मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019RSS नाखुश है! क्योंकि देश के कुछ समुदाय खुद को हिंदू कहलाना पसंद नहीं करते

RSS नाखुश है! क्योंकि देश के कुछ समुदाय खुद को हिंदू कहलाना पसंद नहीं करते

कुछ समुदाय, जिन्हें जनगणना में हिंदू बताया गया है, वो अपने लिए अलग स्टेटस की मांग कर रहे हैं.

तेजस हरद
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>आरएसएस&nbsp;</p></div>
i

आरएसएस 

फोटो- क्विंट

advertisement

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) RSS ने 12 मार्च को अपनी वार्षिक रिपोर्ट (Annual Report) जारी की, जिसमें उसने चिंता जताई है कि "जैसे-जैसे जनगणना का साल करीब आ रहा है, एक समुदाय को उकसाने और उनमें ये बात फैलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं कि ‘वे हिंदू नहीं हैं"

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदुओं की जनसंख्या करीब एक अरब है. इस तरह आबादी के हिसाब से ईसाई और इस्लाम के बाद हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म बन जाता है, हालांकि, इस नंबर पर सवाल उठते रहे हैं. जुलाई 2021 में एक पत्रकार दिलीप मंडल , जिनको सोशल मीडिया पर बहुत लोग फॉलो करते हैं, ने हिंदी में ट्वीट किया

“अगर आदिवासी हिंदू थे, फिर पिछले हजारों साल में हुए सभी शंकराचार्यों में से कम से कम एक शंकराचार्य तो आदिवासी हुए होते. कम से कम एक भी मंदिर में आदिवासी पुरोहित होते. धार्मिक जगहों पर आदिवासी कहां हैं ? राम मंदिर ट्र्स्ट में आदिवासी कहां हैं?”
पत्रकार दिलीप मंडल

‘हिंदू पहचान’ की चुनौती

‘हिंदू कौन है’ सवाल का जवाब खोजना आसान नहीं है.. जहां मीडिया और राजनेता इस टर्म को खुलकर बिना सवाल किए भरपूर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन भारतीय इतिहास के विद्वान, समाजशास्त्री औऱ मानव विज्ञानी पिछले 2 सदी से लगातार हिंदू शब्द की एक सर्वसम्मत परिभाषा देने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

कुछ समुदाय जिन्हें जनगणना में हिंदू बताया गया है, उन्होंने भी इस नामकरण को चुनौती दी है. और अपने लिए अलग स्टेटस की मांग कर रही हैं. उनमें से सबसे प्रमुख आदिवासी हैं.

बिहार के आदिवासी एक्टिविस्ट महेंद्र ध्रुवा, ने 'THE WIRE' से कहा कि जनगणना फॉर्म में धर्म वाले कॉलम में सिर्फ 6 विकल्प दिए गए हैं. – हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख. . “ अगर हम ये मानें कि हम इनमें से किसी धर्म में नहीं आते हैं तो सवाल है कि हम कौन सा विकल्प चुनें? साल 2011 से पहले एक ‘अन्य’ का विकल्प रहता था जिसे हम लोग चुनते थे लेकिन अब इसे हटा दिया गया है ..

कर्नाटक के लिंगायत भी लंबे समय से अपनी आस्था और प्रथाओं के लिए अलग धार्मिक पहचान की मांग करते रहे हैं.. जहां कर्नाटक सरकार ने साल 2018 में इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया. लेकिन आखिरी फैसला केंद्र सरकार को ही लेना है क्योंकि जनगणना की पूरी जिम्मेवारी केंद्र पर ही है.

इसके अलावा जो एक चुनौती है, वो अंबेडकरवादी आंदोलन से आती है, खासकर हिंदू पहचान के खिलाफ खुद अंबेडकर ने भी काफी लिखा था. अंबेडकर लिखते हैं.

हिंदू खुद एक विदेशी नाम

‘हिंदू समाज ‘की बात एक झूठ है और सबसे पहले इस बात को मंजूर किया जाना चाहिए. हिंदू नाम ही खुद में विदेशी नाम है. ये मुसलमानों ने दिया था ताकि वो खुद को यहां के स्थानीय लोगों से अलग कर सकें. मुसलमानों के आक्रमण से पहले कहीं भी संस्कृत में इसका जिक्र नहीं है। उनको एक कॉमन नाम की जरूरत महसूस ही नहीं हुई. क्योंकि उनको एक समुदाय के तौर पर होने की कोई अवधारणा नहीं थी. हिंदू समाज जैसा कुछ हकीकत में था ही नहीं . ये सिर्फ जातियों का समूह है.”

