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विदेश मंत्रालय की ओर से एक और जीत दर्ज करने का दावा किया गया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अब्दुल रहमान मक्की (Abdul Rehman Makki) को औपचारिक तौर पर वैश्विक आतंकवादी के रूप में नॉमिनेट किया है. यह चौंकाने वाली बात इसलिए है क्योंकि मक्की को वैश्विक आतंकी घोषित करने के मुद्दे पर चीन हमेशा से अड़ंगा लगाता आ रहा था, लेकिन अब चीन ने इससे 'हाथ पीछे खींच' लिया है और इस तरह से मक्की पर शिकंजा कस गया है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस कदम से भारतीय राजनयिकों को खुश होने की उचित वजह मिल गई है. हालांकि, इस कदम से कई आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञ भी खुश होंगे. आखिरकार, मक्की लश्कर ए तैयबा (एलईटी) का डिप्टी अमीर है, जिसने मुंबई हमलों को अंजाम दिया और अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियाई, फ्रेंच, जापानी, जर्मन, इतालवी और इजरायली नागरिकों को मार डाला. वहीं इसके ऑपरेशन्स ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्व एशिया, हेग और अमेरिका तक फैल गए हैं. ऐसे में यह जीत का अहसास है. लेकिन यह कहानी का अंत नहीं है, अभी तो बस शुरुआत है.
अब्दुल रहमान मक्की का जन्म 1954 में बहावलपुर में हुआ था, वह विशेष रूप से अमीर यानी हाफ़िज सईद के बाद लश्कर का बेहद शक्तिशाली सेकंड-इन-कमांड है. हालिया वर्षों में सार्वजनिक रूप से अधिक दिखाई देने के लिए हाफ़िज सईद बहुत कुख्यात हो गया और उसे ऑपरेशनल कंट्रोल अपने बहनोई को सौंपना पड़े.
कुछ टकराव भी देखने को मिले जैसे कि भारत की सार्वजनिक निंदा के बाद सईद ने मक्की को सावधानी बरतने की सलाह दी, जबकि मक्की आगे बढ़ने के पक्ष में था. वह लश्कर के ट्रेनिंग कैंप को 2 लाख 48 हजार यूएस डॉलर और लश्कर से संबद्ध मदरसे को लगभग 1 लाख 65 हजार यूएस डॉलर की फंडिंग की भी आलोचना करता था.
2012 में सईद अमेरिकी दूतावास के पास एक सार्वजनिक सभा में जानबूझकर वाशिंगटन पर ताना मारते हुए दिखाई दिया था, उसके बाद से वह दिखाई नहीं दिया. वह पर्दे के पीछे से ही ऑपरेशन कंट्रोल कर रहा है. इतने वर्षों में किसी ने भी उस इनाम पर दावा नहीं किया. जाहिर है कि जिस तरह से पाकिस्तानी सरकार उसे सरंक्षण देती रही और जिस तरह से नेता उसके पीछे-पीछे चलते रहे लोगों ने यही सोचा कि इनाम हासिल करने से बेहतर है जिंदा रहना.
मक्की को 'अक्सर' गिरफ्तार किया गया, हालांकि वह अपने घर में ही रहा और बिना किसी रोक-टोक के लश्कर कमांडरों से मुलाकात की. 2020 में मक्की और उसके सहयोगी अब्दुस सलाम की एक साल की सजा को भी लाहौर की एक आतंकवाद-रोधी अदालत ने रोक दी और उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए और जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए.
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) एक मल्टीनेशनल निकाय है, जिसे आतंकवादियों की फंडिंग (terrorist finance) को खत्म करने का काम सौंपा गया है. इस निकाय के दबाव में कोर्ट ने 2020 में दोनों को दो मामलों में 16 वर्ष की सजा सुनाई. चूंकि यह सब कड़ी सुरक्षा के बीच हो रहा है, इसलिए कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि मक्की जेल में है या नहीं. आखिरकार प्रमुख आतंकवादी मास्टरमाइंड साजिद मीर को वर्षों तक मृत घोषित करने के बाद अब अचानक से यह घोषणा की गई कि उसे जेल में डाल दिया गया है. इसको लेकर संबंधित विभाग द्वारा कभी भी कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं की गई है.
पाकिस्तान में पुरातन कानूनों और एक जटिल प्रणाली द्वारा 'दोष सिद्धि' का निर्धारण किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी प्राधिकरण का बहुत कम दबदबा है, यहां तक कि देश की पुलिस का भी दबदबा नहीं है. वहां सेना ही है, जो फैसले लेती है.
इसके बाद भी, पाकिस्तान की बच निकलने की तरकीबें हैरत में डालने वाली हैं. संयुक्त राष्ट्र में इसने आतंकवाद पर प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जताई है. उदाहरण के तौर पर इसने संयुक्त राष्ट्र में "आंतकवादी बमबारी के दमन" सम्मेलन का विरोध किया था. इसने यह कहते हुए विरोध किया था कि यह "आत्मनिर्णय के अधिकार की प्राप्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष सहित तमाम संघर्षों" पर लागू नहीं हो सकता. ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी और लगभग हर सभी देश के विचार में यह 'कन्वेंशन के पत्र' उल्लंघन था.
