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महिलाएं फिगर खराब होने के डर से स्तनपान नहीं करातीं,क्या ये सच है?

ये साफ तौर पर देखा जा सकता है कि ब्रेस्टफीडिंग के आंकड़ों में वृद्धि हुई है

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मध्य प्रदेश की गवर्नर और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने महिलाओं पर विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि शहरों में महिलाओं को लगता है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से उनका फिगर खराब हो जाएगा.

आनंदीबेन पटेल ने बुधवार को इंदौर के काशीपुरी, आंगनवाड़ी केंद्र में एक कार्यक्रम के दौरान कहा:

‘’आज भी शहरों में महिलाओं का मानना है कि स्तनपान उनका फिगर खराब कर देगा, यही कारण है कि वे अपने बच्चों को स्तनपान नहीं कराती हैं. वे बोतल से अपने बच्चों को दूध पिलाना शुरू कर देती हैं.’’
आनंदीबेन पटेल, गवर्नर, मध्य प्रदेश 
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माननीय गवर्नर महोदया यहीं नहीं रुकीं. इतना सब कुछ कहने के बाद उन्होंने ये भी कहा, ''अगर बच्चों को बोतल से दूध पिलाया जाता है, तो उनकी किस्मत भी बोतल की तरह बिखर जाएगी.''

जरा आकड़ों पर भी नजर डालें

अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें, तो ये साफ तौर पर देखा जा सकता है कि ब्रेस्टफीडिंग की संख्या में वृद्धि हुई है. इसका असर इंफेन्ट मॉर्टैलिटी रेट पर भी पड़ा है. 1992-93 में जो दर 78.5 फीसदी थी, वो 10 साल में 2005-06 तक 21 फीसदी घटकर 57 फीसदी हो गई है.

इंडिया स्पेंड में दिए आंकड़ों और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (NFHS) के मुताबिक ये आंकड़ा 2015-2016 में 41 फीसदी था.

इसी रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआती ब्रेस्टफीडिंग मामले में भी 32.1 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है. यहां NFHS-4 के और भी लेटेस्ट डाटा हैं, जो आप अपने आने वालो भाषणों में इस्तेमाल कर सकती हैं.

स्नैपशॉट
  • शहरी इलाकों में 42.8 परसेंट बच्चों को हर आधे घंटे में ब्रेस्टफीड कराया जाता है. वहीं ग्रामीण इलाकों में 41 परसेंट बच्चों को ब्रेस्टफीड कराया जाता है

  • शहरी इलाकों में 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को 52.1 परसेंट विशेष रूप से ब्रेस्टफीड कराया जाता है. वहीं ग्रामीण इलाकों में 56 परसेंट ब्रेस्टफीड कराया जाता है

साफ तौर पर ये देखा जा सकता है कि पिछले कुछ सालों में महिलाओं में ब्रेस्टफीडिंग कराने के आंकड़े बढ़े हैं. शहरी और ग्रामीण इलाकों की बात करें, तो ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं की संख्या लगभग बराबर है.

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शहरी महिलाओं के लिए शरमाने की क्या बात है?

यहां कोई भी ब्रेस्टफीडिंग से होने वाले फायदों से इनकार नहीं कर रहा. यूनिसेफ के मुताबिक, शिशु के पैदा से लेकर उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए 6 महीने तक ब्रेस्टफीडिंग कराना अनिवार्य माना जाता है. लेकिन ये कहना कि शहरी महिलाएं फिगर खराब होने के डर से बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराती, उन सैकड़ों महिलाओं की बेइज्जती है, जो घर और ऑफिस एक साथ संभालती हैं.

क्या आपने उन कंपनियों से कभी पूछा है कि उनके दफ्तरों में मांओं के लिए कितने फीडिंग रूम हैं? या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि पब्लिक प्लेस पर कितने फीडिंग रूम हैं?

मैडम, ऐसा विवादास्पद बयान देने की बजाए जिस पद पर आप हैं, और जो अधिकार आपके पास हैं, आपको तो महिलाओं की मदद करनी चाहिए, जिससे वो अपने बच्चों की बेहतर तरीके से देखभाल कर पाएं.

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इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी भी महिलाएं हैं, जो ब्रेस्टफीड नहीं करा सकतीं. शरीर में थायराइड, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, इंसुलिन प्रतिरोध, हार्मोनल डिसऑर्डर जैसी कई बीमारियों के कारण बच्चे के लिए पर्याप्त दूध देने में सक्षम नहीं होतीं.

महिलाएं कई बार शारीरिक परेशानियों की वजह से बच्चों को स्तनपान नहीं करा पाती हैं. वो कोशिश करती हैं, लेकिन इस दबाव में रहती हैं कि बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता, जिसकी वजह से बच्चे कमजोर और कुपोषित होते हैं. कई मां को बच्चों को स्तनपान कराने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसलिए बाहरी दूध ही उनके लिए सबसे बेहतर जरिया माना जाता है.

लेकिन जो महिलाओं का अपमान कर रहे हों, उन्हें ये परेशानियां नजर नहीं आतीं. मैडम, आप इन महिलाओं की मदद के लिए आगे आएं. ऐसे जरिए बनाएं, जिनसे गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार मिल सके. अपनी पावर का इस्तेमाल उन्हें पढ़ाने के लिए करें, न कि शर्मिंदा करने के लिए.

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