भारत का आम बजट (Union Budget 2022) एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सितारमण (Nirmala Sitharaman) पेश करने वाली हैं. मीडिया में छप रही खबरों में इस बात की चर्चा ज्यादा है कि इस समय देश और दुनिया को जरूरत है कि इकॉनमिक रिकवरी पर ध्यान दें, बढ़ती महंगाई को रोकने का प्रयास करें और बढ़ती बेरोजगारी पर ध्यान दें. हर जगह एक्सपर्ट भी यही राय दे रहे हैं कि बजट को इन तीन प्रमुख समस्या पर गौर करना चाहिए.
वहीं कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि पिछले दो साल से कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं का जो हाल किया है उससे उन्हें समझ आता है कि स्वास्थ्य बजट (हेल्थ बजट) भी आम बजट की प्राथमिकता होनी चाहिए.
हेल्थ बजट क्यों आम बजट की प्राथमिकता होनी चाहिए?
भारत में जब से कोरोना महामारी ने दस्तक दी है तब से देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुलना शुरू हुई है. कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह से स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हैं, ये एक गंभीर समस्या है. भारत में स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी भी एक अलग समस्या है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियम के अनुसार हर 300 मरीजों पर एक नर्स की जरूरत होती है जबकि 15वें वित्त आयोग के मुताबिक, जनसंख्या पर नर्स का अनुपात भारत में 1:670 है यानी 670 मरीजों पर एक नर्स.
2021-22 के आम बजट को देखें तो बजट के कुल खर्च का स्वास्थ्य मंत्रालय को 2 फीसदी के आसपास का हिस्सा दिया जाता है जो जीडीपी के अनुपात में और भी कम है.
आम बजट से स्वास्थ्य के क्षेत्र को क्या उम्मीदें हैं?
महामारी विशेषज्ञ और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ चंद्रकांत लहरिया कहते हैं, "भारत में सरकारी स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का 1.3% है भले ही हम राज्य और केंद्र सरकार के खर्च को एक साथ मिला दें तो भी. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 ने इसे 2025 तक जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, पिछले 7 वर्षों में इसमें मामूली रूप से 0.15% की वृद्धि हुई है. देश स्वास्थ्य खर्च पर NHP, 2017 के लक्ष्य को हासिल करने की राह पर नहीं है."
वो आगे कहते हैं कि, समय आ गया है कि सरकार भारत के सभी राज्यों में मानव संसाधन (स्वास्थ्य कर्मचारियों) की वैकेंसी को भरने के संसाधन आवंटित करे.
उजाला सिग्नस के फाउंडर डॉ सुचीन बजाज कहते हैं कि हेल्थ पर खर्च होने वाला पैसा बहुत कम है, कई देश हेल्थ पर जीडीपी का 10 फीसदी खर्च कर रहे हैं, अमेरिका तो 17 फीसदी खर्च करता है, हालांकि भारत में यह संभव नहीं है लेकिन भारत को चाहिए कि जल्द से जल्द हेल्थ पर खर्ज को बढ़ा कर जीडीपी का 3 फीसदी किया जाए जिसे बाद में धीरे-धीरे बढ़ाया जाए.
साथ ही वो कहते हैं कि भारत के टू टीयर और थ्री टीयर शहरों और छोटे कस्बों में अभी और अस्पतालों को स्थापित करने की जरूरत हैं साथ ही वहां काम करने वाले डॉक्टर्स को भी आर्थिक आधार पर प्रोतेसाहित करने की जरूरत है.
"डबल होना चाहिए हेल्थ बजट"
गांधीनगर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के डाइरेक्टर प्रो दिलीप मावलंकर ने कहा, भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में हेल्थ पर होने वाले खर्च में बहुत ही ज्यादा कमी है. ग्रामीण इलाकों में 30 हजार की आबादी पर एक-दो डॉक्टर हैं जबकि विदेशों में हर 2 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर की व्यवस्था है. शहरी इलाकों में हालात और भी खराब हैं. यहां लाखों की आबादी एक हेल्थ केयर सेंटर पर निर्भर है वो अलग बात है कि कई प्राइवेट क्लीनिक हैं लेकिन वो फीस वसूलते हैं.
वो कहते हैं कि देश में डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है. स्वास्थ्य कर्मचारियों सैलेरी भी कम मिलती है जिसकी वजह से वो प्राइवेट सेक्टर का रुख करते हैं. डॉ मावलंकर का मानना है कि स्वास्थ्य बजट सीधे-सीधे डबल किया जाना चाहिए.
इसके अलावा पिछले साल से एक और बहस चली कि भारत के अमीर लोगों पर कोरोना टैक्स या सेस लगाया जाए ताकि महामारी ने जो भारी नुकसान पहुंचाया है उसकी भरपाई हो सके. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये कोई अच्छा आईडिया नहीं है, टैक्स लगाने से स्थिति नहीं सुधरने वाली जरूरी है कि सरकार हेल्थ पर अधिक से अधिक खर्च करे.
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