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उत्तराखंड: क्या 'सिर्फ हिंदुओं' के लिए तैयार हो रही देवभूमि? | Documentary

'देवभूमि' की "रक्षा" और उसे "शुद्ध" करने की दलीलें उत्तराखंड को केवल हिंदूओं के राज्य के रूप में स्थापित करने के प्रयास हैं.

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

कैमरापर्सन: शिव कुमार मौर्य

56 वर्षीय मुनीफा खातून के बेटे की शादी नजदीक थी. ऐसे में उत्तराखंड के हलद्वानी में उन्होंने अपने दशकों पुराने घर को रेनोवेट कराने में पिछले कई महीने बिताए थे. उनके बेटे की शादी ईद के बाद अप्रैल में होने वाली थी. मुनीफा खातून विधवा हैं. उन्होंने अपने बच्चों को घर के रेनोवेशन पर बहुत अधिक खर्च नहीं करने को कहा था.

लेकिन अब, फरवरी 2024 में यानी बेटे की शादी से दो महीने पहले, खातून खुद को टूटे हुए कांच के टुकड़ों के बीच बैठी हुई पाती है. उसने घर के रेनोवेशन कराते हुए जो नए उपकरण लगाए थे और साज-सज्जा का काम करवाया था, वे सभी धूल में मिल गए हैं.

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मुनीफा खातून के घर के ठीक सामने स्थित एक मदरसे और मस्जिद को बुलडोजर चला के गिरा दिया गया. इसके लगभग एक हफ्ते बाद, 14 फरवरी को खातून सब्जियां खरीदने और एक पड़ोसी से मिलने के लिए बाहर निकलीं. उन्होंने कहा, "हालात अभी भी तनावपूर्ण हैं लेकिन कर्फ्यू हटाया जा रहा है और मुझे अब सब्जियों की जरूरत है." सब्जी खरीदने के बाद खातून अपने पड़ोसी के यहां चली गईं. खातून ने आरोप लगाया कि अपने पड़ोसी की छत से उसने पुलिस अधिकारियों को उसके आवास में घुसते और तोड़फोड़ करते देखा. जब खातून वापस लौटीं, तो वो अपना घर पहचान नहीं पा रही थीं.

मदरसा और मस्जिद कभी मुनीफा खातून के घर के ठीक सामने थे. अब उसकी जगह एक पुलिस चौकी बना दी गई है. इसके डेमोलिशन ने न केवल अपने पीछे विनाश छोड़ दिया है, बल्कि अफसोस भी छोड़ा है.

सालों पहले, मुनीफा खातून के परिवार के पास बीच हल्द्वानी में स्थित इस घर को अच्छी कीमत पर बेचने का विकल्प था. उनके बच्चे हरियाणा में बस गए थे और इसलिए उन्हें यह घर रखने की जरूरत नहीं थी. सभी बच्चे घर बेचने के पक्ष में थे. हल्द्वानी में पैदा हुईं और पली-बढ़ी मुनीफा खातून ने विरोध किया.

अब खातून कहती हैं, “मुझे हमेशा से ही हल्द्वानी पसंद रहा है. मैं हमेशा यहीं रही हूं. यह मेरे चेहरे पर एक तमाचा है. मेरे बच्चे कह रहे हैं कि मां की इच्छा की वजह से हम अब सड़कों पर हैं.''

मुनीफा खातून की नाराजगी, हताशा और निराशा की भावना सिर्फ उनकी कहानी नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में, उत्तराखंड में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, मस्जिदों और मजारों को ध्वस्त करने, मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार और कुछ क्षेत्रों से मुस्लिम समुदाय के लोगों के जबरन बड़े पैमाने पर पलायन की घटनाओं में भारी वृद्धि देखी गई है.

इसी तरह की घटनाएं अन्य राज्यों में भी देखी जा सकती हैं, लेकिन जो चीज उत्तराखंड को अलग करती है, वह 'देवभूमि' की "रक्षा" और "शुद्ध" करने के आंदोलन के हिस्से के रूप में इन कदमों को वैध बनाने के प्रयास हैं.

क्विंट ने पूरे उत्तराखंड का दौरा किया, यह समझने के लिए कि देवभूमि की 'रक्षा' करने के खुले आह्वान का असर मुसलमानों पर कैसा होता है? कैसे वें दमन का शिकार होते हैं और उनका आर्थिक बहिष्कार किया जाता है. यहां देखिए पूरी डॉक्यूमेंट्री.

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