COVID-19 से उबरने के लिए 'मैजिक बुलेट' का इंतजार सब कर रहे हैं. लेकिन अब तक मरीजों की जान किन दवाओं से बचाई जा सकी है? हम उन दवाओं पर एक नजर डालते हैं जो भारत में COVID-19 के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं.
हालांकि उनमें से कोई भी सिद्ध इलाज नहीं है. ये दवाएं पहले से अन्य बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जा रही थीं जिन्हें कोविड मरीजों के इलाज के लिए भी मंजूरी मिली. अधिकांश अभी भी क्लिनिकल ट्रायल या स्टडी फेज से गुजर रहे हैं और उन्हें महामारी के दौरान 'इमरजेंसी’ या 'ऑफ-लेबल' इस्तेमाल की मंजूरी मिली है.
वहीं, हाल के दिनों में भारत में कई दवाओं का जेनरिक वर्जन भी लॉन्च किया गया.
भारत कैसे COVID-19 का इलाज कर रहा है?
2 जून को, भारत सरकार ने इमरजेंसी में कोविड मरीजों के इलाज के लिए रेमेडेसिविर(Remdesivir) के इस्तेमाल को मंजूरी दी.
भारत में, कोविड-19 के मरीजों को एचआईवी ड्रग्स यानी लोपिनावीर और रिटोनावीर(Lopinavir and Ritonavir) के कॉम्बिनेशन को मुख्य इलाज के तौर पर दिया जा रहा था.
31 मार्च को, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने SARS-CoV2 के गंभीर मरीजों के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन(Hydroxychloroquine) और एजिथ्रोमाइसिन(Azithromycin) के कॉम्बिनेशन के 'ऑफ-लेबल' इस्तेमाल को मंजूरी दी थी.
लेकिन 22 मई को एक संशोधित एडवाइजरी जारी कर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को प्रोफिलैक्सिस यानी संक्रमण से बचाव के लिए इस्तेमाल की मंजूरी दी गई.
क्या है दवाओं का ‘इमरजेंसी यूज’ और ‘ऑफ-लेबल यूज’?
किसी दवा के 'ऑफ-लेबल’ यूज का मतलब है, किसी विशेष बीमारी के लिए अप्रूव दवा का इस्तेमाल दूसरे किसी बीमारी में करना.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक किसी दवा का ‘ऑफ-लेबल यूज’ किया जा सकता है अगर संभावित फायदे का प्रमाण हो और इलाज के लिए कोई स्टैंडर्ड थेरेपी नहीं हो. इसके बारे में मरीजों को सूचित किया जाना और उनकी सहमति लेने के साथ ही मॉनिटरिंग भी होनी चाहिए.
जब इलाज के लिए कोई स्टैंडर्ड थेरेपी नहीं हो और दवा को अप्रूव कराने के लिए पर्याप्त समय न हो, वैसी इंवेस्टिगेशनल दवाओं के इस्तेमाल को गंभीर स्थिति में ‘इमरजेंसी यूज’ के लिए मंजूरी दी जाती है. जिस किसी कोविड मरीज को इलाज के दौरान ये दवा दी जाएगी, उसके लिए पहले मरीज की मौखिक और लिखित सहमति जरूरी होगी.
भारत में इन दवाओं का हो रहा इस्तेमाल
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल किया जाने वाला एंटी-वायरल ओरल ड्रग है. पहले गंभीर संक्रमण के मामले में इसके ‘ऑफ लेबल’ इस्तेमाल की मंजूरी थी लेकिन अब ये प्रोफिलैक्सिस के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाएगा. एसिम्प्टोमेटिक हेल्थ केयर वर्कर्स या लैब रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर मरीजों के लिए निर्धारित डोज के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है.
15 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं दी गई है.
बता दें, WHO ने कोविड के इलाज के तौर पर इसके इस्तेमाल को रद्द कर दिया है लेकिन भारत में ये अब भी कोविड मरीजों के लिए ‘ऑफ लेबल’ इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.
