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लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बिहार में महागठबंधन का कुनबा बिखरता जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बगावत कर दी है, तो कांग्रेस भी अलग सुर आलाप रही है. खुद राष्ट्रीय जनता दल भी टूट के कगार पर नजर आ रही है.
आम चुनाव से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने बीजेपी-जेडीयू के खिलाफ विपक्षी एकता बनाने की कोशिश की थी. मकसद था वोटों का बिखराव रोकना, जिससे जीतने में मदद मिले. हालांकि, चुनाव में मुंह के बल खाने के बाद महागठबंधन में मथफुटव्वल का दौर शुरू हो गया है. मांझी ने अलग राह पकड़ ली है, तो कांग्रेस भी आंखें तरेर रही है. हालत तो ऐसी है कि अगले साल के विधानसभा चुनाव की तो छोड़िए, जल्दी ही होने वाले विधानसभा उप-चुनाव को लेकर भी सहयोगी दलों कोई बात नहीं शुरू हुई है.
मांझी ने महागठबंधन से सारे नाते-रिश्ते तोड़ने का ऐलान भी कर दिया है. उन्होंने कहा, "एनडीए की तर्ज पर महागठबंधन ने भी हमें ठगा. कहने के लिए हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को तो तीन सीटें दी गईं, लेकिन इसमें एक पर कांग्रेस, तो दूसरे पर आरजेडी के उम्मीदवार ने चुनाव लड़ा. हमें सिर्फ एक सीट ही मिली थी. इससे हमारी पार्टी मे काफी आक्रोश है. अपनी पार्टी को बचाने के लिए हमें यह फैसला लेना पड़ा. वैसे भी महागठबंधन में अब किसी तरह का समन्वय नहीं बचा है." चर्चाओं के मुताबिक मांझी फिर से जेडीयू का दामन थाम सकते हैं, लेकिन अब तक उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा है.
आम चुनाव में बीजेपी नीत एनडीए को बिहार की 40 में से 39 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी. कांग्रेसी भी इस हार के लिए अपने सहयोगियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. पार्टी नेताओं के मुताबिक आम चुनाव की कमान तेजस्वी यादव और उनकी मां राबड़ी देवी ने पूरी तरह से अपने हाथों में रखी थी. पूरा का पूरा चुनाव प्रचार लालू परिवार के इर्द-गिर्द केंद्रीत था और महागबंधन के बड़े नेताओं को उनके चुनाव क्षेत्रों तक ही सीमित कर दिया गया. इसके बाद लालू परिवार हार की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है.
दूसरी तरफ, खुद आरजेडी में भी सब कुछ सही नहीं चल रहा है. पार्टी के नेता लालू परिवार की दूसरी पीढ़ी के बीच शीतयुद्ध से खासे परेशान हैं. तेजस्वी के अज्ञातवास की वजह से पार्टी नेतृत्वविहीन हो गई. ऊपर से राबड़ी देवी की बेरुखी ने भी पार्टी के भीतर दिक्कतों को और बढ़ा दिया है. इसकी एक बानगी बीते हफ्ते आरजेडी के सदस्यता अभियान के शुरुआत के मौके पर देखने को मिली. पार्टी ने काफी जोर-शोर से इस अभियान का श्रीगणेश किया था. उम्मीद थी कि राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव 2020 के विधानसभा चुनाव अभियान का शंखनाद करेंगे. लेकिन उम्मीदें धरी की धरी रह गईं, जब लालू परिवार का एक भी सदस्य इसमें शामिल नहीं हुआ.
नेताओं की मानें तो आम चुनाव के नतीजों के बाद से महागठबंधन के भीतर पूरी तरह से संवाद खत्म हो गया है. अब तक महागठबंधन के घटक दलों के नेताओं की सिर्फ एक बैठक हुई है. इसमे भी हार के कारणों पर एकराय नहीं बन पाई. उसके बाद से महागठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई. यहां तक कि राज्य विधानमंडल का मानसून सत्र भी एक महीने तक चला, लेकिन इस दौरान भी महागठबंधन के विधायकों की बैठक तक नहीं हुई. बिहार कांग्रेस के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा, "न मेल, न मुलाकात. बस कहने के लिए महागठबंधन है."
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पूरे सत्र में सभी सहयोगी 'अपनी डफली-अपना राग' गाते नजर आए. कांग्रेस जहां नीतीश कुमार पर मेहरबान थी, तो आरजेडी हार के सदमे में ही दिखी. पार्टी नेताओं के मुताबिक तेजस्वी यादव की गैर-मौजूदगी ने स्थिति को और गंभीर कर दिया है. पार्टी के एक बड़े नेता ने कहा, "जब नेतृत्व ही पराजित नजर आए, तो आप कार्यकर्ता से जोश की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? राजनीति में हार-जीत तो लगी रहती है, लेकिन कार्यकर्ताओं के सामने बेदम नहीं नजर आना चाहिए. वर्ष 2010 में विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हार के बाद भी लालू प्रसाद कार्यकर्ताओं को हिम्मत दिलाते थे. आज पार्टी को लालू की कमी जबरदस्त तरीके से खल रही है और उनकी दूसरी पीढ़ी अपने पिता की कमी को भरने में सिरे से नाकाम रही है."
हालांकि, अब तक महागठबंधन में शुरुआती दौर की बातचीत भी नहीं शुरू हुई है. कांग्रेस के एक नेता ने कहा, "तेजस्वी अज्ञातवास में हैं. तेजप्रताप से गंभीरता की उम्मीद नहीं की जा सकती. राबड़ी देवी घर से बाहर नहीं निकलना चाहती हैं और मीसा के दावे को तो उनके माता-पिता ही स्वीकार नहीं करते. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो इस गठबंधन और आरजेडी का बस भगवान ही मालिक है."
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Published: 14 Aug 2019,04:39 PM IST