advertisement
इस महीने की शुरुआत में चीन के राष्ट्रपति के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल संभालने के बाद शी जिनपिंग (Xi Jinping) अपने पहले दौरे पर तीन दिवसीय यात्रा के लिए मास्को (Xi Jinping Russia Visit) पहुंचे थे. यह दौरा वाशिंगटन द्वारा चेतावनी दिए जाने के तुरंत बाद आया है. वाशिंगटन ने अपनी चेतावनी में कहा था कि शी जिनपिंग रूसी युद्ध के प्रयासों के लिए हथियारों की आपूर्ति शुरू कर सकते हैं.
शी जिनपिंग का दौरा दो वक्तव्यों के साथ समाप्त हुआ. पहला स्टेटमेंट काफी लंबा था जिसमें "नए युग" में देशों के बीच व्यापक और रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने पर हुई चर्चा का उल्लेख किया गया. वहीं दूसरा स्टेटमेंट छोटा था जो कि 2030 से पहले तक (प्री-2030) द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों के विकास की योजना और प्राथमिकताओं से संबंधित है.
विश्लेषकों का कहना है कि पहला वाला जो लंबा स्टेटमेंट है उसको सरसरी तौर पर पढ़ने से पता चलता है कि यह यात्रा संबंधों के गहनता और विस्तार का संकेत दे रही है.
चीन के राष्ट्रपति के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल संभालने के बाद शी जिनपिंग अपने पहले दौरे पर तीन दिवसीय यात्रा के लिए मास्को पहुंचे थे. यह दौरा वाशिंगटन द्वारा चेतावनी दिए जाने के तुरंत बाद हुआ है. वाशिंगटन ने अपनी चेतावनी में कहा था कि शी जिनपिंग रूसी युद्ध के प्रयासों के लिए हथियारों की आपूर्ति शुरू कर सकते हैं.
शी जिनपिंग की यात्रा के बाद का जो बयान जारी किया गया वह अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को बनाए रखने की बात करता है, लेकिन इसमें यूक्रेनी संप्रभुता के जघन्य उल्लंघन के बारे में कुछ नहीं कहा गया है.
चीनी विदेश मंत्री किन गांग बयान में कहना चाहते थे कि यूक्रेन संघर्ष पर चीन का संवाद स्पष्ट रूप से इस संकट (रूस-यूक्रेन संकट) के लिए अमेरिका को दोषी मानता है.
यूक्रेन में संघर्ष के परिणामस्वरूप संबंधों की गतिशीलता चीन के पक्ष में बदल गई है, रूस अब साझेदारी और रियायती तेल के बदले सैन्य समर्थन के लिए चीन की ओर देख रहा है.
इस दौरे से पहले शी जिनपिंग और पुतिन दोनों ने अपने-अपने देशों के प्रमुख मीडिया में लेख प्रकाशित किए. रूसी राजपत्र (Russian Gazette) और आरआईए नोवोस्ती में शी ने लिखा दो राष्ट्रों के बीच संबंधों को लेकर चीन की परिभाषा या मतलब यह है कि दोनों देश "कोई गठबंधन नहीं, कोई टकराव नहीं और हमारे संबंधों को विकसित करने में किसी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं करने" के लिए प्रतिबद्ध हैं.
दूसरी ओर, पीपल्स डेली में लिखते हुए, पुतिन ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की पूर्व संध्या पर दोनों देशों द्वारा तय की गई "कोई सीमा नहीं" रुख को दोहराया. पुतिन ने कहा कि रूस-चीन संबंध "शीत युद्ध के दौर के सैन्य-राजनीतिक गठजोड़ नए स्तर पर ले जाएगा, जिसमें बिना किसी सीमा या वर्जना के, लगातार आदेश देने वाला और लगातार आज्ञा मानने वाला कोई नहीं होगा."
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शी जिनपिंग के लेख में "कोई सीमा नहीं और कोई वर्जित क्षेत्र नहीं" का उल्लेख नहीं है. याद रखें कि 4 फरवरी, 2022 के फॉर्मूलेशन में कहा गया है कि दो देशों या सरकारों के बीच दोस्ती की कोई सीमा नहीं है और ऐसा कोई "निषिद्ध" क्षेत्र नहीं है जहां वे सहयोग नहीं कर सकते हैं.
