भारत में COVID-19 से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदम कितने प्रभावी हो सकते हैं, ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जरूरत क्यों है और क्या गर्मी आने के साथ इस वायरस का भी खात्मा हो जाएगा? इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए फिट ने रिचर्ड A. एंड सुसान F. स्मिथ सेंटर फॉर आउटकम रिसर्च, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में एसोसिएट डायरेक्टर डॉ ध्रुव एस काज़ी से बात की है.
इस तरह की महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए लॉकडाउन कितना प्रभावी हो सकता है?
भारत इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए पहले से जुटा है. जो एक्शन लिए गए, जल्दी लिए गए, जो कि एक अच्छी बात है. लेकिन भारत में ज्यादा टेस्टिंग नहीं की गई है. जब तक आप टेस्ट नहीं करते हो, सिर्फ लक्षण वाले लोगों का ही नहीं बल्कि जब तक कम्युनिटी में टेस्ट नहीं करते हो, तब तक बीमारी कितनी फैल चुकी है, ये साफ तौर पर पता नहीं चलता है. सीमित टेस्टिंग और सीमित संसाधन के मद्देनजर लॉकडाउन महत्वपूर्ण है, लेकिन चुनौती ये है कि बीमारी पर काबू पाने के लिए हम सिर्फ 21 दिनों की बात नहीं कर रहे हैं. 21 दिनों की बात राजनेताओं की ओर से की जा रही है. लेकिन सच ये है कि हमें 6 हफ्ते तक के सोशल आइसोलेशन की जरूरत है और शायद उससे ज्यादा भी हो सकता है. ऐसे लोग जिनकी उम्र ज्यादा है, जिन्हें दिल या फेफड़े की कोई बीमारी है, जिनके लिए किसी भी कारण से जोखिम ज्यादा है, उनके लिए 6 महीनों के आइसोलेशन की जरूरत हो सकती है.
अमेरिका में जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनमें एक तरह से काफी छूट है, इस बीमारी से निपटने को लेकर अमेरिका और भारत में उठाए कदमों के बीच क्या अंतर है?
अमेरिका के बारे में गवर्नेंस को लेकर एक बात ये है कि वहां सेंट्रल गवर्नमेंट है, लेकिन राज्य के पास ज्यादा शक्तियां हैं, ये बात भारत से अलग है. अमेरिका में हर राज्य अपना काम कर रहे हैं. ये सही है कि भारत के प्रतिबंध ज्यादा कड़े हैं, लेकिन भारत का हेल्थ सिस्टम ज्यादा कमजोर है.इसलिए मुझे लगता है कि भारत में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध कि घर से बाहर निकलना ही नहीं है, ठीक कदम हैं.
आप इस वायरस के बारे में समझा सकते हैं ताकि लोगों को समझ आए कि क्यों इन 21 दिनों में ही वायरस का खात्मा नहीं होगा?
ये कहना कि 21 दिनों में भारत इस वायरस पर काबू पा लेगा, ये बकवास है. आइसोलेशन से संक्रमण सीमित हो सकता है, पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकता. जिस दुनिया में हम रह रहे हैं, वायरस का फैलना 21 दिनों के बाद भी जारी रह सकता है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की ओर से टेस्ट पर जोर दिया गया है. ज्यादा टेस्टिंग की जरूरत और और ये कहना कि ‘हम अभी लोकल ट्रांसमिशन की स्टेज पर हैं इसलिए सभी के टेस्ट की जरूरत नहीं है’ आपका इस पर क्या कहना है?
ये साफ है कि जब वैश्विक महामारी के इतिहास में खासकर अमेरिका में इस महामारी के लिए शुरुआत इस बात से की जाएगी कि अमेरिकी लोगों में SARS-CoV-2 की पर्याप्त टेस्टिंग न करना सबसे बड़ी गलती थी. भारत में हर महामारी के मामले में जानकारी महत्वपूर्ण है. इसलिए अगर आप टेस्ट नहीं करेंगे, तो आप ये नहीं जान पाएंगे कि बीमारी कितनी फैल रही है. अगर आप टेस्ट करते हो और देखते हो कि 21 दिनों के बाद इन्फेक्शन का रेट कम हुआ है, तो सोशल डिस्टेन्सिंग और कर्फ्यू से राहत दी जा सकती है. टेस्टिंग महामारी के हर स्टेज के लिए जरूरी है. वहीं भारत में टेस्टिंग की रेट अभी काफी कम है.
ऐसा माना जा रहा कि नोवल कोरोनावायरस बुजुर्गों के लिए ज्यादा खतरनाक है, लेकिन अमेरिका में युवा लोगों को भी इससे गंभीर बीमारी हो रही है. इस बारे में आप क्या कहते हैं?
शुरुआत में ये पाया गया कि जिनकी उम्र 60 से ज्यादा है, जिन्हें दिल की बीमारी है, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज है, उन्हें जोखिम ज्यादा है. लेकिन अमेरिका में हम देख रहे हैं कि बहुत से युवा लोग जिन्हें कोई बीमारी नहीं है, स्वस्थ युवा लोग जो 20, 30, 40 साल के हैं, उन्हें भी इससे बहुत गंभीर बीमारियां हो रही हैं.
डॉक्टर और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर आपकी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन पर क्या राय है?