दो और हालिया उदाहरण जो अंबेडकर की पंरपरा की लेखनी के हैं , उनमें एक कांचा इलैया शेफर्ड की किताब – मैं हिंदू क्यों नहीं हूं- हिंदुत्व दर्शन, संस्कृति और राजनीतिक अर्थशास्त्र की एक शूद्र आलोचना , और वंदना सोनालकर की किताब मैं क्यों हिंदू महिला नहीं हूं , साथ ही भनवर मेघवंशी की किताब ‘मैं क्यों हिंदू नहीं हो सकता- RSS में दलितों की कहानी’, जैसी रचनाएं हैं.

RSS इस तरह से हिंदू और हिंदूधर्म की आलोचना से खुश नहीं है. RSS जो एक हिंदू राष्ट्र के लिए काम कर रहा है, ने पिछले हफ्ते जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में लिखा-

“आज भारत में, जहां एक तरफ सदियों पुराने सांस्कृतिक वैल्यू, परंपरा, और पहचान, एकता और अखंडता का जागरण हो रहा है हिंदू शक्ति पूरे आत्मसम्मान के साथ खड़ी हो रही है, वहीं दूसरी तरफ कुछ ताकतें जिन्हें ये सब पच नहीं रहा, समाज में भेदभाव और विभाजन को बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. विभाजनकारी तत्वों की चुनौती भी देश में एक खतरा है. हिंदू समाज को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं. हिंदू समाज में जो अलग अलग ईकाइयां हैं उन्हें अलग बताने के प्रयास चल रहे हैं. जैसे-जैसे जनगणना करीब आ रही है, एक समूह को ये कहने के लिए उकसाने की घटनाएं सामने आ रही हैं कि ‘वो हिंदू नहीं हैं’.
RSS

RSS की सालाना रिपोर्ट

इस रिपोर्ट में हिंदू समाज से अलग अपनी पहचान बताने वाले समूह का जिक्र नहीं है. इसके साथ ही ये भी नहीं बताया गया है कि किस समूह को उकसाया जा रहा है, लेकिन इसे पढ़ने वालों के मन में अब तक साफ हो गया है कि आखिर वो कौन से लोग और प्रवृतियां हैं जिनको लेकर RSS चिंतित है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हिंदू और हिंदूधर्म का मूल

जहां हिंदू शब्द काफी प्राचीन है, हिंदूधर्म वैसा नहीं है. ये थोड़ा परेशान करने वाला लग सकता है लेकिन इसके लिए हमें थोड़ा इतिहास और शब्द के मूल को गहराई से देखना होगा. .

“हिंदू शब्द का व्यवहार संस्कृत शब्द सिंधु के लिए होता है. सिंधु नदी और इसके आसपास रहने वालों के बारे में अवेस्ता धर्मग्रंथ में भी सिंधु शब्द का जिक्र किया गया है. अवेस्ता में इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए सिंधु शब्द और इलाके को भी सिंधु कहा गया है. इस टर्म के सही इस्तेमाल के बारे में अपने लेख ‘हिंदुइज्म में ‘ हेनरिख वॉन स्ट्राइटेनक्रॉन लिखते हैं – सिंधु नदी के आसपास रहने वाली आबादी, INDUS जनता, इंडियन लोगों के लिए सिंधु शब्द का जिक्र हुआ है.

जबकि संस्कृत शब्द सिंधु का इंडस नदी ‘ के लिए खास तौर पर इस्तेमाल किया गया है.वहीं फारसी शब्द हिंदू का इस्तेमाल भी इंडस नदी के इलाके में रहने वाले लोगों के लिए किया गया था। सदियों तक ये शब्द इन्हीं अर्थों में प्रचलन में रहा. इसलिए भारतीयों के लिए बरसों तक बाहरियों ने इस शब्द का इस्तेमाल किया.

“ वहीं हिंदूधर्म या हिंदुइज्म’ दूसरी तरफ सही अर्थों में एक आधुनिक शब्द है. ऐसा लगता है जैसे ये हाल की खोज है.

रॉबर्ट एरिक फ्राइकेनबर्ग अपने लेख ‘इमरजेंस ऑफ मॉर्डन हिंदुइज्म’ में लिखते हैं ‘जब आधुनिक समय में 'हिंदू' और 'हिंदू धर्म' शब्द पहली बार प्रचलन में आने लगे, तो ये सभी भारतीय चीजों, सांस्कृतिक मूल्यों , सिस्टम , रिलीजन सभी को बताने के लिए एक आसान पहचान भर था.'

