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मैं अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करा पाई, तो मुझे सूली पर चढ़ा दो!

कैसा लगता है एक मां को जब वो अपनी संतान को स्तनपान नहीं करा पाती

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(दुनिया भर के 120 से ज्यादा देशों में 1-7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इसका मकसद नवजात शिशु के लिए मां के दूध का महत्व याद दिलाना होता है.)

मेरी बेटी अक्सर मुझसे कहती है, मैं मदर ‘मैटिरियल’ नहीं हूं. वह सही हो सकती है. मेरे बारे में कुछ ऐसा ही अनुमान डॉक्टरों ने भी लगाया था, जब मेरी बेटी का जन्म हुआ था.

जब मेरी बेटी पेट में थी, उस समय मैं बेधड़क होकर अपने काम में लगी रहती थी. काम के लगातार लंबे घंटे होते और कभी-कभी पूरी रात काम करती थी. उसने साफ तौर पर मेरी इस चपलता की सराहना नहीं की और समय से पहले ही बाहर आ गई. वो प्रीमैच्योर बेबी थी.

इसके बाद मेरे सामने 90-दिन की स्तनपान कराने की चुनौती आई.

शिशु रोग विशेषज्ञों के मुताबिक बच्ची को स्तनपान कराना जरूरी था, जिससे उसका वजन जल्दी सामान्य हो जाए.

लेकिन स्तनपान कराने से कही आसान उसके बारे में निर्देश देना होता है.

मेरी प्रीमैच्योर बच्ची स्तनपान नहीं कर रही थी. ऐसा लगता कि उसे भूख नहीं है या वो सिर्फ सोना चाहती है और सभी को इसमें मेरी गलती नजर आई. डॉक्टर, नर्स, बच्चे की देखभाल करने वाली नैनी और यहां तक बच्चे की नैपी लेने घर आने वाले धोबी ने भी यही कहा.

बच्ची का दूध न पीना, उसका वजन न बढ़ना, उसका स्तनपान न करना सब मेरी गलती थी.

अगर दुनिया की सभी 'मां' बिना स्वार्थ के अपने बच्चे को दूध पिला सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं पिला सकती?

स्तनपान न करा पाने से आत्मसम्मान पर चोट

मुझे स्तनपान कराने का सुख क्यों नहीं मिल रहा था?

कभी हार न मानने वाले बच्चों के डॉक्टर ने एक नर्स को बुलाया, जो बच्चों को दूध पिलाने में माहिर थी. समय से पहले जन्मी मेरी बच्ची ने क्लिनिक में एंजल की तरह स्तनपान किया. उस समय नर्स मुझे घूर रही थी.

क्या तब ये इतना आसान था? नहीं!

क्लिनिक में दूध पीने के अलावा बच्ची ने फिर कभी स्तनपान नहीं किया.

मैंने आत्मसम्मान खो दिया था, घंटों चिल्लाती, इतने तनाव के कारण मैं मानसिक रूप से बीमार होने की कगार पर पहुंच गई. मैंने सोच लिया कि किसी योग्य मां को अपना बच्चा दे दूं. डॉक्टर ने मुझे ब्रेस्ट पंप दिया और मैं पागलों की तरह दूध निकालने में लग गई. लेकिन मेरी बच्ची को स्तन का निकाला गया 30 मिलीलीटर दूध पीने में करीब एक घंटा लग जाता.

मैं मातृत्व की परीक्षा में पूरी तरह से असफल हो चुकी थी.

डॉक्टर्स स्तनपान के फायदों का गुणगान करते हुए मुझे आश्चर्य से देखा करते. वो बताते कि बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता, उसके सही वजन, मस्तिष्क के विकास और मां के साथ जुड़ाव के लिए स्तनपान कितना जरूरी है. मां के साथ जुड़ाव? ये सुनकर मुझे लगा कि स्तनपान कराने के बढ़ते दबाव और विफलता की भावना कहीं बच्चे और मेरे बीच का जुड़ाव खत्म न कर दे.

लेकिन बच्ची और मेरे बीच जुड़ाव हुआ. जैसे-जैसे उसका वजन बढ़ा. बदलाव उसके गाल से लेकर कोहनी तक दिखने लगा. ये सब पाउडर वाले दूध से हुआ.

और हां, जबसे उसने पिज्जा का स्वाद चखा, उस बिगड़ैल बच्ची को अब भूख भी लगती है!!

जब दूसरे बच्चे के जन्म का वक्त आया

इसके 6 साल बाद मैं एक बार फिर लेबर रूम में थी. मैंने हांफते हुए एक बच्चे को जन्म दिया. एक भूखा और खुश बेबी ब्वॉय.

समय पूर्व जन्मी बच्ची से मिले आत्मसम्मान पर चोट के निशान मेरे लिए अनजाने नहीं थे. मैं दुनिया में स्तनपान कराने वाली सबसे सफल मां बनना चाहती थी. इसके लिए मैंने तमाम घरेलू नुस्खों के जरिए हर संभव उपाय किए.

डॉक्टरों ने मुझे किसी भी समस्या से बचने के लिए अतिरिक्त दूध को बाहर निकालने को कहा. लेकिन मैंने इसे किसी तरह से बर्बाद करने से इनकार कर दिया. और इसे अपने बच्चे के लिए एकत्रित किया.

मैंने अपने स्तन में दर्द या क्रेक के बारे में डॉक्टरों या दादी को भी नहीं बताया. मुझे इस बात की चिंता थी कि इस बात के खुलासे से मेरे स्तनपान कराने का स्कोर कम हो जाएगा.

इसका परिणाम यह हुआ कि मुझे इंफेक्शन हो गया, जो एक फोड़े के रूप में बदल गया. मैं सर्जरी के लिए अपने छह सप्ताह के बच्चे से दूर हो गई. मैं मातृत्व के पन्ने पर अपनी पहचान दर्ज करने की छह साल की लड़ाई एनेस्थिया के असर के साथ हार रही थी.

अस्पताल में सर्जरी के बाद जब मेरे स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था, तब डॉक्टरों ने मुझे दूध को सुखाने की दवाई दी. उस दौरान डॉक्टर मुझे किसी शैतान से कम नहीं लग रहे थे. उस समय मेरी एक करीबी दोस्त (जिसने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया था) ने मेरे दूसरे बच्चे को दूध पिलाया. दादी ने नाउम्मीदी के साथ बच्चे को बोतल से दूध पिलाना शुरू कर दिया था.

मैं एक बार फिर स्तनपान कराने के सुख वाले मापदंड पर असफल हो गई.

स्तनपान से वंचित मेरे बच्चे (अब क्रमशः 22 साल और 16 साल के) सही तरीके से बड़े हो गए हैं.

उनकी लंबाई और वजन? ठीक है

स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता? (स्तनपान किए हुए बच्चों के समान ही वे वायरल इंफेक्शन से लड़ने में सक्षम)- ठीक है

स्कूल में परफॉर्मेंस? (भारतीय बच्चों के आकलन का महत्वपूर्ण मापदंड)- ठीक

पिंपल काउंट? सही

हार्टब्रेक रेट? सही

मातृत्व के परम सुख यानी स्तनपान के बारे में चिंतित होने वाली सभी नई मम्मियों को मेरी सलाह है कि स्तनपान बहुत अच्छा है और इसके लिए प्रयास करना चाहिए. लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो भी आप एक बहुत अच्छी मम्मी हैं.

मां का दूध सबसे बेहतर होता है, लेकिन डिब्बे का दूध भी ठीक काम करेगा.

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