गुजरात की एक अदालत द्वारा 2019 के मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने और सजा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब संसद के सदस्य नहीं (Rahul Gandhi Disqualified From Lok Sabha) हैं. लोकसभा सचिवालय ने शुक्रवार को इस बाबत आदेश जारी कर दिया. अब ऐसी स्थिति में दो सवाल उठते हैं. एक लीगल और एक पॉलिटिकल.
पहला और सबसे बड़ा सवाल है कि अब आगे टीम राहुल के पास क्या लीगल विकल्प बचा है?
और दूसरा सवाल कि क्या कांग्रेस ने सूरत कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में देर कर दी है?
राहुल गांधी अब आगे क्या कर सकते हैं?
सबसे पहले बात करते हैं कि राहुल गांधी अब आगे क्या कर सकते हैं. सजा सुनाने के साथ सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को जमानत दे दी थी और फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए उनकी सजा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया था. इसके बावजूद अदालत के फैसले ने उनकी सदस्यता को जोखिम में डाल दिया था और अगले ही दिन राहुल गांधी सांसद से पूर्व सांसद हो गए.
दोषसिद्धि के फैसले को चुनौती देने के लिए राहुल गांधी को पहले सूरत सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा, क्योंकि यह CJM कोर्ट के ठीक ऊपर की अदालत है, जिसने उन्हें दोषी ठहराया है. यदि किसी हायर कोर्ट द्वारा फैसला रद्द नहीं किया जाता है या उनके दोषसिद्धि पर स्टे नहीं लगता है, तो राहुल गांधी की सदस्यता बहाल नहीं हो सकेगी. फैसला रद्द नहीं होने की स्थिति में राहुल गांधी को अगले आठ वर्षों तक चुनाव लड़ने की अनुमति भी नहीं दी जाएगी. ऐसे एक बात खास ध्यान रहे कि अगर कोई हायर कोर्ट सिर्फ उनकी सजा पर स्टे लगाती है तो ऐसी स्थिति में उनकी सदस्यता बहाल नहीं होगी. राहुल के लिए जरूरी है कि उनकी दोषसिद्धि का आदेश रद्द हो या उसपर स्टे लगे.
अब जब राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी गई है, वो लोकसभा सचिवालय के फैसले को भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं. राहुल गांधी उचित प्रक्रिया का पालन न करने या अन्य समान आधारों का हवाला देते हुए अयोग्यता नोटिस को हाई कोर्ट में आर्टिकल 226 के तहत या सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 32 के तहत चुनौती दे सकते हैं.
क्या टीम राहुल ने देर कर दी?
अब दूसरा सवाल. क्या राहुल गांधी और टीम कांग्रेस ने सूरत कोर्ट के फैसले को इसी हायर कोर्ट में चुनौती देने में देर कर दी. फैसला गुरुवार 23 मार्च को ही आ गया था और लोकसभा सचिवालय ने एक दिन बाद सदस्यता रद्द की. इसके बीच के राहुल गांधी के पास आगे एक्शन लेने के लिए पूरा एक दिन का समय था.
लेकिन इस मोर्चे पर टीम राहुल पर सवाल उठाने से पहले हमें कई बातों का ख्याल रखना चाहिए.
असल में एक अपील दर्ज करने के लिए एक दिन बहुत कम समय होता है और इसमें अलग-अलग फैक्टर्स शामिल होते हैं. जैसे कोर्ट का ऑर्डर तो दिन में आ गया था, लेकिन टीम राहुल को कितने बजे वो ऑर्डर कॉपी मिली? उसके बाद में उनकी टीम को ऑर्डर एनालिसिस कर के अपना एप्लीकेशन ड्राफ्ट करने में कितना टाइम लगा? ध्यान दे की एप्लीकेशन बहुत सोच-विचार के साथ लिखी जाती है, ताकि केस में कोई कमजोरी ना रह जाए. साथ ही अगर राहुल अपील दर्ज कर भी देते अभी तक, तो क्या उनको तत्काल सेशन कोर्ट से स्टे ऑर्डर मिल जाता? इसकी संभावना बहुत कम है. और जब तक स्टे ऑर्डर नहीं मिलता, तब तक राहुल के लिए डिसक्वालिफिकेशन का डर बना रहता.
जिस तरह एक एकजुट होकर विपक्ष हमलावर है, और केजरीवाल-ममता जैसे दूर-दूर रहने वाले विरोधी नेता भी साथ आ रहे हैं, एक सवाल यह भी उठता है कि क्या सांसदी जाना राहुल के लिए आपदा में अवसर साबित हो रहा है?
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