इस महीने की शुरुआत में, चीन के नए विदेश मंत्री किन गांग ने चीनी नीति के हिस्से के तौर पर इस फॉर्मूलेशन को दोहराया था.
यूक्रेन के संबंध में, चीन ने खुद को एक शांतिदूत के तौर पर स्थापित किया है, उसका कहना है कि उसकी स्थिति तथ्यों पर आधारित रहती है. शी जिनपिंग कहते हैं कि "चीन हमेशा से किसी भी मुद्दे के गुण-दोष के आधार पर वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष स्थिति बनाए रखता है, और सक्रिय रूप से शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया है."उन्होंने कहा कि चीन का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के अंतर्गत है, यह सभी देशों के लिए वैध सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करता है ...और यह वैश्विक औद्योगिक और आपूर्ति श्रृंखलाओं (सप्लाई चेन्स) की स्थिरता सुनिश्चित करता है." ये सभी चीन के 12-सूत्रीय शांति प्रस्ताव में शामिल हैं जो इस महीने की शुरुआत में किए गए थे.
पुतिन तब इस विचार से सहमत थे जब उन्होंने कहा कि रूस "यूक्रेन में होने वाली घटनाओं के संबंध में PRC की संतुलित रेखा के लिए आभारी है ...और हम संकट के समाधान में सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए चीन की तत्परता का स्वागत करते हैं.”
कुल मिलाकर, ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्ष अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने परस्पर विरोधाभाषी बात कर रहे थे. चीनी दुनिया को बताना चाहते थे कि वे एक जिम्मेदार शक्ति हैं और शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने की मांग कर रहे हैं, जबकि रूसी यह दिखाने के इच्छुक थे कि चीनी सरकार एक समर्थक के तौर पर उसके साथ है.
यात्रा की पूर्व संध्या पर, चीनियों ने सूचित किया कि युद्ध की शुरुआत के बाद से पहली बार शी जिनपिंग राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से बात करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने संकेत दिया कि बातचीत मास्को से लौटने के बाद होगी.
हालांकि, वास्तविकता चीनी विदेश मंत्री किन गांग द्वारा व्यक्त की गई थी, जिन्होंने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि एक अदृश्य हाथ "यूक्रेन संकट का उपयोग कुछ भू-राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए कर रहा है." यूक्रेन युद्ध पर चीनी विमर्श स्पष्ट तौर पर संकट के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को दोषी ठहराता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध की पहली वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, "यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान को लेकर चीन की स्थिति" पर एक 12-बिंदु दस्तावेज जारी किया गया था. इसमें परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के खिलाफ एक छिपी हुई चेतावनी थी. इसके अलावा इस पेपर में "शीत युद्ध मानसिकता" और "एकतरफा प्रतिबंधों" के मुद्दे को लेकर स्पष्ट रूप से अमेरिका को टारगेट किया. इस डॉक्यूमेंट में अप्रत्यक्ष रूप से "दूसरों की कीमत पर अपनी सुरक्षा" करने के लिए अमेरिका और नाटो की आलोचना की गई थी.
लेकिन इसने तत्काल युद्धविराम का आह्वान करना बंद कर दिया, और इसने यूक्रेन में रूसियों के कब्जे वाले क्षेत्र को लेकर अपनी कोई स्थिति निर्धारित नहीं की. चीनी एक ऐसा संवाद चाहते थे जो "धीरे-धीरे स्थिति को कम करेगा और अंततः एक व्यापक युद्धविराम तक पहुंच जाएगा."
उसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था, जिसमें यूक्रेन में तत्काल युद्ध रोके जाने का आह्वान किया गया था. इस प्रस्ताव को लेकर तीखा विरोध देखने को मिला. इस प्रस्ताव का 141 देशों ने समर्थन किया, जबकि रूस ने इसका विरोध किया वहीं चीन ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.
