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शिवसेना (Shiv Sena) के विधायकों में एक बड़ा विद्रोह देखने को मिल रहा है. इसने शीर्ष नेतृत्व को हिलाकर रख दिया है. इस विद्रोह के बाद महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA : Maharashtra Vikas Aghadi) सरकार गिरने के कगार पर आ गई है. गठबंधन की खामियां हालिया एमएलसी और राज्यसभा चुनाव में मिले झटके से उजागर हुईं, वहीं अब वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में फूट का खतरा बढ़ गया है.
रिपोर्ट के अनुसार शिवसेना के 40 विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे गुजरात के एक रिसॉर्ट में थे. शिंदे की ओर से यह मांग की गई है कि उद्धव ठाकरे कंग्रेस और एनसीपी (NCP) के साथ गठबंधन तोड़ लें. वे देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार बनाएं और उन्हें (शिंदे) को डिप्टी सीएम बनाएं.
विद्रोह क्यों हुआ इसके बारे में जो प्रमुख वजहें गिनाई जा रही हैं वह इस प्रकार से हैं.
उद्धव ठाकरे तक पहुंच न होना.
उनके बेटे आदित्य ठाकरे द्वारा वरिष्ठ नेताओं के मंत्रालयों के मामले में हस्तक्षेप या दखलंदाजी करना.
पार्टी (शिवसेना) का हिंदुत्व के अपने मूल विचारों से दूर होना.
चूंकि उद्धव ठाकरे ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई है जो कि वैचारिक तौर पर शिवसेना से उलट हैं, ऐसे में कैडर अब शिवसेना की स्थिति को लेकर असमंसज में है. वह यह नहीं समझ पा रहा है कि यह कट्टर हिंदुत्व पार्टी है या धर्मनिरपेक्ष पार्टी? सिर्फ सत्ता के लिए यह अपनी नींव को कैसे छोड़ सकती है?
उद्धव को सत्ता के भूखे के तौर पर देखा जाता है, जिन्होंने अपने अहंकार को संतुष्ट करने और फडणवीस के साथ व्यक्तिगत हिसाब बराबर करने के लिए शिव सेना की विरासत का त्याग कर किया. कई विधायकों को इस बात का डर है कि जब भी चुनाव होंगे तो वे हार सकते हैं, क्योंकि एनसीपी उनके खर्च पर मजबूत हो रही है.
आदित्य को राजनीति में जूनियर माना जाता है ऐसे में उन्हें पद सौंपना भी वरिष्ठ नेताओं के साथ अच्छा नहीं रहा.उद्धव ठाकरे अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. जबकि उन्हें सरकार की निरंतरता सुनिश्चित करने की जरूरत है, उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि शिवसेना में औपचारिक तौर पर फूट न हो और शिंदे के नेतृत्व में अलग हुआ समूह असली सेना (2/3 विधायक) होने का दावा न करे.
चूंकि उद्धव के सामने अपनी मांगों को रखते हुए शिंदे ने बालासाहेब के नाम और विचारधारा का उल्लेख किया है, ऐसे में ठाकरे को भी यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वह (उद्धव) और आदित्य बालासाहेब की विरासत के असली या यथोचित दावेदार बने रहें. 2019 के बाद से भगवा पार्टी के साथ संबंधों में ज्यादा कड़वाहट आने की वजह से पैच अप यानी कि संबंधों में सुधार की संभावना बहुत कम है.
बीजेपी सतर्क रुख अपना रही है और जोर देकर कह रही है कि इस विद्रोह से उसका कोई लेना-देना नहीं है, यह शिवसेना का आंतरिक मामला है.
एनडीए के चुनाव जीतने के बाद भी महाराष्ट्र में गैर-बीजेपी सरकार बनी. ऐसा उद्धव की पूरी न होने वाली मांगों और मुख्यमंत्री बनने की इच्छा की वजह से हुआ था. अब की परिस्थितियों में शिवसेना को फिर से पाने के लिए बीजेपी के हाथों में खुजली हो रही है.
महाराष्ट्र विभानसभा की हालिया संख्या : 287
बहुमत का जादुई आंकड़ा : 144
पार्टी में औपचारिक फूट या अलग होने के लिए एकनाथ को 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. जिस संख्या का दावा किया जा रहा है वह इस आंकड़े से ज्यादा है.
बागी स्पीकर से इस बात को लेकर संपर्क कर सकते हैं कि वे (स्पीकर) विधानसभा में उन्हें एक अलग गुट (पार्टी) के तौर पर मान्यता दें.
उसके बाद पार्टी इन बागीविधायकों के समर्थन से राज्यपाल से संपर्क कर सकती है और उद्धव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अनुरोध इस आधार पर कर सकती है कि शिवसेना के पास सदन में बहुमत नहीं है.
इस प्रक्रिया में देरी करने के लिए सेना इसके खिलाफ कानूनी चुनौती दायर कर सकती है. डिप्टी स्पीकर (वर्तमान में कोई स्पीकर नहीं है) भी शिंदे गुट को मान्यता देने की प्रक्रिया में विलंब कर सकते हैं.
यदि शिंदे अपने पक्ष में दो तिहाई (2/3) विधायक नहीं मिला पाते हैं, तो बीजेपी इन बागियों को मध्यप्रदेश और कर्नाटक (ऑपरेशन कमल) की तर्ज पर इस्तीफा देने के लिए राजी कर सकती है. अगर ये विधायक अविश्वास प्रस्ताव के दौरान शिवसेना के खिलाफ मतदान करते हैं तो इनको डिस्क्वॉलिफिकेशन (अयोग्यता) का सामना करना पड़ सकता है.
जैसे ही वे इस्तीफा देंगे, सदन की क्षमता यानी की संख्या कम हो जाएगी, इसलिए बहुमत की दहलीज पर पहुंचने की जरूरत होगी. इस समय 287 की संख्या वाले सदन में बहुमत का जादुई आंकड़ा 144 का है.
जेल में होने की वजह से एनसीपी के दो विधायकों को राज्यसभा और एमएलसी, दोनों चुनावों में वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था. ऐसे में सदन की संख्या 285 और बहुमत घटकर 143 के आंकड़े पर आ गया है.
कुछ क्रॉस वोटिंग के साथ राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को 123 और एमएलसी चुनाव में 133 वोट मिले. अगर 35 विधायक इस्तीफा देते हैं, तो सदन की संख्या घटकर 250 (285-35) हो जाएगी और एमवीए सरकार अल्पमत में आ जाएगी. इस तरह एमवीए सरकार गिराने और बीजेपी को बहुमत साबित करने में ये इस्तीफे मदद कर सकते हैं.
फिर से चुनाव के दौरान चुने जाएंगे या नहीं इस जोखिम की वजह से कई बागी विधायक इस्तीफा देने या अयोग्य होने के बारे में राजी नहीं हो सकते हैं. विधानसभा का दो वर्ष से अधिक का कार्यकाल अभी बचा हुआ है. कार्यकाल समाप्त होने से पहले कौन जनता के सामने जाना और उनका सामना करना चाहेगा?
इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि वे संयुक्त एमवीए के खिलाफ जीत दर्ज करेंगे. शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गणित को देखते हुए इनमें से कुछ विधायक उपचुनाव में हार सकते हैं.
एक हाई-वोल्टेज राजनीतिक ड्रामा के बीच ऐसे परिदृश्य में सत्तारूढ़ एमवीए के भीतर विद्रोह के बाद संवैधानिक पतन का हवाला देते हुए केंद्र सरकार महाराष्ट्र पर राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है. इसे कानूनी रूप से अदालतों में चुनौती दी जा सकती है.
इसकी वजह से बीजेपी को निर्दलीय, छोटे दलों और राकांपा और कांग्रेस के बागियों की मदद से सरकार बनाने के लिए संख्याबल बढ़ाने में कुछ वक्त मिल सकता है.
बीजेपी राज्यपाल से जल्द चुनाव कराने की सिफारिश भी कर सकती है. अगर पार्टी को इस बात का भरोसा है कि वह बागी विधायकों को मैदान में उतारकर और छोटे दलों के साथ गठबंधन करके बहुमत हासिल कर सकती है, तो वह समय से पहले चुनाव करा सकती है और नए सिरे से शुरुआत कर सकती है. लेकिन इस रणनीति की संभावना कम है.
वास्तव में, यह BJP और फडणवीस को सीएम की कुर्सी से दूर करने की उद्धव की रणनीति हो सकती है.
महाराष्ट्र में अशांत वार्ता और ड्रामा अभी भी बाकी है. फिर भी एमवीए के लिए चीजें धूमिल दिखाई दे रही हैं.
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