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इनकम टैक्स, रोजगार, MSME, बैंकिंग, किसान-बजट 2022 से उम्मीदें

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के लिए सुखद बात यह है कि जीएसटी कलेक्शन में लगातार सुधार हुआ है.

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आम बजट (Budget) की सफलता इस बात में है कि यह अर्थव्यवस्था (Economy) में गति पैदा करे. रोजगार, आमदनी, खर्च और राजस्व बढ़ाने की स्थितियां पैदा हो. लोक कल्याणकारी योजनाएं भी हों और निवेश के लिए वातावरण भी. खर्च और आमदनी में ऐसा सामंजस्य बने कि राजस्व घाटा नियंत्रण में रहे. 6.5 फीसदी के वर्तमान राजस्व घाटे को 2025 तक 4.5 फीसदी के स्तर पर लाने का लक्ष्य लेकर सरकार चल रही है. आम बजट में इस बात का भी ध्यान रहेगा. चिंता की बात यह है कि महामारी (Pandemic) के बाद केंद्र और राज्य सरकार का साझा राजस्व घाटा औसतन 12 फीसदी तक जा पहुंचा है.

सरकारी खर्च में कमी आई है. इस साल सरकार को 35.8 लाख करोड़ रुपये खर्च करने थे लेकिन 60 फीसदी हिस्सा भी खर्च नहीं हो सका है. वहीं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के लिए सुखद बात यह है कि जीएसटी कलेक्शन में लगातार सुधार हुआ है.

बीते छह महीने में औसतन 1.2 लाख करोड़ रुपये सिर्फ जीएसटी से आए हैं.

डायरेक्ट टैक्स रिकवरी, चालू वर्ष में 13.5 लाख करोड़ से ज्यादा रहने का अनुमान है. सरकार की कुल कमाई अनुमान से 30 फीसदी ज्यादा रहने की उम्मीद वित्तमंत्री को हौंसला दे रही है. खर्च में कमी और बढ़ी आमदनी से राजस्व घाटा नियंत्रित करने में निर्मला सीतारामन को मदद मिलेगी.

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6 फीसदी हो शिक्षा बजट

महामारी के दौर में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है. देश की दीर्घकालिक सेहत के लिए इसमें निवेश बढ़ाना होगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शिक्षाविद संजय सिंह बघेल इस बात पर अफसोस जताते हैं कि आज शिक्षा पर खर्च आम बजट का 3 प्रतिशत भी नहीं रह गया है.

पिछले आम बजट में शिक्षा पर कुल 93,223 करोड़ रुपये आवंटित किए गये थे जो बीते वर्ष 99,311 करोड़ के शिक्षा बजट से 6 फीसदी कम रहा था. श्री सिंह बताते हैं कि अर्जुन सिंह के HRD मंत्री रहते शिक्षा पर अधिकतम 12 फीसदी का बजट रहा था.

उन्हें उम्मीद है कि कम से कम सरकार शिक्षा बजट को 6 फीसदी के स्तर पर लाएगी. इसके बगैर गुणवत्तायुक्त शिक्षा की ओर हम आगे नहीं बढ़ सकते.

जीडीपी (GDP) के मुकाबले सरकार का ऋण 92 फीसदी के स्तर पर आ गया है जो बीते 18 साल में अधिकतम है. मगर, अर्थव्यवस्था में सुधार से उम्मीद भी जगी है.

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने 2021-22 के लिए भारत की जीडीपी में वृद्धि की दर 9.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. वैसे 2022-23 के लिए अर्थशास्त्रियों में लगभग यह आम राय है कि जीडीपी में वृद्धि दर 7.6 फीसदी होगी.

कोविड काल में भारत की जीडीपी नकारात्मक रूप से 7.3 फीसदी के स्तर पर पहुंच गयी थी. इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है और ऐसा ‘वी’ आकार वाली शैली में हो रहा है.

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छोटे उद्यमियों में है बड़ी उम्मीद

उपरोक्त पृष्ठ भूमि में छोटे उद्यमी आम बजट से उम्मीद लगाए बैठे हैं. उनका मानना है कि लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देकर ही रोजगार पैदा किए जा सकते हैं. एमएसएमई (MSME) के दायरे में आने वाले उद्योग-धंधों पर कोरोना काल में सबसे बुरा असर पड़ा है.

सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर भी यही है. लघु उद्यमी केके कठेरिया इस बात पर जोर देते हैं कि आम बजट में खास तौर से लघु उद्योगों के लिए घोषणाएं होनी चाहिए. उन्हें दीर्घकालिक सस्ते ऋण उपलब्ध कराए जाएं. कठेरिया कहते हैं कि कोविड काल में बीते वर्ष केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ की जो घोषणा की थी वो बेअसर इसलिए रही क्योंकि एमएसएमई वर्ग में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे आसानी से उपलब्ध कराया जाने वाला लोन भी ले सकें. ब्याज लौटाने की स्थिति में वे नहीं थे. इस पर वित्तमंत्री को ध्यान देना होगा.

नौकरी-पेशा वर्ग 8 साल से हर आम बजट के बाद नाउम्मीद होता रहा है. आमदनी पर टैक्स की न्यूनतम सीमा बढ़ाए जाने की उम्मीद रही है. अभी ढाई लाख तक की आय टैक्सफ्री है.

