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मुसीबतों से घिरे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, 1 साल में सब बदला

शी जिनपिंग किसी तरह महामारी पर काबू पाते दिख रहे हैं. लेकिन, इसके लिए उन्हें इकोनॉमी बंद करनी पड़ी

मनोज जोशी
नजरिया
Published:
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग
(फोटो: अर्निका काला/क्विंट हिंदी)

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बीते साल चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग डुशांबे में कॉन्फ्रेंस ऑन इंटरेक्शन और कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स इन एशिया (सीआईसीए) समिट में शिरकत कर रहे थे. उस दौरान उनका जन्मदिन (15 जून) भी था. तब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उन्हें केक, आइसक्रीम और गुलदस्ता देकर सरप्राइज पार्टी दी थी. दरसअल, पुतिन ने खुलासा किया था कि 2013 में उनके 61वें जन्मदिन पर जिनपिंग ने भी उन्हें सरप्राइज दिया था. उनके साथ वोदका शॉट लगाए थे और सैंडविच खाया था.

लेकिन इस बार जिनपिंग का जन्मदिन अलग माहौल में मना. न तो पुतिन उनके आसपास थे. आज के बुरे दौर में कैसी दोस्ती?

शी जिनपिंग किसी तरह महामारी पर काबू पाते दिख रहे हैं. लेकिन, इसके लिए उन्हें इकोनॉमी बंद करनी पड़ी. कुछ वक्त के लिए ही सही, लेकिन इसका प्रभाव तो दिख रहा है. जहां तक पुतिन की बात है तो रूस में कोरोना के मामले काफी बढ़े, लेकिन काबू नहीं हुए. अब सिर्फ संक्रमण कम हो रहा है.

8 साल के कार्यकाल में कोविड-19 सबसे बड़ा इम्तिहान

करीब एक साल पहले चीन ने संविधान में सशोधन करके राष्ट्रपति पद पर बने रहने की तय सीमा हटा दी थी. लेकिन शी न सिर्फ पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन के राष्ट्रपति है, बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के जनरल सेक्रेटरी भी हैं. साथ ही वह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सुप्रीम कमांडर भी हैं. इनमें से किसी भी पद की तय सीमा नहीं है.

शी को पूरे देश का सर्वेसर्वा कहा जाता है. असल में, उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया है. उन्होंने इसमें "एक नए युग के लिए चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद पर शी जिनपिंग के विचार' को जगह दी गई है.

जनवरी 2020, कोविड-19 की शुरुआत में चीन में राजनीतिक परिस्थितियां ज्यादा अच्छी नहीं थीं. हालांकि हांगकांग में चल रहे संघर्ष के कारण उसकी छवि को नुकसान तो पहुंचा था. लेकिन, स्थिति उतनी बुरी भी नहीं थी. जापान के साथ नजदीकी बढ़ रही थी. शी यहां दौरा करने वाले पहले चीनी राष्ट्राध्यक्ष बनने वाले थे. दोनों देशों के बीच दाेस्ताना गठबंधन के आसार बन रहे थे. जिनपिंग ने फेस 1 में अमेरिका के साथ ट्रेड डील कर मामले को मैनेज कर लिया था. हालांकि अमेरिका के साथ टकराव खत्म नहीं हुआ था, लेकिन कुछ हद तक कंट्रोल जरूर कर लिया था. वहीं, भारत की बात करें तो चेन्नई समिट 2019 से दोनों देशों के बीच रिश्ते सहज हुए थे.

देश के अंदर चीनी सेना को अत्याधुनिक बनाने का काम जोरों पर था. हालांकि आर्थिक सुधार के मोर्चों पर सरकार थोड़ी धीमी चल चल रही थी. हांगकांग का मामला बिगड़ा हुआ था, वहां पर पार्टी ने कार्रवाई करने का फैसला किया था. लेकिन कार्रवाई क्या हुई, उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

फिर, कोरोना सामने आया और कुछ वक्त के लिए ही सही, चीन हिल गया. वुहान से महामारी खत्म होने के बाद जब शी जिनपिंग पहली बार वुहान गए. इसी दौरान शिन्हुआ ने एक रिपोर्ट जारी की. इसमें कहा गया- जिनपिंग को सत्ता संभाले 8 साल हो गए हैं. लेकिन, पहली बार वो सबसे मुश्किल चुनौती का सामना कर रहे हैं.

जिनपिंग की वुहान यात्रा के मायने भी थे. महामारी के चलते चीन में कारोबार और फैक्ट्रियां बंद हो गईं. बाकी सब तो दूर सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स कांग्रेस पार्टी की मीटिंग भी टालनी पड़ी. शुरुआती गलतियों के बाद जिनपिंग ने कदम उठाए और संक्रमण रोका. लेकिन, यूरोप और अमेरिका के साथ ही यह दुनिया में तबाही मचा रहा है.

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महामारी के दौरान बदला वैश्विक समीकरण

आज पूरी दुनिया बदल चुकी है. कोविड-19 की वजह से चीन में बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं. बड़ी संख्या में शहरी कामगारों और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले प्रवासियों ने अपनी नौकरी खो दी.