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के इस्तेमाल को लेकर जो डेटा है, वो बहुत कमजोर है. ये सब लोग जो हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन की बात कर रहे हैं, वो पब्लिक हेल्थ के लिए ठीक नहीं है क्योंकि ये बहुत सेफ ड्रग नहीं है. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के कुछ डोज का दिल पर भी असर पड़ सकता है. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन की गलत डोज ले लेने से अमेरिका में एक शख्स की मौत हो चुकी है, जिसने न्यूज में इसके बारे में पढ़ा था. इसलिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन ऐसी दवा है, जिस पर निगरानी की जरूरत है. क्लोरोक्विन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन मलेरिया, रूमेटाइड अर्थराइटिस, ल्यूपस के लिए यूज की जाती हैं, उन लोगों के लिए ये दवा बचेंगी नहीं अगर हम इन्हें COVID-19 के लिए खरीद लेंगे. जहां तक COVID-19 से बचाव के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के इस्तेमाल की बात है, तो इस पर कोई डेटा नहीं है. इलाज में इसके इस्तेमाल पर कम से कम कमजोर डेटा तो हैं, लेकिन बचाव की दवा के तौर पर कोई डेटा नहीं है और मैं इसकी सलाह बिल्कुल नहीं दूंगा.
मैं जानना चाहती हूं कि किसको N95 मास्क और फुल PPE किट की जरूरत है और किसके लिए सेव किया जाए?
पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) की सबसे ज्यादा जरूरत डॉक्टरों और नर्सों के लिए है न कि कम्युनिटी में लोगों के लिए. अगर आपके पास मास्क का स्टॉक है, जो आपने जरूरत पड़ने के लिए रखा है, उसे वापस डॉक्टर या हॉस्पिटल में दे आएं. दो तरह के मास्क हैं: एक सर्जिकल मास्क और दूसरा N95 मास्क. यहां अमेरिका में हर हेल्थकेयर प्रोवाइडर के पास सर्जिकल मास्क जरूरी है. आप बिना सर्जिकल मास्क के हॉस्पिटल नहीं आ सकते हैं. ये थोड़ा ज्यादा है लेकिन हम इस वक्त नहीं बता सकते हैं कि कौन संक्रमित है और कौन नहीं और इसलिए हमें सभी प्रोवाइडर को सुरक्षित करना है. N95 मास्क का इस्तेमाल ICU में करते हैं या जब ये रिस्क होता है कि हवा में बहुत से वायरस पार्टिकल हैं.
डॉक्टर्स के लिए ये समझना भी जरूरी है कि सिर्फ PPE होना काफी नहीं है, ये बहुत संक्रामक बीमारी है और PPE का इस्तेमाल ठीक तरीके से कैसे करना है, ये समझना भी जरूरी है. अगर आप मास्क यूज करते हो और फिर हाथों से उसे छूते हो तो आप अपने हाथ संक्रमित कर रहे हो. अगर आप रेनकोट यूज कर रहे हो और उसे वापस घर ले जा रहे हो, तो आप घर पर भी इन्फेक्शन का खतरा बढ़ा रहे हो. हम जानते हैं कि ये वायरस किसी चीज या सतह पर 3 से 7 दिनों तक रह सकता है.
इसलिए ये सोचने के साथ कि खुद को बचाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है, ये भी समझना जरूरी है कि PPEs को हैंडल कैसे करना है. कम्युनिटी में लोगों का N95 मास्क यूज करना ठीक नहीं है, ये एक तरह से मास्क की बर्बादी है. मास्क किसी ऐसे को दिया जाना चाहिए जिसे पता हो कि इसे कैसे यूज करना है और जो ज्यादा जोखिम में है. लोगों के लिए इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि अपने हाथ साबुन से धोएं और जितना हो सके एक-दूसरे से दूर रहें.
गर्मी और वायरस पर इसके प्रभाव को लेकर काफी कुछ कहा गया है. इसके बारे में ये बात कही जा रही है कि अप्रैल का महीना आ गया है और गर्मी में यानी मई-जून में ये वायरस खत्म हो जाएगा. इसके बारे में आप कुछ जानकारी दे सकते हैं?
इसका सीधा जवाब है कि ऐसा होने की कल्पना की जा रही है. कई कोल्ड वायरस गर्मियों में घटते जाते हैं, लेकिन ये वायरस अलग है. हम इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं. हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये गर्मी में कम हो जाएगा. हालांकि ऐसा मान लेने के बारे में हमें कुछ नहीं पता है. ये कहना अच्छा है कि ऐसा हो सकता है. सच्चाई ये है कि कोरोनावायरस को गर्मी और सर्दी में फैलने के लिए जाना जाता है. वहीं लोगों में हमने इस वायरस को पहले नहीं देखा, इसलिए कम्युनिटी में इसके खिलाफ कोई इम्यूनिटी नहीं है, इसलिए ये कहना बहुत मुश्किल है कि ये गर्मियों में कैसे कम होने वाला है. हमें 6 महीनों के लिए तैयार रहना चाहिए.
ये असल में एक महामारी है, जिससे जान को खतरा है. इसका अर्थव्यवस्था पर पहले ही काफी असर पड़ चुका है, लेकिन अगर हमने इसे सही तरीके से मैनेज नहीं किया तो अर्थव्यवस्था पर इसका और ज्यादा असर पड़ेगा. इसलिए सरकार और पब्लिक हेल्थ एक्पर्ट्स के निर्देशों का पालन करें. इस खतरे की गंभीरता को समझें. चाहे आप 14 या 40 या 80 साल के हों इस खतरे को गंभीरता से लें.
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