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Jukebox: कलम से इश्क को अमर करने वाले गुलजार के 11 नगमें

गुलजार को फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान- दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है.

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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अगर शब्दों से जादू बिखेरना किसी को आता है, तो वो नाम गुलज़ार (Gulzar) है. कई दशकों के अपने सफर में गुलज़ार ने सिनेमा जगत को कई बेहतरीन नगमें दिए हैं. 'तुझसे नाराज नहीं जिंदगी', 'मेरा कुछ सामान' से लेकर 90 के दशक के 'छैय्यां छैय्यां', 'नाम अदा लिखना' और फिर 'पहली बार' और 'दिल तो बच्चा है जी' तक, गुलजार ने अपने कलम से इश्क को हमेशा के लिए अमर कर दिया.

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सिनेमा जगत में योगदान के लिए गुलजार को पद्म भूषण, साहित्य अकादमी अवॉर्ड और फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान- दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है. 'स्लमडॉग मिलेनियर' के गाने 'जय हो' के लिए उन्हें एआर रहमान के साथ ऑस्कर और ग्रैमी अवॉर्ड भी मिला था.
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मुल्क की तकसीम से पहले, पाकिस्तान में सूबा पंजाब के झेलम जिले में, 18 अगस्त 1934 को गुलज़ार का जन्म हुआ था. उनका बचपन का नाम संपूर्ण सिंह कालरा रखा गया. लिखने का शौक बचपन से था, लेकिन पिता, माखन सिंह कालरा ने हमेशा तल्ख अंदाज में विरोध ही किया. लेकिन पिता के विरोध के बावजूद, विभाजन के बाद वो पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए और गैराज में काम करते-करते पेंटिंग करने की तरफ रुझान बढ़ा. इसके बाद, गुलजार की किस्मत उन्हें लेखनी में ले आई और वो हिंदी सिनेमा जगत के सबसे उम्दा शायरों में से एक बन गए.

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