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बिहार में लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के लिए सोशल इंजीनियरिंग की अग्निपरीक्षा के समान होगा. दरअसल, इस चरण में सूबे के भागलपुर और पूर्णिया कमिश्नरी की पांच सीटों पर मतदान होना है. इस दौर में आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन के लिए “MY” (मुस्लिम-यादव) समीकरण को एकजुट रखना बड़ी चुनौती होगा. वहीं, नीतीश कुमार की जेडीयू को अपनी सहयोगी बीजेपी के वोटर्स को जोड़ने में भी खासी मेहनत करनी पड़ रही है.
बिहार में इस चरण में बांका, भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज की सीटों पर मतदान होगा. इनमें से भागलपुर और बांका पर इस वक्त आरजेडी का कब्जा है. वहीं, बीते चुनाव में किशनगंज से कांग्रेस और कटिहार से एनसीपी के तारिक अनवर को जीत मिली थी. अकेले पूर्णिया में जेडीयू में अपना परचम लहराया था.
एनडीए के लिए भागलपुर की राह आसान नहीं होने वाली है. दरअसल, 2014 में ‘मोदी लहर’ के बावजूद आरजेडी के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल ने बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को करीब 9,000 वोटों से शिकस्त दी थी. इस बार बीजेपी ने यह सीट जेडीयू को दे दी है. आरजेडी के समर्थक समझे जाने वाले गंगोता जाति के मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने के लिए जेडीयू ने इस बार अजय मंडल को टिकट दिया है.
बुलो मंडल भी इसी जाति से आते हैं. हालांकि, जेडीयू नेताओं की मानें तो यहां सबसे ज्यादा दिक्कत उन्हें बीजेपी कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता को लेकर हो रही है. बीजेपी कैडर को मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, झारखंड के गोड्डा जिले के सांसद निशिकांत दूबे तक यहां रैलियां कर चुके हैं.
वहीं, आरजेडी के बुलो मंडल के लिए भी राह बिल्कुल आसान नहीं होने वाली है. इस बार गंगोता मतदाताओं को एकजुट रखने के लिए उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है. वहीं, यादव मतदाताओं को लुभाने के लिए भी लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव यहां आधे दर्जन से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं. इसके अलावा, मुस्लिम मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लाने में भी आरजेडी कार्यकर्ताओं ने पूरी ताकत झोंक दी है.
कभी समाजवादी मधु लिमये को लोकसभा भेजने वाले बांका में इस बार त्रिकोणीय संघर्ष है. आजेडी के मौजूदा जयप्रकाश नारायण के सामने जेडीयू ने विधायक गिरिधारी यादव को मैदान में उतारा था. हालांकि, टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व सांसद पुतुल देवी भी निदर्लीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी समर में कूद पड़ीं. वैसे तो बीजेपी ने इस बगावत के लिए पुतुल देवी को 6 सालों के लिए पार्टी निकाल दिया है, लेकिन चुनाव प्रचार में पुतुल देवी खुलकर नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रही हैं. इससे एनडीए के लिए परेशानी बढ़ गई है.
इस बार कटिहार में महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर है. मुस्लिम और यादव बहुल इस सीट पर 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस ने तारिक अनवर पर दांव खेला है, जबकि जेडीयू ने दुलालचंद्र गोस्वामी को उतारा है. भागलपुर की तरह कटिहार में भी जेडीयू को अपनी सहयोगी बीजेपी के कार्यकर्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, अपना टिकट से नाराज बीजेपी के विधान पार्षद (एमएलसी) अशोक अग्रवाल को मानने में भगवा पार्टी को नाकों चने चबाने पड़ गए थे. हालांकि, बगावत तो शांत हो गई, लेकिन पार्टी कैडर में गुस्सा अब भी बरकरार है.
पूर्णिया में लगातार दूसरी बार उदय सिंह और संतोष कुशवाहा के बीच मुकाबला है. हालांकि, इस बार उदय सिंह काग्रेस की ओर से दावेदारी ठोंक रहे हैं, वहीं जेडीयू के संतोष कुशवाहा ने अपनी सीट बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह के छोटे भाई उदय सिंह इस लोकसभा चुनाव में बिहार के सबसे अमीर प्रत्याशी हैं. सिंह के चुनावी हलफनामे के मुताबिक उनके पास करीब 341 करोड़ रुपये की चल और अचल संपत्ति है.
वह इलाके के करीब सवा लाख राजपूत मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. साथ ही, उन्हें पूर्णिया सीट पर करीब 6 लाख अल्पसंख्यक मतदाताओं के समर्थन का भी भरोसा है. वहीं, संतोष कुशवाहा ने भी पूरी ताकत झोंक दी है. कुशवाहा को मोदी और नीतीश के नाम घूम-घूम कर वोट मांग रहे हैं. साथ ही, उन्हें कुर्मी, कुशवाहा और दूसरी पिछड़ी और अति-पिछड़ी जातियों के साथ का भी भरोसा है.
पूर्वोत्तर का गेटवे कहने जाने वाले किशनगंज में इस बार महागठबंधन और एनडीए के बीच दिलचस्प लड़ाई है. इस बार दोनों तरफ से मुस्लिम चेहरे ही अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. करीब 70 फीसदी मतदाता होने की वजह से इस सीट पर मुस्लिम ही जीत और हार तय करते हैं. 2014 के चुनाव में मौलाना असरारुल हक कासमी ने बीजेपी के दिलीप जायसवाल को 2 लाख वोट से हराया था.
(निहारिका पटना की जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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