जैसा कि हाल के इतिहास में दिख रहा है, अमेरिका, चीन और रूस के बीच संबंधों में तीन-तरफा गतिशीलता चल रही है. स्टालिन के समर्थन की बदौलत चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने गृहयुद्ध (सिविल वार) में जीत दर्ज की थी और 1950 के दशक में स्टालिन की महत्वपूर्ण सहायता ने देश को एक औद्योगिक और सैन्य शक्ति के रूप में उभरने में मदद की. लेकिन 1960 के दशक में दोनों अलग हो गए और अमेरिका ने सोवियत संघ (रूस) को अलग-थलग करने के लिए चीन को लुभाने का प्रयास किया. 1980 और 2001 में बीजिंग और मॉस्को आभासी-सहयोगी बन गए. अमेरिका ने चीन को विश्व व्यापार संगठन (WTO)में शामिल होने में मदद की, जिससे उसे (चीन को) एक विनिर्माण और निर्यात के मामले में विशाल रूप से विकसित होने में मदद मिली. लेकिन 2017 के बाद से अमेरिका ने चीन को एक रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर घोषित किया है.
इसलिए, चीन तेल, अन्य वस्तुओं और कुछ उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी के स्रोत के रूप में रूस की ओर देखने लगा. वहीं यूक्रेन में संघर्ष के परिणामस्वरूप संबंधों की गतिशीलता चीन के पक्ष में बदल गई है. यह रूसी हैं जो अब अपने युद्ध के प्रयासों के लिए हथियार और गोला-बारूद मांग रहे हैं और बड़ी मात्रा में रियायती तेल चीन को बेच रहे हैं. अब रूस के कुल आयात और निर्यात का 30 प्रतिशत व्यापार चीन के साथ है जबकि चीन का व्यापार रूस के साथ महज 3 फीसदी ही है. इससे रूस की तुलना में चीन ज्यादा लाभ की स्थिति में है.
चीनी अब मानते हैं कि वे अमेरिका के साथ दीर्घकालिक टकराव में हैं जिसके परिणामस्वरूप ताइवान पर युद्ध हो सकता है और इसलिए उन्हें उन सभी सहयोगियों की आवश्यकता है जो उन्हें मिल सकते हैं. वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति (जहां जापान ने अपने सैन्य बजट को दोगुना करने के इरादे की घोषणा की है और यूरोपीय लोग यूक्रेन पर अमेरिकियों के पीछे खड़े हैं) को देखते चीन के पास कुछ ही विकल्प हैं. यूक्रेन में रूस को अगर झटका लगता है तो यह चीन पर और भी अधिक दबाव पैदा कर सकता है. इसलिए, बीजिंग ने एक ऐसी नीति अपनाई है जो रूस के साथ दृढ़ता से गठबंधन करते हुए भी शांति की सार्वजनिक हाव-भाव प्रस्तुत करती है.
इसलिए, कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि यद्यपि चीनी यात्रा को एक शांति मिशन के रूप में चित्रित कर रहे हैं, लेकिन इसका वास्तविक लक्ष्य राजनीतिक और सैन्य गठबंधन को मजबूत करना है, जिसके परिणामस्वरूप चीन अधिक रूसी तेल और गैस का आयात कर सकता है और बदले में चीनी चिप्स और अन्य तकनीक रूस को निर्यात कर सकता है. लेकिन इस बात की संभावना नहीं है कि इन विवरणों का खुलासा किया जाएगा.
यह देखा जाना बाकी है कि क्या चीनी हमले के ड्रोन और तोपखाने के गोला-बारूद और अन्य सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करेंगे. लेकिन इस तरह के निर्णय का चीन की उभरती हुई वैश्विक स्थिति और शांतिदूत के तौर पर उसकी स्व-घोषित मुद्रा दोनों पर प्रभाव पड़ेगा.
शी जिनपिंग की यात्रा के साथ ही ऐसा प्रतीत होता है कि एक वैश्विक शक्तियों का प्रदर्शन या खेल होने वाला है, जो कि वैश्विक व्यवस्था को निर्देशित और निर्धारित करने की संभावना रखता है. ऐसे में जब सामरिक संबंधों और राष्ट्रीय सुरक्षा की बात आती है तो भारत को इन संकेतों को गंभीरता से लेना चाहिए.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के ख्यात फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं. इनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined