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महाराष्ट्र को नये मुख्यमंत्री और नये उपमुख्यमंत्री मिल गये हैं। देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी पूर्व सीएम ने डिप्टी सीएम की शपथ ली है। बीजेपी इसे देवेंद्र फडणवीस का ‘बडा दिल’ बता रही है। ‘बड़ा दिल’ जरूर होता अगर फैसला खुद देवेंद्र फडणवीस का होता। फैसला आलाकमान का था और ‘बड़ा दिल’ वाले फडणवीस को मन मसोसकर फैसला बदलना पड़ा। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बाहर से समर्थन देने का एलान कर चुके देवेंद्र फडणवीस आखिरकार पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की अपील मान गये। लेकिन, ऐसा क्यों और कैसे हुआ?
एकनाथ शिंदे गुट के प्रवक्ता दीपक केसरकर ने भी अपनी पहली प्रतिक्रिया में माना कि शिवसैनिक चाहते तो थे कि ऐसा हो, लेकिन बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी उनकी बात मान लेगी- इसका यकीन उन्हें नहीं था। इसका मतलब यह है कि या तो एकनाथ शिंदे भी यह बात नहीं जानते थे या फिर उन्होंने अपने गुट के निकटतम लोगों को भी इसकी जानकारी नहीं दी थी। इसके अलावा देवेंद्र फडणवीस की प्रतिक्रिया में भी यह बात स्पष्ट होती है कि उन्हें भी सीएम-डिप्टी सीएम के अदल-बदल के फैसले की जानकारी नहीं थी। ऐसे में मीडिया के एक बड़े वर्ग का यह दावा सहज नहीं लगता कि बीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक चला है। फिर यह क्या है?
एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस को सीएम-डिप्टी सीएम बनाने के इस फैसले को क्रिकेट की भाषा में आखिरी क्षण में डरकर खेला गया शॉट कहते हैं। ऐसा शॉट हवा में जाता नजर तो आता है लेकिन छक्का होगा या फिर कैचआऊट कहना मुश्किल होता है। यह समझना जरूरी है कि आखिर क्यों इसे मास्टर स्ट्रोक के बजाए आखिरी क्षण में डरकर खेला गया स्ट्रोक कहा जाना चाहिए
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी हुए शिवसैनिकों की संख्या सूरत में 16 थी। बाद में यह बढ़ती रही। निर्दलीय भी जुटते रहे। डिप्टी सीएम के पास इन्हीं 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला लंबित है जिस बारे में नोटिस देकर 27 जून की शाम 5 बजे तक सशरीर उपस्थित होकर जवाब देने को कहा गया था। शिन्दे गुट के ये विधायक डिप्टी स्पीकर के पास जाने के बजाए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये थे। सर्वोच्च अदालत ने इन विधायकों को नोटिस का जवाब देने के लिए 11 जुलाई तक का समय दिया है।
डिप्टी स्पीकर के पास शिन्दे गुट की याचिका पर फैसला लेने के लिए डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किए हैं। डिप्टी स्पीकर को उसके बाद प्रत्युत्तर के लिए 3 दिन का अतिरिक्त समय दिया गया है। लब्बोलुआब यह है कि 16 विधायकों की अयोग्यता, डिप्टी स्पीकर पर अविश्वास समेत तमाम विषयों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से 11 जुलाई के पहले फैसला नहीं आएगा। लेकिन, जब भी फैसला आएगा तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे की विधानसभा सदस्यता पर तलवार लटकी रहेगी।
संभव है कि फैसला एकनाथ शिंदे के पक्ष में आ जाए, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो निश्चित रूप से एक बार फिर बीजेपी के लिए वैसी ही स्थिति पैदा हो जाएगी जैसी 2019 में हुई थी। तब देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार ने सीएण-डिप्टी सीएम की शपथ ली थी। मतलब एक बार फिर एकनाथ शिन्द की सरकार गिर जा सकती है।
मास्टर स्ट्रोक के बजाए एकनाथ शिन्दे को सीएम बनाना एक रणनीति है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक शिन्दे से शिवसेना पर कब्जा कराने की लड़ाई भी लड़ाई जा सकती है। हालांकि शिन्दे के लिए आसान यह है कि वह अपने समूह की ताकत दो तिहाई से ज्यादा दिखाकर खुद को अलग समूह के रूप में या फिर किसी पार्टी के साथ अपना विलय करके सुरक्षित हो लिया जाए। इससे कम से कम उनकी सरकार खतरे में नहीं पड़ेगी। लेकिन, अगर शिवसेना को कब्जे में लेने की राह पर एकनाथ बढे तो सरकार पर भी संकट आ सकता है। इसे थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं।
शिवसेना किसकी है- इसका फैसला चुनाव आयोग करेगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि शिवसेना के अध्यक्ष लंबे समय से उद्धव ठाकरे रहे हैं और यह आयोग के रिकॉर्ड में दर्ज है। चुनाव चिन्ह का वितरण भी उद्धव ठाकरे के हाथ से ही हुआ है। इसलिए उद्धव ठाकरे को यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि वह असली शिवसेना का नेतृत्व कर रहे हैं। एकनाथ शिन्दे को साबित करना होगा कि क्यों उनके समूह को शिवसेना माना जाए।
अगर यह लड़ाई एकनाथ शिन्दे हारते हैं तो इसका असर सदन पर भी पड़ेगा। फ्लोर टेस्ट के समय शिवसेना की ओर से ह्विप जारी करने का अधिकार किसे है यह भी तय होना बाकी है। डिप्टी स्पीकर अपने पास अयोग्यता का मामला लंबित रहते इस पर फैसला कैसे करेंगे यह भी बड़ा सवाल है। अगर ह्विप जारी करने का अधिकार उद्धव गुट के चीफ ह्विप को होगा तो एकनाथ और उनका समूह ह्विप का उल्लंघन करता दिखेगा। उल्टा हुआ तो उद्धव की शिवसेना के विधायक ह्विप का उल्लंघन करते दिखेंगे।
एकनाथ शिन्दे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने महाराष्ट्र में मराठाओं में असंतोष को भी काबू में करने की कोशिश की है। देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण हैं और सियासत में ब्राह्मणों के वर्चस्व को सीमित करने के लिए एनसीपी और शिवसेना इकट्ठा हुई थी जिसमें कांग्रेस का भी सहयोग रहा था। शरद पवार की प्रतिक्रिया में एकनाथ के लिए नरम भाषा देखने को भी मिल रही है।
शरद पवार ने कहा है
शरद पवार ने एकनाथ शिन्दे के नेतृत्व में हुई बगावत में बीजेपी की ओर से लगातार अपना हाथ नहीं होने की याद दिलाते हुए इस पर सवाल भी उठाए गये हैं। तैयारी के साथ इस योजना पर अमल हुआ बताकर उन्होंने प्रकारान्तर से राजनीतिक रूप से एकनाथ शिन्दे को बीजेपी के हाथों की कठपुतली भी उन्होंने करार दिया है।
आखिर में, बीजेपी ने जो नयी सियासी चाल चली है उससे उद्धव ठाकरे के लिए चुनौती बढ़ी है। संगठन में अपनी पकड़ बनाने के लिए उद्धव को लगातार मेहनत करनी होगी। कहीं शिवसेना हाथ से छिन न जाए- इसकी चिंता भी करनी पड़ेगी। इसके साथ ही महानगर निगम के चुनाव की तैयारी में भी उन्हें बागी गुट का सामना करना पड़ेगा। बीजेपी ने बस महाविकास अघाड़ी से महाराष्ट्र की सरकार छीन ली है। यह उपलब्धि उसके लिए बाकी किसी भी उपलब्धि से बड़ी है। देवेंद्र फडणवीस के लिए आगे फिर मौके बन आएंगे कि वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2024 के आम सभा चुनाव के वक्त महाराष्ट्र सरकार बीजेपी के हाथ में हो- यह लक्ष्य उसके लिए सबसे बड़ा लक्ष्य है।
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