भारत में मैन्यूफैक्चरिंग
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक फिलहाल, देश में 12 मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन कर रही हैं, जिनमें जाइडस कैडिला (Zydus Cadila) और Ipca लैब सबसे बड़े मैन्यूफैक्चरर हैं. इनके अलावा इंटास फार्मास्यूटिकल्स, इंदौर के मैकडब्ल्यू हेल्थकेयर, मैकलोड्स फार्मास्यूटिकल्स, सिप्ला और ल्यूपिन शामिल हैं.
कीमत: 3 रुपये प्रति टैबलेट से भी कम
रेमडेसिविर
ये इंजेक्शन के जरिये दी जाने वाली एक एंटी-वायरल दवा है, जिसे सबसे पहले 2014 में इबोला के इलाज में इस्तेमाल किया गया था.
रेमडेसिविर ‘इमरजेंसी यूज’ के तहत मॉडरेट मरीजों को दी जा सकती है, जो ऑक्सीजन पर हों. हालांकि इसका इस्तेमाल 12 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और किडनी की गंभीर बीमारी के मरीजों के लिए नहीं किया जा सकता है.
भारत में मैन्यूफैक्चरिंग
इस दवा को अमेरिका की बायोफार्मा कंपनी गिलियड साइंसेज ने बनाया है. जून 2020 में भारतीय कंपनी सिप्ला और हेटेरो को इसके मैन्यूफैक्चरिंग-मार्केटिंग की मंजूरी मिली. सिप्ला ने सिप्रेमी(CIPREMI) नाम से और हेटेरो ने कोविफोर(COVIFOR) नाम से इसका जेनरिक वर्जन लॉन्च किया है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक हेटेरो 5,000 से 6,000 रुपये प्रति वायल कीमत पर बेचेगी. वहीं सिप्ला इसकी कीमत 5,000 रुपये से कम रखेगी.
ट्रीटमेंट की कीमत: 35,000-50,000 रुपये
भारत में जुबिलेंट फार्मा, जाइडस कैडिला, डॉ. रेड्डीज, माइलैन(Mylan NV) कंपनियां भी रेमडेसिविर के मैन्यूफैक्चरिंग-मार्केटिंग का लाइसेंस पाने के लिए कतार में हैं.
फैविपिराविर (Favipiravir)
ये एक ओरल एंटी-वायरल दवा है और जापान में इन्फ्लूएंजा के इलाज के लिए इसे मंजूरी मिली हुई है. जापान की फ्यूजीफिल्म टोयामा केमिकल लिमिटेड एविगान(Avigan) ब्रांड नाम से इसे बनाती है.
भारत में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DGCI) ने माइल्ड और मॉडरेट केस में इलाज के तौर पर इसके ‘इमरजेंसी यूज’ को मंजूरी दी है. गुर्दे, लीवर की गंभीर समस्या वाले मरीज, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए इसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
भारत में मैन्यूफैक्चरिंग
भारत की कई कंपनियों ने इसका जेनरिक वर्जन लॉन्च किया है. भारतीय दवा कंपनी सन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने इसे फ्लूगार्ड (FluGuard) नाम से लॉन्च किया है. ये दवा 35 रुपये प्रति टैबलेट के हिसाब से उपलब्ध होगी.
कंपनी हेटेरो फेविविर (Favivir) नाम से 59 रुपये प्रति टैबलेट इसे उपलब्ध कराएगी. सिप्ला ने सिप्लेंजा(Ciplenza) ब्रांड नाम से 68 रुपये प्रति टैबलेट इसकी कीमत रखी है.
ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स ने सबसे पहले भारत में इसे फैबिफ्लू (FabiFlu) नाम से मरीजों के लिए लॉन्च किया था. 34 टैबलेट की एक स्ट्रिप की कीमत 3500 रुपये है. जून में कंपनी ने 103 रुपये प्रति टेबलेट(200 mg) की कीमत के साथ इसे लॉन्च किया था. लेकिन हाल ही में कीमत घटा कर 75 रुपये / टैबलेट कर दी गई है.