वॉलस्ट्रीट जर्नल के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान तकरीबन 8 करोड़ लोगों के पास काम नहीं था. ये आंकड़ा सरकार की ओर से दिए आंकड़े 2.6 करोड़ से ज्यादा है. हालांकि सुधार की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन भविष्य का रास्ता अभी अनिश्चितता से भरा है, क्योंकि अमेरिका के साथ गतिरोध से चीन का नुकसान है.

जब कोविड-19 के फैलने में तेजी आई तो जिनपिंग दुनिया के बड़े लीडर्स का सपोर्ट लेने के लिए फोन करने लगे. इसमें मुख्य रूप से अमेरिका, रूस और ब्रिटेन शामिल थे. इसके अलावा उन्होंने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन, सऊदी किंग सलमान के अलावा दूसरी देश के शीर्ष नेताओं से भी संपर्क किया. लेेकिन जापानी पीएम शिंजो आबे या नरेंद्र माेदी से बात नहीं की. साफ तौर पर यहां दरार थी, जो आने वाले महीनों में साफ नजर आने लगी.

चीन और अमेरिका के संबंधों में जनवरी में कुछ सुधार हुआ, जब दोनों देशों ने ट्रेड डील फेस 1 साइन की. लेकिन, महामारी से रिश्ते खराब होते चले गए. अब दोनों नए शीत युद्ध की कगार पर हैं. व्हाइट हाउस ने चीन की कई कंपनियों पर पाबंदियां लगाईं. अब वो चीन से एकदम अलग होने की भी बात कर रहा है.

जब कोविड-19 संकट जाेरों पर था, तब चीन-जापान के रिश्ते बेहतर हो रहे थे. जिनपिंग अप्रैल के महीने में जापान की अपनी पहली यात्रा पर जाने वाले थे. लेकिन महामारी के कारण दौरा रद्द करना पड़ा. यह दौरा अब इस साल संभव होगा या नहीं, इस पर संदेह है. इस दौरे की टाइमिंग को लेकर मुद्दा नहीं है. बल्कि हांगकांग में चीन के नए सुरक्षा कानून के पास होने से जापान के साथ उसके रिश्तों में कड़वाहट आ सकती है. लेकिन इसकी वजह से बीजिंग और वॉशिंगटन के रिश्तों में खटास जरूर आई है.

चीन का भारत के साथ तनाव लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर होने वाली घटनाओं से समझ आता है. इसलिए यहां जिनपिंग सीधे फ्रंट पर नहीं आते. इसमें कोई शक नहीं कि भारत के साथ उनके रिश्ते ठीक अमेरिका पर भी निर्भर करते हैं.

चीन के लिए हर तरफ से बुरी खबर है. इसी कड़ी में जिनपिंग को चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव(बीआरअाई) को लेकर भी दिक्कतें आ रही हैं. चीन ने इस प्रोजेक्ट के लिए कई विकासशील देशों को मोटा लोन दिया है. अब उन देशों की ओर से चीन से आग्रह िकया जा रहा है कि वो थोड़ा या पूरा लोन माफ कर दें. राष्ट्रपति जिनपिंग की नीति के तहत बेतहाशा लोन बांटा गया, लेकिन अब इस कारण चीनी बैंक मुश्किल में आ गए हैं.

जी20 समिट के बाद, चीन ने गरीब देशों को उनके कर्ज के भुगतान के लिए 2020 के आखिर तक राहत दी है. लेकिन कर्जमाफी के बारे में कुछ नहीं कहा. दरअसल, दोष चीन का भी नहीं है. अगर चीन द्वारा दिए गए लोन को जोड़ लें तो तकरीबन 0.6 ट्रिलियन डॉलर का हिसाब बैठता है। यह एक भारीभरकम रकम है. अब चीन ने बीआरआई को हेल्थ सिल्क रोड के तौर पर सक्रिय किया है. इसकी मदद से वह कोरोना प्रभावित देशों को मेडिकल सप्लाई करना चाहता है.

अतिमहत्वपूर्ण नीतियों को पर विचार करने का समय?

कोरोना महामारी में लॉकडाउन, सरकारी गतिविधियों और ट्रैवलिंग पर रोक ने जिनपिंग को कुछ समय तक उनकी नीतियों पर सोचने का समय दिया है. फिर चाहे वो मजबूत सैन्य शक्ति का सपना हो, आर्थिक सुधार हो या फिर बीआरआई( बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव).

शी ये जरूर सोच रहे होंगे कि क्या उनके राष्ट्रपति के कार्यकाल को बढ़ाने का विचार ठीक था. आप इसे चाहे जैसे देखें, लेकिन चीन 2023 तक उनके दूसरे कार्यकाल तक मुसीबतों और अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है. ऐसे में अगर जिनपिंग चीन के पूर्व राष्ट्रपतियों की रिटायर होकर गार्डनिंग करने या पोता-पोतियों के साथ समय बिताने के बारे में सोचें तो उन्हें माफ किया जाना चाहिए.

(लेखक नई दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में वरिष्ठ फेलो है.)

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