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तालिबानी आतंक का 'सांप' खुद पाकिस्तान को डंस रहा,क्या अफगानिस्तान पर हमला संभव?

Pakistan के लिए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और दाएश-अफगानिस्तान की नई आतंकी तिकड़ी खतरा

डॉक्टर तारा कार्था
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>तालिबानी आतंक का 'सांप' खुद पाकिस्तान को डंस रहा,क्या अफगानिस्तान पर हमला संभव?</p></div>
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तालिबानी आतंक का 'सांप' खुद पाकिस्तान को डंस रहा,क्या अफगानिस्तान पर हमला संभव?

(Photo- Quint)

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अब ऐसी विडंबना और कहां मिलेगी? पाकिस्तानी अधिकारी से लेकर वहां के तमाम विश्लेषक 'सीमा पार आतंकवाद' के बारे में बात कर रहे हैं और इनकी टिप्पणियों की पाकिस्तानी मीडिया में बाढ़ आ रखी है. हां वे स्वाभाविक रूप से अफगानिस्तान (Afghanistan) से होते हमलों के बारे में बात कर रहे हैं, जो लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं. लेकिन अगर पाकिस्तान (Pakistan) 'सीमा पार आतंकवाद' की आलोचना करे तो क्या इसमें कुछ अलग ही लेबल का डबल स्टैंडर्ड नजर नहीं आता?

तहरीक-ए तालिबान ने पाकिस्तान के कई हमलों से निशाना बनाया है और यहां तक कि इस्लामाबाद भी इनसे सुरक्षित नहीं रह गया है. ऐसे में वहां के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह खान अब जवाबी प्रतिक्रिया की चेतावनी दे रहे हैं. इसका मतलब है कि पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान पर हमला या यहां तक ​​कि एक सैन्य अभियान का भी खतरा है.

सोने पर सुहागा है कि अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने पाकिस्तान को हरी झंडी देते हुए कहा है कि इस्लामाबाद को आतंकवाद के खिलाफ अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है. स्थिति आगे और दिलचस्प हो गई है.

रिपोर्ट सामने आई कि कैसे पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के गढ़ वाले क्षेत्रों में हवाई हमले शुरू करके कथित रूप से जवाबी कार्रवाई की. लेकिन इसे बाद में पाकिस्तानी विदेश कार्यालय ने खारिज कर दिया.

पाकिस्तान में 'घातक' आतंक की स्थिति

पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद निश्चित रूप से और जटिल हो गया है. आंकड़े इशारे कर रहे हैं कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और दाएश-अफगानिस्तान के रूप में नए आतंकी तिकड़ी के उभरने के साथ 2022 पाकिस्तान के सुरक्षा कर्मियों के लिए पिछले एक दशक में सबसे घातक साल के रूप में समाप्त हुआ.

पाकिस्तान ने 2022 में हुए कुल 376 आतंकी हमलों में लगभग 282 सुरक्षाकर्मियों को खोया और इनमे से अकेले 40 की जान दिसंबर में गई. खैबर पख्तूनख्वा (केपी) सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ, जहां मौतों में 108 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.

सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज के डेटा में यह भी कहा गया है कि मारे गए लोगों में से 62 प्रतिशत नागरिक, सरकारी अधिकारी और सुरक्षाकर्मी थे, जबकि केवल 38 फीसदी 'आतंकवादियों, विद्रोहियों और अन्य आउटलॉ' थे. आसान भाषा में कहें तो आतंकवादी बीस साबित हो रहे हैं.

TTP के खिलाफ पाकिस्तान की चेतावनी

स्थिति की गंभीरता देखते हुए, जैसा कि सबको अनुमान था इमरान खान सहित हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ रहने वाले पाकिस्तान के तमाम दलों के नेता राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) की एक बैठक में साथ आए. विडंबना है कि यहां यह संकल्प लिया गया कि" मिलिटेंट पाकिस्तान के दुश्मन हैं" और यह कि "आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ एक मोर्चे पूरा देश एकजुट है".