हिंदूवाद की खोज

एक अर्थ में हिंदूइज्म या हिंदूवाद उपनिवेशवाद का नतीजा है, ब्रिटिश सरकार ने साल 1871-72 में पहली बार अखिल भारतीय जनगणना कराई जो कि धार्मिक पहचान आधारित थी। इसमें पहली बार हिंदुइज्म को जगह दी गई थी. जहां 19 वीं सदी में किसी की जाति, भाषा और धर्म ने लोगों की पहचान स्थापित की, वेस्ट में धर्म की जो अवधारणा थी, उस तरह की अवधारणा , भारतीय आबादी के एक खास वर्ग में ही थी. ऐसा नहीं था कि भारतीय किसी संगठित धर्म के बारे में नहीं जानते थे. गैर ब्राह्मणवादी धर्म ईसाई, और इस्लाम भारतीय जमीन पर पहले से ही थे, सिख धर्म भी शुरू हो चुका था. वहीं जैन और बौद्ध धर्म तो सदियों से थे, लेकिन फिर भी आबादी के एक खास समूह के भीतर ही इन धर्मों का पालन होता था. ऐसे लोगों की बड़ी तादाद थी जो किसी संगठित धर्म का हिस्सा नहीं थे. इसलिए इन समुदायों के रीति-रिवाज, प्रथा, धार्मिक देवी देवता, और पूजा पाठ में बहुत अलग अलग थे.

अपनी सुविधा के लिए मुस्लिम शासकों, क्रिश्चियन मिशनरी और ब्रिटिश सरकार ने जो बहुलता और विविधता थी उसको एक में मिला लिया और इसे हिंदुवादी बताया . इसको ब्राह्मण द्विजों (कथित तौर पर दो बार जन्म लेने वाले) ने भी अपनाया और 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने हिंदूधर्म को बढ़ाया. उपनिवेशवाद और आधुनिकता के बदलते हालात में आबादी का नंबर बड़ा फैक्टर्स बन गया और ‘हिंदूओं’ ने इसको पूरा किया.

हिंदूवाद को परिभाषित करना

फिर भी, ये एक बड़ी चुनौती है कि आखिर हिंदूधर्म को कैसे परिभाषित करें. यहां RSS ने गैर ब्राह्मणवादियों को भी धर्म में जोड़ने की कोशिश की है. इसका मकसद है कि हिंदुत्व या हिंदू धर्म का पवित्र धर्म ग्रंथ बनाया जाए, जिसमें जो कुछ भी पूजा-पाठ, प्रथा और धार्मिक रीति-रिवाज है , उसे यहीं का बताया जाए. इसके लिए जिन पाठों का प्रचार किया जाता है वो वेद और धर्मशास्त्र (खासकर मनुस्मृति) महाकाव्य जैसे महाभारत, रामायण और भगवत गीता से लिए जाते हैं.

इस लिस्ट में समय समय पर कुछ नया जुड़ता रहता है और कुछ हटता रहता है. क्योंकि ये मिशन अभी जारी है. लेकिन एक बात तो तय है कि लिस्ट में सिर्फ ब्राह्मणवादी संस्कृत टेक्स्ट और वो भी प्राचीन काल से ही लिए जा रहे हैं.

साल 2020 में राममंदिर उद्घाटन समारोह में आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने मनुस्मृति के एक छंद का जिक्र किया

एतद् देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥ २० ॥
मनुस्मृति का छंद

अर्थ : धरती पर सभी मनुष्य को अपने धार्मिक व्यवहार के बारे में उनकी ही धरती पर जन्मे ब्राह्मण से सीखना चाहिए.

ये छंद समाज में जाति व्यवस्था में ब्राह्मणों की प्राथमिकता और वर्णाश्रम धर्म के बारे में बताता है, जहां समाज चार वर्णों में बंटा हुआ है।

हिंदू धर्मग्रंथ - जैसा कि आरएसएस की ओर से प्रस्तावित है - विशेष रूप से संस्कृत भाषा के संग्रह से लिया गया है. एक ऐसी भाषा जो ब्राह्मणों की विशेषाधिकार थी और शूद्रों को इसे सीखने से साफ तौर पर मनाही थी. यह शास्त्र आगे वर्ण व्यवस्था, जाति आदर्शों और महिलाओं की अधीनता का समर्थन करता है।

आरएसएस ने हिंदू धर्म की जो परिभाषा बताई है वो बांटने वाली तो है ही , भेदभाव वाली भी है, लेकिन सत्य ये हैं कि हिंदू धर्म की ये परिभाषा या इससे थोड़ा अलग हिंदू धर्म की सभी जड़ें प्राचीन संस्कृत ग्रंथों मे है. इसका प्रचार प्रसार सभी द्विज ब्राह्मणों स्वामी विवेकानंद , बाल गंगाधर तिलक और मोहनदास करमचंद गांधी ने किया है. इसलिए इसमें कोई हैरानी नहीं है कि कई समुदाय हिंदू धर्म के वर्चस्ववादी और औपनिवेशिक तरीके का विरोध कर रहे हैं. RSS को इन विरोधों का सम्मान करना चाहिए. अपने संगठनों और प्रकाशनों के जरिए विरोध करने वालों पर RSS को हमला नहीं करना चाहिए.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT