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झारखंड में विधानसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन में गांठें?

विधानसभा चुनाव से पहले JMM का रुख झारखंड में सियासी समीकरण बदलने के संकेत तो नहीं?

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भारत
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लोकसभा चुनाव नतीजों के झटके से झारखंड का महागठबंधन अभी उबर भी नहीं पाया है और इसमें नई गांठें नजर आ रही हैं. महागठबंधन के सबसे शक्तिशाली धड़े झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने एक ऐसा ऐलान कर दिया है कि इसमें भारी झगड़े के संकेत मिल रहे हैं. ये सवाल भी उठ रहे हैं कि JMM का नया रुख कहीं राज्य में बदलते सियासी समीकरण की तरफ इशारा तो नहीं?

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लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से ही JMM काडर का ये मानना है कि उन्हें महागठबंधन के  साथ जाने से नुकसान हुआ. दिसंबर में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर से महागठबंधन को लेकर ऊहापोह की स्थिति है.

JMM विधायक दल की बैठक में विधायकों ने विधानसभा चुनावों में महागठबंधन के साथ रहने पर अपनी सहमति तो दे दी लेकिन एक शर्त भी लगा दी. शर्त ये कि JMM कम से कम 41 सीटों पर लड़े. इसके बाद JMM के मुखिया हेमंत सोरेन ने ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी राज्य में 41 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

JMM के ऐलान के बाद कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि उनकी पार्टी कम से कम 25 सीटों पर लड़ेगी. महागठबंधन की एक और पार्टी जेवीएम के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने तो इससे भी आगे बढ़कर कह दिया कि वो राज्य की सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

झारखंड में महागठबंधन के दल

  • झारखंड मुक्ति मोर्चा
  • कांग्रेस
  • झारखंड विकास मोर्चा (जनतांत्रिक)
  • आरजेडी
  • वामदल

पिछले विधानसभा चुनावों में JMM को 19 सीटें मिली थीं. वो जितनी सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी, अगर उसे भी जोड़ लिया जाए तो ये संख्या 36 आती है. लेकिन पार्टी इससे भी 5 ज्यादा सीटें मांग रही हैं.

महागठबंधन के दो सबसे बड़े दलों को अपने मन मुताबिक सीटें मिल जाएं तो बाकी सहयोगियों को महज 15 सीटों में बंटवारा करना पड़ेगा. लेकिन इसके लिए खासकर JVM तैयार नहीं होगी. क्योंकि पिछले चुनाव में उसे 8 सीटों पर जीत मिली थी.

इन सीटों पर बड़ा पेंच

कम से कम पांच सीटें ऐसी हैं जहां बड़ा पेंच फंस सकता है, क्योंकि इन सीटों पर पहले और दूसरे नंबर पर महागठबंधन के ही सहयोगी दल रहे हैं. ये सीटे हैं - पाकुड़, जरमुंडी, डाल्टनगंज, शिकारीपाड़ा और धनवार. और भी कई सीटें है जिन पर साथियों में झगड़ा हो सकता है.

  • पाकुड़ सीट से कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम विधायक हैं जबकि यहां से JMM के पूर्व विधायक अकील अख्तर भी दावा ठोंक रहे हैं.
  • मधुपुर सीट पर झामुमो की दावेदारी है, जबकि इस सीट से कांग्रेस नेता फुरकान अंसारी भी ताल ठोक रहे हैं
  • गांडेय विधानसभा सीट पर कांग्रेस के डॉ सरफराज अहमद की दावेदारी है, लेकिन JMM भी यहां खुद को मजबूत बता रही है
  • विश्रामपुर में कांग्रेस नेता ददई दुबे के बेटे अजय दुबे तीसरे स्थान पर रहे थे, उन्हें टिकट के लिए चुनौती दे रही  हैं JMM की अंजू सिंह
  • पांकी सीट पर भी कांग्रेस और JMM के बीच झगड़ा है
  • सिसई में कांग्रेस की गीताश्री उरांव और JMM के झींगा मुंडा के बीच तकरार है.
  • घाटशिला सीट कांग्रेस के प्रदीप बालमुचु की पारंपरिक सीट है, वो जिद करेंगे, लेकिन यहीं से JMM के रामदास सोरेन उन्हें हरा चुके हैं.

JMM की रणनीति

वैसे माना जा रहा है कि JMM 41 सीटों पर दावा कर रही है तो इसके पीछे दबाव की राजनीति है. इतनी सीटें मांगने के पीछे रणनीति ये है कि कम से कम 30-35 सीटें मिल ही जाएं. ये भी याद रखना चाहिए कि 41 वो आंकड़ा है जिससे राज्य में सरकार बनती है.

सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि JMM चुनाव बाद अपने लिए विकल्प खुले रखना चाहती है और इसलिए सीटों को लेकर अड़ गई है. लोकसभा चुनाव में बुरी गत और दुमका जैसी पारंपरिक सीट गंवाने वाली पार्टी में महागठबंधन के नफे-नुकसान को लेकर अब भी एकराय नहीं है.

असमंजस की स्थिति इसलिए है क्योंकि राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के नतीजे अलग संकेत देते हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में महागठबंधन को बीजेपी से कम सीटें मिलीं. सरकार भी एनडीए की बनी लेकिन वोट शेयर के मामले में महागठबंधन के दल बीजेपी और एनडीए दोनों से आगे थे. तो विधानसभा चुाव का मैसेज ये है कि महागठबंधन के दल साथ मिलकर लड़ें तो बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं.

विधानसभा चुनाव से पहले JMM का रुख झारखंड में सियासी समीकरण बदलने के संकेत तो नहीं?
सोर्स - चुनाव आयोग
ग्राफिक्स - क्विंट हिंदी

आम चुनाव में महागठबंधन चौपट

2019 लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटें जीतकर अकेली बीजेपी, महागठबंधन के सभी दलों पर भारी पड़ी. गठबंधन के सारे दलों का वोट शेयर 35% रहा जबकि अकेले बीजेपी 50% पार कर गई. ऐसे में घटक दलों के बीच महागठबंधन के औचित्य को लेकर असमंजस भी है.

विधानसभा चुनाव से पहले JMM का रुख झारखंड में सियासी समीकरण बदलने के संकेत तो नहीं?
सोर्स - चुनाव आयोग
ग्राफिक्स - क्विंट हिंदी

इधर टेंशन, उधर 65 पार का मिशन

अगर आने वाले विधानसभा चुनावों में भी महागठबंधन के दलों का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव जैसा ही रहा तो राज्य में उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो सकता है. एक तरफ महागठबंधन के दलों में सीटों पर स्यापा है, तो दूसरी तरफ बीजेपी मिशन 65 पार के लिए जुट गई है. PM मोदी ने हाल ही में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में हजारीबाग जिले के एक सरपंच की चर्चा की तो पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष ने हाल ही में झारखंड पहुंचकर 25 लाख नए सदस्य बनाने के अभियान पर ताकत दी. समझने की बात ये है कि जब महागठबंधन की पार्टियां मिलकर भी बीजेपी का मुकाबला नहीं पा रही हैं तो अकेले क्या करेंगी? यही एक सवाल है जो आने वाले विधानसभा चुनाव की बिसात तय करेगा.

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