मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गोरखपुर: योगी की ‘हिन्दू वाहिनी’ का भूत यूपी के सीएम को सता रहा है

गोरखपुर: योगी की ‘हिन्दू वाहिनी’ का भूत यूपी के सीएम को सता रहा है

सौरव विश्वनाथ बीजेपी कॉरपोरेटर होने के बावजूद खुलकर योगी आदित्यनाथ का विरोध कर रहे हैं

अनंत जनाने
नजरिया
Published:
आदित्यनाथ ने वाहिनी कार्यकर्ताओं को फिर से एकजुट किया है, लेकिन पहले से कम आक्रामक छवि के साथ
i
आदित्यनाथ ने वाहिनी कार्यकर्ताओं को फिर से एकजुट किया है, लेकिन पहले से कम आक्रामक छवि के साथ
(फोटो: क्विंट)

advertisement

34 साल के सौरभ विश्वकर्मा बीजेपी के नेता हैं और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में वार्ड नम्बर-63 के पार्षद हैं. करीब 3000 वोटरों वाला उनका वार्ड गोरखनाथ मठ का कट्टर विरोधी है, जिस मठ की अगुवाई उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करते हैं.

इस आर्टिकल को सुनने के लिए नीचे क्लिक करें

सौरव विश्वनाथ (बाएं से चौथे) बीजेपी पार्षद होने के बावजूद खुलकर योगी आदित्यनाथ का विरोध कर रहे हैं. ये तस्वीर दिसम्बर 2017 की है, जिसमें वो पार्षद के सर्टिफिकेट के साथ दिख रहे हैं(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

विश्वकर्मा सिर्फ 15 साल के थे, जब वो हिन्दू युवा वाहिनी में शामिल हुए. इस वाहिनी को आदित्यनाथ की निजी सेना कह सकते हैं. तीन बार के बीजेपी पार्षद विश्वकर्मा 2017 में आदित्यनाथ के कट्टर विरोध के बावजूद बीजेपी के टिकट पर दोबारा पार्षद चुने गए. योगी आदित्यनाथ ने उनके सिर पर 25,000 रुपये का इनाम रखा है.

विश्वकर्मा अब भी बीजेपी के सदस्य हैं. उनका कहना है, “सरकार और उन्होंने (आदित्यनाथ ने) मुझपर गंभीर गैंगस्टर एक्ट लगाया और मेरे सिर पर इनाम का ऐलान किया... ये जानते हुए कि वो मेरा एनकाउंटर करवा देंगे, मैं उनका साथ कैसे दे सकता हूं?”

चंदन विश्वकर्मा 2007 में गोरखपुर के दंगों में लगी चोट और बुलेट के निशान दिखाते हुए(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

सौरभ के छोटे भाई चंदन भी हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्य थे. वो अपने बाएं पैर में बुलेट के निशान और बांह पर तलवार के निशान दिखाते हैं. 2007 में हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्य के तौर पर उन्होंने गोरखपुर के दंगों में तोड़फोड़ की थी, जिस दौरान उन्हें ये चोटें लगीं. उस दौरान निषेधाज्ञा तोड़ने के आरोप में आदित्यनाथ को चौदह दिन की गिरफ्तारी झेलनी पड़ी थी.

मैंने उनके लिए गोलियां खाईं और उन्होंने मुझे हत्या और हत्या की कोशिश के 54 मामलों में फंसा दिया. पिछले साल गंभीर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) के तहत गिरफ्तार कर मुझे नौ महीनों के लिए जेल भेज दिया गया.
चंदन
नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत गोरखपुर मेंगिरफ्तार सुनील सिंह(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

सौरभ और चंदन दोनों को सुनील सिंह ने वाहिनी में भर्ती किया था, जो आदित्यनाथ की निजी सेना’ कहे जाने वाले और दक्षिणपंथी संगठन के संस्थापक हैं. आदित्यनाथ की सेना के पैदल सिपाही के रूप में उनका काम गॉडमैन का राजनीतिक महिमामंडन करना और हिन्दुत्व के असली रहनुमा के तौर पर उन्हें पूर्वांचल में बीजेपी से अलग ताकत के रूप में पेश करना था.

