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अंग्रेजी में कहते हैं, "May you live in interesting times" मतलब "हम आपके लिए दिलचस्प दौर की कामना करते हैं", यह आशीर्वाद की तरह लगता है, लेकिन अपनी मूल चीनी भाषा में, यह वास्तव में एक विलाप है. शांतिपूर्ण, ‘अनइंटरेस्टिंग’ यानी नीरस दौर में जीना, उस ‘इंटरेस्टिंग’ यानी दिलचस्प दौर से अच्छा है, जब अशांति, युद्ध और दूसरी कई तबाहियां मची हों.
पिछला कुछ साल बेशक, ‘दिलचस्प वक्त’ था. हमने कोविड-19 देखा, रूस-यूक्रेन युद्ध देखा, आर्थिक उथल-पुथल का सामना किया, 2023 में इजरायल-हमास युद्ध के गवाह बने, और जिससे दुनिया के लोग अनजान बने रहे- कांगो, सूडान, माली और इथियोपिया में गृह युद्ध छिड़े रहे.
हम भारतीयों को इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए कि इन सबका हम पर सीधा असर नहीं हुआ. हालांकि, हाल ही में समुद्र में भारतीय जहाजों पर ड्रोन हमला हुआ और यह चिंता की बात है. लेकिन चाहे यूक्रेन-युद्ध हो या इजरायल-हमास जंग, इन सबने हमें नाज़ुक हालात में धकेला है.
2024 की खासियत होगी, आम चुनाव. भारत में और उसके सबसे बड़े भागीदार अमेरिका में भी. इसके अलावा रूस और कई देशों में भी चुनाव होने वाले हैं, लेकिन हमारे लिए सबसे अहम अमेरिका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और भूटान के चुनावी नतीजे हैं (भारत में यह ज्यादा चिंता का मामला नहीं, क्योंकि मोदी के आसानी से जीतने की पूरी संभावना है).
ट्रंप की जीत का खतरा उनके चुनावी नतीजे से ज्यादा, उनकी अराजक शैली को लेकर है. वैसे ड्रेमोक्रेट्स हों या रिपब्लिकन्स, दोनों नई दिल्ली से गहरे संबंध बनाने को तैयार हैं.
भूटान में चुनाव परिणाम चीन-भूटान सीमा वार्ता और उनके आपसी रिश्तों में बदलाव के संकेत दे सकते हैं जिनका असर भारत पर भी होगा. जबकि बांग्लादेश चुनाव का परिणाम पहले से तय है, मुख्य विपक्षी दल बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) ने चुनावों का बहिष्कार किया है, और इसका बुरा असर भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर पड़ना तय है.
2023 में भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषता, जिसे आने वाले वर्ष में भी बरकरार रखने की संभावना है, 'मल्टी एलाइनमेंट' (multi-alignment) है, जिसे कभी-कभी 'गुटनिरपेक्षता' भी कहा जाता है. अमेरिका के साथ रिश्ते प्रगाढ़ हुए और साल के आखिर में विदेशी मंत्री एस. जयशंकर का रूस दौरा यह बताता है कि मॉस्को के साथ भी रिश्ते सुधारे जा रहे हैं. इसी के साथ भारत ने फ्रांस को न्यौता दिया है कि राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों 2024 में गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि बनें.
2023 में भारत को ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (जी20) की रोटेशनल प्रेसिडेंसी का मौका मिला और उसने इसे विदेश नीति को एक ऐसे जश्न में बदला दिया जिसमें भारत ने कदम रखा है. यकीनन मोदी सरकार ने सियासी मकसद से ही देश भर में इसका जश्न मनाने, इसे प्रचारित करने में इतना निवेश किया.
इस साल संसद के मानसून सत्र में राज्यसभा के एक सांसद ने विदेश मंत्री से सवाल किया था कि भारत की विदेश नीति की क्या खास उपलब्धि है. इस पर 3 अगस्त को विदेश मंत्रालय ने जवाब दिया था, “भारत की विदेश नीति ने एक ऐसा रास्ता चुना है जो इसकी ताकत को बढ़ाता है, इसके मूल हितों की रक्षा करता है और वैश्विक मामलों में बढ़ती प्रोफ़ाइल के साथ तेजी से बढ़ती और समावेशी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की निरंतर उन्नति सुनिश्चित करता है.”
फिर भी भविष्य की संभावनाओं के साथ महत्वपूर्ण विकास हुआ है. इनमें जून में मोदी की अमेरिका यात्रा और उसके बाद सितंबर में बाइडेन की भारत यात्रा शामिल हैं. संक्षेप में इन यात्राओं से कई क्षेत्रों में, विशेषकर लड़ाकू जेट इंजनों से संबंधित रक्षा तकनीक में, अमेरिका-भारत संबंधों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई.
नई दिल्ली अमेरिकी रक्षा योजनाओं से जुड़ी प्रतिबद्धता को लेकर भी चौकन्ना है, खासकर चीन को देखते हुए. मई में यूएस हाउस की स्ट्रैटिजिक कंपीटीशन पर गठित सिलेक्ट कमिटी के अध्यक्ष कांग्रेसमैन माइक गैलाघेर ने भारत के सामने नाटो प्लस 5 की सदस्यता का प्रस्ताव रखा था. लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस पेशकश को ठुकरा दिया था. उन्होंने कहा था, "नाटो टेम्पलेट भारत पर लागू नहीं होता है."
भारत ने अमेरिका की नेतृत्व वाली पहल भारत-पश्चिम एशिया यूरोपीय आर्थिक गलियारे में भाग लिया और इस तरह अमेरिका के साथ अपने रिश्ते गहरे किए. यह गलियारा संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और इजराइल को यूरोपीय बंदरगाहों से जोड़ेगा. इजराइल-हमास की बदस्तूर योजनाओं से इस पहल पर संकट पैदा होगा, खासकर अगर आने वाले महीनों में अरब देशों पर यह दबाव बढ़ेगा कि वे इजराइल के साथ अपने संबंधों पर फिर से विचार करें.
खालिस्तान के अमेरिकी सिख समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नु की हत्या की कथित भारतीय साजिश को नाकाम करने से संबंधित प्रकरण में अमेरिका के साथ भारत के संबंधों की सीमाएं उजागर हुईं. जबकि राजनीति यह सुनिश्चित करेगी कि इसका नतीजा कम से कम बुरा हो, साजिश के कथित सरगना निखिल गुप्ता के खिलाफ अमेरिकी कानूनी प्रक्रिया का खुलासा, 2024 में मुसीबतों का पिटारा खोल सकता है.
भारत और अमेरिका के बीच विषमता और अपनी नीति को आगे बढ़ाने के लिए मानवाधिकार और लोकतंत्र के मुद्दों का उपयोग करने की उसकी प्रवृत्ति को देखते हुए, अमेरिका को लेकर हमेशा सावधानी बरतनी होती है. भारत के साथ उसके रिश्ते अनूठे हैं क्योंकि अमेरिका भारत का सुरक्षा प्रदाता नहीं है. लेकिन चीनी सैन्य और कूटनीतिक शक्ति में जबरदस्त बढ़ोतरी को देखते हुए भारत को बीजिंग के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिए अमेरिका के साथ मजबूत ‘साझेदारी’ करनी होगी.
फ्रांस के साथ भारत का रिश्ता समय की कसौटी पर खरा उतरा है और संयुक्त अरब अमीरात के साथ उसका संबंध शायद सऊदी प्रायद्वीप में सबसे मजबूत है. भारत इस त्रिपक्षीय संबंधों में समन्वय करने का प्रयास कर रहा है.
जून 2023 में ओमान की खाड़ी में पहला त्रिपक्षीय समुद्री साझेदारी अभ्यास इसी का नतीजा था. पश्चिमी हिंद महासागर में अमेरिकी सेना के साथ भारत का सहयोग विशेष महत्वपूर्ण नहीं है. फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के साथ साझेदारी करके, भारत इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने में कामयाब हुआ है.
2024 में मैक्रों के दौरे के साथ, भारतीय फ्रांस रिश्तों को और बढ़ावा मिलेगा. भारत के लिए फ्रांस के साथ अच्छे संबंध, अमेरिकी रिश्तों पर नकेल लगाने में काम आएंगे. फ्रांस सैन्य तकनीक के निर्यात को लेकर कम उपदेशात्मक या प्रतिबंधात्मक है.
इस समय भारत और फ्रांस राफेल लड़ाकू विमान के 26 समुद्री प्रारूपों के आयात की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं जो भारतीय विमान वाहकों में इस्तेमाल किए जाएंगे, साथ ही तीन स्कॉर्पीन-टाइप की पनडुब्बियों के आयात पर भी बातचीत की जा रही है. इसके अलावा लड़ाकू और हेलीकॉप्टर जेट इंजन का भी एक साथ निर्माण किया जा सकता है.
भारत के लिए एक बड़ी चुनौती चीन के साथ उसके रिश्ते हैं. 2023 में कुछ कम उथल-पुथल हुई. 2020 में चीन ने पूर्वी लद्दाख में भारत की गश्त में रुकावट पैदा की थी, इसके बाद से दोनों के बीच शीत युद्ध जैसे हालात हैं.
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर मोदी और शी जिनपिंग के बीच "स्पष्ट और गहन विचारों का आदान-प्रदान" हुआ, लेकिन बस इतना ही. लद्दाख में यथास्थिति बहाल करने के लिए बीजिंग ने कोई कदम नहीं उठाया.
भारत और चीन दोनों ग्लोबल साउथ के नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं और एससीओ और ब्रिक्स जैसे संगठनों के सदस्य हैं. ब्रिक्स में 2024 में छह नए सदस्य होंगे- अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात - जिससे आने वाले वर्ष में संगठन के चरित्र में बदलाव होना तय है.
आने वाले वर्ष में ऐसी असरदार घटनाएं घटेंगी जिनकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. हालांकि कुछ आशंकाएं भी हैं- ऐसी रुकावटें जिन्हें हम देख सकते हैं, और जो जगजाहिर हैं, फिर भी हम उनसे टकराने वाले ही हैं. फिलहाल सब कुछ आराम से चल रहा है, और सरकार ने फूंक फूंककर कदम रखे हैं.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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