advertisement
भारत का आम चुनाव (Lok Sabha Election) अब जबकि दूसरे महीने में दाखिल हो चुका है, ज्यादातर पारंपरिक आकलन पहले ही धड़ाम हो चुके हैं. आत्मसंतुष्ट भविष्यवक्ताओं ने बहुत पहले ही यह नतीजा निकाल लिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और उनकी भारतीय जनता पार्टी (BJP) आसानी से जीत रही है. लेकिन सात चरण के चुनाव के दो चरणों– तकरीबन 190 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं– उसके बाद हालात अब इतने आसान नहीं दिख रहे हैं.
भारत का स्वायत्त चुनाव आयोग सभी सात चरणों के मतदान खत्म होने तक किसी भी तरह के एग्जिट पोल जारी करने पर रोक लगाता है. (यह तारीख 1 जून है, नतीजों का ऐलान 4 जून को होगा). लेकिन मतदाताओं की भावनाओं के अनौपचारिक आकलन से यह इशारा मिलता है कि चीजें बीजेपी के मुताबिक नहीं चल रही हैं. ऐसा लगता है कि जनता के पास पार्टी को तीसरी बार वोट देने की पर्याप्त वजहें नहीं हैं.
इसके अलावा 2014 के बाद से हैरतअंगेज रूप से 80 फीसद भारतीयों की आय में गिरावट आई है, और परचेजिंग पावर और घरेलू बचत दोनों घटी है. बहुत से लोग सरकार पर उनके कल्याण का काम नहीं करने का आरोप लगाते हैं.
मोदी निश्चित रूप से अब भी खुद तो लोकप्रिय हैं, जिसका श्रेय बड़े जतन से बनाई गई उनकी व्यक्ति पूजा की इमेज को जाता. लेकिन उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को अगर सीधे नकारा नहीं जा रहा है, तो भी बड़े पैमाने पर उनके प्रति उदासीनता दिखाई दे रही है. पीएम मोदी के रंग-ढंग से उनकी बढ़ती बेचैनी का पता चलता है: उनके मुसलमानों पर छिपे शब्दों में किए जाने वाले हमले धीरे-धीरे सीधे हमलों में बदल चुके हैं.
मोदी ने विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर भी हमले तेज कर दिए हैं और दावा किया है कि पार्टी के घोषणापत्र पर “मुस्लिम लीग की छाप” है. उन्होंने पिछले महीने एक चुनावी रैली में यह भी आशंका जता दी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार हिंदुओं की निजी संपत्ति और जेवरों को उनसे छीनकर मुसलमानों में बांट देगी.
बीजेपी के दूसरे पदाधिकारी भी डर फैलाने में शामिल हो गए हैं, जो पार्टी की बढ़ती हताशा को दर्शाता है. उदाहरण के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि अगर बीजेपी हार गई तो भारत में शरिया कानून लागू हो जाएगा.
इस तरह की बयानबाजी घोर अतिवादी है, मगर इसमें कोई अचंभे की बात नहीं. धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश बीजेपी की कामयाब स्ट्रेटजी रही है. हिसाब एकदम सीधा है: अगर मुसलमानों को बुरे लोग बताकर भारत के आधे हिंदुओं (जो आबादी का 80 फीसद हैं) को भी अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर पार्टी के साथ एकजुट होने के लिए राजी किया जा सकता है, तो एक और चुनावी जीत झोली में होगी.
लेकिन यह स्ट्रेटजी अचूक नहीं है. इसलिए बीजेपी दूसरे हथकंडे भी अपना रही है.
बीजेपी ने तमाम विपक्षी दलों के साथ गठबंधन किया है. उनमें से एक-आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी– ने कुछ साल पहले मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा (निचले सदन) में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था और इसके नेता ने मोदी की तीखी आलोचना की थी. अब, अचानक, सब कुछ भुला दिया गया है.
पूर्वी राज्य ओडिशा में बीजू जनता दल (Biju Janta Dal) और पश्चिमी राज्य पंजाब में अकाली दल, जिन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया है– को अपने पाले में लाने की बीजेपी की सार्वजनिक कोशिशें कामयाब नहीं रहीं. दोनों पार्टियों ने बीजेपी की गुजारिश को ठुकरा दिया.
जहां तक कांग्रेस की बात है, उसके बैंक खाते चुनावी अभियान की शुरुआत में ही फ्रीज कर दिए गए थे और पिछले महीने काले धन की तलाश में पार्टी नेता राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर पर छापा मारा गया. ये जनता के भरपूर समर्थन वाली किसी आत्मविश्वास से भरी पार्टी की हरकतें नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी पार्टी की हरकतें हैं, जो महसूस करती है कि सत्ता उसकी मुट्ठी से फिसलती जा रही है.
बीजेपी ने 2019 के पिछले आम चुनाव में छह राज्यों में हर संसदीय सीट, तीन राज्यों में एक को छोड़कर सभी सीटें और दो राज्यों में दो को छोड़कर सभी सीटों पर जीत हासिल की. इन सभी राज्यों में बीजेपी के पास आगे जाने का एक ही रास्ता है: नीचे. अगर वह हर एक में चंद सीटें भी गंवा देती है, तो कुछ मिलाकर वह अपना बहुमत खो देगी, जो कि केवल 32 सीटों का है.
और इसकी भरपूर संभावना है कि ऐसा होगा. आखिरकार 2019 में, बीजेपी को कश्मीर में एक फौजी काफिले पर आतंकवादी हमले से बड़ी बढ़त मिली थी, जो पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद द्वारा मतदान से कुछ महीने पहले किया गया था. इस समय भारतीय मतदाताओं में जोश भरने वाली ऐसी कोई घटना नहीं होने की वजह से, बीजेपी पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद नहीं कर सकती है.
जनता बीजेपी के खोखले वादों से तंग आ चुकी है और विपक्ष नए आत्मविश्वास से लबरेज है. माहौल में बदलाव की महक है.
[शशि थरूर, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अंडर-सेक्रेटरी जनरल और भारत के विदेश राज्य मंत्री और मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रह चुके हैं. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सांसद हैं. हाल ही में प्रकाशित Ambedkar: A Life (अलेफ बुक कंपनी, 2022) के लेखक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इसके लिए जिम्मेदार नहीं है.]
(यह टिप्पणी मूल रूप से प्रोजेक्ट सिंडिकेट में छपी थी और इसे द क्विंट के सहयोग से पुनः प्रकाशित किया गया है. मूल लेख यहां पढ़ें.)
(द क्विंट में, हम केवल अपने दर्शकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच्चाई इसके लायक है.)
(द क्विंट में, हम केवल अपने दर्शकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच्चाई इसके लायक है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 10 May 2024,10:21 AM IST