वफादारी का कर्ज, बगावत की कीमत

आरोप है कि उन्होंने गोरक्षा के नाम पर लोगों को डराने का अभियान, मुस्लिम-विरोधी भावनाओं को भड़काने और हिन्दुओं को किसी भी उत्पीड़न से बचाने का बीड़ा उठाया था.

18 सालों से आदित्यनाथ के साथ साए की तरह चिपके सुनील सिंह उनके सबसे वफादार सेवक थे. पुरानी तस्वीरों की बदौलत वो साबित करते हैं कि एक समय किस तरह वो आदित्यनाथ के लिए समर्पित थे. तस्वीरों में वो हमेशा आदित्यनाथ के बगल में दिखते हैं.

योगी आदित्यनाथ के पीछे खड़े (भगवा नेहरू जैकेट में) सुनील सिंह. 2017 में मतभेद से पहले सिंह, योगी के सबसे करीबी और वफादार हुआ करते थे(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

लेकिन 2017 में ‘गुरु-चेला’ के रिश्तों में कड़वाहट आ गई. सिंह के गुरु ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए हिन्दू युवा वाहिनी के नेताओं को टिकट देने से इंकार कर दिया, जिसके संचालक सिंह हुआ करते थे.

सिंह ने बगावत कर दी, जिसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी. आदित्यनाथ के कहने पर उन्हें वाहिनी से निकाल दिया गया और उन्होंने शून्य से एक नई शुरुआत की.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

महंत के सबसे करीबी सर्किल से बाहर होने के बाद उन्होंने बदला लेने की ठानी. मई 2018 में लखनऊ में आदित्यनाथ के सरकारी आवास के बाहर भारी प्रदर्शन के बाद उन्होंने एक समानान्तर सेना का गठन किया, जिसका नाम हिन्दू युवा वाहिनी (भारत) था.

इसके तीन महीने बाद अगस्त महीने में सिंह और उनके नए गुट के 12 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर सोशल मीडिया पर आदित्यनाथ के समर्थकों को धमकाने के आरोप लगे. उन्हें नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर नौ महीने के लिए जेल भेज दिया गया.

सुनील सिंह (आदित्यनाथ के दाहिनी ओर) गोरखपुर में बाढ़ का जायज़ा लेते हुए. सिंह का कहना है कि उन्होंने अपनी युवावस्था आदित्यनाथ की ब्रांडिंग करने में बिता दी(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

इस साल के शुरू में रिहा होने के बाद जब सिंह गोरखपुर पहुंचे तो हजारों लोगों की भीड़ ने उनका स्वागत किया. वो शहर में 100 SUV गाड़ियों के काफिले के साथ दाखिल हुए और संकेत दे दिया कि 2019 के चुनाव में बीजेपी के गढ़ में कितनी बड़ी सेंध लगा सकते हैं.

बीजेपी को चेतावनी देते हुए सिंह ने कहा कि आदित्यनाथ लोकसभा चुनाव में पार्टी के भस्मासुर साबित होंगे. भस्मासुर वो पौराणिक दानव है, जिसके बारे में कहा जाता था कि वो जिसपर भी हाथ रखता था, वो राख हो जाता था.

सिंह ने बताया कि किस प्रकार आदित्यनाथ, हिन्दू वाहिनी सेना का इस्तेमाल सीनियर बीजेपी नेताओं को नुकसान पहुंचाने के लिए भी करते थे. किस प्रकार उन्होंने उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही और रमापति राम त्रिपाठी जैसे नेताओं को चुनाव में नुकसान पहुंचाया.

हिन्दुत्व के प्रचार के अलावा वाहिनी का काम उस सोच को भी बढ़ावा देना था, जिसके मुताबिक, “पूर्वांचल में बीजेपी यानी आदित्यनाथ और आदित्यनाथ यानी बीजेपी” था.

और अब, जब बीजेपी का गोरखपुर गढ़ टूट गया है, सिंह आरोप लगा रहे हैं कि आदित्यनाथ ने महागठबंधन के सामने घुटने टेक दिये हैं.

