया में गूंजता रहेगा.
(रेचल काइट Fletcher School Tufts यूनिवर्सिटी के डीन हैं. यह उनकी निजी राय है. क्विंट हिंदी न तो इसकी समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 30 Oct 2021,09:12 AM IST