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रघुवंश ने 32 साल की यारी 38 शब्दों में तोड़ी,लालू का पर्सनल नुकसान

बिहार चुनाव 2020 के पहले RJD से रघुवंश प्रसाद सिंह के जाने का मतलब

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लालू यादव (Lalu Yadav) को यकीन नहीं हो रहा कि उनके पारिवारिक और पॉलिटिकल मित्र रघुवंश (Raghuvansh prasad singh) साथ छोड़ गए हैं. 32 साल की दोस्ती, क्या सिर्फ 38 शब्दों की चिट्ठी से टूट गई? रघुवंश ने लालू को एक छोटी सी चिट्ठी लिखी- 32 साल आपकी पीठ के पीछे रहा, लेकिन अब नहीं.

कुछ ही देर में लालू ने रघुवंश को लिखा- ''चार दशकों में हमने हर राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक मुद्दे पर मिल बैठकर विचार किया. स्वस्थ हो जाएं, बैठकर बात करेंगे, आप कहीं नहीं जा रहे.''

मालूम नहीं लालू की इच्छा पूरी होगी या नहीं लेकिन ऐन चुनाव से पहले रघुवंश का RJD छोड़ने का ऐलान एक बड़ी घटना है. शायद इस बिहार विधानसभा चुनाव 2020 से भी परे की घटना.

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दो मित्र- एक जेल में, दूसरा अस्पताल में

इसे वक्त का पहिया कहिए या जो भी, इन दोनों की एक वक्त में बिहार में हनक थी और देश में धमक. आज लालू चारा घोटाले की सजा काट रहे हैं और रघुवंश दिल्ली के अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. कुछ दिन पहले उन्हें कोरोना डिटेक्ट हुआ था.

जेपी आंदोलन के वक्त रघुवंश को पटना के बांकीपुर जेल में बंद किया गया. यहीं लालू भी बंद थे. लालू छात्र नेता और रघुवंश शिक्षक. यहां से जो दोस्ती शुरू हुई वो आज तक जारी है, और लालू का भरोसा कायम रहा तो आगे भी जारी रहेगी.

जैसा कि लालू ने लिखा है कि रघुवंश वाकई में उनके पारिवारिक मित्र हैं. घोटालों के आरोपों से घिरी पार्टी में रघुवंश ऐसे नेता थे, जिन्हें बेदाग माना जाता था. पिछड़ों की राजनीति करने वाली आरजेडी में अगड़ों का चेहरा. तमाम विरोधाभाष के बावजूद रघुवंश ने अच्छे-बुरे वक्त में लालू का साथ निभाया. दोस्ती का आलम ये था कि सिर्फ इसी के लिए कांग्रेस में जाने से मना कर दिया, वो भी तब जब कांग्रेस सत्ता पर मजबूती से जमी थी.

रघुवंश ने हमेशा लालू, उनके परिवार और पार्टी का भला ही चाहा. कभी वो तेज प्रताप की शादी बचाने की कोशिश करते तो कभी नीतीश और लालू को मिलाकर तेजस्वी का सियासी भविष्य संवारने का प्लान बनाते. लेकिन हाल फिलहाल कई ऐसी घटनाएं हुईं कि रघुवंश के पार्टी से निकलने का कयास लगने शुरू हो गए थे.

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क्यों खफा थे रघुवंश

इस साल की शुरुआत में रघुवंश ने लालू को चिट्ठी लिखकर पार्टी की कार्यशैली पर नाराजगी जताई थी. वो पार्टी में लोकतंत्र की मांग कर रहे थे. जून में उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दिया था. लेकिन हाल फिलहाल मतभेद बढ़ता गया.

2014 के लोकसभा चुनाव में वैशाली सीट से जिस बाहुबली नेता रामा सिंह ने रघुवंश को हराया था, अब उन्हें ही पार्टी में लाने की पूरी तैयारी है. हाल ही में रामा सिंह ने कहा था कि उन्हें कोई भी आरजेडी में आने से नहीं रोक सकता. रघुवंश रामा सिंह को पार्टी में लाने का विरोध कर रहे थे. रामा सिंह ने रघुवंश के बारे में कहा कि उन्होंने राजद के लिए किया क्या है, फिर भी तेजस्वी चुप रहे. इससे रघुवंश का नाराजगी और बढ़ी.

2019 लोकसभा चुनाव के समय तेजस्वी ने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था, रघुवंश इससे सहमत नहीं थे. 2014 और 2019 की लोकसभा चुनाव में हार के बाद उम्मीद थी कि लालू अपने पुराने साथी को राज्यसभा भेजेंगे ये भी नहीं हुआ.

प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से भी रघुवंश के मतभेद रहे हैं. रघुवंश ने उन्हें अध्यक्ष बनाने का विरोध किया था. हाल ही में तेज प्रताप यादव ने कहा था - आरजेडी समुद्र है, रघुवंश एक लोटा पानी. हालांकि इसके लिए लालू ने तेज प्रताप को फटकार भी लगाई थी और माफी मांगने के लिए कहा था.

रघुवंश की कहानी

  • 1946 में जन्मे रघुवंश वैशाली जिले के महनार के रहने वाले हैं
  • मुजफ्फरपुर की बिहार यूनिवर्सिटी से पढ़ाई, गणित में पीएचडी की
  • डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद 1969 से 1974 तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में पढ़ाया.
  • शिक्षक आंदोलन में कई बार जेल गए, प्रोफेसर पद से बर्खास्त किए गए
  • कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आने के बाद सियासी सफर शुरू
  • 1977-1990 तक विधायक रहे
  • 1977-79 और फिर 1995-96 में बिहार में मंत्री रहे
  • 1996 में पहली बार सांसद बने, पांच बार चुने गए
  • केंद्र में पशुपालन राज्यमंत्री, खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री रहे
  • दो बेटे हैं. दोनों इंजीनियर. एक दिल्ली,एक हॉन्गकॉन्ग में. बेटी पत्रकार हैं

संसद से सड़क तक RJD की आवाज बुलंद करने वाले रघुवंश प्रखर वक्ता हैं, एक उदाहरण है ये वीडियो

आरजेडी से रघुवंश के जाने का मतलब

रघुवंश पार्टी का वो चेहरा थे, जिनका पार्टी के अंदर ही नहीं बाहर भी सम्मान था. प्रखर वक्ता, साफ छवि, ये सब पार्टी के लिए बहुत काम आता था. और सबसे बड़ी वफादारी. जेडीयू और आरजेडी के बीच पुल का काम किया करते थे. वो चाहते थे कि नीतीश और लालू फिर एक हो जाएं. हो सकता है कि पार्टी को जमीन पर उनके जाने से उतना फर्क नहीं पड़े लेकिन परसेप्शन के लेवल पर काफी असर होगा. इतने बड़े नेता के जाने पर विपक्ष के तीर चलेंगे सो अलग.

अभी अस्पताल में हैं, बाहर निकलेंगे तो पता चलेगा कि चर्चा के मुताबिक जेडीयू में जाएंगे या नहीं? या फिर लालू दोस्ती का हवाला देकर उन्हें रोकने में कामयाब हो जाएंगे. रघुवंश के रुख से ये भी साफ होगा कि पार्टी में कद घटने से उनके अंदर आग लगी है या फिर बाहर से कोई आग को हवा दे रहा है?

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