आदित्यनाथ को बीजेपी में अपना प्रतिद्वंदी पैदा होने का डर है. वो बीजेपी को बताना चाहते हैं कि गोरखपुर में बीजेपी का झंडा सिर्फ वही बुलंद रख सकते हैं.
सुनील सिंह

आदित्यनाथ के दिये चोट से तिलमिलाए सिंह, गोरखपुर में बीजेपी के लिए असली राजनीतिक रुकावट पैदा करना चाहते हैं, जो 2019 के चुनाव में बीजेपी के लिए इज्जत का सवाल है.

अपमानजनक हार के बाद गोरखपुर में फिर से पैठ बनाना आदित्यनाथ के लिए नाक का सवाल है. उत्तर प्रदेश में उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी इसी पर निर्भर करती है.
सुनील सिंह

तेरह हजार हिन्दू युवा वाहिनी का कैडर तैयार करने वाले सिंह अब आदित्नाथ की सेना को उनके खिलाफ उतारना चाहते हैं.

‘बीजेपी की हार तय करूंगा’

एक हजार से ज्यादा समर्थकों के साथ 27 अप्रैल को सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन भरा. उन्होंने आरोप लगाया कि आदित्यनाथ ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिली भगत कर ‘तकनीकी आधार पर’ उनका नामांकन रद्द करा दिया, जबकि उसी आधार पर कई दूसरे उम्मीदवारों के नामांकन रद्द नहीं हुए.

बीजेपी के कई लोग उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर बताते हैं. ऐसे लोगों को उनका जवाब है, “मैं आदित्यनाथ के साथ 22 सालों तक रहा. जितना मैं उन्हें जानता हूं, कोई नहीं जानता. अगर उन्हें लगता कि मैं सिर्फ 5000 वोट लगा सकता हूं, तो वो मेरा नामांकन रद्द क्यों कराते? मुझे लड़ने देते. कम से कम उससे मुझे पता चल जाता कि मैं कितने पानी में हूं. अगर मुझे सिर्फ 5000 वोट मिलते तो मैं राजनीतिक रूप से हमेशा के लिए खत्म हो जाता.”

इस बीच सिंह ने नामांकन रद्द करने को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी है. उनकी चेतावनी है, “मैंने गोरखपुर में आदित्यनाथ के लिए चार बार चुनाव मैनेज किया है. मैं जानता हूं कि वो कैसे जीतते थे. अगर हम जीत नहीं सकते तो जीतने भी नहीं देंगे (बीजेपी को).”

सिंह को गोरखपुर में अपनी वाहिनी के तेरह हजार कैडर के जरिये उम्मीद है कि वो बीजेपी के कम से कम पचास हजार वोट काट सकते हैं. ये एक ऐसी सीट है जहां हर पार्टी के लिए जाति और वोट-बैंक का जोड़-तोड़ मायने रखता है.

अगर वो इससे आधा वोट भी काटते हैं, तो बीजेपी को भारी नुकसान पहुंच सकता है. ये नुकसान एक ऐसी सीट पर होगा, जहां 2017 के उपचुनाव में पार्टी बीस हजार वोटों से हारी थी.

सवाल है कि अगर बीजेपी को नहीं, तो सिंह इस चुनाव में किसे समर्थन देंगे? खासकर जब वो खुद उम्मीदवार नहीं हैं, तो उनका कहना है कि “वो महागठबंधन के पक्ष में वोट ट्रान्सफर करेंगे.”

सिंह का दावा है कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद गोरखपुर में आदित्यनाथ का कद घटा है. क्योंकि उनके कारण हिन्दू युवा वाहिनी में टूट हुई. वो 2017 के निकाय चुनावों का उदाहरण देते हैं, जिसमें नादिरा से एक निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवार की जीत हुई. आदित्यनाथ का वोट इसी पोलिंग सेंटर पर पड़ता है.

सौरव विश्वकर्मा, दिसम्बर 2017 में गोरखपुर म्यूनिसिपल चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में प्रचार करते हुए. ये तस्वीर उनके योगी आदित्यनाथ से अलग होने के बाद की है(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

इस बीच आदित्यनाथ ने वाहिनी कार्यकर्ताओं को फिर से एकजुट किया है, लेकिन पहले से कम आक्रामक छवि के साथ. उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री के करीबी पीके मल ‘सुधारवादी’ हिन्दू युवा वाहिनी गुट की अगुवाई कर रहे हैं. उनका कहना है कि “अब ये एक सामाजिक और राजनीतिक संगठन है, जिसका मकसद गोरखपुर की जनता के हितों के लिए कार्य करना है.”