जाहिर तौर पर इसमें कश्मीर शामिल नहीं है क्योंकि वे उन हिंसक मिलिटेंट्स को तो 'स्वतंत्रता सेनानियों' मानते हैं, जबकि वे भी TTP की तरह ही बंदूक से आम लोगों को मार रहे हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि NSC की बैठक में यह भी कहा कि "पाकिस्तान को चुनौती देने वालों को पूरी ताकत से जवाब मिलेगा".

दूसरे शब्दों में, पाकिस्तान की नागरिक सरकार और विपक्षी नेता वहां की आर्मी को किसी भी एक्शन के लिए आगे बढ़ने की मंजूरी दे रहे हैं. ऐसे में आप याद रखें कि इससे पहले वहां की आर्मी ने 'गैरकानूनी'- तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान/TTP के साथ चुपचाप बातचीत की थी और संसद को बताए बिना युद्धविराम का समझौता किया था.

आखिर में इस युद्धविराम समझौते से कुछ नहीं हुआ, और जिन कट्टर उग्रवादियों को खुला दिल दिखाते हुए रिहा किया गया वे वापस आकर वही करने लगे जिसमें वे सबसे अच्छे थे- यानी आम निर्दोष लोगों को मारना. इस बार सेना फूंक-फूंक कर कदम रखा रखी है. आखिरकार किसी दूसरे देश के संप्रभु क्षेत्र में कोई भी एक्शन लेने को हल्के ढंग से नहीं किया जाना चाहिए।

धमकियों के माहौल में तालिबान पाकिस्तान को नाराज नहीं करना चाहता 

अब फिर से धमकियों का माहौल है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का पहले विडंबना से भरा बयान आया कि किसी भी देश को आतंकवादियों का पनाहगार बनने नहीं दिया जाएगा. इसपर तालिबान ने खुद को बेकसूर करार दिया. इस तरह के शोर-शराबे की धमकियों के सामने यह तालिबान की हल्की प्रतिक्रिया थी.

पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने पहले की तालिबान नीति को दोहराते हुए कहा कि TTP की हिंसा पाकिस्तानी सरकार की नीतियों के कारण है, और उन्होंने पाकिस्तान को इस मामले में "गहरी समीक्षा" और अत्यधिक फोर्स के इस्तेमाल से बचने की नसीहत दी.

हालांकि, काबुल की तालिबानी सरकार ने भी रावलपिंडी को शांत करने की कोशिश की है. कुछ दिनों बाद, यह खुलासा हुआ कि पाकिस्तानी दूतावास पर हमले के लिए जिम्मेदार दाएश आतंकवादियों का एक समूह मारा गया था. जाहिर है, काबुल पाकिस्तान की ओर से सैन्य हमला देखना नहीं चाहता.

TTP ने चेतावनी के साथ जवाब दिया. उसने पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के शीर्ष नेताओं को निशाना बनाने की कसम खाई. खास बात है कि उसने पाकिस्तान की धार्मिक पार्टियों के साथ-साथ इमरान खान की पार्टी को भी अपनी धमकी में बख्श दिया है.

हाल ही में, PTI नेता फवाद चौधरी ने घोषणा की कि इमरान खान "अफगानिस्तान में एकमात्र सम्मानित पाकिस्तानी नेता थे", क्योंकि "उनके हाथ अफगानों के खून से रंगे नहीं थे".

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क्या पाकिस्तान सैन्य हमला करेगा?

पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान में सैन्य हमले की संभावना निश्चित रूप से अधिक है. आखिर पाकिस्तान पहले भी बल प्रयोग कर चुका है. भारत के 'सर्जिकल स्ट्राइक' के तुरंत बाद, पाकिस्तान ने अप्रैल 2022 में अफगानिस्तान में अपने हवाई हमले शुरू किए थे. तब उसके फाइटर प्लेनों ने कुनार और खोस्त में हमले किए, जिसमें बच्चों सहित कम से कम 40 अफगान नागरिक मारे गए.

काबुल आग-बबूला हुआ और उसने पाकिस्तानी राजदूत मंसूर अहमद खान को कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी और कार्यवाहक उप रक्षा मंत्री अल्हाज मुल्ला शिरीन अखुंद के सामने बुलाया.

