वित्त मंत्री निर्मला सितारमण (Nirmala Sitharaman) ने कहा है कि इस बार के बजट (Budget 2024) में 'किसी बड़ी घोषणा की अपेक्षा ना करें'. वित्त मंत्री ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि इस बार पूरा बजट पेश नहीं होगा. इस बार केवल अंतरिम बजट (Interim Budget) ही पेश किया जाएगा. चलिए आपको समझाते हैं कि अंतरिम बजट, पूर्ण बजट से किस तरह अलग है?
क्या होता है अंतरिम बजट?
चुनावी साल में सरकार फुल बजट पेश नहीं करती, इस दौरान अंतरिम बजट ही जारी किया जाता है. वित्त मंत्री अंतरिम बजट में एक छोटी अवधि (शॉर्ट टर्म) के लिए सरकार के खर्चों और राजस्व को पेश करते हैं जब तक कि एक नई सरकार निर्वाचित होकर कार्यभार नहीं संभाल लेती. यानी अंतरिम बजट में केवल उतने फंड का प्रावधान होता है जब तक कि नई सरकार चुनकर न आ जाए.
इसीलिए अंतरिम बहजट को अस्थायी वित्तीय विवरण (Temporary Financial Statement) भी कहते हैं.
अंतरिम बजट में सरकार के अनुमानित खर्च, राजस्व, सरकार का घाटा, वित्तीय स्थिति को शामिल किया जाता है. वहीं अंतरिम बजट में बड़ी नीतिगत घोषणा नहीं की जा सकती, क्योंकि अंतरिम बजट पेश करने वाली सरकार निर्वाचित नहीं हुई तो इससे नई सरकार पर वित्तीय बोझ पड़ेगा. चुनाव आयोग की आचार संहिता भी अंतरिम बजट में किसी भी बड़ी योजना को शामिल करने की अनुमति नहीं देती है क्योंकि इससे मतदाता प्रभावित हो सकते हैं.
फुल बजट और अंतरिम बजट में क्या अंतर है?
"पूर्ण बजट", या केंद्रीय बजट, अगले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की लागत (अनुमानित) और खर्च (अनुमानित) का वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) भी कहा जाता है.
लेकिन अंतरिम बजट में सालभर का ब्यॉरा नहीं होता, केवल उतना ही होता है जितने में सरकार अगली सरकार के निर्वाचित होने तक चल जाए.
कब पेश होगा अंतरिम बजट?
अंतरिम बजट 1 फरवरी 2024 को सुबह 11 बजे संसद के बजट सत्र के दौरान पेश किया जाएगा. इसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेगी.
बता दें कि नई सरकार के निर्वाचित होने के बाद नई सरकार फुल बजट पेश करती है. आमतौर पर ये बजट जुलाई में पेश किया जाता है.
वोट-ऑन-अकाउंट क्या होता है?
बजट के जरिए वोट-ऑन-अकाउंट भी पारित किया जाता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वोट-ऑन-अकाउंट और अंतरिम बजट दोनों एक बाते हैं. दरअसल वोट-ऑन-अकाउंट एक प्रावधान है जो सरकार को कर्मचारियों की सैलेरी और बाकी जरूरी सरकारी खर्चे के लिए संसद से मंजूरी लेनी होती है.
इसमें बड़े नीतिगत बदलाव या लंबे समय तक चलने वाली कोई नई योजना शामिल नहीं होती, क्योंकि इन्हें आमतौर पर आम चुनावों के बाद पूर्ण बजट में पेश किया जाता है. यह आमतौर पर दो महीने तक के लिए वैध होता है लेकिन इसे बढ़ाया भी जा सकता है.
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