उनका कैडर पहले से अनुशासित है और मुख्यमंत्री के साथ सेल्फी लेने के लिए उत्सुक नहीं रहता. वो पर्दे के पीछे रहकर सामाजिक कार्य करता है, मसलन, रक्तदान कैम्प का आयोजन और स्थानीय अस्पतालों में खाना बांटना.

‘एक्सिडेंटल चीफ मिनिस्टर’

बचे-खुचे कार्यकर्ताओं को अनुशासित करने के बारे में सिंह कहते हैं, “आदित्यनाथ को (बीजेपी अध्यक्ष) अमित शाह ने कहा कि ‘अगर आपके पास एक निजी सेना या संगठन है, केशव प्रसाद मौर्य (अब उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री) के पास है, वरुण गांधी के पास है, फिर तो चल चुकी बीजेपी’.”

जब मुख्यमंत्री की कुर्सी भीख में मिलती है, तो लोग ऐसी ही शर्तें लादते हैं. उन्होंने आदित्यनाथ को कुर्सी दी और वो इसे हटा भी सकते हैं. उनका कोई भविष्य नहीं, क्योंकि वो एक एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर हैं.
सुनील सिंह
सुनील सिंह आजमगढ़ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलकर उनसे बीजेपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को वोट देने की अपील कर रहे हैं(फोटो: अनंत जनाने के स्रोत से)

सिंह अब पूरे पूर्वांचल की यात्रा पर हैं. वाराणसी जाते हुए वो अचानक आजमगढ़ में रुके और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को वोट देने की अपील की. वाराणसी में वाहिनी के लगभग 300 सक्रिय कार्यकर्ता हैं.

वाराणसी में जैसे ही वो एक शादी में शामिल पहुंचे, उन्हें वाहिनी के पूर्व सदस्यों ने घेर लिया, जो अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक सदस्य ने कहा, “बाबाजी (आदित्यनाथ) अपनी साख खो चुके हैं.”

चंदन जैसे कई सदस्य वाराणसी में वाहिनी और उसके एजेंडे को जिन्दा रखे हुए हैं. चंदन का कहना है, “हम महंत आदित्यनाथ को कहीं नहीं पाते. वो मुख्यमंत्री के रूप में बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.”

क्या सिंह वास्तव में बीजेपी को गोरखपुर में नुकसान पहुंचा सकते हैं?

गोरखपुर के स्वतंत्र पत्रकार मनोज सिंह ने करीब दो दशकों तक हिन्दू युवा वाहिनी को नजदीक से देखा है. उनका कहना है, “सिंह की बगावत मायने रखती है. गोरखपुर में वाहिनी के किसी मौजूदा या पुराने सदस्य का खुलकर बगावत करना, जेल जाना और रिहा होने के बाद फिर से बगावत का झंडा बुलंद करना काफी मुश्किल भरा काम है. ये इकलौता मामला है, जब आदित्यनाथ के सबसे करीबी ने खुलकर उनके खिलाफ बगावत की है.”

“उनके (सिंह के) एक आह्वान पर बैठक में भाग लेने एक हजार लोग पहुंच जाते हैं. वो वाहिनी के संस्थापक थे. आदित्यनाथ से अलग होने के बावजूद जिन लोगों को उन्होंने भर्ती किया था, उनकी कुछ वफादारी उनके साथ बनी हुई है. सिंह इस चुनाव में एक खतरा थे. अगर वो चुनाव में खड़े होते और कुछेक हजार वोट ले आते तो उनका और उनके गुट का कद बढ़ता. अब चाहे जिस वजह से उनकी उम्मीदवारी रद्द हुई हो, लोगों का मानना है कि आदित्यनाथ ने उन्हें खतरे के रूप में देखा और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. आखिरकार एक वक्त वो मुख्यमंत्री के सबसे वफादार थे और अब खुलकर उन्हें चुनौती दे रहे हैं”
मनोज सिंह

(अनंत जनाने उत्तर प्रदेश के पत्रकार हैं. वो एक दशक से अधिक समय तक NDTV के साथ जुड़े थे. उन्हें @anantzanane. पर ट्वीट किया जा सकता है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT