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बंगाल पंचायत चुनाव: 2024 से पहले अहम लड़ाई में ममता की TMC ने मोदी-शाह को हराया

West Bengal Panchayat Election: TMC अपने गढ़ में मजबूत और अडिग है. परिणाम में 'पोरिबोर्तन' के कोई संकेत नहीं हैं.

एसएनएम अबदी
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव की मतगणना के दौरान टीएमसी कार्यकर्ता और समर्थक जश्न मनाते हुए</p></div>
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पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव की मतगणना के दौरान टीएमसी कार्यकर्ता और समर्थक जश्न मनाते हुए

फोटो : पीटीआई

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West Bengal panchayat election: भारतीय जनता पार्टी (BJP) को बिहार और कर्नाटक के अंदर 2024 के लोकसभा चुनावों में नुकसान की संभावना दिख रही है. ऐसे में उसे पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटों पर कब्जा करने की काफी ज्यादा उम्मीदे थीं. लेकिन पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के नतीजों ने बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.

2024 के संसदीय चुनावों से पहले राष्ट्रीय राजनीति के लिए बंगाल ग्रामीण निकाय चुनाव (पंचायत के चुनाव) परिणामों का यही वास्तविक महत्व है और यह निश्चित रूप से उन विपक्षी ताकतों को मनोबल बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा, जो कई बाधाओं के बावजूद एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) के पक्ष में व्यापक और स्पष्ट ग्रामीण जनादेश (विशेषकर महिला मतदाताओं का जनादेश) यह संकेत देता है कि अप्रैल में अमित शाह द्वारा बंगाल के वोटर्स से जो अपील की थी, कहीं वह अपील ही न बनकर रह जाए.

अप्रैल में अमित शाह ने बड़ी ही गर्मजोशी से बंगाल के मतदाताओं से 2024 में बीजेपी को 35 से अधिक सीटें देने की अपील की थी, ताकि प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित किया जा सके.

TMC अपने गढ़ में मजबूत और अडिग

TMC अपने गढ़ में मजबूती से स्थापित और अडिग है. 2008 के पंचायत चुनावों के फैसले के विपरीत इस बार के परिणाम में 'पोरिबोर्तन' (परिवर्तन के लिए बांग्ला शब्द) के कोई संकेत नहीं हैं. 2008 के पंचायत चुनावों के जो परिणाम आए थे, उससे पहली बार वाम मोर्चा शासन के प्रति मोहभंग और असंतोष के संकेत देखने को मिले थे.

"नो वोट फॉर ममता" को "नाउ वोट फॉर ममता" में बदला

कम्युनिस्टों को हराने और सत्ता की बागडोर हासिल करने के 12 साल बाद भी पार्टी (TMC) अच्छा प्रदर्शन कर रही है और उसे मतदाताओं का समर्थन प्राप्त है. मतदाताओं ने स्पष्ट रूप से बीजेपी के नारे "नो वोट फॉर ममता" को "नाउ वोट फॉर ममता" में बदल दिया, मुख्यमंत्री का भरपूर समर्थन किया.

चूंकि पंचायत चुनावों में तेज गति से परिणाम देने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के बजाय कागजी मतपत्रों (Paper Ballots) का उपयोग किया गया था, इसलिए अंतिम परिणाम में देरी देखने को मिली.

लेकिन रुझानों से तृणमूल कांग्रेस का दबदबा स्पष्ट रूप से दिख रहा है, जहां 63229 सीटों वाली 3317 ग्राम पंचायतों, 9730 सीटों वाली 341 पंचायत समितियों और 928 सीटों वाली 20 जिला परिषदों के वोटों की गिनती हाथों से की जा रही है.

'तेजी से दौड़ने वाले विजेता से बहुत पीछे है बीजेपी'

इसमें कोई शक नहीं कि पंचायत चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर पर है. लेकिन यह एक बहुत ही खराब क्षण है, क्योंकि सरपट दौड़ते विजेता से बहुत पीछे लंगड़ाते हुए बीजेपी दूसरा स्थान बना पायी. और बीजेपी पर प्रहार करते हुए सीपीआई (एम)-कांग्रेस-भारतीय सेक्युलर मोर्चा गठबंधन ने खुलासा किया है कि बीजेपी को विपक्षी क्षेत्र में भी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

आंकड़े क्या कहते हैं?

जिस समय मैं यह लेख लिख रहा हूं, उस समय तक के हालिया परिणाम बता रहे हैं कि 928 जिला परिषद सीटों में से टीएमसी ने 526 सीटें जीत ली हैं या आगे चल रही हैं. बीजेपी केवल 15 पर जीत हासिल कर चुकी है वहीं सात-सात सीटों पर सीपीआई (एम) और कांग्रेस ने कब्जा जमाया है. दक्षिण 24 परगना में तृणमूल कांग्रेस 85 में से 84 सीटें जीत रही है.

पंचायत समिति सीटों की बात करें तो तृणमूल कांग्रेस ने 9730 सीटों में से 5,898  सीटें हासिल की हैं; जबकि बीजेपी की सीटें महज 706 हैं, वहीं सीपीआई (एम) और कांग्रेस का स्कोर क्रमशः 142 और 143 है. बाकी सीटों पर गिनती जारी है.

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इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ग्राम पंचायत की 63229 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 42,122 या दो-तिहाई सीटों पर विजयी है; वहीं बीजेपी केवल 9307 और सीपीआई (एम) और कांग्रेस के हाथ क्रमशः 2932 और 2642 सीटें लग पाई हैं. तृणमूल कांग्रेस अपने प्रतिद्वंद्वियों से ऊपर है और "ममतालैंड" में यह पार्टी चुनावी रूप से अपराजेय रूप में सामने आती है.

ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ा TMC का वोट शेयर

आधिकारिक नतीजे आने से पहले, मोटे तौर पर काउंटिंग से संकेत मिलता है कि सत्तारूढ़ पार्टी 52 प्रतिशत वोटों के साथ जीत हासिल कर चुकी है. 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने 48 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. पिछले दो साल में ग्रामीण बंगाल में पार्टी (टीएमसी) का वोट शेयर चार फीसदी बढ़ गया है.

2024 के लिए संदेश

2024 के संसदीय चुनावों से पहले TMC को मिली यह महत्वपूर्ण वृद्धि कई महत्वपूर्ण संदेश भेजती है.

सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षकों की भर्ती और मवेशी तथा कोयला तस्करी रैकेट जैसे कई भ्रष्टाचार घोटालों के बावजूद मतदाताओं ने तृणमूल कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है. भ्रष्टाचार के इन मामलों के परिणामस्वरूप केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा एक प्रमुख कैबिनेट मंत्री, विधायकों, युवा नेताओं और सरकार के करीबी शीर्ष अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई है.

विपक्षी दलों द्वारा तृणमूल कांग्रेस लीडरशिप पर 'चोर' जैसे शब्दों के लांछन लगाए गए थे. उसे मतदाताओं ने स्पष्ट तौर पर नजरअंदाज कर दिया, वहीं लक्ष्मी भंडार और अन्य लोकलुभावन योजनाओं के माध्यम से प्राप्त वित्तीय लाभों के लिए पार्टी की सराहना और आभार व्यक्त किया.

महिला वोटर्स ने दिया TMC का साथ

ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि उन सीटों पर तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर है, जहां महिला वोटर्स की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक है, ऐसा इसलिए है क्योंकि वे (महिलाएं) आय-प्रदान करने वाली योजनाओं (विशेष रूप से 2021 के बाद शुरू की गई योजनाओं) से सबसे अधिक लाभान्वित हैं. इस बात में कोई संदेह नहीं कि है कि योजनाओं की जीत हुई है!

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस भारी जनादेश ने सीएम के भतीजे और उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी के स्थिति को मजबूत किया है, जिनका कद नहीं बढ़ा लेकिन ममता बनर्जी ने उन्हें अपने उत्तराधिकारी और पार्टी में दूसरे नंबर के नेता के रूप में नियुक्त किया. उन्होंने (अभिषेक बनर्जी ने) मतदाताओं को संबोधित करने के लिए 54 दिनों की राज्यव्यापी यात्रा की है. उनके चुनावी कैंपेन को बीजेपी की केंद्र सरकार द्वारा बंगाल को ग्रामीण नौकरियों की गारंटी और ग्रामीण आवास योजनाओं के लिए धन की कमी के इर्द-गिर्द केंद्रित किया गया था.

बनर्जी ने चतुराई के साथ और सफलतापूर्वक बंगालियों को दिल्ली की मनमानी के शिकार (पीड़ित) के रूप में पेश किया. वहीं, विद्रोह और ललकारना या आज्ञा न मानना जोकि पूर्वी राज्य की विशेषता है, उसका उपयोग करते हुए, उन्होंने घोषणा की कि यदि केंद्र बंगाल को उसके वैध बकाये से वंचित करना बंद नहीं करता है तो वो मोदी और शाह का मुकाबला करने के लिए दस लाख बंगालियों के साथ दिल्ली तक मार्च का नेतृत्व करेंगे.

जैसे-जैसे नतीजे आ रहे हैं, ममता और अभिषेक दोनों ही मतदाताओं को उनके मजबूत समर्थन के लिए को धन्यवाद देने और 2024 में तृणमूल कांग्रेस के इससे भी बेहतर प्रदर्शन की भविष्यवाणी करने में व्यस्त हैं.

(एसएनएम आब्दी एक प्रतिष्ठित पत्रकार और आउटलुक के पूर्व उप संपादक हैं. यह एक ओपीनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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