पाकिस्तान का वह एयर स्ट्राइक आश्चर्यजनक था, क्योंकि तालिबान ने नवंबर 2021 में पहले ही पुष्टि कर दी थी कि वो इस्लामाबाद और TTP के बीच मध्यस्थता कर रहा था. जाहिर है, वह प्रयास नाकाम साबित हुए. एयरस्ट्राइक का TTP पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसलिए अब पाकिस्तान जो भी कार्रवाई करे, वह पिछली बार से जोरदार होनी चाहिए.

इसका मतलब है कि वह शायद बॉर्डर से लगे कैंपो पर हेलीकॉप्टर से हमला करे. इस्लामाबाद भी जमीन पर बड़े पैमाने पर ऑपरेशन कर सकता है, लेकिन भारी पहाड़ी क्षेत्रों में यह मुश्किल साबित होगा. अगर इस्लामाबाद के जेहन में कुछ सामरिक पोजीशन पर कब्जा करने का सीमित उद्देश्य हो तो वह यह विकल्प भी चुन सकता है.

पाकिस्तान के लिए अमेरिका का आतंकवाद-विरोधी सहयोग

अमेरिका अपने आप में एक प्रोत्साहन है. TTP के लीडर्स के खिलाफ उसके अपने ड्रोन हमले - जिसने 2017 में उसके लीडर्स के एक पूरे स्तर को लगभग खत्म कर दिया - ने पाकिस्तान को मिली शांति में भारी योगदान दिया. हालांकि, अब ऐसा नहीं हो सकता है.

इसके अलावा, पाकिस्तान स्पष्ट रूप से आतंकवाद से निपटने में अमेरिका के साथ काम कर रहा है. अफगानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह अभी भी अफगानिस्तान में अमेरिकी ड्रोनों की अनुमति दे रहा है, विशेष रूप से जुलाई में हुए हमले के बाद, जिसमें अयमान अल जवाहारी मारा गया था.

एक नए F-16 फाइटर जेट के रखरखाव पैकेज पर अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि 'प्रस्तावित बिक्री संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों का समर्थन करेगी, पाकिस्तान को चल रहे आतंकवाद विरोधी प्रयासों में अमेरिका और साझेदार बलों के साथ अंतर-क्षमता बनाए रखने की अनुमति देगी."

साफ है कि इस्लामाबाद पर अमेरिका की निर्भरता जारी है, और यह आतंकवाद विरोधी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इस्लामाबाद की सहायता करने के लिए तैयार है. अफगानिस्तान में आतंकवाद के एक घोसले- TTP के निशाने पर पाकिस्तान है. लेकिन अफगानिस्तान के पूरे आतंकी ढांचे को खत्म करना अमेरिकी उद्देश्यों के अनुरूप नहीं है.

पाकिस्तान का यह हमला क्या करेगा? यदि सिराजुद्दीन हक्कानी और उनके साथी TTP या दाएश से निपटने में सक्षम नहीं हुए हैं, तो यह संभावना नहीं है कि पाकिस्तानी सेना बॉर्डर से लगे खास क्षेत्रों को 'सील' करने या किसी को बम से उड़ाने में मदद करने के अलावा और कुछ करेगी.

वास्तव में, ऐसे घमाके से TTP के और अधिक क्रोधित होने की संभावना है. साथ ही बॉर्डर से लगे पाकिस्तानी क्षेत्रों में रहने वाले अफगान भी नाराज होंगे जो पहले से ही पाकिस्ताने खुफिया ऑपरेशन और खतरे के खिलाफ है.

रावलपिंडी के लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति है. अफगानिस्तान में कुछ न करना कोई विकल्प नहीं है जबकि फुल स्केल ऑपरेशन शुरू करने से स्थिति के और खराब होने की संभावना है. इसके अलावा पाकिस्तान के अंदर निराशाजनक आर्थिक स्थिति दिन पर दिन बदतर होती जा रही है.

(डॉ. तारा कार्था Institute of Peace and Conflict Studies (IPCS) में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. ये ओपिनियन आर्टिकल है और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.

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