पाकिस्तान ने 2009 में अपनी आपत्ति को बरकरार रखते हुए इसे स्वीकार किया. भारत ने लगभग दस साल पहले इस पर हस्ताक्षर किए थे. इसी तरह का रवैया संयुक्त राष्ट्र के आतंकवादी वित्त के दमन पर आयोजित सम्मेलन को लेकर भी देखा गया था. तब उसने इस्लामाबाद के राजनयिकों के प्रत्यर्पण पर आपत्ति जताई थी और अपने स्वयं के घरेलू कानून की प्रधानता पर जोर दिया था. इसकी वजह से जापानी प्रतिनिधिमंडल द्वारा यह विरोध किया गया कि 'इनकी मांगें सम्मेलन के प्रायोजन और उद्देश्यों के साथ मेल नहीं खाती हैं'.
इसी तरह विरोध करते हुए नीदरलैंड ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान की प्रतिबद्धता पर चिंता व्यक्त की, उसने कहा कि "इसकी सामग्री को निर्दिष्ट किए बिना राष्ट्रीय कानून का एक सामान्य संदर्भ स्पष्ट रूप से दूसरों को परिभाषित नहीं करता है ....इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान खुद को कन्वेंशन के दायित्वों से किस हद तक बाध्य मानता है."
2013 तक नेशनल असेंबली ने अपने आतंकवाद विरोधी अधिनियम 1997 (एटीए) में संशोधन किया, जिससे कि 'FATF द्वारा उजागर की गई कमियों को दूर किया जा सके'. इसमें एक बाहरी प्रावधान शामिल था जो देश के बाहर पाकिस्तानियों को आतंकवादी फंडिंग कानूनों के दायरे में लाता था और उन प्रक्रियाओं का उल्लेख करता था, जिसके द्वारा अभियोग लगाया जा सकता था और आरोपी संगठन की संपत्तियों को फ्रीज किया जा सकता था.
यह पाकिस्तान की हरकतों की जांच करने वालों को पर्याप्त लग सकता था, लेकिन एक खामी थी. पाकिस्तान की एटीए की धारा 11डी अभियोजन अपील से संबंधित थी और वह एक बार में केवल 6 महीनों के लिए वैध थी. इसलिए किसी भी समय यह स्पष्ट नहीं था कि लश्कर और इसके हथियार अभियोग के अधीन थे या नहीं.
इतने वर्षों में चीन द्वारा इस देश को संरक्षण दिया जाता रहा है, इस तथ्य के बावजूद कि बीजिंग खुद भी पाकिस्तान और पड़ोसी राष्ट्रों में जिहादियों को लेकर आशंकित है, विशेषकर अफगानिस्तान में हालिया गोलाबारी के दौरान अपने नागरिकों की हत्या के बाद.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने चीन के फैसले को इस आधार पर सही ठहराया कि मक्की को पाकिस्तान द्वारा 'दोषी ठहराया और सजा' दी गई थी. उनके द्वारा इस कार्य के लिए पाकिस्तान की प्रशंसा की गई. यह काफी हास्यास्पद था. आखिरकार, चीन ने उसके पदनाम (आंतकी टैग) को लेकर जून में तकनीकी अडंगा लगाया था. जिस समय तक, पाकिस्तान के अनुसार वह (मक्की) पहले से ही दो साल से जेल में था.
चीन ने लश्कर और जैश के चार अन्य आतंकवादियों-साजिद मीर, रउफ अशगर, शाहिद महमूद और तलहा सइदाल की स्पष्ट जांच के विभिन्न चरणों में रोक लगा रखी है या हाल ही में अक्टूबर 2021 के आखिरी अडंगे के साथ गिरफ्तारी की सूचना दी है.
वास्तविक आतंकवाद विरोध के मामले में यह टैग आधी बात भी नहीं है. अगर पाकिस्तान ने मक्की और अन्य को 'सजा' दी है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के तहत ये बताना चाहिए कितनी सजा दी है. इसके साथ ही यह भी सामने लाने की आवश्यकता है कि उसका लश्कर और जैश जैसी संस्थाओं के साथ क्या करने वाला है.
आखिरकार, दोनों बातें सही नहीं हो सकतीं. अगर लश्कर नेतृत्व वास्तव में पकड़ा गया है, तो समूह बिखरा हुआ और बिना धार का है और अगर ऐसा नहीं है तो यह अपने आप में इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि कुछ भी नहीं किया गया. ऐसे में समय आ गया है कि महत्वपूर्ण देशों में आतंकवाद विरोधी निकाय एक बार फिर आतंक के इस खतरे को समाप्त करने के लिए एकजुट हो जाएं. जैसा कि पहले देखा गया है और यह सिर्फ शुरुआत होनी चाहिए.
(डॉ. तारा कार्था Institute of Peace and Conflict Studies (IPCS) में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. ये ओपिनियन आर्टिकल है और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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