दिल्ली सरकार में प्रथम श्रेणी के अधिकारी क्षितिज कुमार मिश्रा कहते हैं कि महंगाई लगातार बढ़ी है और टैक्स की मार भी. वेतनभोगी कर्मचारी इसका शिकार हुआ है. उनके पॉकेट ढीले हुए हैं. ऐसे में टैक्स की सीमा को ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख किया जाना चाहिए.

हालांकि श्री मिश्रा कहते हैं कि इससे सरकार के राजस्व पर जो असर पड़ेगा उसके लिए सरकार इस विकल्प पर विचार करे कि अधिक से अधिक लोगों को टैक्स के दायरे में कैसे लाया जाए.

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निजीकरण से सशंकित हैं बैंककर्मी

फिक्स डिपॉजिट पर टैक्स लगने का असर बैंकों के धंधे पर भी पड़ा है. अब लोग बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट कराने के बजाए कोई और विकल्प देख रहे हैं. ऐसे में भारतीय बैंक एसोसिएशन ने मांग की है कि 3 साल की अवधि वाले फिक्स्ड डिपॉजिट को टैक्स फ्री किया जाना चाहिए.

बैंककर्मी कृष्णा कुमार का कहना है कि पब्लिक सेक्टर बैंक का मार्केट शेयर हर साल 2 प्रतिशत कम हो रहा है. अगले पांच साल में यह 50 फीसदी से कम हो जाएगा. इस तरह बगैर निजीकरण किए ही बैंकों का निजीकरण हो चुका होगा. बैंकों के निजीकरण को लेकर बीजेपी नेता वरुण गांधी ने भी सवाल उठाए हैं.

बैंकों के निजीकरण पर उठ रही आशंकाओं के बीच केंद्र सरकार विनिवेश प्रक्रिया पर विराम लगाएगी, इसकी उम्मीद कम है. बीते वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार ने पीएसयू के विनिवेश से 1.75 ट्रिलियन रुपये इकट्ठा करने की उम्मीद लगाए बैठी थी, लेकिन यह लक्ष्य अधूरा रह गया. बीते दिनों संसद में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने इस बात को स्वीकार किया था कि दो बैंकों के निजीकरण को अंजाम नहीं दिया जा सका है. वहीं विपक्ष सरकार के विनिवेश नीति पर सवाल उठा रहा है जिसमें कहा जा रहा है कि सरकार औने-पौने दाम पर सरकारी संपत्ति बेच रही है.

किसानों को खुश कर पाएगी सरकार?

किसानों को राहत देने वाली खबरों की भी उम्मीद की जा रही है. खासकर पांच राज्यो में हो रहे चुनाव को देखते हुए यह उम्मीद है. किसानों में इस बात को लेकर नाराजगी रही है कि बिजली, डीजल और परिवहन खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी से खेती महंगी हो गयी है.

किसान नेता बृजेश भाटी कहते हैं कि किसान सम्मान निधि ऊंट के मुंह में जीरा है. सरकार को चाहिए कि उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने की व्यवस्था करे. ऐसा तभी हो सकता है जब अधिक से अधिक फसलों को समर्थन मूल्य के दायरे में लाया जाए.

भाटी कहते हैं कि कृषि बजट में बढ़ोतरी की जानी चाहिए. अनाज के संग्रहण के लिए स्टोरेज बनाने के लिए सरकार किसानों को मदद देने की घोषणा करे.

कोरोना के इलाज पर होने वाली खर्च को टैक्स छूट के दायरे में लाने की मांग उठ रही है. हालांकि बीते वर्ष केंद्र सरकार ने कोरोना के इलाज पर खर्च को लेकर घोषणाएं की थीं लेकिन एक समरूप नियम की मांग की जा रही है. कोरोना से अपने परिजनों को खोने वाले नितिन कुमार जैन कहते हैं कि अगर किसी के घर में कोरोना के कारण मौत होती है तो इलाज के दौरान हुए खर्च को टैक्स के दायरे से बिल्कुल बाहर रखा जाना चाहिए.

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कॉरपोरेट टैक्स सरकार पहले ही 30 फीसदी के स्तर से कम करते हुए 21 फीसदी के स्तर पर ला चुकी है. बड़े कॉरपोरेट घरानों को इसका लाभ भी मिला है. लिहाजा वे बहुत अधिक उम्मीद नहीं करते.

कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने सुझाव दिया है कि सभी वर्ग के लोगों के लिए बूस्टर डोज सुनिश्चित करने के लिए सीएसआर फंड्स में 1 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स जोड़ा जाना चाहिए.

ऐसा 12 महीनों के लिए किया जाए. सीआईआई अध्यक्ष टीवी नरेंद्रन ने कहा 2022-23 के बजट पर सारा ध्यान इस बात पर हो कि आर्थिक स्थिति कैसे मजबूत हो.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के लिए पूरा मौका है कि वह ऐसा बजट बनाएं जो बेरोजगारों के लिए उम्मीद लेकर आए तो उद्यमियों के लिए अवसर. कोरोना से लड़ाई के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार का भी अवसर है. किसान से लेकर नौकरी पेशा वर्ग तक और लघु व मझोले उद्योगों तक को आम बजट से उम्मीद है जिन्हें पूरा करने की कोशिश वित्तमंत्री कर सकती हैं.

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