ट्रीटमेंट की कीमत: 12, 000-15,000 रुपये
इटोलीजुमैब (Itolizumab)
इटोलीजुमैब दवा को बनाने वाली कंपनी भारतीय बायो फार्मास्यूटिकल कंपनी बायोकॉन है. COVID-19 के इलाज में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन इटोलीजुमैब को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने ‘रेस्ट्रिक्टेड इमरजेंसी यूज’ की इजाजत दी है. कोविड-19 के मॉडरेट और गंभीर मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
इटोलीजुमैब का इस्तेमाल पहले से स्किन से संबंधित बीमारी सोरायसिस के इलाज में होता आया है. कोविड मरीजों में इसका इस्तेमाल ‘साइटोकाइन स्टॉर्म’ पर कंट्रोल करने के लिए है.
ट्रीटमेंट की कीमत: 32 हजार रुपये(8 हजार रुपये प्रति वायल)
टोसिलिजुमैब (Tocilizumab)
टोसिलिजुमैब रूमटॉइड गठिया (rheumatoid arthritis) में इस्तेमाल की जाने वाली दवा है. भारत में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए टोसिलिजुमैब इंजेक्शन के ‘ऑफ-लेबल' इस्तेमाल को मंजूरी मिली है.
इसका उत्पादन अमेरिका की 'रॉश' नाम की अंतरराष्ट्रीय कंपनी करती है. भारत में सिप्ला कंपनी एक्टेम्रा (Actemra) ब्रांड नाम से इसकी मार्केटिंग करती है.
कीमत: 40,000 से 50,000 प्रति वायल
स्टेरॉयड: डेक्सामेथासॉन और मिथाइल प्रेडिसोनोल
स्टेरॉयड शरीर में सामान्य रूप से बनने वाले हार्मोन होते हैं. लेकिन ये दवाओं के रूप में भी मिलते हैं.
डेक्सामेथासॉन(Dexamethasone)
अब तक की एकमात्र दवा जो कोविड मरीजों के मृत्यु दर पर प्रभाव दिखाती है. यूके के RECOVERY ट्रायल से पता चला है कि गंभीर मरीज जो वेंटिलेटर पर थे, उन्हें इसका काफी कम डोज दिया गया और इससे एक तिहाई तक मौतों की संख्या में कमी देखी गई.
वैसे मरीज जिन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है- मॉडरेट और गंभीर केस में ‘ऑफ-लेबल' इस्तेमाल की मंजूरी मिली है. ये दवा इम्यून रिस्पॉन्स और साइटोकाइन स्टॉर्म को कंट्रोल करने का काम करती है.
ये एक पुरानी, सस्ती दवा है. करीब 20 कंपनियां भारत में दवा बनाती हैं.
कीमत: इसकी लागत 30 पैसे से कम है, 10 टैबलेट की एक स्ट्रिप 3 रुपये में आती है.
मिथाइल प्रेडिसोनोल(methylprednisolone)
मॉडरेट और गंभीर केस में एंटी इंफ्लैमेटरी ड्रग के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.
लो मॉलिक्यूलर वेट हिपरिन , (low molecular weight heparin) और एनोक्जैपरिन(enoxaparin)
मॉडरेट और गंभीर कोविड मरीजों के शरीर में खून के थक्के और थ्रोम्बोजेनिक रिस्पॉन्स को रोकने के लिए इस्तेमाल की जा रही है.
एंटी-बायोटिक दवाएं
इलाज और संभावित संक्रमण से बचाव के लिए के लिए एजिथ्रोमाइसिन, आइवरमेक्टिन (Ivermectin) का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कोविड मरीजों के लिए, आइवरमेक्टिन डॉक्सीसाइकलीन (Doxycyclin) के साथ दिया जा रहा है.
संक्रमण से बचाव के लिए (प्रोफिलैक्सिस इस्तेमाल) स्वास्थ्य कर्मियों को, पहले, सातवें और 30वें दिन और फिर महीने में एक बार आइवरमेक्टिन खुराक देने का सुझाव दिया गया है.
हालांकि, गर्भवती महिलाओं या 2 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सलाह नहीं दी गई है. ये एंटी-वायरल और एंटी-कैंसर गुणों वाली दवा है. जर्नल साइंस ने 12 जून को लिखा कि 5 µM आइवरमेक्टिन से COVID-19 वायरस के वायरल आरएनए में करीब 5000-गुना कमी आई और दवा ने 48 घंटे के अंदर करीब सभी वायरल कणों को प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया.
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